Saturday, January 31, 2015

भूमि अधिग्रहण कानून में क्यों किया नमो सरकार ने संशोधन

भूमि अधिग्रहण कानून में क्यों किया नमो सरकार ने संशोधन

janjwar post

इस अध्यादेश के रूप में जिस तरह किसी को भी किसी समय मनमाने तरीके से उनके घर से निकाला जा सकता है और वो भी कानून की शक्ल में, इससे बड़ा दुर्भाग्य इस तथाकथित लोकतांत्रिक देश के लिए और क्या होगा? छद्म लोकतंत्र का आवरण टूट रहा है. इसे तोड़ने वाला ही अपने को दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का प्रधानमंत्री कहता है…
रूपेश कुमार
tribes of india newनववर्ष 2015 के बधाई स्वरूप 31 दिसंबर 2014 को मोदी सरकार ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनरुद्धार संशोधन कानून 2013 में संशोधन के लिए अध्यादेश जारी किया. ऐसा तब है जब 2013 में तत्कालीन कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनरुद्धार संशोधन कानून जब बनाया था, तो उस समय भाजपा के भी सभी नेताओं ने सदन में इस कानून के पक्ष में कसीदे गढ़ने में कोई कमी नहीं की थी.
दरअसल, 2013 में इस कानून के बनने के पीछे देशवासियों के संघर्ष का महत्वपूर्ण योगदान था. हमारे देश में लगातार एक ऐसे भूमि अधिग्रहण कानून को बनाने के लिए विभिन्न जनसंगठनों व राजनीतिक दलों के जरिए भी आंदोलन होता रहता था, इनके परिणामस्वरूप ही 2013 का कानून बना था. अब सवाल उठता है कि प्रचंड बहुमत (भाजपा की नजर में) से आई मोदी सरकार ने फिर इसमें संशोधन की जरूरत क्यों समझी?
केन्द्रीय वित्त मंत्री अरूण जेटली का कहना है कि ‘यूपीए सरकार द्वारा बनाए गए कानून से हम सहमत थे और अभी भी हैं. हमने आधुनिक शहर बनाने के लिए और निवेशकों के लिए साथ ही गरीबों के खातिर ही कुछ संशोधन किए हैं.’
यह बात अब किसी से छिपी हुई नहीं है कि मोदी ने सत्ता में आने के बाद से ही जितने भी विदेशी दौरे किए या फिर जितने भी विदेशियों को अपने देश में आमंत्रित किया, उन्हें भारत में बेरोकटोक पूंजी निवेश के लिए भी अपने देश की सम्पदाओं का सम्पूर्ण दोहन का भी न्योता दिया. सवाल उठता है कि 2013 के कानून में बिना संशोधन किए क्या मोदी अपने विदेशी आकाओं से किया वादा पूरा कर पाते? इसके लिए 2013 के कानून में हुए संशोधनों के कुछ बिंदुओं को देखना लाजिमी होगा :
—2013 के कानून के सेक्शन 105 में प्रावधान था कि नेशनल हाइवे एक्ट 1956, रेलवे एक्ट 1989, कोल बियरिंग एरियाज एक्विजिशन एंड डेवलपमेंट एक्ट 1957 जैसे 13 कानून भूमि अधिग्रहण कानून के दायरे से बाहर रहेंगे, लेकिन उसमें यह प्रावधान था कि संसद की अनुमति से सरकार इस कानून के लागू होने की तिथि से एक साल बाद (यानी 1 फरवरी 2015) से इन कानूनों में भी भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधानों को लागू कर सकती है. परिवर्तित कानून में संशोधन कर नए सेक्शन 10ए के तहत औद्योगिक गलियारे, इंफ्रास्ट्रक्चर, रक्षा आदि विशेष श्रेणी की सरकारी और सरकारी व निजी सहभागिता की परियोजनाओं को पूर्ववर्ती भूमि अधिग्रहण कानून के दायरे से बाहर कर दिया है.
—पूर्ववर्ती कानून में सरकारी व निजी क्षेत्र की सहभागिता वाली परियोजनाओं के लिए 70 फीसदी और निजी क्षेत्र की परियोजनाओं के लिए 80 फीसदी जमीन के मालिकों की मंजूरी अनिवार्य थी. नए कानून में इन श्रेणियों में जमीन के मालिकों की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी. साथ ही साथ ऐसी परियोजनाओं के लिए बहुफसलीय सींचित जमीन का भी अधिग्रहण किया जा सकता है.
—पूर्ववर्ती कानून के सेक्शन 101 में प्रावधान था कि अगर अधिग्रहित भूमि 5 वर्षों तक उपयोग में नहीं लायी जाती है, तो वह जमीन के मूल मालिक को वापस कर दी जाएगी. इसमें संशोधन करते हुए 5 वर्ष की जगह, वह समय सीमा जो किसी परियोजना की स्थापना के लिए नियत की गई हो 5 वर्ष, जो भी अधिक हो, कर दिया गया है. 
—कानून के सेक्शन 24 (2) में प्रावधान था कि मुकदमे की स्थिति में स्थगन आदेश 5 वर्ष की समय सीमा में समाहित होगा. इसे सर्वोच्च न्यायालय ने भी स्वीकार किया था. संशोधित अध्यादेश में स्थगन आदेश की अवधि को 5 वर्ष की समय सीमा में नहीं जोड़ा जाएगा.
— अध्यादेश में मुआवजे की परिभाषा को बदलते हुए इसमें उस मुआवजे को भी शामिल कर लिया गया है, जो इस उद्येश्य के लिए शुरु किए गए किसी भी खाते में पड़ा हो.
—पूर्ववर्ती कानून के सेक्शन 87 में प्रावधान था कि किसी केन्द्रीय या राज्य स्तरीय अधिकारी द्वारा कानून के उल्लंघन की स्थिति में संबंधित विभाग के प्रमुख को भी जिम्मेवार माना जाएगा. इस अध्यादेश में इस व्यवस्था को संशोधित करते हुए प्रावधान किया गया है कि न्यायालय प्रोसिज्यूर कोड के सेक्शन 197 के तहत ही कार्रवाही कर सकता है.
— पूर्ववर्ती कानून में प्रावधानों को लागू करने की समय सीमा दो वर्ष निर्धारित की गई थी, लेकिन अध्यादेश में इसे बढ़ाकर 5 वर्ष कर दिया गया है. 
—अधिग्रहण से ‘प्रभावित परिवारों की परिभाषा में बदलाव स्पष्ट नहीं है.
—संशोधित अध्यादेश के रेट्रोस्पेक्टिव प्रावधान के अनुसार पहले से अधिग्रहित भूमि का अधिग्रहण रद्द किया जा सकता है, जिनमें मुआवजे नहीं दिए गए हैं या जमीन का कब्जा नहीं लिया गया है.
— मुआवजे के निर्धारण व बंटवारे में न्यायालय की निगरानी के प्रावधाव को बदल दिया गया है, अब यह जरूरी नहीं होगा.
इन सभी बदलाओं के गहन विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस अध्यादेश का स्वरूप 1894 में ब्रिटिश शासन द्वारा लाए गए औपनिवेशिक भूमि अधिग्रहण के समान ही है. समुचित मुआवजे का अधिकार एवं भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता तथा पुनर्वास कानून में बड़ा बदलाव कर मोदी सरकार ने फिर से एक बार औपनिवेशिक शासन की याद दिला दी है. इस अध्यादेश को गुलामी का अध्यादेश ही कहा जा सकता है.
इस अध्यादेश के रूप में जिस तरह किसी को भी किसी समय मनमाने तरीके से उनके घर से निकाला जा सकता है और वो भी कानून की शक्ल में, इससे बड़ा दुर्भाग्य इस तथाकथित लोकतांत्रिक देश के लिए और क्या होगा? छद्म लोकतंत्र का आवरण टूट रहा है और इसे तोड़ने वाला ही अपने को दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का प्रधानमंत्री कहता है.
आज पूरे देश के लोकतंत्र पसंद लोग सड़क पर उतरकर इस अध्यादेश का विरोध कर रहे हैं, लेकिन ‘आदिवासियों व किसानों की जमीन नहीं छीनने देंगे का नारा देकर चुनाव जीतने वाली पार्टी के कानों पर जूं भी नही रेंग रही है. देश देशी-विदेशी पूंजीपतियों के चंगुल में पूरी तरह से फंसते जा रहा है. अगर हम अब भी कुम्भकर्णी निद्रा में सोए रहेंगे, तो हमारे देश का भविष्य क्या होगा? ये सोचने की बात है. आज वक्त की जरूरत है कि ऐसे गुलामी के अध्यादेश को फाड़कर आग के हवाले कर दें और उस आग की लपटों से ऐसे अध्यादेश पारित करने वाली सरकार के 

