कानून में संशोधन करेंगे जेटली यही चाहते हैं
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने रविवार को दिल्ली में इण्डिया ग्लोबल फोरम के कार्यक्रम में संकेत दिए कि सरकार भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करने जा रही है। उन्होंने कहा कि कुछ संशोधन आवश्यक हैं। सरकार पहले आम सहमति बनाने का प्रयास करेगी लेकिन यदि सहमति नहीं बन पाई तो भी सरकार कठोर निर्णय लेने के लिए तैयार है। जेटली ने कहा कि देश में स्मार्ट सिटी बनाने के लिए ऎसी बाधाओं को दूर करना जरूरी है।
इससे पूर्व जुलाई में राज्यों के राजस्व मंत्रियों की बैठक में भी इस कानून में संशोधन की मांग उठ चुकी है। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी लोकसभा में कह चुके हैं कि सदन साथ दे तो सरकार कानून में बदलाव करने को तैयार है। ग्रामीण विकास मंत्रालय भी अनिवार्य सामाजिक प्रभाव आकलन और सहमति के प्रावधान में संशोधन का सुझाव दे चुका है। मंत्रालय 80 प्रतिशत प्रभावितों की सहमति को घटाकर 50 प्रतिशत करवाना चाहता है।
अंधाधुंध अधिग्रहण बन्द हो
देश के मुख्य न्यायाधीश एच.एल. दत्तू ने अहमदाबाद में एक कार्यक्रम में किसानों की पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सरकार यदि कृषक समुदाय की सही मायने में मदद करना चाहती है तो सबसे जरूरी है कि उद्योगों के लिए उसकी जमीन का अधिग्रहण, कम से कम किया जाए। हमें यह ध्यान रखना होगा कि किसान पूर्ण रूप से जमीन पर ही आश्रित होता है, यही उसकी रोजी-रोटी है। जब किसी की रोटी छिनती है तो इस मामले में उसके साथ नम्रता से ही पेश आना चाहिए। यह सही है कि राज्य संप्रभु है और इसीलिए वह किसान की जमीन को ले सकता है लेकिन जब आप किसान को उस जमीन के बदले में मुआवजा देते हैं तो मुझे लगता है कि जिसकी रोजी-रोटी छिन रही हो, वह केवल जमीन के मुआवजे का ही नहीं, कुछ अधिक पाने का हकदार है। मेरा यह सब कहने के पीछे एक ही उद्देश्य है कि किसान के पास से उसकी जरूरत की जमीन जा रही है, यह उसकी रोटी है। मेहरबानी करके, उसे उचित मुआवजा दीजिए।
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने रविवार को दिल्ली में इण्डिया ग्लोबल फोरम के कार्यक्रम में संकेत दिए कि सरकार भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन करने जा रही है। उन्होंने कहा कि कुछ संशोधन आवश्यक हैं। सरकार पहले आम सहमति बनाने का प्रयास करेगी लेकिन यदि सहमति नहीं बन पाई तो भी सरकार कठोर निर्णय लेने के लिए तैयार है। जेटली ने कहा कि देश में स्मार्ट सिटी बनाने के लिए ऎसी बाधाओं को दूर करना जरूरी है।
इससे पूर्व जुलाई में राज्यों के राजस्व मंत्रियों की बैठक में भी इस कानून में संशोधन की मांग उठ चुकी है। सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी लोकसभा में कह चुके हैं कि सदन साथ दे तो सरकार कानून में बदलाव करने को तैयार है। ग्रामीण विकास मंत्रालय भी अनिवार्य सामाजिक प्रभाव आकलन और सहमति के प्रावधान में संशोधन का सुझाव दे चुका है। मंत्रालय 80 प्रतिशत प्रभावितों की सहमति को घटाकर 50 प्रतिशत करवाना चाहता है।
अंधाधुंध अधिग्रहण बन्द हो
देश के मुख्य न्यायाधीश एच.एल. दत्तू ने अहमदाबाद में एक कार्यक्रम में किसानों की पीड़ा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि सरकार यदि कृषक समुदाय की सही मायने में मदद करना चाहती है तो सबसे जरूरी है कि उद्योगों के लिए उसकी जमीन का अधिग्रहण, कम से कम किया जाए। हमें यह ध्यान रखना होगा कि किसान पूर्ण रूप से जमीन पर ही आश्रित होता है, यही उसकी रोजी-रोटी है। जब किसी की रोटी छिनती है तो इस मामले में उसके साथ नम्रता से ही पेश आना चाहिए। यह सही है कि राज्य संप्रभु है और इसीलिए वह किसान की जमीन को ले सकता है लेकिन जब आप किसान को उस जमीन के बदले में मुआवजा देते हैं तो मुझे लगता है कि जिसकी रोजी-रोटी छिन रही हो, वह केवल जमीन के मुआवजे का ही नहीं, कुछ अधिक पाने का हकदार है। मेरा यह सब कहने के पीछे एक ही उद्देश्य है कि किसान के पास से उसकी जरूरत की जमीन जा रही है, यह उसकी रोटी है। मेहरबानी करके, उसे उचित मुआवजा दीजिए।
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