सीआरपीएफः बीमारी और आत्महत्या से मारे जा रहे जवान
रायपुर | संवाददाता: सीआरपीएफ के जवान नक्सलियों से कहीं अधिक बीमारी और आत्महत्या में अपनी जान गंवा रहे हैं. पिछले सात दिनों में छत्तीसगढ़ में तीन जवानों ने आत्महत्या कर ली है.
15 मई को सीआरपीएफ के जवान दिवाकर राव ने सर्विस रिवाल्वर से खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली.150वीं बटालियन का दिवाकर राव सुकमा ज़िले के दोरनापाल में पदस्थ था. आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम के रहने वाले दिवाकर ने यह कदम क्यों उठाया, इस बारे में पता नहीं चल पाया है.
12 मई को धमतरी के मेचका में पदस्थ सीआरपीएफ की 11वीं बटालियन के जवान जीवन लाल ने अपने इंसास राइफल से गोली मार कर आत्महत्या कर ली. 38 साल के जीवनलाल नगरी के रहने वाले थे.
इससे पहले 9 मई को बीजापुर के जांगला में पदस्थ सीआरपीएफ के जवान सुखविंदर सिंह ने आत्महत्या कर ली थी. 222वीं बटालियन के जवान सुखविंदर लुधियाना के रहने वाले थे. उनकी आत्महत्या का भी पता नहीं चल पाया.
2015 तक के जो उपलब्ध आंकड़े हैं, उसके अनुसार पिछले पांच साल में नक्सली इलाकों में सीआरपीएफ के 870 जवान तनाव के कारण मारे गये हैं. इसकी तुलना में नक्सलियों द्वारा मारे गये सीआरपीएफ के जवानों की संख्या 323 है. 2009 के जनवरी माह से 2013 के दिसंबर माह तक नक्सली इलाकों में तैनात सीआरपीएफ के 642 जवान हृदयाघात से मारे गये तथा 228 ने अवसाद के कारण आत्महत्या कर ली. इसी अवधि में मलेरिया से मरने वाले जवानों की संख्या 108 है.
सरकारी आकड़ों के अनुसार सीएपीएफ में सबसे ज्यादा आत्महत्या सीआरपीएफ के जवान करते हैं. पिछले चार सालों में पूरे देश में सीआरपीएफ में 137 आत्महत्या, आईटीबीपी में 12 आत्महत्या, एसएसबी में 26 आत्महत्या, सीआईएसएफ में 50 आत्महत्या और एआर में 32 आत्महत्या के मामले सामने आये हैं.
माना जा रहा है कि अत्यंत दुर्गम स्थानों में सीआरपीएफ के जवान मुश्किल परिस्थितियों में काम करते हैं. परिजनों से संपर्क का अभाव, लगातार काम का दबाव और मोर्चे पर असुविधाओं के कारण जवान तनाव से गुजरते रहते हैं. जिसके कारण उन्हें बीमारी घेर लेती है. इसके अलावा कई बार यह तनाव जब उत्तेजना में बदल जाता है तो आत्महत्या जैसा क़दम उठाते हैं.
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