FURTHER UPDATE - HOLCIM-ACC EXPANSION PLANT IN JAMUL

FURTHER UPDATE - HOLCIM-ACC EXPANSION PLANT IN JAMUL


इनबॉक्स
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Further update

1.   It was found that the incident had occurred because when a worker Sujaan Patel had on behalf of the workers demanded decent wages, the Supervisor of Haji Baba Constructions Sushil Kumar Singh and his men beat him up severely in a closed room. When the workers found this out, they retaliated and the fracas ensued. 

2.   After their work in the old plant, PCSS workers took out a demonstration in front of the (Expansion) Project Gate demanding an enquiry into the incident, black listing of Haji Baba contractor, that Holcim management look into serious and long standing grievances of the construction workers and that the injured be provided medical treatment.

2.   When Rajkumar Sahu, Vice President PCSS was trying to get information and trying to represent the grievances of the construction workers to the Project Director of the Expansion Plant Sunil Gupta, he threatened Mr Sahu with dire consequences. The PCSS is planning to lodge an FIR against this threat.

Please find attached the newspaper cuttings relating to the incident 

sudha bharadwaj
On behalf of PCSS

Thursday, January 29, 2015

WORKERS AND SUPERVISOR INJUREDIN FRACAS AT HOLCIM-ACC EXPANSION PLANT IN JAMUL

WORKERS AND SUPERVISOR INJUREDIN FRACAS AT HOLCIM-ACC EXPANSION PLANT IN JAMUL



WORKERS AND SUPERVISOR INJUREDIN FRACAS AT HOLCIM-ACC EXPANSION PLANT IN JAMUL




Dear Friends,

Yesterday a Supervisor Sushil Kumar Singh of Haji Baba Contractor, engaged in the Holcim-ACC Expansion Plant Jamul hit and abused workers. Today in anger a number of workers beat him. Following there was chaos with contractors and bouncers beating workers and workers retaliating. Finally the police were called and they have lathicharged the workers injuring several.

The union of contract workers in the old plant - Pragatisheel Cement Shramik Sangh - are not being permitted to meet the workers or enter the area where the incident has taken place.

The suprevisor Sushil Kumar Singh and a worker Sujaan Patel - both seriously injured have been admitted into the Apollo Hospital.Large number of other injured have been whisked away by the police which has cleared the area.

PCSS has been bringing to the notice of the Holcim Management and the authorities that the workers in new Expanision Plant - who are mostly migrants from other states and are here at the mercy of the contractors are being severely exploited by low wages, unpaid wages, illegal deductions, long working hours and lack of safety. There have been a number of accidents in the past few months. But hardly any heed has been paid to this serious situation.

It is pertinent that the same Haji Baba contractor was responsible for an accident in the Grasim (Ultratech plant) in Baloda Bazar (Cg) a few months ago when a silo collapsed, and an accident in ACC Bargarh. Odisha about a year back.

When PCSS representatives tried to photograph an injured worker being carried out of the expansion plant, they were shooed away. We are attaching here whatever photos it was possible to take.

Please help us in -
1.  Demanding black listing contractor Haji Baba Constructions by the Labour Department and enquiries into the present incident as well as the accident at Grasim (Ultratech) Cement, Baloda Bazar.
2.  Demanding from the Holcim management that they permit PCSS to vist the site, talk to workers and represent them so as to resolve their grievances.
3.  Demanding that the Labour Department ensure that  Holcim Management should not victimise workers, or discharge workers in regard to the incident today but should consider their grievances.
4.  Demand that the Labour Department ensure that the injured workers be given full treatment and medical leave and necessary facilities by the Company.

Wednesday, January 28, 2015

गणतंत्र दिवस पर ही संविधान को मारी टंगड़ी .. अरुण कान्त शुक्ला

गणतंत्र दिवस पर ही संविधान को मारी टंगड़ी .. 

