Tuesday, May 2, 2017

बस्तर में तब तक नहीं होगा माओवाद का ख़ात्मा जब तक...



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बस्तर में तब तक नहीं होगा माओवाद का ख़ात्मा जब तक...

राजकुमार सोनी| Updated on: 2 May 2017, 11:42 IST
(वर्षा डोंगरे)
छत्तीसगढ़ की सेंट्रल जेल रायपुर में पदस्थ सहायक जेल अधीक्षक वर्षा डोंगरे की बस्तर के मामले पर फेसबुक में की गई टिप्पणी से बवाल मच गया है. जेल विभाग के पुलिस महानिदेशक गिरधारी नायक ने उनकी वॉल पर चस्पा सभी पोस्ट पर जांच के निर्देश दिए हैं. जेल डीआईजी केके गुप्ता ने बताया कि सुश्री डोंगरे की फेसबुक वॉल की सभी टिप्पणियों को एक पेन ड्राइव में सुरक्षित रख लिया गया है. सुश्री डोंगरे ने किन परिस्थितियों में शासन के खिलाफ टिप्पणियां की है इसकी पड़ताल जेल के उप अधीक्षक आरआर राय को सौंपी गई है.


यह लिखा है फेसबुक में
छत्तीसगढ़ में पीएससी के परीक्षाफल में गड़बड़ी को लेकर पहले उच्च न्यायालय और फिर सुप्रीम कोर्ट में सरकार को कठघरे में खड़ी कर चुकी सुश्री डोंगरे की वॉल पर वैसे तो कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की पोस्ट चस्पा है, लेकिन बस्तर के सुकमा जिले में 24 अप्रैल को माओवादी हमले में जवानों की मौत के बाद सुश्री डोंगरे ने जो कुछ लिखा वह इस प्रकार है:
मुझे लगता है कि एक बार हम सबको अपना गिरेबान झांकना चाहिए. सच्चाई खुद-ब-खुद सामने आ जाएगी. घटना में दोनों तरफ से मरने वाले अपने देशवासी है... भारतीय हैं, इसलिए कोई भी मरे तकलीफ हम सबको होती है. पूंजीवादी व्यवस्था को आदिवासी क्षेत्रों में लागू करवाना... उनके जल-जंगल-जमीन को बेदखल करने के लिए गांव का गांव जला देना, आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार, आदिवासी महिला नक्सली हैं या नहीं इसका प्रमाण पत्र देने के लिए उनका स्तन निचोड़कर दूध निकालकर देखा जाता है. टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर आदिवासियों को आदिवासियों को जल-जंगल-जमीन से बेदखल करने की रणनीति बनती है, जबकि संविधान पांचवीं अनुसूची के अनुसार सैनिक सरकार को कोई हक नहीं बनता आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन को हड़पने का...आखिर ये सब कुछ क्यों हो रहा है? नक्सलवाद का खात्मा करने के लिए... लगता नहीं.
सुकमा हमले में 25 सीआरपीएफ जवान शहीद हो गए थे (एएनआई)
बस्तर में सब कुछ सही है तो डरती क्यों है सरकार ?
बस्तर के जगदलपुर जेल में भी लगभग चार सालों तक पदस्थ रही सुश्री डोंगरे ने आगे लिखा है, "सच तो यह है कि सारे प्राकृतिक संसाधन इन्हीं जंगलों में हैं जिसे उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को बेचने के लिए खाली करवाना है. आदिवासी जल-जंगल-जमीन खाली नहीं करेंगे क्योंकि यह उनकी मातृभूमि है. वे नक्सलवाद का अंत तो चाहते हैं, लेकिन जिस तरह से देश के रक्षक ही उनकी बहू-बेटियों की इज्जत उतार रहे हैं, उनके घर जला रहे हैं. उन्हें फर्जी केसों में चारदीवारी में सड़ने के लिए भेजा जा रहा है, आखिर वो न्याय प्राप्ति के लिए कहां जाए? ये सब मैं नहीं कह रही बल्कि सीबीआई रिपोर्ट कहती है. सुप्रीम कोर्ट कहती है. जमीनी हकीकत कहती है. जो भी आदिवासियों की समस्या का समाधान का प्रयत्न करने की कोशिश करते हैं, चाहे वह मानवाधिकार कार्यकर्ता हों, चाहे पत्रकार...उन्हें फर्जी नक्सली केसों में जेल में ठूंस दिया जाता है. अगर आदिवासी क्षेत्रों में सब कुछ ठीक हो रहा है तो सरकार इतना डरती क्यों है? ऐसा क्या कारण कि वहां किसी को भी सच्चाई जानने के लिए जाने नहीं दिया जाता है."
'आदिवासी बच्चियों को नग्न कर किया जाता है प्रताड़ित'
सुश्री डोंगरे लिखती हैं, "मैंने स्वयं बस्तर में 14 से 16 साल की माड़िया- मुड़िया आदिवासी बच्चियों को देखा था, जिन्हें थाने में महिला पुलिस को बाहर कर नग्न कर प्रताड़ित किया गया था. उनके दोनों हाथों की कलाइयों और स्तनों पर करंट लगाया गया था. जिसके निशान मैंने स्वयं देखे. मैं भीतर तक सिहर उठी थी कि इन छोटी-छोटी आदिवासी बच्चियों पर थर्ड डिग्री टॉर्चर किए गए. मैंने डॉक्टर से उचित उपचार और आवश्यक कार्रवाई के लिए कहा."
'आदिवासियों पर न थोपें विकास'
वर्षा ने सोशल मीडिया में कुछ सुझाव भी दिए हैं. उन्होंने लिखा है, "हमारे देश का संविधान और कानून किसी को यह कतई हक नहीं देता कि किसी के साथ अत्याचार करें. इसलिए सभी को जागना होगा. राज्य में पांचवीं अनुसूची लागू होनी चाहिए. आदिवासियों का विकास आदिवासियों के हिसाब से होना चाहिए. उन पर जबरदस्ती विकास न थोपा जाए. जवान हो किसान सब भाई-भाई है. अत: एक-दूसरे को मारकर न ही शांति स्थापित होगी और न ही विकास होगा. संविधान में न्याय सबके लिए है."
वर्षा ने अपने अनुभवों को साक्षा करते हुए आगे लिखा है, "हम भी सिस्टम के शिकार हुए, लेकिन अन्याय के खिलाफ जंग लड़े. षडयंत्र रचकर तोड़ने की कोशिश की गई. प्रलोभन और रिश्वत का ऑफर भी दिया गया. हमने सारे इरादे नाकाम कर दिए और सत्य की विजय हुई...आगे भी होगी."
सरकार के शराब बेचने के फैसले पर भी वर्षा ने फेसबुक पर टिप्पणी की है. उन्होंने लिखा है, "सरकार चाहती ही नहीं कि आम जनता स्वस्थ मस्तिष्क के साथ अगले चुनाव में वोट दे. इनकी औकात बाहर आ जाएगी... इसलिए नशे में डुबोकर फिर से निचोड़ने की तैयारी है. बाहरी पतन तो पहले ही था... इस फैसले से सरकार का नैतिक पतन भी स्पष्ट हो गया है." फेसबुक पर अपनी टिप्पणियों के संदर्भ में वर्षा का कहना है कि उन्होंने पोस्ट लिखी है या नहीं लिखी है. वह जायज है या नहीं है, इस बारे में वह उचित मंच पर ही जवाब देंगी.

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