प्राचीन भारतीय विज्ञान या धर्म की रतौंधी
- 8 घंटे पहले
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण में गणेश को हाथी का सिर लगाने से जुड़े अंग प्रत्यारोपण के हास्यास्पद दावे पर ठहाकों का दौर कई दिनों से जारी था.
ये दौर अभी थमा भी नहीं कि शनिवार को शुरू हुए भारतीय विज्ञान सम्मेलन 2015 ने भारत की भद्द पिटवाने का एक और मौका दे दिया.
विज्ञान सम्मेलन में दो तथाकथित विषेशज्ञों कैप्टन आनंद जे बोडास और अमेया जाधव को ‘प्राचीन भारत में वैमानिक तकनीक’ पर एक परचा पढ़ने का मौका मिला.
आकाश में पंछी की तरह उड़ने का सपना कौन नहीं देखता.
कल्पना की उड़ान
दुनिया की हर सभ्यता के मिथकों, प्राचीन महाकाव्यों और गाथाओं में उड़ने वाले ‘मायावी’ चरित्रों, काल्पनिक पशुओं और जादुई उड़नखटोलों के किस्से भरे पड़े हैं.
इन किस्सों को हक़ीकत मानें तो गिलगमेश और हनुमान के पास उड़ने की जादुई ताक़त थी.
तो इकारस ने चिड़िया के पंखों को मोम से चिपका कर सूरज तक उड़ाने की कोशिश की और जान से हाथ धो बैठा.
वाल्मीकि महाकाव्य 'रामायण' में रावण के पास ऐसा विमान था जो सवार की इच्छा को जान कर न सिर्फ धरती पर कहीं भी पहुंचा सकता था बल्कि दूसरे ‘लोकों’ में भी पलक झपकते ले जाता था.
कुदरती सिद्धांत
अयोध्या के राजकुमार राम के पास शायद थोड़ी पिछड़ी तकनीक थी, सो पैदल ही रावण से लड़ने पहुंच गए थे. उन्हें इन्द्र ने विमान उधार दे दिया.
इसमें कोई शक नहीं कि यह वाकई कल्पना की मनमोहक उड़ान है.
हक़ीकत की दुनिया में इंसान को आकाश पर विजय पाने के लिए फ्रांस के मान्टगाल्फियर बन्धुओं का एहसानमंद होना चाहिए जिन्होंने गरम हवा के गुब्बारे में 21 नवम्बर 1783 में दो लोगों को उड़ाया.
अगर इंजन रहित ग्लाइडर को छोड़ दें तो राइट बन्धुओं ने साल 1903 में पहली बार इंजन से चलने वाले हवाई जहाज का ईजाद किया.
आकाश में उड़ने के ख़याल को हक़ीकत में बदलने के लिए पहले तो हल्की मिश्रित धातुओं का आविष्कार करना पड़ा.
फिर थर्मोडायनेमिक्स और एयरोडायनेमिक्स के कुदरती सिद्धांतों को समझने की मशक्कत भी करनी पड़ी जिसका किसी भी भारतीय प्राचीन संस्कृत ग्रंथ में कोई भी जिक्र नहीं मिलता.
पोंगापंथी ज्योतिषी
अठारहवीं शताब्दी में स्विस वैज्ञानिक बरनौली के हवा के घुमावदार सतह पर बहने से कम दबाव बनने के सिद्धांत की खोज के बिना विमान के पंख और रुडोल्फ क्लासियस के ऊष्मा आदान-प्रदान और संरक्षण के सिद्धांतों की खोज के बिना इंजन का आविष्कार संभव ही नहीं था.
विज्ञान की तरक्की प्राचीन ग्रथों के अध्ययन मात्र और टीका-टिप्पणी से नहीं बल्कि पुराने विज्ञान को प्रयोग और प्रेक्षणों की कसौटी पर कसकर संशोधित या खारिज करने से होता है.
इस वैज्ञानिक पद्धति का एकमात्र उदाहरण आर्यभट्ट थे जिनका वैचारिक वध आज से डेढ़ हजार साल पहले पोंगापंथी ज्योतिषियों ने कर दिया और विज्ञान की जड़ में मट्ठा डाल दिया.
आज के दौर में जब कम्प्यूटर मशीनों को दिमाग से सीधा जोड़ने के प्रयासों से मन की इच्छा से चलने वाली तकनीक पर दुनिया भर में काम हो रहा है तब विज्ञान के सम्मेलन में इस तरह की पुरातनपंथी बचकानी हरकत से देश के बच्चे क्या सीख लेंगे, सोच कर डर लगता है.
जो सभ्यता पांच हज़ार सालों में बैलगाड़ी के पहिए की धुरी में बॉल-बियरिंग तक न लगा पाई हो उसके लाखों बरस पहले अंतरग्रहीय विमान के दावों पर हंसा भी तो नहीं जा सकता है.
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