उजड़ गया परिवार, अनाथ हो गए बच्चे
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बिलासपुर (निप्र)। तखतपुर ब्लॉक के ग्राम पेंडारी के नसबंदी शिविर ने कई घरों को तबाह कर दिया है। कई मासूमों के सिर से 'ममता' छिन गई और वे अब अनाथ हो गए हैं। अब ये बच्चे सुबह से शाम से मां-मां कहकर आंसू बहा रहे हैं, लेकिन उनके आंसू को पोंछने के लिए अब तक प्रशासन की ओर कोई पहल नहीं की गई है।
कई नन्हें बच्चों को तो यह भी पता नहीं है कि उनकी मां अब इस दुनिया में नहीं रही। कई परिवार में तो मां ही अकेली कमाने वाली थी। ऐसे परिवार का क्या होगा, बच्चों का क्या होगा? किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं है। हसंते-खेलते जीवन में एकाएक बच्चों के सिर से मां साया उठ जाना इससे बड़ा दुख और क्या हो सकता है? भूख से बिलखते इन बच्चों को परिजन बोतल से दूध पिलाकर शांत कराने की कोशिश कर रहे हैं। किसी को मौसी, बुआ तो किसी को चाची अपनी गोद में लेकर चुप करा रहे हैं, लेकिन बच्चे सिर्फ अपनी मां का ही इंतजार कर रहे हैं।
15 साल की अर्चना पर घर की जिम्मेदारी
नसबंदी के बाद ग्राम घुरू की नेमबाई सूर्यवंशी ने अपोलो अस्पताल में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। अपने पीछे वह पांच बच्चों को अनाथ छोड़ गई है। उसमें सबसे छोटा सूर्यकांत दो महीने का ही है। बड़ी दीदी 15 साल की अर्चना उसे गोद में लेकर दिनभर चुप कराने का प्रयास कर रही है। उसके पिता विकलांग है, इसके कारण छोटी सी उम्र में ही उस पर बड़ी जिम्मेदारी आ गई है।
पिता को निभानी पड़ेगी मां की जिम्मेदारी
ग्राम लोखंडी की दुलुरीन बाई पटेल को नसबंदी के बाद तबीयत बिगड़ने पर किम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। मंगलवार को इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। अभी उसका बच्चा महीनेभर का ही है। बच्चे का पिता दिनेश उसे गोद में लेकर बोतल से दूध पिलाने का प्रयास करते रहता है। मां से दूध पीने का आदी बच्चा बोतल के दूध को मुंह भी नहीं लगा रहा है। अब दिनेश को मां की भी भूमिका निभानी होगी।
बड़ी मां को देना है मां और नाना-नानी का प्यार
ग्राम पिरैया की चंद्रकली भी नसबंदी शिविर की शिकार हो गई है। उसकी मौत से तीन बच्चों के सिर से मां का साया उठ गया है। इसमें दो साल की नन्ही सरस्वती भी है। बच्चों के नाना-नानी भी पहले से ही चल बसे हैं। अब बड़ी मां अमरीका बाई को ही उन बच्चों की मां और नाना-नानी की भूमिका निभानी होगी।
ये परिवार भी चिंतित
ग्र्राम निरतू की रंजीता, वेदपरसदा की सुनीता साहू, अमसेना की फूल बाई और रेखा, चिचिरदा की जानकी बाई, डिंगोरा की दीप्ति यादव, तखतपुर की पुुष्पा और नीरा, धनोली की चैती को भी मनहूस शिविर ने हमेशा के लिए सुला दिया। किसी का एक महीना तो किसी का छह महीने का छोटा बच्चा है। परिवार वालों को उनके लालन-पालन की चिंता सताए जा रही है।
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