अरुण कान्त शुक्ला




केंद्र सरकार ने सूचना प्रसारण मंत्रालय के ऐड में से सोशलिस्ट- सेक्युलर शब्द गायब करवाये ..
आपको क्या लग रहा था ..महात्मा गांधी के जन्मदिन, बड़े दिन, नव-वर्ष, नेहरू के जन्मदिन, शिक्षक दिवस सभी के साथ छेड़छाड़ करने वाला शख्स संविधान दिवस पर अपनी हरकतों से बाज आयेगा..?
यदि कोई ऐसा सोच रहा था..तो वह अपनी सोच को सुधारने के लिए उस स्वर्ग में जाए जो उस व्यक्ति ने ऐसे लोगों के लिए ख्यालों, हवाओं और लफ्फाजियों में बनाकर रखा है..
उसने तो गणतंत्र दिवस पर गणतंत्र के मूलाधार संविधान में ही तोड़-फोड़ करके रख दी..
ये है भारत सरकार का 26 जनवरी को निकाला गया विज्ञापन नंबर DAVP22201/13/0048/1415, इसमें सरकार की ओर से लिखी गयी प्रस्तावना में अंगरेजी में लिखा गया है "We the people of India, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN DEMOCRATIC REPUBLIC...."
जबकि संविधान में लिखी असली पंक्तियाँ हैं..
WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC and to secure to all its citizens..."
भारत सरकार के सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने विज्ञापन में संविधान की प्रस्तावना से सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्द ही उड़ा दिए..
जिस लोकतंत्र पर ये गर्व करते हैं..
जिसका हवाला देकर ये कहते हैं कि इसकी ताकत से ही एक चायवाला भी देश का प्रधानमंत्री बन सका..
जिसका हवाला अभी अभी एक रसोईये का पोता और दुनिया के सबसे पुराने और मजबूत लोकतंत्र का राष्ट्रपति देकर गया..
उसे पता ही नहीं होगा कि.. 
उसी संविधान को उसी दिन, जब वह परेड देख रहा था, गणतंत्र के दिन ठोकर मारी जा चुकी है..
कोई यदि यह सोचता है कि यह गलती सिर्फ प्रशासनिक स्तर की है या कुछ चम्मच अधिकारियों के अति-चम्मच होने की है और ऐसा जान-बूझकर, सोच-समझकर नहीं करवाया गया है या इस देश के प्रधानमंत्री को यह नहीं मालूम होगा तो मैं पुन: कहता हूँ कि उन्हें उसी स्वर्ग में जाना चाहिए जो उस व्यक्ति ने ऐसे लोगों के लिए ख्यालों, हवाओं और लफ्फाजियों में बनाकर रखा है..
एक माह में 10 अध्यादेश..
बिना संविधान में संशोधन के संविधान के प्रिएम्बल में परिवर्तन..
इनके हाथों में लोकतंत्र और लोक का भविष्य..? 
ये दोनों शब्द 44वें संविधान संशोधन के बाद प्रस्तावना में जोड़े गए थे। और यह आकस्मिक नहीं हो सकता है क्योंकि संविधान का दिन मनाने के दिन ही यह घटना हुई है। यह आकस्मिक नहीं है क्योंकि नरेंद्र मोदी खुद अपने भाषणों में सेक्युलर शब्द का मजाक उड़ाते रहे हैं।
अरुण कान्त शुक्ला.. 

Tuesday, January 27, 2015

क्या संविधान को ही ना मानने वाले लोग क्या देशद्रोही नहीं हैं ,

क्या संविधान को ही ना मानने वाले लोग क्या देशद्रोही नहीं हैं , 
हाँ पूरी सरकार ही संविधान को नहीं मानती , 
दो दिन पहले ही हमने संविधान के प्रिएम्बल पढ़ने की बात कही थी, इन्ही चिन्ताओ को लेके रायपुर मे  दो दिन का सम्मेलन भी हुआ था ,उसमे यही कहा गया था की वर्तमान सरकार संविधान के प्रिएम्बल को ही नहीं मानता , अर्थात उसमे समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष और बराबरी को ये लोग मानते ही नहीं है , 
और यही किया सरकार के एक विभाग ने अपने विग्यापन मे समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द को ही संविधान के प्रिएम्बल  से निकाल दिया , और अब भाजपा की सहयोगी शिवसेना ने कहा  की संविधान से इस दोनो शब्द को हटा देना चाहिये .
क्या संविधान को ही ना मानने वाले लोग क्या देश द्रोही नहीं हैं ,

अँगरेज़ मानते थे कि अच्छा इंसान वह होता है जो अच्छे कपड़े पहनता है




अँगरेज़ मानते थे कि अच्छा इंसान वह होता है जो अच्छे कपड़े पहनता है 

[ himanshu kaumar ]


