किसानों के खिलाफ मोदी सरकार की युद्ध-घोषणा- आइपीएफ
रीयल एस्टेट बिजनेस काले धन कासबसे बड़ा अभयारण्य है
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को तत्काल वापस ले सरकार
कार्पोरेट घरानों को मोदी सरकार का नए साल का सबसे बड़ा तोहफा
नई दिल्ली। किसानों के जुझारू संघर्षों ने यूपीए सरकार को अंग्रेजों के बनाए भूमि अधिग्रहण कानून में आधे-अधूरे बदलाव के लिए बाध्य किया था, लेकिन दो बुनियादी बातें इस नए कानून को औपनिवेशिक कानून से अलग करती थीं वे थीं किसानों की सहमति की शर्त और सोशल इम्पैक्ट क्लाज। मोदी सरकार ने औद्योगिक गलियारों, ग्रामीण विद्युतीकरण, रक्षा जैसे कुछ चुनिंदा क्षे़त्रों की चाशनी के नाम पर इन दोनों बुनियादी बातों को हीे खत्म करने का फैसला करके किसानों के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी है। यह बातें आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस आर दारापुरी ने आज यहां जारी बयान में कही।
उन्होंने कहा कि बहुफसली जमीन का अधिग्रहण न करने की शर्त को भी हटा दिया गया है। सरकार का यह फैसला किसानों के खिलाफ तो है ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा है। किसानों को अपने चुनावी वायदे के मुताबिक उनकी उपज पर 50 प्रतिशत लाभ तो मोदी सरकार न दे सकी लेकिन उनकी सहमति के बगैर ही उनकी जमीन हड़पने का एलान जरूर हो गया।
श्री दारापुरी ने आगे कहा कि उदारीकरण के समूचे दौर में तमाम नामों से उपजाऊ भूसंपदा कारपोरेट घरानों को सौंपी गयी, जिसका प्रमुख आयाम दरअसल रीयल एस्टेट बिजनेस के माध्यम से अकूत मुनाफाखोरी है। यही रीयल एस्टेट बिजनेस काले धन का सबसे बड़ा अभयारण्य है और यह काला धन देश में विषैली काली राजनीति का सबसे बड़ा स्रोत। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार का कहां तो वायदा था काला धन वापस ले आने का, और कहां इसके उन्मुक्त प्रवाह के लिए सारे रास्ते खोले जा रहे हैं।
उन्होंने भाजपा सरकार के इस फैसले को काला कारनामा बताते हुए कहा कि इसे लागू करने के लिए गैरलोकतांत्रिक रास्ता अख्तियार किया जा रहा है। जिस कानून को संसद में पारित करने के लिए भाजपा ने खुद समर्थन किया था उसे उलटने के लिए वह संसद और जनमत की अवहेलना करने पर आमादा है। कार्पोरेट घरानों ने स्वाभाविक ही इसका स्वागत किया है क्योंकि मोदी सरकार का नए साल पर उनके लिए यह किसी बड़े तोहफे से कम नहीं है। उन्होंने मोदी सरकार को आगाह करते हुए कहा कि वह इस अध्यादेश को तत्काल वापस ले नहीं तो देश की मेहनतकश जनता अपने आंदोलनों के जरिऐ इसका माकूल जवाब देगी।
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