माओवादी प्रवक्ता को एक खुला खत...
2017-05-04
शुभ्रांशु चौधरी वरिष्ठ पत्रकार
सुकमा हमला : पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के बस्तर में हुए माओवादी हमले में सुरक्षा बल के 25 जवानों की मौत हो गई। कहा जा रहा है, इस हमले में स्थानीय आदिवासियों को ढाल बनाया गया। ऐसा हमला पहली बार नहीं हुआ इसीलिए सवाल है कि क्योंं होते हैं ये हमले? क्या है इनके पीछे की सोच? क्या इससे कुछ हासिल हो भी सकता है?
प्रिय वासु,
पिछले हफ्ते, बहुत दिनों बाद आपकी आवाज सुनकर अच्छा लगा। आपने माओवादी प्रवक्ता की तरह किसी अज्ञात स्थान से एक ऑडियो विकल्प के नाम से भेजा। लेकिन, न विकल्प आपका सही नाम है और न ही वासु! पर आपके आंदोलन की 50 वीं वर्षगांठ पर कुछ बातें आपसे करना जरूरी है।
पिछले दिनों 25 जवानों को एक हमले में मारकर आपका आंदोलन फिर से चर्चा में है। आपने कहा है कि सुरक्षा बल के जवानों द्वाराआम आदिवासी पर किये गए पाशविक अत्याचार का बदला लेने के लिए आपकी पार्टी ने यह हमला किया। पचास की उम्र सिर्फ इस तरह के हमले और प्रतिहमलों के लिए ही होती है। आप और हम एक दूसरे को अब लगभग 30 साल से जानते हैं। एक पत्रकार की तरह आप माओवादी आंदोलन में मेरे पहले संपर्क सूत्र थे। एक राजनीतिज्ञ के तौर पर आपके जज्बे व समर्पण को मैं अब भी सलाम करता हूं।
आप सभी मेहनती हैं पर आपकी यह मेहनत आपको, आपकी राजनीति और आपका साथ देनेवाले आदिवासियों को, कहां ले जा रही है? आपके बड़े नेता मुझे कहते हैं कि अगले 50 सालों में पूंजीवाद अपने ही बोझ तले ध्वस्त हो जाएगा तब आपकी राजनीति एक विकल्प की तरह सामने होगी। उस समय तक आप और मैं दोनों नहीं होंगे पर जिन आदिवासियों के कंधे पर बंदूक रखकर आप यह प्रयोग कर रहे हैं, वे कहां होंगे?
दुनिया में बेहतर लोकतंत्र के लिए तरह-तरह के प्रयोग हो रहे हैं। वे प्रयोग भी अधिक सफल नहीं हैं पर मुझे लगता है कि तकनीक की मदद से किये जा रहे कुछ प्रयोग आपके प्रयोग से तो अधिक आशा जगाते हैं। आपके बड़े नेता आज भी फ्रांंस की क्रांति के युग में जी रहे हैं और उसके ही सपने बेच रहे हैं।
इन दिनों वहां चुनाव होने वाले हैं और जनता को नवफासीवाद और नवउदारवाद के बीच ही चुनाव करना है। वहां इस पर खासी बहस हो रही है। आशा है, इन सब जद्दोजहद के बीच पूरी मानव जाति के लिए धीरे-धीरे बेहतर रास्ते निकलेंगे कि हमारी राजनीति कैसी होनी चाहिए? आपने अपनी राजनीति के लिए जंगल की खामोशी, लुका-छिपी और दुनिया के सबसे निरीह लोगों को चुना है, जहां बहस की गुंजाइश लगभग शून्य है।
आज 50 साल बाद भी आदिवासी और महिला आप की सर्वोच्च समितियों में नहीं हैं। जब हम जैसे उच्च वर्ग के लोग आपकी पार्टी में आने लगभग बंद हो गए हैं और जब आपके सभी उम्रदराज नेता थोड़े साल में एक के बाद एक मर जाएंगे तब पार्टी का दिशा निर्धारण कौन करेगा? क्या आप आदिवासियों को गंभीरता से सुनना शुरू करेंगे? हमने सुना है कि सुकमा हमले के बाद 100 से अधिक स्थानीय आदिवासियों पर मुकदमा दर्ज हुआ है। आशंका है, जैसे ही मेहमान पत्रकारों का दल वहां से हटेगा, उन पर फिर से अकथ्य अत्याचार शुरू होंगे।
आपकी ताकत और बढ़ेगी और आप फिर से एक और बड़ा हमला करेंगे। हमारी तरफ तो कल्पनाशीलता को जैसे कैंसर हो गया है। लेकिन, क्या आप जैसे सोचने-समझने वाले तथाकथित क्रांतिकारियों की सोच को लकवा मारा हुआ है? सरकार की गलत नीतियों के कारण बस्तर के आदिवासी आपके वहां आने के10 साल बाद आप से जुडऩा शुरू हुए थे। और, जहां तक मेरी जानकारी है, अब वे आपका साथ छोडऩे का मन बना रहे हैं।
