40 साल पहले ही खुल गई थी 'वैमानिक शास्त्र' की पोल! (Buzzwok)
नवभारतटाइम्स.कॉम| Jan 6, 2015, 07.48PM IST
नई दिल्ली
जिस प्राचीन ग्रंथ 'वैमानिक शास्त्र' का हवाला देकर यह बात कही जा रही है कि प्राचीन भारत में विमान बनाने की टेक्नॉलजी थी, उसकी पोल आज से 40 साल पहले ही खुल गई थी। यह ग्रंथ दरअसल एक संस्कृत के विद्वान की कल्पना की उपज थी और इसे 20वीं सदी में ही लिखा गया था।
रविवार को इंडियन साइंस कांग्रेस में एक स्पेशल सेशन का आयोजन किया गया, जिसका नाम था- वैदिक साइंस थ्रू संस्कृत। इसमें पूर्व पायलट आनंद जे. बोडास ने दावा किया कि राइट बंधुओं द्वारा 1903 में पहला विमान उड़ाने से हजारों साल पहले भारत में एयरक्राफ्ट टेक्नॉलजी मौजूद थी। उन्होंने यह बात 'वैमानिक शास्त्र' नाम के ग्रंथ के आधार पर कही। मगर यह ग्रंथ दरअसल कोरी कल्पना पर आधारित है।
आज से ठीक 40 साल पहले इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस बेंगलुरु के पांच युवा वैज्ञानिकों ने गहन अध्ययन के बाद पाया था कि वैमानिक शास्त्र में जिस टेक्नॉलजी का जिक्र किया गया है, उस हिसाब से कोई एयरक्राफ्ट नहीं उड़ सकता । वैज्ञानिकों की इस टीम का नेतृत्व एच.एस. मुकुंद ने किया था, जो IISc से ऐरोस्पेस इंजिनियरिंग के प्रफेसर के तौर पर रिटायर हुए हैं।
मुकुंद की टीम ने पाया था कि 'वैमानिक शास्त्र' पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है। साल 1974 में 'क्रिटिकल स्टडी ऑफ द वर्क वैमानिक शास्त्रा' नाम से उनकी यह स्टडी 'साइंटिफिक ऑपिनियन' नाम के जर्नल में भी छपी थी। जब यह पता लगाने की कोशिश की गई कि यह ग्रंथ आया कहां से, तो पता चला कि यह महर्षि भारद्वाज के काल का नहीं, बल्कि 20वीं सदी में रहने वाले किसी शख्स की कल्पना की उपज है।
स्टडी में पाया गया था कि साल 1900 से 1922 के बीच पंडित सुब्बाराया शास्त्री ने यह किताब लिखी थी। वह संस्कृत के श्लोकों का अनुवाद करते थे। उनके इस काम को उनके एक सहयोगी ने 1944 में वैमानिक शास्त्र नाम से तैयार किया। कई सालों बाद 1951 में यह किताब मैसूर में इंटरनैशनल अकैडमी फॉर संस्कृत रिसर्च की स्थापना करने वाले ए.एम. जॉयसर को मिली और उन्होंने फिर से इसे पब्लिश किया था।
जिस प्राचीन ग्रंथ 'वैमानिक शास्त्र' का हवाला देकर यह बात कही जा रही है कि प्राचीन भारत में विमान बनाने की टेक्नॉलजी थी, उसकी पोल आज से 40 साल पहले ही खुल गई थी। यह ग्रंथ दरअसल एक संस्कृत के विद्वान की कल्पना की उपज थी और इसे 20वीं सदी में ही लिखा गया था।
रविवार को इंडियन साइंस कांग्रेस में एक स्पेशल सेशन का आयोजन किया गया, जिसका नाम था- वैदिक साइंस थ्रू संस्कृत। इसमें पूर्व पायलट आनंद जे. बोडास ने दावा किया कि राइट बंधुओं द्वारा 1903 में पहला विमान उड़ाने से हजारों साल पहले भारत में एयरक्राफ्ट टेक्नॉलजी मौजूद थी। उन्होंने यह बात 'वैमानिक शास्त्र' नाम के ग्रंथ के आधार पर कही। मगर यह ग्रंथ दरअसल कोरी कल्पना पर आधारित है।
मुकुंद की टीम ने पाया था कि 'वैमानिक शास्त्र' पूरी तरह से कल्पना पर आधारित है। साल 1974 में 'क्रिटिकल स्टडी ऑफ द वर्क वैमानिक शास्त्रा' नाम से उनकी यह स्टडी 'साइंटिफिक ऑपिनियन' नाम के जर्नल में भी छपी थी। जब यह पता लगाने की कोशिश की गई कि यह ग्रंथ आया कहां से, तो पता चला कि यह महर्षि भारद्वाज के काल का नहीं, बल्कि 20वीं सदी में रहने वाले किसी शख्स की कल्पना की उपज है।
स्टडी में पाया गया था कि साल 1900 से 1922 के बीच पंडित सुब्बाराया शास्त्री ने यह किताब लिखी थी। वह संस्कृत के श्लोकों का अनुवाद करते थे। उनके इस काम को उनके एक सहयोगी ने 1944 में वैमानिक शास्त्र नाम से तैयार किया। कई सालों बाद 1951 में यह किताब मैसूर में इंटरनैशनल अकैडमी फॉर संस्कृत रिसर्च की स्थापना करने वाले ए.एम. जॉयसर को मिली और उन्होंने फिर से इसे पब्लिश किया था।
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