Monday, January 26, 2015

भारत-अमरीका परमाणु सहमति के असल मायने

भारत-अमरीका परमाणु सहमति के असल मायने

  • 26 जनवरी 2015
नरेंद्र मोदी, बराक ओबामा
भारत और अमरीका के बीच नागरिक परमाणु समझौते (सिविल न्यूक्लियर डील) के मुद्दे पर भारत सरकार के स्तर पर लगभग सहमति हो गई है. यानी, भारत परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने की दिशा में एक क़दम आगे बढ़ गया है.
दोनों देशों के बीच मतभेद का एक बिंदु यह था कि अमरीका का मानना था कि भारत का नागरिक परमाणु समझौता क़ानून अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है.
भारत ने अमरीका को आश्वस्त किया है कि भारत का क़ानून, इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑफ़ सप्लिमेंट्री कॉम्पनसेशन के अनुरूप है. अमरीका ने इसे स्वीकार कर लिया है.
रविवार को दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर इंश्योरेंस पूल पर भी सहमति बनी है. इंश्योरेंस संबंधी जवाबदेही (इंश्योरेंस लाएबिलिटी) के तहत अब साढ़े सात सौ करोड़ रूपए सामान्य इंश्योरेंस कंपनी देंगी और बाक़ी साढ़े सात सौ करोड़ रुपए की सरकार की गारंटी होगी.

निगरानी का सवाल

नरेंद्र मोदी, बराक ओबामा
इससे पहले दोनों देशों के बीच परमाणु रिएक्टरों की निगरानी को लेकर भी मतभेद था.
अमरीका चाहता था कि अगर वो अपना सामान और तकनीकी देगा तो उसके इंस्पेक्टर इसकी निगरानी करेंगे. भारत इसके लिए तैयार नहीं था.
भारत का कहना था कि उसके पास संयुक्त राष्ट्र के न्यूक्लियर वॉचडॉग - अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के मानक हैं और भारत उन्हीं के नियमों एवं निगरानी के अनुसार आगे बढ़ेंगे.
भारत की शर्त ये भी थी कि वो किसी देश को भी द्विपक्षीय कार्यक्रमों की निगरानी नहीं करने देगा और इस मुद्दे पर भी सहमति बन गई.
फाइल फोटो (परमाणु ऊर्जा संयंत्र)
अब भारत के परमाणु संयंत्रों की केवल आईएईए के मानकों के तहत निगरानी होगी.

मामला वाणिज्यिक कंपनियों के बीच

नरेंद्र मोदी, बराक ओबामा
अब सारा मामला भारत की वाणिज्यिक कंपनी न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड और न्यक्लियर रिएक्टर बेचने वाली दो अमरीकी कंपनियों वेस्टिंगहाउस तोशिबा और जनरल इलेक्ट्रिक के बीच का हो जाएगा. क्योंकि दोनों सरकारों के बीच जो सहमित बननी थी वो बन गई है.
अमरीकी कंपनियाँ अपने रिएक्टर भारत को सही दाम पर बेचेंगी तो ये रिएक्टर भारत में लग सकते हैं, और अगर वो अधिक दाम मांगेगे तो ये सौदा मुश्किल होगा.
ध्यान देने की बात है कि अमरीका की दोनों कंपनियाँ जो रिएक्टर बेच रही हैं उनका अभी कहीं प्रयोग नहीं हुआ है, कहीं भी ऐसे रिएक्टर सक्रिय नहीं है.
ऐसे में अगर अमरीका को इन रिएक्टरों को भारत को बेचना है तो भारत सही दाम पर ही सहमत होगा.
(बीबीसी संवाददाता संदीप सोनी से बातचीत पर आधारित)

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