भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)
छत्तीसगढ़ राज्य समिति
आदिवासी बच्ची से बलात्कार,
माकपा ने कहा – दोषियों को करें गिरफ्तार
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मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सुकमा के चिंतागुफा में एक आदिवासी नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के पुष्ट खबर पर दोषियों के खिलाफ एफआई आर दर्ज कर गिरफ्तार करने की मांग की है.
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने बस्तर आईजी द्वारा बिना जांच ही आरोपों को ख़ारिज किये जाने की निंदा की है. उन्होंने कहा है कि पुलिस व अर्ध-सैनिक बलों द्वारा आदिवासियों और महिलाओं को इसके पहले भी प्रताड़ित किया जाता रहा है, जिसकी पुष्टि मानवाधिकार आयोग और कई स्वतंत्र जांच दलों ने अपनी छानबीन में की है. कई मामलों में राज्य सरकार को आयोग और अदालतों में मात खानी पड़ी है और यौन-प्रताड़ित महिलाओं को मुआवजा देने के आदेश भी हुए हैं.
माकपा ने कहा है कि हर नक्सली वारदात के बाद संबंधित क्षेत्र में पुलिस और सैन्य-बलों का आदिवासियों पर हमला बढ़ जाता है. यह घृणित वारदात भी भेज्जी कांड के बाद आदिवासियों पर लगातार हो रहे हमलों की ही एक कड़ी है. आम नागरिकों पर इस तरह के हमलों और हमलावरों को बचाने से न नक्सलियों से निपटा जा सकता है, न ही प्रशासन आदिवासियों का विश्वास जीत सकता है.
छत्तीसगढ़ राज्य समिति
आदिवासी बच्ची से बलात्कार,
माकपा ने कहा – दोषियों को करें गिरफ्तार
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मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सुकमा के चिंतागुफा में एक आदिवासी नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार के पुष्ट खबर पर दोषियों के खिलाफ एफआई आर दर्ज कर गिरफ्तार करने की मांग की है.
आज यहां जारी एक बयान में माकपा राज्य सचिव संजय पराते ने बस्तर आईजी द्वारा बिना जांच ही आरोपों को ख़ारिज किये जाने की निंदा की है. उन्होंने कहा है कि पुलिस व अर्ध-सैनिक बलों द्वारा आदिवासियों और महिलाओं को इसके पहले भी प्रताड़ित किया जाता रहा है, जिसकी पुष्टि मानवाधिकार आयोग और कई स्वतंत्र जांच दलों ने अपनी छानबीन में की है. कई मामलों में राज्य सरकार को आयोग और अदालतों में मात खानी पड़ी है और यौन-प्रताड़ित महिलाओं को मुआवजा देने के आदेश भी हुए हैं.
माकपा ने कहा है कि हर नक्सली वारदात के बाद संबंधित क्षेत्र में पुलिस और सैन्य-बलों का आदिवासियों पर हमला बढ़ जाता है. यह घृणित वारदात भी भेज्जी कांड के बाद आदिवासियों पर लगातार हो रहे हमलों की ही एक कड़ी है. आम नागरिकों पर इस तरह के हमलों और हमलावरों को बचाने से न नक्सलियों से निपटा जा सकता है, न ही प्रशासन आदिवासियों का विश्वास जीत सकता है.
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