भारत में अंग्रेजों का शासन 

अँगरेज़ मानते थे कि अच्छा इंसान वह होता है जो अच्छे कपड़े पहनता है 
उसे अँगरेज़ जेंटलमैन कहते थे 
अंग्रेज़ी राज के खिलाफ़ लड़ने वाले ज्यादातर नेता भी अंग्रेजों जैसे कपड़े पहन कर अंग्रजों जैसी साहबी से रहते हुए अंग्रेजों का विरोध करते थे .
शुरुआती कांग्रेसी नेता भी अपने घरों में नौकरों से काम करवाते और साहबों जैसा जीवन जीना आदर्श समझते थे .
गांधी जब राजनीति में आये
तो गांधी ने कहा कि अगर हम अंग्रेजों का विरोध करते हैं तो हमें अंग्रेजों के तौर तरीके भी छोड़ने पड़ेंगे .
गांधी ने कहा कि भारत के लोग गोरे शासकों को अपने सर से उतार कर भारतीय साहबों को अपना शासक क्यों बनाएंगे ?
इसलिए अगर हमें इस देश के सच्चे प्रतिनिधि बनना है तो हमें गाँव में गरीबों के साथ जाकर उनके खेतों में खड़ा होना पड़ेगा .
गांधी ने खुद ऐसे कपड़े पहनने शुरू किये जिससे इस देश का गरीब भी यह मानता था कि यही आदमी मेरी तकलीफ समझ सकता है .
गांधी के असर से सारे नेताओं ने अंग्रेज़ी कपड़े , और सूट बूट पहनना छोड़ दिया और खादी और भारतीय कुरता पाजामा इस देश के नेताओं की जैसे यूनिफार्म ही बन गयी .
गांधी ने भारत की राजनीति का भारतीयकरण किया .
परसों भारतीय प्रधान मंत्री मोदी साहब ने एक सूट पहना था .
जिस सूट पर सोने के तारों से मोदी साहब के नाम की हजारों बार कशीदेकारी करी हुई थी .
इस तरह की कशीदेकारी एक विदेशी कंपनी करती है .
इस कंपनी ने मिस्र के तानाशाह होस्नी मुबारक के लिए भी मोदी साहब जैसा ही सूट बनाया था .
चार साल पहले उस वख्त उस सूट की कढाई में करीब सात लाख रूपये का खर्च आया था .
अब महंगाई कुछ बढ़ गयी है तो खर्च करीब दस लाख रुपया आया होगा .
भारत की गरीब जनता का प्रतिनिधी दस लाख रूपये का सूट पहनेगा .
यह दस लाख रूपये मोदी साहब ने अपनी तनख्वाह से तो सिलवाया नहीं होगा .
भारत सरकार ने भी इस सूट का भुगतान नहीं किया होगा .
तो इस सूट को किसी अमीर उद्योगपति ने ही मोदी साहब को खरीद कर दिया होगा .
उस अमीर उद्योगपति ने भी यह पैसा अपनी कंपनी में रसीद काट कर खर्च नहीं किया होगा .
यानी यह सूट ब्लैक मनी से खरीदा गया होगा .
उस उद्योगपति ने यह सूट मोदी साहब से अपने प्यार की वजह से नहीं दिया होगा .
वह उद्योगपति ज़रूर दस लाख का सूट देने के बाद बदले में भारत के प्रधानमंत्री से अपना कुछ फायदा भी चाहेगा .
सूट देने वाला उद्योगपति चाहेगा कि भारत का प्रधानमंत्री उसे खनिजों के लिए ज़मीन छीन कर दे दे जिससे वह उद्योगपति मुनाफा कमा सके
भारत का प्रधानमंत्री भारत के अर्ध सैनिक बलों को भेजेगा कि जाओ आदिवासियों को मार कर भगाओ और ज़मीने खाली कराओ .
इस सब में आदिवासी औरतों के साथ बलात्कार होंगे बच्चे मारे जायेंगे
इस सब में आदिवासी भी मारे जायेंगे और सीआरपीएफ के सिपाही भी मारे जायेंगे .
दोनों ही गरीब नागरिक हैं
गरीब नागरिकों को आपस में लड़वा कर अपना मुनाफा बनाने में मदद देने का काम भारत का प्रधानमंत्री करवाएगा ?
इतना कीमती सूट पहनना आपका अपना शौक नहीं माना जा सकता
यह एक सार्वजानिक अपराध है
यह सूट रिश्वतखोरी का एक गन्दा मामला है
भारत का प्रधानमंत्री रिश्वत के पैसे से बनाए गए सूट का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं कर सकता
इस आदमी के खिलाफ एफआईआर दर्ज़ होनी चाहिये
और इससे पूछा जाना चाहिये कि दस लाख रूपये का यह सूट किसने दिया है ?
कोर्ट मेरे इस लेख का संज्ञान ले और मुक़दमा शुरू करे .
यह एक व्यक्ति के शौक का नहीं इस देश की करोड़ों गरीब जनता के भविष्य का मामला है .

और कौन जन्म से ही अपमानित माना जाएगा ?


और कौन जन्म से ही अपमानित माना जाएगा ?
[ हिमांशु कुमार ]


कौन काट सकेगा किसके बच्चों को तलवारों से ?
और किसका संरक्षण करेगी अदालत लक्ष्मणपुर बाथे के हत्या कांड के बाद भी ?
किसका घर कौन बुलडोजर लगा कर तोड़ सकेगा मुंबई में ?
किसके फायदे के लिये सिपाही मार सकेंगे दूसरे नागरिकों को बस्तर में ?
किसको जन्म से ही माना जायेगा राष्ट्रभक्त ?
और कौन बिना किसी कसूर के ही देखा जायेगा हमेशा संदेह की नज़र से क्योंकि उसका विश्वास अलग होगा इश्वर के बारे में ?
किसकी धरती ज़्यादा होगी और किसी को नहीं होगा ज़मीन पर कहीं भी रहने का कोई ह्क़ ?
कौन मानेगा अपने जन्म को बे ज़रूरत इस धरती पर ?
और कौन इतराएगा देख कर अपनी मीलों तक फ़ैली हुई ज़मीन को ?
किसके जिस्म में पत्थर भरे जायेंगे ?
और कौन करोड़ों सभ्य लोग होंगे जो ईनाम देंगे पत्थर भरने वाले को ?
जिसके जिस्म में पत्थर भरे जायेंगे उसके लिये कौन सा कोना होगा सिसक सिसक कर मरने के लिये ?
और आपके जश्न मनाने के लिये बनाये गये शापिंग मॉल तक उसकी सिसकियों की आवाज़ ना पहुँच सके इसके क्या इंतजाम होंगे ?
फिर आप अपने इस अय्याश्खाने को राष्ट्र कहेंगे
और सिसकने वाले को कह देंगे राष्ट्रद्रोही
और हुक्म देंगे अपनी राष्ट्रीय फौजों को कि वो खामोश कर दे इन सिसकने वालों को
और आप करोड़ों लोगों को इस तरह की बेबसी में धकेल देंगे
और फिर अपनी अय्याशी की हिफाज़त के लिये
चारों तरफ खड़ा कर लेंगे सिपाहियों को
उसे आप कहेंगे राष्ट्रीय सुरक्षा ?
आप अपने महल के ऊपर फहरा लेंगे एक तीन रंग का कपड़ा
और आप कहेंगे सिपाहियों से कि ये कपडा ही राष्ट्र है
इस कपडे की हिफाज़त करना ही सिपाहियों का फ़र्ज़ है
आप कहेंगे कि आपका गोल महल ही लोकतन्त्र है
इस महल में कभी नहीं होगा कश्मीर की कुचली गई लड़कियों का कोई भी ज़िक्र
या कभी बात नहीं होगी शीतल साठे की जिसे सिर्फ इसलिये छिप कर रहना पड़ रहा है
क्योंकि उसने जन्म लिया एक अवैध बस्ती की एक झोंपड़ी की एक गरीब छोटी ज़ात की औरत के पेट से .
और उस लड़की ने चुनौती दी तुम्हारे बड़े होने को ?
इसलिये तुमने अपने सिपाही पीछे लगा दिये उस बहादुर लड़की शीतल साठे के पीछे ?
तुम बड़ी जाति के हो इसलिये सम्मनित हो
तुम अमीर हो
तुम ही कानून हो
तुम ही सरकार हो
तुम चाहते हो कि हम मान लें कि तुम ही राष्ट्र हो ?
नहीं अभी रुको
अभी हमें सोचने दो इन सब बातों पर
हम सवाल उठाएंगे
हर बात पर
हम सवाल उठाएंगे धर्म पर राष्ट्र पर जाति पर सरकार पर
तुम्हारे बड़े और अपने छोटे होने पर
इस दुनिया को अब पहले जैसी दुखी नहीं रहने देंगे हम
इस दुनिया को दुखी बनाने वाली हर चीज़ को हम खत्म करेंगे हम
तब मानेंगे

