Friday, January 23, 2015

मौत पर मातम नहीं, शहादत और अथक संघर्ष को सलाम !! सम्पादकीय - भूमकाल समाचार


मौत पर मातम नहीं, शहादत और अथक संघर्ष को सलाम !! 

 सम्पादकीय - भूमकाल समाचार 

गाजर मूली हो गए हैं आदिवासी | कभी छद्म क्रान्ति के नाम पर तो कभी छद्म विकास के नाम पर | नक्सली उन्मूलन के नाम पर पहले ही तरह - तरह के प्रयोग के बहाने हजारों आदिवासी मौत के घाट उतारे जा चुके हैं | सलवा जुडूम के बहाने एक लाख से ज्यादा आदिवासी अपनी संस्कृति और सभ्यता और गाय बकरी सहित सबरी और गोदावरी के पार जाना पडा है | कई आदिवासी बिना पोस्ट मार्टम के दफना दिए गए या कि जला दिए गए | ये सब किसी हथियार से ही मारे गए , हाथ विक्षिप्त नक्सली के थे या विक्षिप्त जवान के यह तय नहीं है | अब तक चर्चा में आये सैकड़ों फर्जी मुठभेड़ों में कई पर तो सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया , कई में नाटकीय दंडाधिकारी जांच हुई , इन रिपोर्टो में क्या है और इन्हें कहाँ पेश किया जाता है ? ये तो किसी जिम्मेदार अधिकारी को भी नहीं मालूम | पर तय है कि यह रिपोर्ट किसी न्यालय की कार्यवाही का हिस्सा नहीं बनता | तो फिर किसी दोषी को सजा मिलेगी भी क्यों ? आज तक किसी भी फर्जी मुठभेड़ के मामले में किसी भी जवान या समूह को दोषी ठहराया भी नहीं गया | अब ऐसे में जवानों में जोश आयेगा ही | कार्यवाही होगी तो जवानों का मनोबल गिरने का सवाल जो है | पता नहीं नक्सलियों से सीधा मुकाबला करने की टर्निंग में कमी है या रिश्वत देकर नौकरी पाने का मामला , नक्सलियों से सीधा मुकाबला करने में तो अकसर ये पीछे नजर आतें हैं | पर सर्चिंग के बहाने खेतों में , रास्ते में , जंगल में या कभी तो घर में घुस कर आदिवासियों का हाथ पैर तोड़ने , लूट-पाट करने या मार डालने के खेल से ही इनका आत्म विश्वास जागता है | इन निरीह आदिवासियों को पोस्टमार्टम का भी अधिकार नहीं है |
कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित ख़बरों के अनुसार अब यह तो तय हो चुका है कि अधिकाँश फर्जी मुठभेड़ , गिफ्तारी या फर्जी सरेंडर उन इलाकों में ही हुए हैं जहाँ किसी कारपोरेट घराने का उद्योग लगना है | सेन्ट्रल पैरा मिलिट्री फ़ोर्स के कैम्प भी जनता की सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि इन्ही उद्योग घरानों के द्वारा ख़रीदे गए जल - जंगल और जमीन को सदियों से काबिज आदिवासियों से खाली कराने के लिए इनके प्रस्तावित प्रोजेक्ट के चारों ओर लगे हुए हैं | जनता के पैसे से इनका खर्च वहन किया जाता है , जबकि इन्हें जनता के खिलाफ ही इन्हें इस्तेमाल किया जाता है |
मगर अब बस्तर की जनता को नक्सली और सरकार सबकी नीति समझ में आने लगी है | अब ये संगठित हो रहें हैं | इन्होने संघर्ष का रास्ता ढूंढ लिया है | माह भर पहले ही सुकमा जिले के कुकानार क्षेत्र की जनता ने तीन दिन –रात थाने के सामने कड-कडाती ठंढ में प्रदर्शन कर एक बड़ी लड़ाई जीती थी | शान्ति के रास्ते से अपनी ताकत दिखा इन्होने भारतीय संविधान की धज्जी उड़ा कर अवैध तरीके से हवालात में रखी गयी अपनी महिला साथी सुकडी को न केवल छुड़ा लिया बल्कि उसे सर्व सम्मति से अपना सरपंच बनाकर पूरी सरकार को चुनौती दी | अब दंतेवाडा के रेवाली गाँव के भीमा नुपो को गाजर मूली की तरह मारने के खिलाफ जनता संगठित हुई है | इनकी एकता , निडरता और संघर्षशीलता को सलाम !
जब तक आदिवासी सरकारी खिलौने बने रहेंगे तब तक सरकारी दमन मजबूत होगा | जिस दिन आदिवासी एक हो जायेंगे इस क्रूर दमन को रुकना ही होगा। हर मोर्चे पर संघर्ष जारी रहे , हर पुलिसिया दमन और पूँजीवाद परस्त सरकार के हुक़्मरानों को यों ही करारा जवाब मिलता रहे । मौत पर मातम नहीं , शहादत और अथक संघर्ष को सलाम !! पूरी दुनिया का इतिहास इस बात का साक्षी है कि दमन तंत्र जन शक्ति के आगे हमेशा हारती रही है | ( सम्पादकीय - भूमकाल समाचार )

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