माओ देवता के पोंगापंथी पुजारी और आप के अधिकतर दांभिक और भ्रष्ट नेताओं से तो मुझे कोई आशा नहीं हैै पर आप जैसे मध्यम दर्जे के नक्सली नेता इस बारे में क्या सोचते हैं? क्या आप आदिवासियों को उनका रास्ता चुनने का मौका देंगे? आपने बस्तर के आदिवासी को लडऩा सिखाया, इसके लिए इतिहास आपको साधुवाद देगा पर जब आज आपका आंदोलन कहीं आगे बढ़ता नजर नहीं आता तो इस 50 साल की जद्दोजहद के बाद जिन लोगों ने आपका सबसे अधिक साथ दिया क्या उनके लिए कुछ हासिल करना एक बेहतर राजनीतिक उद्देश्य नहीं लगता? आपका 99 प्रतिशत आदिवासी कैडर अपने जल, जंगल,जमीन और स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहा है जो अधिकार इस देश के संिवधान के तहत उनको दिए हुए हैं।
या फिर, क्या आप अपनी ताकत में समझ जोड़कर कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि इसी सड़ी-गली व्यवस्था में जनतांत्रिक तकनीक की मदद से भारत के अच्छे लोगों को जोड़कर एक ऐसी संख्या बनाएं ताकि भारत का लोकतंत्र उसके बहुसंख्यक गरीबों की बेहतरी के लिए काम करे? यह बंदूक लेकर लडऩे से अधिक कठिन काम है।
मेरे एक संगीतज्ञ मित्र थे। जब उनको किसी साथी कलाकार की बुराई करनी होती थी तो वे कहते थे कि वह बहुत मेहनती है। जाहिर है सिर्फ मेहनत से अच्छा संगीत नहीं तैयार होता। इतनी विषम परिस्थिति में भी आप बड़े हमले करने की क्षमता रखते हैं। इस घोर असहमति के बावजूद आपकी मेहनत काबिल-ए-तारीफ है पर कुछ कालजयी करने के लिए मेहनत के साथ सोच जरूरी होती है। ये ठीक है कि कॉमरेड कभी नहीं थकता, पर थोड़ा आराम करो वासु और अपने आदिवासी कॉमरेडों के साथ थोड़ी और बात करो, बेहतर रास्ता वे ही सुझाएंगे।
****
2017-05-04
शुभ्रांशु चौधरी वरिष्ठ पत्रकार
सुकमा हमला : पिछले दिनों छत्तीसगढ़ के बस्तर में हुए माओवादी हमले में सुरक्षा बल के 25 जवानों की मौत हो गई। कहा जा रहा है, इस हमले में स्थानीय आदिवासियों को ढाल बनाया गया। ऐसा हमला पहली बार नहीं हुआ इसीलिए सवाल है कि क्योंं होते हैं ये हमले? क्या है इनके पीछे की सोच? क्या इससे कुछ हासिल हो भी सकता है?
प्रिय वासु,
पिछले हफ्ते, बहुत दिनों बाद आपकी आवाज सुनकर अच्छा लगा। आपने माओवादी प्रवक्ता की तरह किसी अज्ञात स्थान से एक ऑडियो विकल्प के नाम से भेजा। लेकिन, न विकल्प आपका सही नाम है और न ही वासु! पर आपके आंदोलन की 50 वीं वर्षगांठ पर कुछ बातें आपसे करना जरूरी है।
पिछले दिनों 25 जवानों को एक हमले में मारकर आपका आंदोलन फिर से चर्चा में है। आपने कहा है कि सुरक्षा बल के जवानों द्वाराआम आदिवासी पर किये गए पाशविक अत्याचार का बदला लेने के लिए आपकी पार्टी ने यह हमला किया। पचास की उम्र सिर्फ इस तरह के हमले और प्रतिहमलों के लिए ही होती है। आप और हम एक दूसरे को अब लगभग 30 साल से जानते हैं। एक पत्रकार की तरह आप माओवादी आंदोलन में मेरे पहले संपर्क सूत्र थे। एक राजनीतिज्ञ के तौर पर आपके जज्बे व समर्पण को मैं अब भी सलाम करता हूं।
आप सभी मेहनती हैं पर आपकी यह मेहनत आपको, आपकी राजनीति और आपका साथ देनेवाले आदिवासियों को, कहां ले जा रही है? आपके बड़े नेता मुझे कहते हैं कि अगले 50 सालों में पूंजीवाद अपने ही बोझ तले ध्वस्त हो जाएगा तब आपकी राजनीति एक विकल्प की तरह सामने होगी। उस समय तक आप और मैं दोनों नहीं होंगे पर जिन आदिवासियों के कंधे पर बंदूक रखकर आप यह प्रयोग कर रहे हैं, वे कहां होंगे?