Monday, January 26, 2015

भारत-अमरीका परमाणु सहमति के असल मायने

भारत-अमरीका परमाणु सहमति के असल मायने

  • 26 जनवरी 2015
नरेंद्र मोदी, बराक ओबामा
भारत और अमरीका के बीच नागरिक परमाणु समझौते (सिविल न्यूक्लियर डील) के मुद्दे पर भारत सरकार के स्तर पर लगभग सहमति हो गई है. यानी, भारत परमाणु ऊर्जा से बिजली बनाने की दिशा में एक क़दम आगे बढ़ गया है.
दोनों देशों के बीच मतभेद का एक बिंदु यह था कि अमरीका का मानना था कि भारत का नागरिक परमाणु समझौता क़ानून अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप नहीं है.
भारत ने अमरीका को आश्वस्त किया है कि भारत का क़ानून, इंटरनेशनल कन्वेंशन ऑफ़ सप्लिमेंट्री कॉम्पनसेशन के अनुरूप है. अमरीका ने इसे स्वीकार कर लिया है.
रविवार को दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर इंश्योरेंस पूल पर भी सहमति बनी है. इंश्योरेंस संबंधी जवाबदेही (इंश्योरेंस लाएबिलिटी) के तहत अब साढ़े सात सौ करोड़ रूपए सामान्य इंश्योरेंस कंपनी देंगी और बाक़ी साढ़े सात सौ करोड़ रुपए की सरकार की गारंटी होगी.

निगरानी का सवाल

नरेंद्र मोदी, बराक ओबामा
इससे पहले दोनों देशों के बीच परमाणु रिएक्टरों की निगरानी को लेकर भी मतभेद था.
अमरीका चाहता था कि अगर वो अपना सामान और तकनीकी देगा तो उसके इंस्पेक्टर इसकी निगरानी करेंगे. भारत इसके लिए तैयार नहीं था.
भारत का कहना था कि उसके पास संयुक्त राष्ट्र के न्यूक्लियर वॉचडॉग - अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के मानक हैं और भारत उन्हीं के नियमों एवं निगरानी के अनुसार आगे बढ़ेंगे.
भारत की शर्त ये भी थी कि वो किसी देश को भी द्विपक्षीय कार्यक्रमों की निगरानी नहीं करने देगा और इस मुद्दे पर भी सहमति बन गई.
फाइल फोटो (परमाणु ऊर्जा संयंत्र)
अब भारत के परमाणु संयंत्रों की केवल आईएईए के मानकों के तहत निगरानी होगी.

मामला वाणिज्यिक कंपनियों के बीच

नरेंद्र मोदी, बराक ओबामा
अब सारा मामला भारत की वाणिज्यिक कंपनी न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड और न्यक्लियर रिएक्टर बेचने वाली दो अमरीकी कंपनियों वेस्टिंगहाउस तोशिबा और जनरल इलेक्ट्रिक के बीच का हो जाएगा. क्योंकि दोनों सरकारों के बीच जो सहमित बननी थी वो बन गई है.
अमरीकी कंपनियाँ अपने रिएक्टर भारत को सही दाम पर बेचेंगी तो ये रिएक्टर भारत में लग सकते हैं, और अगर वो अधिक दाम मांगेगे तो ये सौदा मुश्किल होगा.
ध्यान देने की बात है कि अमरीका की दोनों कंपनियाँ जो रिएक्टर बेच रही हैं उनका अभी कहीं प्रयोग नहीं हुआ है, कहीं भी ऐसे रिएक्टर सक्रिय नहीं है.
ऐसे में अगर अमरीका को इन रिएक्टरों को भारत को बेचना है तो भारत सही दाम पर ही सहमत होगा.
(बीबीसी संवाददाता संदीप सोनी से बातचीत पर आधारित)

मुझे वहाँ होना चाहिए, पर साहेब ने नहीं बुलाया"

मुझे वहाँ होना चाहिए, पर साहेब ने नहीं बुलाया"



जब प्रधानमंत्री मोदी मिशेल और बराक ओबामा का स्वागत कर रहे थे, तब जसोदाबेन अपनी सुबह की पूजा में लगी थीं, वही जानें कि ईश्वर से उन्होंने क्या प्रार्थना की.
जसोदाबेन सुनहरी साड़ी पहनकर अच्छी तरह से तैयार हुई थीं, लेकिन ओबामा के स्वागत में जाने के लिए नहीं, बल्कि उत्तरी गुजरात के अपने गाँव ब्रहमवाड़ी से 120 किलोमीटर दूर एक शादी में जाने के लिए.
उनके भतीजे ने टीवी ऑन किया तो ओबामा के स्वागत का सीधा प्रसारण चल रहा था, कुछ देर उन्होंने इसे नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की लेकिन फिर अपने पति को ग़ौर से देखने लगीं.

जसोदाबेन
उन्होंने ओबामा के आगमन का सीधा प्रसारण टीवी पर देखा

मिशेल और बराक ओबामा के साथ मोदी को देखकर उन्होंने कहा, "मुझे पता है कि जब ओबामा का स्वागत हो रहा था तब मुझे भी दिल्ली में होना चाहिए था लेकिन साहेब ऐसा (मोदी) नहीं चाहते, इससे मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता."
जसोदाबेन ने कहा, "अगर वे मुझे आज बुलाएँगे तो मैं कल पहुँच जाऊँगी, लेकिन मैं पहले कभी नहीं जाऊँगी, उन्हें मुझे बुलाना होगा. ये मेरा आत्मसम्मान है जिससे मैं नहीं डिगूँगी, हम दोनों के बीच हैसियत की कोई बात नहीं है, हम दोनों इंसान हैं."

'उनकी आभारी हूं'

मेरे सवालों के बीच जसोदाबेन अपनी भाभी से पूछ रही थीं कि उनकी साड़ी के साथ कौन से गहने अच्छे लगेंगे.
जसोदाबेन बोलीं, "मैं आभारी हूँ कि उन्होंने पिछले साल मुझे अपनी पत्नी माना, मैं सरकार से माँग करती हूँ कि वह मुझे मेरे अधिकार दे जिसकी मैं हक़दार हूँ. मैं जानती हूँ कि उन्होंने देश के लिए अपने वैवाहिक जीवन का त्याग किया, अगर मैं उनके साथ होती तो वे शायद इतना कुछ नहीं कर पाते, मेरे मन में कोई कड़वाहट नहीं है."

