बिहार में 2000 हिंदू बने बौद्ध
बिहार सारण में दो दिवसीय धर्मांतरण कार्यक्रम को संपन्न कराने के लिए मलेशिया व ताइवान से चार प्रतिनिधि गड़खा पहुंचे थे। इसमें एक हिंदी अनुवादक भी था। प्रतिनिधियों ने बौद्ध धर्म की विशेषता और इससे भविष्य में मिलने वाले लाभ दलितों को बताए। फिर रविदास व बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के साथ गौतम बुद्ध की प्रतिमा रखी गई। अनुष्ठान के लिए कुंड भी बनाया गया था। अंतिम दिन बौद्ध धर्म स्वीकार करने वालों की सूची तैयार की गई, जो कार्यक्रम समापन के बाद कुंड में जला दी गई। धर्मांतरण का तानाबाना छह माह पूर्व ही बुना जा चुका था। उस समय बाहर से आए प्रतिनिधियों ने पहले दलित गांवों की सूची तैयार की। फिर उस गांव के तेजतर्रार युवकों को चुना और आयोजन कराया।
इसके अलावा मानपुर, गया के बाइपास मार्ग पर खंजाहांपुर गांव के बुद्ध मंदिर के पास गत शनिवार को पांच सौ पुरुष और महिलाओं ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। खंजाहांपुर निवासी दयमंती देवी ने बताया कि घर अशांत था। शांति का कोई रास्ता नहीं दिखाई पड़ रहा था। परेशान होकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। दीक्षा लेने के बाद से सभी लोग घुल-मिलकर रहने लगे। कंचन देवी का कहना है कि भगवान बुद्ध की पूजा और उनके बारे में प्रवचन सुनना अच्छा लगा, इसलिए धर्म परिवर्तन कर बौद्ध अपनाया है। इस धर्म का आजीवन निर्वाह करेंगे।
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