Tuesday, April 25, 2017

आदिवासियों को संवैधानिक अधिकार देकर ही खत्म किया जा सकता है नक्सलवाद.

आदिवासियों को संवैधानिक अधिकार देकर ही खत्म किया जा सकता है नक्सलवाद.
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कमल शुक्ला सम्पादक भूमकाल
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                नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए ना तो पुलिस की जरूरत है ना ही सेना की । बस्तर पूरी तरह से छावनी पहले से ही बना हुआ है । लग भग एक लाख जवान पहले से तैनात है । अब तक की पूंजी परस्त सरकारों ने बस्तर की जनता की राय जाने बगैर नक्सल उन्मूलन और विकास के नामपर कई लाख करोड़ फूंक दिए । इस तरह आप पिछले 40 वर्षों से इस समस्या के पेड़ के पत्ते बस तोड़ते रहे । जो अब कड़ी कार्यवाही , सर्जिकल स्ट्राइक , घुसकर हमला की बात कर रहें है , वे बताएं कि अब तक क्या हो रहा था । पिछले साल मिशन 2016 चलाकर तो देश के गृह मंत्री और प्रदेश के मुख्यमंत्री ने घोषणा ही कर दिया था कि नक्सल वाद खत्म हो चुका । पिछले तीन साल में ही हजारों गिरफ्तारी , 5 सौ से ज्यादा हार्डकोर ईनामी नक्सलियों के आत्म समर्पण और 200 से ज्यादा मुठभेड़ों में मारे गए नक्सलियों के बाद ये कौन लोग हैं जिन्होंने इस घटना को अंजाम दिया है ?

        गरीब किसानों के 26 जवान एक बार फिर सरकार की शतरंजी चाल के शिकार हुए हैं । हत्या को किसी भी तर्क से जायज नही ठहराया जा सकता , यह असभ्यता है ,  निंदनीय है । इस तरह की घटना के तुरंत बाद इस समस्या की सतही समझ रखने वाले "कड़ी कार्यवाही" या सेना की जरूरत का मुद्दा उठातें हैं । कई शहरी नक्सली पर कार्यवाही की बात करतें है , जैसे अब तक कुछ हुआ ही ना हो । पिछले कुछ सालों से बस्तर की पुलिस सरकार के निर्देश पर अपनी ऊर्जा इसी दिशा में लगाती भी रही । निशाना बनाया गया उन पत्रकारों , राजनेताओं , समाजसेवियों को जो नक्सल उन्मूलन की आड़ में आदिवासी अत्याचार के मुद्दे उठाते रहे ।

             वास्तव में सरकार को और पुलिस को अच्छी तरह से पता है कि शहरी नक्सली हैं कौन ? इनमे ज्यादातर तो सत्ता पार्टी के पदाधिकारी या प्रमुख कार्यकर्ता ही हैं या उनके पोषक हैं । नक्सली इलाकों में चार से पांच गुना ऊपर में जो रोड, सड़क, पूल, बांध बनाये जा रहे हैं , उनकी इस बढ़ी लागत का एक बड़ा हिस्सा माओवादियों को जाता है । हजारों की संख्या में छोटे बड़े क्रेशर प्लांट इन इलाकों में चल रहे हैं , इन्हें बेरोक-टोक सप्लाई होने वाला अवैध बारूद क्या माओवादियों को नही जाता होगा ? कई नए बने पक्के सड़कों में विस्फोट हुए , क्या इन सड़कों के निर्माण के समय ठेकेदारों की मिली भगत के बिना बारूद लगाए गए होंगे ? आपको याद होगा बस्तर के बदनाम पुलिस अधिकारी ने रायपुर में एक सार्वजनिक मंच से बताया था कि नक्सलियों को सालाना 11 सौ करोड़ अवैध माईनिंग , ठेकेदारों और अधिकारियों से मिलता है । एस्सार द्वारा नक्सलियों को पैसा पहुंचाने का मामला तो कोर्ट भी गया । छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीमकोर्ट में हलफनामा देकर स्वीकार किया है कि कई बड़ी माईनिंग कंपनी और कंस्ट्रक्शन कंपनी ने माओवादियों को आर्थिक मदद देकर अपना काम चलाया ।