मोदी और जसोदाबेन
आम चुनावों से ठीक पहले मोदी ने जसोदाबेन को अपनी पत्नी माना

उनका कहना था, "जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने स्वीकार नहीं किया मैं उनकी पत्नी हूँ, मैं जब कहती थी कि मैं मोदी की पत्नी हूँ तो भाजपा के लोग मुझे झूठा बताते थे."
जसोदाबेन की शादी नरेंद्र मोदी से 17 वर्ष की उम्र में 1968 में हुई थी, वे रिटायर्ड स्कूल टीचर हैं और 14 हज़ार रुपए की पेंशन पर गुज़ारा करती हैं.
उन्होंने बताया, "शादी के बाद वे मेरे साथ कुछ महीनों तक रहे, वे सुबह आठ बजे चले जाते थे और देर शाम घर आते थे, एक बार वे गए तो फिर नहीं आए, मैं अपनी ससुराल में तीन साल तक रही जिसके बाद मुझे लगा कि अब वे मेरे पास नहीं आएँगे, फिर मैं पढ़ाई करके टीचर बन गई".

सुरक्षा गार्डों से परेशान


जसोदाबेन
जसोदाबेन अपने भाइयों के साथ रहती हैं

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद गुजरात सरकार ने उनके घर के बाहर चार कमांडो तैनात किए हैं, वे साये की तरह उनके साथ चलते हैं, यहाँ तक कि हाल ही में उनके साथ वे मुंबई भी गए थे.
जसोदाबेन ने सूचना के अधिकार के तहत दो बार आवेदन किया है कि उन्हें इस सुरक्षा व्यवस्था के बारे में जानकारी दी जाए, लेकिन यह कहते हुए उन्हें जानकारी नहीं दी गई कि वह गोपनीय है.


जसोदाबेन ने अपने आवेदन में कहा है, "मैं मंदिर जाती हूँ तो ये मेरे पीछे आते हैं, अगर मैं बस पर चढ़ती हूँ तो ये पीछे-पीछे कार से आते हैं, उनकी मौजूदगी मुझे डराने वाली लगती है, इंदिरा गांधी को तो उनके गार्डों ने ही मार डाला था, मैं जानना चाहती हूँ कि किसके निर्देश पर इनकी तैनाती की गई है."
वे कहती हैं, "इनकी वजह से गाँव में मेरा मज़ाक बन गया है, इनके साथ मुझे आते देखकर लोग मज़ाक उड़ाते हैं--देखो, मोदी की बारात जा रही है."
ये कमांडो हर उस आदमी का अता-पता दर्ज करते हैं जो जसोदाबेन से मिलने आता है, जसोदाबेन के रिश्तेदारों को लगता है कि ये कमांडो सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि उन पर नज़र रखने के लिए तैनात किए गए हैं.
जसोदाबेन को सबसे बड़ी शिकायत ये है कि पुलिस ने उनकी अर्ज़ी का जो जवाब भेजा है, उसमें उन्हें 'जसोदाबेन चिमनभाई मोदी' लिखा गया है जबकि उन्होंने आवेदन में अपना नाम जसोदाबेन नरेंद्रकुमार मोदी लिखा था.

Modi govt turns heat on NGOs under IB scanner

Modi govt turns heat on NGOs under IB scanner

TROUBLE 188 NGOs listed for links with extremists, funding violations, conversions

NEW DELHI: The Centre may act against some of the 188 NGOs red-flagged by the Intelligence Bureau for alleged misuse of foreign funds, suspected extremist links and proselytisation. These non-government organisations were reported by the internal spy agency and a list sent to the home ministry, documents accessed by HT have revealed.
The country’s top tax body, the Central Board of Direct Taxes (CBDT), and enforcement directorate (ED), which tracks foreign funds and money laundering, have been alerted. But it is not clear how many of the NGOs have been referred to and to which agency.
At a November 21, 2014 meeting, the government’s economic intelligence council expressed concern over the misuse of funds received from abroad by some NGOs. Stringent action, including cancellation of registration, was called for, the documents revealed. The council also suggested “sharing of the relevant cases” by home ministry “with CBDT and ED for further action”.
The NGOs have been reported by the IB for a range of activities — violation of the foreign contribution regulation act (FCRA), links with Left-wing extremists (LWE), “conversion” of tribals to Christianity, and association with organisations such as the Students Islamic Movement of India and Jamaat-e-Islami Hind.
The reports were compiled over seven years, beginning 2006.
Medecine Sans Frontieres, or Doctors Without Borders, was reported thrice by the IB — in 2008, 2010 and 2013 — for alleged links with “pro-LWE elements”.
“It is also using the satellite phones, the use of which is currently not licenced by the government of India. The doctors of the MSF have often been noticed providing medical treatment to tribals in Naxalite infested areas,” said the report on the Nobel Peace prize winning voluntary body. The French-founded NGO said it had not heard from the home ministry. “Until now, we have received good cooperation from the authorities and MSF is carrying out its medical programmes for many years as usual,” it told HT. Amnesty International India Foundation faces similar charges. “Since 2006, it has occasionally aligned with the LWE associated organisation, PUCL. It has been critical of India’s human rights record since 1992, specifically criticiszing police/army action in J&K and North East,” the report has said. An Amnesty spokesperson declined comment, saying the organisation had not been told of adverse reporting by the government.
Many NGOs have been reported for their alleged conversion activities. The document on Erode-based Trinity Charitable Trust says, “Its chief functionary… started the organization in the premises of the Assembly (church), which has 80 members of which 70 are converted. Its two trustees are converted Christians.”
Delhi-based activist Madhu Kishwar’s Manushi Sangathan has been accused of misusing/ misappropriating funds and violating FCRA. Manushi was never charged with misappropriation, Kishwar told HT. “As a policy, we never accept foreign funding from international aid agencies and get modest NRI contributions. Our accounts are totally transparent and available on the website,” she said.
In January 2014, Kishwar got an FCRA notice for inspection of accounts which she refused to oblige, demanding proof of wrongdoing. Another notice came after the NDA came to power. “After I stated Manushi’s case in a press conference, I got a phone call saying the inspection had been called off ! Since then no one has bothered us.”
The Modi government was Tuesday asked by the Delhi high court to release funds to Greenpeace in India. Greenpeace India had moved the court against the Centre’s move to block funds dispatched from its Amsterdam headquarters since June.

