बस्तर के आदिवासियों की जमीन पर जबरन बिजली सब स्टेशन का निर्माण
संघर्ष संवाद
तामेश्वर सिन्हा
ग्रामवासियों के असहमति के बावजूद जबरन बिजली सब स्टेशन का निर्माण
हाईकोर्ट ने माँगा था आयुक्त बस्तर और कलेक्टर कांकेर से रिपोर्ट
कांकेर कलेक्टर और बस्तर आयुक्त ने आदिवासियों के देवगुडी को चार बल्लियों से घिरा झोपडी बताया न्यायलय को सौपी रिपोर्ट
-तामेश्वर सिन्हा
छत्तीसगढ़ का कांकेर पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में आदिवासियों का जमीन हडपने की एक और साजिश हो रही है, आदिवासियों का ग्राम बुढा देव स्थल (ठाना) में बिजली सब स्टेशन बनाने के नाम से प्रशासन अथवा बिजली विभाग की मिलीभगत से 3.93 हेक्टर सामूहिक ज़मीन को ग्राम वासियों के असहमति के बावजूद प्रशासन द्वारा जबरन अधिग्रहण किया जा रहा है. मामला उत्तर बस्तर कांकेर जिले के चारामा ब्लाक के ग्राम जवरतारा का है. ग्राम वासियों के अनुसार ग्राम जबरतारा, ग्राम पंचायत कांटागाँव, थाना कोरर, विकासखंड चारामा, जिला उत्तर-बस्तर (कांकेर) पिछले करीब तिन साल से बिजली बिवाग द्वारा 132/33 kV इलेक्ट्रिक सब-स्टेशन बनाने के लिए ग्राम का 3.93 हेक्टर सामूहिक ज़मीन खसरा क्र. 453 ग्रामवासिओं के असहमति के बावजूद भी लेने का कोशिश कर रहा है. उक्त गाँव भारतीय संविधान के पांचवी अनुसूचित क्षेत्र है एवं लगभग समस्त ग्रामवासी गोंड आदिवासी है. उक्त ज़मीन में गोंड आदिवासियों का प्राचीणतम देवता बूढ़ादेओ का ठाना है, और उसके साथ ग्राम का मरघट एवं ग्राम का सरकारी प्राथमिक पाठशाला भी है उक्त ज़मीन पूरी तरह से ग्राम का सामूहिक सम्पदा में आ रहा है पांचवी अनुसूची अनुसार आदिवासी ग्राम में ग्रामभूमि के हक़दार गांववालों ही होते है, ग्रामभूमि लेने के लिए ग्रामवासियों का ग्राम सभा मार्फ़त सहमति प्रदान करना पड़ता है, जो की ग्राम जवरतारा में नहीं किया गया है.
ग्राम वासी काफी दफे कांकेर कलेक्टर को जबरिया जमीन अधिग्रहण की शियाकत कर चुके है, ग्राम वासियों ने शिकायत में कहा था कि गाँव के बाहर पवार बनाने के लिए पर्याप्त जगह है, पवार स्टेशन वहा बनना चाहिए.
स्कूल का खेल मैदान के लिए हुआ समतलीकरण बना रहे सब स्टेशन
जानकारी के अनुसार सन 2011-12 में मनरेगा के तहत प्राथमिक पाठशाला का खेल मैदान बनाने के लिए उक्त ज़मीन का समतलीकरण किया गया .ज्ञात हो कि उक्त भूमि का समतलीकरण जवरतारा में स्थित शासकीय प्राथमिक पाठशाला का खेल मैदान को बनाने के लिए ही हुआ है. लेकिन अचानक उक्त जमीन पर फिनिशिग पोल का गड्ढा खोदा गया, जेसीबी से वन विभाग द्वारा पेड़ पौधो को काट कर निर्माण कार्य शुरू कर दिया गया ग्रामवासियों को पता चला की गाँव में बिजली बिभाग द्वारा कोई संयंत्र बैठाने के लिए कुछ जमीन अधिग्रहण कर रही है फिर सन 2014 में गाँव के वन प्रबंधन समिति के अध्यक्ष देवराज पोया को वन बिभाग के डिप्टी-रेंजर सिंह ने बताया की गाँव में खसरा क्र: 453 एवं रकबा 3.93 हेक्टेयर जमिन पर विद्युत् विभाग के द्वारा 132/33 kV पवार-हॉउस बनाने के लिए ग्राम भूमि को लिया जा रहा है . उसके बाद ग्रामवासियों में मिलकर सामाजिक तथा अनोपचारिक मीटिंग हुई जिसमे इसके बारे में जानकारी नहीं होने के कारण, इस विषय पर ग्रामवासियों से वैधनिक सहमति न लेने के कारण तथा उस रकबा गाँव के मरघट, देव स्थान एवं प्राथमिक विद्यालय के खेल मैदान होने के नाते गाँव के लोग उस जमिन को देने से इनकार कर दिए इस संवंध में कांकेर कलेक्टर एवं विद्युत् बिभाग के कार्यपालन यंत्री को लिखित रूप से शिकायत भी किया गया.
