गणतंत्र दिवस पर ही संविधान को मारी टंगड़ी ..
अरुण कान्त शुक्ला
केंद्र सरकार ने सूचना प्रसारण मंत्रालय के ऐड में से सोशलिस्ट- सेक्युलर शब्द गायब करवाये ..
आपको क्या लग रहा था ..महात्मा गांधी के जन्मदिन, बड़े दिन, नव-वर्ष, नेहरू के जन्मदिन, शिक्षक दिवस सभी के साथ छेड़छाड़ करने वाला शख्स संविधान दिवस पर अपनी हरकतों से बाज आयेगा..?
यदि कोई ऐसा सोच रहा था..तो वह अपनी सोच को सुधारने के लिए उस स्वर्ग में जाए जो उस व्यक्ति ने ऐसे लोगों के लिए ख्यालों, हवाओं और लफ्फाजियों में बनाकर रखा है..
उसने तो गणतंत्र दिवस पर गणतंत्र के मूलाधार संविधान में ही तोड़-फोड़ करके रख दी..
ये है भारत सरकार का 26 जनवरी को निकाला गया विज्ञापन नंबर DAVP22201/13/0048/1415, इसमें सरकार की ओर से लिखी गयी प्रस्तावना में अंगरेजी में लिखा गया है "We the people of India, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN DEMOCRATIC REPUBLIC...."
जबकि संविधान में लिखी असली पंक्तियाँ हैं..
WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens..."
भारत सरकार के सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना से सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्द ही उड़ा दिए..
जिस लोकतंत्र पर ये गर्व करते हैं..
जिसका हवाला देकर ये कहते हैं कि इसकी ताकत से ही एक चायवाला भी देश का प्रधानमंत्री बन सका..
जिसका हवाला अभी अभी एक रसोईये का पोता और दुनिया के सबसे पुराने और मजबूत लोकतंत्र का राष्ट्रपति देकर गया..
उसे पता ही नहीं होगा कि..
उसी संविधान को उसी दिन, जब वह परेड देख रहा था, गणतंत्र के दिन ठोकर मारी जा चुकी है..
जिसका हवाला देकर ये कहते हैं कि इसकी ताकत से ही एक चायवाला भी देश का प्रधानमंत्री बन सका..
जिसका हवाला अभी अभी एक रसोईये का पोता और दुनिया के सबसे पुराने और मजबूत लोकतंत्र का राष्ट्रपति देकर गया..
उसे पता ही नहीं होगा कि..
उसी संविधान को उसी दिन, जब वह परेड देख रहा था, गणतंत्र के दिन ठोकर मारी जा चुकी है..
कोई यदि यह सोचता है कि यह गलती सिर्फ प्रशासनिक स्तर की है या कुछ चम्मच अधिकारियों के अति-चम्मच होने की है और ऐसा जान-बूझकर, सोच-समझकर नहीं करवाया गया है या इस देश के प्रधानमंत्री को यह नहीं मालूम होगा तो मैं पुन: कहता हूँ कि उन्हें उसी स्वर्ग में जाना चाहिए जो उस व्यक्ति ने ऐसे लोगों के लिए ख्यालों, हवाओं और लफ्फाजियों में बनाकर रखा है..
एक माह में 10 अध्यादेश..
बिना संविधान में संशोधन के संविधान के प्रिएम्बल में परिवर्तन..
इनके हाथों में लोकतंत्र और लोक का भविष्य..?
ये दोनों शब्द 44वें संविधान संशोधन के बाद प्रस्तावना में जोड़े गए थे। और यह आकस्मिक नहीं हो सकता है क्योंकि संविधान का दिन मनाने के दिन ही यह घटना हुई है। यह आकस्मिक नहीं है क्योंकि नरेंद्र मोदी खुद अपने भाषणों में सेक्युलर शब्द का मजाक उड़ाते रहे हैं।
बिना संविधान में संशोधन के संविधान के प्रिएम्बल में परिवर्तन..
इनके हाथों में लोकतंत्र और लोक का भविष्य..?
ये दोनों शब्द 44वें संविधान संशोधन के बाद प्रस्तावना में जोड़े गए थे। और यह आकस्मिक नहीं हो सकता है क्योंकि संविधान का दिन मनाने के दिन ही यह घटना हुई है। यह आकस्मिक नहीं है क्योंकि नरेंद्र मोदी खुद अपने भाषणों में सेक्युलर शब्द का मजाक उड़ाते रहे हैं।
अरुण कान्त शुक्ला..
No comments:
Post a Comment