दुनिया में बेहतर लोकतंत्र के लिए तरह-तरह के प्रयोग हो रहे हैं। वे प्रयोग भी अधिक सफल नहीं हैं पर मुझे लगता है कि तकनीक की मदद से किये जा रहे कुछ प्रयोग आपके प्रयोग से तो अधिक आशा जगाते हैं। आपके बड़े नेता आज भी फ्रांंस की क्रांति के युग में जी रहे हैं और उसके ही सपने बेच रहे हैं।
इन दिनों वहां चुनाव होने वाले हैं और जनता को नवफासीवाद और नवउदारवाद के बीच ही चुनाव करना है। वहां इस पर खासी बहस हो रही है। आशा है, इन सब जद्दोजहद के बीच पूरी मानव जाति के लिए धीरे-धीरे बेहतर रास्ते निकलेंगे कि हमारी राजनीति कैसी होनी चाहिए? आपने अपनी राजनीति के लिए जंगल की खामोशी, लुका-छिपी और दुनिया के सबसे निरीह लोगों को चुना है, जहां बहस की गुंजाइश लगभग शून्य है।
आज 50 साल बाद भी आदिवासी और महिला आप की सर्वोच्च समितियों में नहीं हैं। जब हम जैसे उच्च वर्ग के लोग आपकी पार्टी में आने लगभग बंद हो गए हैं और जब आपके सभी उम्रदराज नेता थोड़े साल में एक के बाद एक मर जाएंगे तब पार्टी का दिशा निर्धारण कौन करेगा? क्या आप आदिवासियों को गंभीरता से सुनना शुरू करेंगे? हमने सुना है कि सुकमा हमले के बाद 100 से अधिक स्थानीय आदिवासियों पर मुकदमा दर्ज हुआ है। आशंका है, जैसे ही मेहमान पत्रकारों का दल वहां से हटेगा, उन पर फिर से अकथ्य अत्याचार शुरू होंगे।
आपकी ताकत और बढ़ेगी और आप फिर से एक और बड़ा हमला करेंगे। हमारी तरफ तो कल्पनाशीलता को जैसे कैंसर हो गया है। लेकिन, क्या आप जैसे सोचने-समझने वाले तथाकथित क्रांतिकारियों की सोच को लकवा मारा हुआ है? सरकार की गलत नीतियों के कारण बस्तर के आदिवासी आपके वहां आने के10 साल बाद आप से जुडऩा शुरू हुए थे। और, जहां तक मेरी जानकारी है, अब वे आपका साथ छोडऩे का मन बना रहे हैं।
माओ देवता के पोंगापंथी पुजारी और आप के अधिकतर दांभिक और भ्रष्ट नेताओं से तो मुझे कोई आशा नहीं हैै पर आप जैसे मध्यम दर्जे के नक्सली नेता इस बारे में क्या सोचते हैं? क्या आप आदिवासियों को उनका रास्ता चुनने का मौका देंगे? आपने बस्तर के आदिवासी को लडऩा सिखाया, इसके लिए इतिहास आपको साधुवाद देगा पर जब आज आपका आंदोलन कहीं आगे बढ़ता नजर नहीं आता तो इस 50 साल की जद्दोजहद के बाद जिन लोगों ने आपका सबसे अधिक साथ दिया क्या उनके लिए कुछ हासिल करना एक बेहतर राजनीतिक उद्देश्य नहीं लगता? आपका 99 प्रतिशत आदिवासी कैडर अपने जल, जंगल,जमीन और स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहा है जो अधिकार इस देश के संिवधान के तहत उनको दिए हुए हैं।
या फिर, क्या आप अपनी ताकत में समझ जोड़कर कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि इसी सड़ी-गली व्यवस्था में जनतांत्रिक तकनीक की मदद से भारत के अच्छे लोगों को जोड़कर एक ऐसी संख्या बनाएं ताकि भारत का लोकतंत्र उसके बहुसंख्यक गरीबों की बेहतरी के लिए काम करे? यह बंदूक लेकर लडऩे से अधिक कठिन काम है।
मेरे एक संगीतज्ञ मित्र थे। जब उनको किसी साथी कलाकार की बुराई करनी होती थी तो वे कहते थे कि वह बहुत मेहनती है। जाहिर है सिर्फ मेहनत से अच्छा संगीत नहीं तैयार होता। इतनी विषम परिस्थिति में भी आप बड़े हमले करने की क्षमता रखते हैं। इस घोर असहमति के बावजूद आपकी मेहनत काबिल-ए-तारीफ है पर कुछ कालजयी करने के लिए मेहनत के साथ सोच जरूरी होती है। ये ठीक है कि कॉमरेड कभी नहीं थकता, पर थोड़ा आराम करो वासु और अपने आदिवासी कॉमरेडों के साथ थोड़ी और बात करो, बेहतर रास्ता वे ही सुझाएंगे।
****
No comments:
Post a Comment