ग्राम सभा किए बिना जमीन हथिया रही प्रशासन
बिजली विभाग द्वारा ग्राम का महत्वपूर्ण सामूहिक ज़मीन हड़पने के खिलाफ विशेष ग्राम सभा करने के लिए भी आवेदन दे चुके है ग्राम पंचायत का सरपंच एवं सचिव से, लेकिन ऐसा कोई ग्राम सभा अनुष्ठित नहीं हुआ है. बल्कि दो पृथक सूचना का अधिकार के जवाब में ग्राम पंचायत का सचिव ने दो पृथक ग्राम सभा पंजी की एंट्री एवं निवारण दिखाया जिस में लिखा है की उक्त ज़मीन देने में जवरतारा के ग्रामवासियों का सहमति है. लेकिन दोनों रेसोलिऊशन ही फर्जी एवं कूटरचित है. एक में भी कानूनन का पालन नही हुआ है जब की कानून में स्पष्ट है की पांचवी अनुसूचित इलाकों में ग्राम सभा का फोरम तब ही पूर्ति होता है जब रेसोलिऊशन में ग्राम का एक तिहाई वोटर दस्खत करते है. सचिव द्वारा दिखाया हुआ दो रेसोलिऊशनों में से एक में भी एक तिहाई ग्रामवासी दस्खत नहीं किए है. ऊपर से ग्रामसभा पंजी में जितना लोगों का हस्ताक्षर दिखाया गया है ग्रामवासियों को ये भी बोलना है की ऐसे कोई ग्राम सभा कभी हुआ ही नहीं था और उनसे सहमति भी कभी माँगा ही नहीं गया था. ये सब से साबित होता है की कानून का घोर उल्लंघन करते हुए, ग्रामवासियों का सहमति नहीं लेते हुए ग्राम का देवगुड़ी, मरघट एवं प्राथमिक पाठशाला का बच्चों के खेल-मैदान समेत ग्रामभूमि ग्राम में पर्याप्त बिजली रहने के बावजूद भी बिजली विभाग द्वारा, वन-दफ्तर के सहायता से एवं कलेक्टर-तहसीलदारादि के निश्चुपता के फायदा उठाते हुए, लिया जा रहा है.
माननीय उच्चतम न्यायलय ने सरकार से मांगा था जवाब
ग्रामवासियों ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायलय में एक जनहित याचिका दायर किया गया , उक्त याचिका का पहला सुनवाई में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के माननीय प्रधान विचारपति एवं जस्टिस संजय अग्रवाल के सामने पिछले 05.12.2016 में हुई. कोर्ट नें बस्तर संभाग का कमिश्नर एवं कांकेर जिला का कलेक्टर को निर्देशिका भेजा है की तुरंत गाँव में उपस्थित हो के सरपंच, देवराज पोया एवं अन्य ग्रामवासियों से मिलके ये तय करना की विवादित ग्रामभूमि को छोड़के और कुछ दूसरा जमीन में उक्त बिजली का सब-स्टेशन बनाया जाय या नहीं, क्यों की इस मुद्दा में, कोर्ट के अनुसार, ‘ट्राइबल इंटरेस्ट’ का बात सामने आता है. ये सब काम करके कोर्ट को जवाब देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को छे हफ्ते की मुहलत दिया गया था.