People’s Manifesto

Unity Convention of Secular-Democratic-Progressive Forces

“Threats from Fascist & Imperialist Forces in India, 

Challenges & Strategies”

January 22 & 23, 2015 (Thursday & Friday): Gondwana Bhawan, Raipur: Chhattisgarh










People’s Manifesto 

On Rebuilding Chhattisgarh

We, the participants at the Chhattisgarh Unity Convention of Secular-Democratic-
Progressive Forces held on 22nd & 23rd of January, 2015 at the Gondwana Bhawan, Raipur 

(Chhattisgarh) representing people’s organisations, political parties, social movements, trade 

unions, social and cultural action groups, NGOs and progressive intellectuals, who believe in 

the Vision of a Socialist-Secular-Democratic India and, in turn, work for the realization of such 

a Vision, reaffirm our faith in and commitment to the Constitution of India, which avowedly 

declares in its Preamble: 

WE, THE PEOPLE OF INDIA, having solemnly resolved to constitute India into a

SOVEREIGN SOCIALIST SECULAR DEMOCRATIC REPUBLIC

and to secure to all its citizens:

JUSTICE, social, economic and political;

LIBERTY of thought, expression, belief, faith and worship;

EQUALITY of status and of opportunity;

and to promote among them all

FRATERNITY assuring the dignity of the individual and the [unity and integrity of the Nation]”

We express our deep concern that, for the first time in the electoral history of India, the 

religious fundamentalist forces (with a declared historical agenda for “Hindu Rashtra”) trying 

to gain political control over the State, thus, posing grave threats to the very core and content 

of the Constitution of India.

We had no doubt in our minds that the Narendra Modi-led NDA government with 

Bhartiya Janata Pary (BJP) in absolute majority would pursue and realize the vision of a 

Hindu Rashtra, as projected in the ideological documents of the Rashtriya Swamsewak 

Sangh (RSS), written by their founders. Historical reality has established beyond doubt that 

the BJP is fully under the control of the Rashtriya Swamsewak Sangh (RSS), (and its many 

allies and front organisations like the Vishwa Hindu Parishad, Bajrang Dal, etc.). 

1

In this regard, the violent history of communal forces in India since Independence, 

more so the genocide in Gujarat under Sri Narendra Modi as its Chief Minsiter, has been 

revived under the autocratic control of State machinery by the BJP, as demonstrated in the 

subsequent events during the last 200 days of NDA Rule in India. 

Presently almost all parliamentary democracy institutions and processes are being 

weakened through autocratic legal action, such as leading to the resignation by the 

Chairperson and members of the Censor Board, many journalists and media persons being 

sacked or shifted only because they are suspected of having left-orientation, and 

communalisation of education, leading to changing the vice-chancellors and heads of 

institutions, imposing strictures and violent attack on screening of films, etc. 

We are also well aware of the hidden agenda behind the slogan of development of a 

New India, and “good times ahead” under the leadership of Sri Narendra Modi. It is crystal 

clear that the BJP-led NDA Government is pursuing the goals of globalization serving the 

interests of the Corporate World (domestic and multinational), by putting the vast natural and 

human resources of our country into their hands for profit-making. Policies of privatization 

and liberalization are being pursued at the cost of the vast majority of marginalized masses 

are who are systematically and ruthlessly pushed to the periphery. The autocratic leadership 

has scant regard for the human rights and democratic values enshrined in the Indian 

Constitution! 

 Reversal of Labour Reforms earned by historical labour movements;

 Land Acquisition Ordinance, Coal Ordinance, Insurance Ordinance and Ordinance 

 The fresh data and debate on “poverty line”; 

 The unilateral decision increasing the height of Narmada Dam; 

 Targeting of select NGOs/Social Movements in the IB Report, branding them as 

 The red-carpet treatment of the newly formed Government by the 

Raj

anti-development, meaning, anti-national; 

globalized/imperialist countries, Adani’s Australian coal mine contract ( with State 

Bank of India providing Rs. 60,000 crores of ; nuclear liability negotiations with 

Obama; 

 Home Ministry’s aggressive militaristic attitude to conflict in Central India.

These are only a few indicators pointing towards the contours of the ‘Corporate-
Communal-Security-State’ taking shape under the present autocratic regime. No doubt, the 

State Machinery is nakedly and un-ashamedly at the service of the rich and powerful, and 

ruthlessly and openly against the poor and marginalized. 

While the national scenario is clearly moving towards the road-map of ‘Corporate-
Communal-Security-State’, in Chhattisgarh, the plunder and loot by the Corporate World, and

the sidelining of democratic processes have been already underway during the past tenure of 

the present regime. Now with the BJP-led NDA government at the Centre, the State 

Government is acting more bold and bloody in adopting authoritarian-rule-of-law to suppress 

all dissenting voices and democratic movements resisting globalization, combating 

communalism and defending democracy.

 The reincarnation of Salwa-Judum in its new avatar like the recent resolutions by 

about 50 Gram Sabhas to ban the non-Hindus from preaching and practicing their

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 The systematic violent attack on Christians and other minorities, and the 

 The linkage between the Corporate agenda in Bastar (and in all of Chhattisgarh), 

religion in the villages in Bastar, are like the same old wine of fascism in a new 

bottle. 

campaigns like “Ghar vapasi” are deliberately on the increase to create a rift 

between the adivasis, dalits, landless and marginal farmers so as to carry on with 

the Corporate Agenda without any hindrance from people’s united action.

and Salwa-Judum (and now the banning of non-Hindus) was well exposed not only 

by the human rights and people’s organizations, but declared as un-constitutional 

and anti-democratic by the apex court of the country. 

Therefore, the designs of the Corporate World in achieving their goals can be clearly 

seen on the one hand, diluting the pro-people provisions of the Land Acquisition Act and 

Forest Rights Act, and on the other hand, in diverting the basic purpose of the Gram Sabhas

in protecting their natural and cultural resources from plunder and loot for profit, greed and 

endless pursuit of affluence at the cost of basic human rights of life and livelihood of the vast 

majority of the people, in this case the adivasis and dalits. 

The Chhattisgarh situation is even more sensitive due to conflict between the Maoists 

and the State in a large area of the State. This has led the State to inject more stringent and 

draconian repressive laws (like the Chhattisgarh Special Public Security Act, 2005) and 

machinery (heavy deployment of para-military forces in large areas inhabited with adivasis 

and dalits, affecting their lives, livelihood and culture, etc.) which, in turn, violates the human 

rights of citizens, especially in the conflict zone. This conflict-context would call for fresh 

reflection-action-reflection process to be initiated by the progressive parties and individuals in 

Chhattisgarh. 

We are also conscious of the fact that other coalitions like the United Progressive

Alliance (UPA) are committed to and also have been pursuing ruthlessly the goals of a 

Global-Corporate India, even if without the blatant aggression of the fascist forces. 

We also express our concern that the primary thrust of the present regime is an 

aggressive onslaught on left-democratic forces, silencing the voices of dissent and 

constricting freedom of expression. This enables implementation of the corporate agenda 

with the rule of an iron hand, sidelining established institutions and discarding procedures laid 

down in the Constitution of India.