        अब बताईये कि नक्सलियों के असली मददगार और शहरी नक्सली कौन हुए ? इस सरकार ने जानकारी होने के बाद भी इन बड़े मददगारों के खिलाफ ना जनसुरक्षा अधिनियम लगाया ना कोई कार्यवाही की । एस्सार ने जब किसी माध्यम से नक्सलियों को पैसा पहुंचाया तो आप उस माध्यम पर तो जान सुरक्षा अधिनियम लगाते हैं पर एस्सार के खिलाफ क्यों नही ? पटेल कंस्ट्रक्शन कंपनी का 50 लाख रुपया नक्सलियों को भिजवाते समय जप्त किया तो कम्पनी के खिलाफ कार्यवाही क्यों नही ? असल मे यही उद्योगपति ही आपकी पार्टी और नीतियों की पोषक हैं । बिना कानून का पालन किये कई बड़े माईनिंग कम्पनी इसी सरकार और माओवादी के संरक्षण में चल रहे हैं । जनता के हक चुराने वाले इन कंपनियों में उत्तरबस्तर का चारगांव माईन्स भी है । निको जायसवाल के इस अवैध माईनिंग को विधिवत परमिशन मिलने के दस साल पहले से ही बीएसएफ के चार कैम्प बनाकर सुरक्षा दी जा रही है । अब आप समझिए इस लोचा को , जनता के टैक्स के पैसे से जनता की सुरक्षा के लिए नियुक्त जवानों को आप जनता का हक और जल जंगल जमीन छीनकर जिस चोर को सौंपे है उन्ही की सुरक्षा में लगा रखा है । इन जवानों को मारने के लिए गोला और बारूद भी उन्ही चोर माईनिंग कम्पनी के लेवी से आता है जिसे आपका विश्वनीय अधिकारी कल्लुरी भी स्वीकार चुका है ।

     नक्सलियों को मदद पहुंचाने वाले ज्यादातर सप्लायर और ठेकेदार सत्ता पार्टी में हैं । इन्ही को जोड़कर सलवाजुड़ुम चलाया , इन्ही से कई फर्जी पुलिस समर्थक संगठन बनाये । यही लोग हैं जो बस्तर के विकास के लिए आदिवासियों के जल जंगल और जमीन छिनने के आपके निर्णय में साथ हो जाते हैं । इनमे से कोई आदिवासी नही है , ज्यादातर कमीशन खोरी के उसी धंधे में शामिल है जिससे यहां का मुख्यमंत्री खुद आक्रांत है । साथ यह भी ध्यान रहे कि इनमें से ज्यादातर बस्तर से बाहर से हैं , जिनका दूसरा घर आज भी रायपुर या प्रदेश से बाहर है ।

               पिछले तीन साल पहले नक्सलियों और उद्योगपतियों के बीच दलाली करने वाले भानुप्रतापपुर के एक बड़े भाजपाई को राजनीतिक चाल की जरूरत के मद्दे नजर पकड़ा भी तो जल्दी जमानत भी हो गयी । तो कुल मिलाकर बात यह कि सरकार खुद नक्सलियों का  पोषण कर रही , जवान जिन गोलियों से या बम से मारे जा रहे हैं वे इनकी साठ गांठ से ही माओवादियों तक पहुंचाए गए हैं ।

          अगर सही में समस्या के जड़ में हमला करना है तो आपको कथित विकास और आर्थिक नीति में बदलाव लाना पड़ेगा ।  विकास की परिभाषा और पैमाना आदिवासियों को तय करने दीजिए । संविधान को ईमानदारी से लागू बस करना है , तमाम स्वार्थ को अलग रख । बस्तर में आदिवासी वर्षों से पांचवी अनुसूची के प्रावधान लागू करने की मांग को लेकर आंदोलन रत हैं । आदिवासियों की जमीन और जंगल बिना जनसुनवाई के , बिना पेशा कानून लागू किये बड़े कार्पोरेट घरानों को सौंपा जा रहा है । वन अधिकार अधिनियम को भी सही भाव के साथ लागू करने की जरूरत है । जो आपसे हो न सकेगा , आप इसी तरह अपनी शतरंजी चाल चलते हुए किसानों - मजदूरों के बच्चों को ही झोंकते रहोगे । आपकी आर्थिक विकास की नीति केवल सेठों के लिए ही रहेगी , जनता के लिए नही । जनता किसान मजदूर को हक़ मांगने पर बामपंथी ठहराने से नक्सलवाद बढ़ेगा ही ।
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