Wednesday, November 12, 2014

मासूमों से छीन लिया मां का आंचल

मासूमों से छीन लिया मां का आंचल

Mother taken away from the edge of the Innocent


Mother taken away from the edge of the Innocent
11/12/2014 4:16:52 AM
बिलासपुर। परिवार की खुशहाली के लिए नसबंदी ऑपरेशन करवाया, लेकिन सरकारी शिविर ने गरीब मासूमों से उनकी मां का आंचल छीन लिया। अब पिता को रोजी-मजदूरी के साथ बिलखते बच्चों को भी संभालना पड़ेगा। पत्नी की मौत से व्यथित डिघोरा के धन्नालाल और अमसेना में रूपचंद का परिवार सरकारी व्यवस्था को कोस रहा है। उनके सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है। वे आंखों में आंसू लिए पूछ रहे हैं, क्या यही परिवार नियोजन की खुशहाली है?
सरकार ने हमें "छोटा परिवार, सुखी परिवार" का सपना दिखाया। बच्चों की जिंदगी खुशहाल बनाने की बात कही, लेकिन लापरवाही और स्तरहीन दवाइयों ने हमारा घर ही उजाड़ दिया। हम गरीबों का कोई नहीं है। सरकार अब मौतों की बोली लगा रही है, दो लाख-चार लाख से क्या बच्चों की मां वापस मिल जाएगी?
मां की अर्थी उठते ही फूट-फूट कर रो पड़े बच्चे
घर के दरवाजे पर फूलबाई की अर्थी रखी थी। पति रूपचंद व परिजन रो रहे थे। मासूम नारायण, विनीता और नितेश को कुछ पता नहीं था। वे यही मानते रहे कि मां सो रही है। वहां मौजूद लोगों मेे भी इतना साहस नहीं था, कि वे उन्हें सच्चाई बता सकें। परिजनों के कहने पर बच्चों ने अर्थी पर फूलमाला डाली। एक साल के बच्चे से भी फूल डलवाए गए। बच्चों को दुख का एहसास तब हुआ, जब लोग अर्थी उठाकर श्मशान ले जाने लगे। बच्चे फूट-फूटकर रोने लगे। तखतपुर ब्लॉक के ग्राम अमसेना में जिसने भी ये मार्मिक नजारा देखा, अपने आंसू रोक नहीं सका। दूर के रिश्तेदार और गांव वालों की आंखें भी भर आई।
रूपचंद श्रीवास ने किसी तरह अपने बच्चों को संभाला नारायण (8 वर्ष), लाडली विनीता (4 वर्ष) और नितेश (1 वर्ष) को दिलासा देता रहा, लेकिन खुद उसके आंसू छलकते रहे। वह कभी बच्चों को देखता तो कभी अर्थी पर लेटी पत्नी को। एक बारगी तो वह निढाल होकर गिरने लगा। दूसरे लोेगों ने उसे सहारा दिया, फिर साहस जुटाकर मासूम बच्चों के सामने से "मां" की अर्थी लिए श्मशान की तरफ बढ़े। बच्चे रोते-बिलखते अर्थी के पीछे भागते रहे। बड़ी मुश्किल से परिजन उन्हेे रोक सके।
अस्पतालों में ऎसी है व्यवस्था
संभाग के सबसे बड़े सिम्स और जिला अस्पताल तक में फूलबाई को सही इलाज नहीं मिल सका। उसे जिला अस्पताल से सिम्स और सिम्स से अपोलो रेफर किया गया। समय पर उचित इलाज न मिलने के कारण मौत हो गई।
शिविर में दी गई दवाइयां ले गए
रूपचंद ने बताया कि सोमवार की शाम ही कुछ लोग स्वास्थ्य विभाग के वाहन से आए थे और कलेक्टर का फरमान बताकर जांच का हवाला दिया और शिविर में दी गई दवाइयां मांगकर ले गए।
दुधमुंहे बच्चे को छोड़ गई मां
तखतपुर ब्लाक के ग्राम डिघोरा का यादव परिवार भी इस सरकारी बदइंतजामी और लापरवाही का शिकार हुआ। धन्ना यादव की 32 वर्षीया पत्नी दीप्ती अपने पीछे तीन माह की दुधमंुही बेटी तुलेश्वरी, बेटे साढ़े तीन साल के इंद्र प्रसाद और 9 साल के नीलकमल को छोड़कर हमेशा-हमेशा के लिए चली गई। धन्नालाल गांव में ही मजदूरी करके अपने परिवार चलाता है। गांव की मितानिन के कहने पर दीप्ती ने जिद की तो वह नसबंदी के लिए तैयार हो गया। उसे क्या पता था कि यह सरकारी शिविर उसका परिवार ही उजाड़ देगा। मासूम बच्चों से उनकी मां छीन लेगा।
टैबलेट का रैपर दिखाया
धन्नलाल ने दवाई का रैपर दिखाते हुए बताया कि यही दवाइयां उसकी पत्नी को खाने के लिए दी गई थीं। सिप्रोसिन 500 और आईबू्रफेन की सरकारी सप्लाई के जरिए शिविर में बंटीं। इनमें एक पर एक्सपायरी डेट भी नहीं लिखी है। दूसरी दवा सिप्रोसिन पर कालातीत होने की अवधि नवंबर 2016 अंकित है।
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