The political backdrop in India, more so in Chhattisgarh, has made it mandatory for the 

people’s organizations, social movements, progressive intellectuals, trade unions, social 

action groups and left parties to join forces to re-formulate strategies and agenda for future 

action for the realization of the VISION OF A SOCIALIST-SECULAR-DEMCORATIC INDIA. 

This Convention declares on the basis of conclusions drawn through discussions that: 

1. The principles of sovereignty, socialism, democracy, secularism as enshrined in the 

Constitution of India be widely proclaimed and strengthened; 

2. Freedom of Expression to the followers of all religions, and to let them live freely 

without fear according to their religious beliefs; 

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3. Land Acquisition Ordinance 2014 be repealed, and the Land Acquisition Act 2013 be 

restored, with additional provisions in favour of the farmers; 

4. Coal Ordinance be repealed, and following the directives given by the Hon’ble 

Supreme Court of India, auction of coal mines be held as per the real need and not 

for the benefit of the Corporate Sector; along with it the consent of the gram sabhas be 

made mandatory; impact on environment and forest be taken into consideration as per 

the provisions of the law before the allotment of mines; 

5. Exploitation of natural resources and mineral wealth in favour of the industrialists be 

stopped forthwith; 

6. Anti-labour amendments/provisions introduced in the Labour Laws benefitting the 

industrialists and employers be withdrawn forthwith, regularization of workers be made 

mandatory in public and private sector, and contract system be totally abolished; 

7. Privatization of water, forest and land, privatisation of public sector, and disinvestment 

be stopped forthwith; 

8. “Made In India” policy be introduced instead of “Make In India”, so as to increase 

employment opportunities, urban and rural unemployed be provided jobs on priority 

basis so as to increase their purchasing power; 

9. Free quality education be provided from KG to Post Graduate; Health Services Rights 

Act be legislated, with provisions for free medical treatment for all;

10.Farmers be paid profitable price for their produce. Employment should be guaranteed 

throughout the year under MNREGA, with provision for, at least, 200 days in a year. 

Urban Employment Guarantee Scheme be also enacted on similar lines. Workers 

under MNREGA be paid on a regular basis; 

11.MNREGA should not only be linked with agricultural/rural labourers, but also reviewed 

against the backdrop of agriculture and farming; 

12.Those forest dwellers who are denied rights over the occupied land under the Forest 

Rights Act be provided with legal documents (pattas) forthwith; 

13.Implementing the Food Rights Act, the public distribution system be made effective 

and inclusive; 

14.Rising prices be controlled, and corruption be brought to an end; 

15. “Religious conversion” and “ghar wapasi” should be brought under the provisions and 

principles enshrined in the Constitution; laws related to these be reviewed and 

repealed accordingly, so that religious freedom for all citizens is restored; 

16.Legal action be taken against drugs, liquor and decadent culture, and social reforms 

movements be strengthened against such social ills; 

17.Violence and atrocities against women, especially trafficking related crimes be strictly 

dealt with by the law enforcing machinery, and social struggles should continue 

against these; 

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18.The Governor should take appropriate legal action under the provisions of “PESA” and 

5th & 6th Schedule, so that exploitation and repression in scheduled areas is stopped; 

19.Repression and anti-constitutional laws must be repealed forthwith, such as AFPSA, 

Chhattisgarh Special Public Security Act 2005, Unlawful Activities (Prevention) Act, 

2008, and colonial legal provisions like Sedition, etc. ;

20.In the name of combating Maoists, the deployment of para-military forces, and 

advocacy of direct military action by the NDA government should be opposed, and in 

order to establish peace in Chhattisgarh, issues such as social justice, people’s rights 

must be taken into consideration, so as to preserve and promote citizens constitutional 

rights to life and livelihood. 

PLEDGE

We are committed to internalize and implement this Manifesto and programmes 

into and through our organisations, and pledge ourselves to stand united and in 

solidarity through dialogue and struggles. 

We the participants at the Chhattisgarh Unity Convention adopt it on 23.1.2015:

1. Communist Party of India; 2. Chhattisgarh Mukti Morcha; 3. Akhil Bhartiy Adivasi

Mahasabha; 4. Kheti-Bachao, Jeewan-Bachao Andolan; 5. People’s Union for Civil Liberties –

Chhattisgarh; 6. Baiga Mahapanchayat – Chhattisgarh; 7. Chhattisgarh Mahila Jagriti Sangathan; 

8. Pardhi Mahapanchayat – Chhattisgarh; 9. Chhattisgarh Bachao Andolan; 10. Chhattisgarh 

Mukti Morcha ( Mazdoor Karyakarta Samiti); 11. Chhattisgarh Mines Shramik Sangh; 12. 

Chhattisgarh Labour Institute; 13. Nadi Ghaati Morcha; 14. Chhattisgarh Christian Fellowship; 15. 

Akhil Bhartiy Krantikaari Kisaan Sabha; 16. Ekta Parishad- Kanker; 17.Chhattsigarh Christian 

Forum; 18. Bhartiy Muslim Mahila Andolan – Chhattisgarh; 19. Chhattisgarh Bal Shramik 

Sangathan; 20. Sabla Dal (Domestic Workers’ Union); 21. Communist Party of India (Liberation); 

22. Muslim Baitulmaal Foundation; 23. All India Secular Forum – Chhattisgarh; 24. Indian Social 

Action Forum (INSAF); 25. Dalit Mukti Morcha; 26.All India Progressive Forum – Chhattigarh; 27.

All India Peace & Solidarity Organisation –Chhattisgarh; 28. National Alliance of Women (NAWO); 

29. Jan Sanskritik Manch; 30. All India Law Forum.

:Presidium: 1. Chittaranjan Bakshi (94252-02641); 2. Janak Lal Thakur (94241-07557); 3. C L Patel 

(98266-41016); 4. Nand Kumar Kashyap (94062-13116); 5. Sudha Bhardwaj (99266-

03877); 6. Lakhan Singh (77730-60946); 7. Anand Mishra ((98933-54482)): 

Treasurers: Ganesh Ram Chaudhry (99932-33527); A P Josy (94255-43304)

Steering Committee: Rajendra K Sail (98268-04519); Sudha Bhardwaj (99266-03877); 

Alok Shukla (94076-04811;Gautam Bandopadhyay (98261-71304);

Sheikh Ansar (99932-33537); Tej Ram Vidrohi (89596-66036)

Shashi Krishi Farm, Village & Post, Tumgaon, Dist. Mahasamund :Pin-code: 493445: Chhattisgarh: 

Contact Address:

India: E-mail: rajendrasail@gmail.com

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