चार बल्लियों से घिरा झोपडी कलेक्टर कमिश्नर के निरिक्षण रिपोर्ट में
याचिकाकर्ता देवराज पाया ने बताया कि दिनाक 26 दिसम्बर 2016 की आयुक्त बस्तर संभाग जगदलपुर कलेक्टर उत्तर बस्तर कांकेर, राजस्व अधिकारी द्वारा उक्त जमीन का निरिक्षण कर रिपोर्ट दिया गीता जिसमे लिखा गया की उक्त जमीन में न मरघट है, न स्कूल का खेल मैदान और ग्रामवासी जिसे प्राचीनतम बुढादेव का स्थल बता रहे है वाह चार बल्लियों का झोपडी है.
देव राज पाया ने बताया की आदिवासियों का ठाना कोई भव्य मंदिर नही होता हम प्राकृतिक पूजक है.यही चार बल्लियों की झोपडी ही हमारा प्राचीन पुरखो का देव स्थल है, इस तरह भ्रामक अपूर्ण निरिक्षण किया गया है.
वही इस मामले में ग्राम सरपंच ने बताया की वाह बुढादेव का ठाना है मरघट भी है, स्कूल का खेल मैदान भी हालांकि सरपंच ने स्वीकार किया की निरिक्षण में उसने भी हस्ताक्षर किए है.
कमिश्नर, कलेक्टर एसडीएम पर मामला दर्ज हो आदिवासी समाज
वही इस मामले को लेकर सर्व आदिवासी समाज के जिला अध्यक्ष चंद्रकांत धुर्वा ने आयोजित ' पत्रकार वार्ता ' में आरोप लगाते हुये कहा कि ' चारामा विकासखंड के अतर्गत आने वाले गांव जवरतरा में आदिवासी समाज के देवस्थान , देवस्थल व देवगुडी जाने के रास्ते को घेरकर तथा गा्म सभा के सहमति के बिना 132/133 के व्ही पावर सब- स्टेशन के निर्माण मे जिस प्रकार से बस्तर कमिश्नर सहित जिले की मुखिया के अलावा संबंधित अधिकारीयों नें माननीय हाईकोर्ट को जो गलत जानकारी भेजी है उसको लेकर पूरा आदिवासी समाज आको्शित है और तत्काल इन अधिकारीयों के खिलाफ कार्यवाही चाहता है !
आगे चंद्रकांत धुर्वा ने आरोप लगाते हुये कहा कि ' अभी तो पांचवी अनुसूची लागू है और संविधान के अनुसार किसी भी निर्माण के लिये गा्म - सभा की अनुमति व प्रस्ताव महत्वपूर्ण है तभी कोई भी निर्माण संभाल है लेकिन जिस प्रकार से आदिवासी समाज की संस्कृति व सभ्यता को नष्ट करने का जो दुस्साहस किया गया है व किया जा रहा है उसे लेकर पूरा आदिवासी समाज सप्ताह भर के बाद एक बडे़ व व्यापक आंदोलन की रूपरेखा तैयार कर पुन: सड़क की लड़ाई कर ज्ञापन के आधार पर कार्यवाही चाहेगा !
आगे कहा कि ' आदिवासी समाज का एक प्रतिनिधि मंडल छत्तीसगढ़ के महामहिम राज्यपाल के गैर हाजिरी में ( दौरे में थे ) उनके कार्यालय में इस संबंध का पत्र देकर पावती प्राप्तकर जांच की व कार्यवाही की मांग करते हुये ज्ञापन सौपा है !
शासन - प्रशासन हमारी बात नहीं मानता है सा देवगुडी़ के रास्ते पर अपना निर्माण कार्य नहीं रूकवाते है तो आंदोलन किया जायेगा क्योंकि वह देवगुडी ' देवभाटा ' समाज का धार्मिक स्थल के रूप में पूज्यनीय है समाज उसे एक प्रतीक के रूप में अपनी आस्था प्रगट कर पूजा करता है पर आज वह समाज दुखी है कि वहां एक बिना अनुमति के निर्माण हो रहा है !
विधुत कंपनी के दा्रा उस देवगुडी़ के स्थल को फेसिंग तारों से घेर कर प्रशासन दा्रा चबुतरा बना दिया गया है जो कि समाज के हित में नहीं है गा्म सभा के सहमति नहीं लेते हुये पांचवी अनुसूचित झेत्र का आदिवासी गा्म - भूमि तथा धार्मिक स्थल छीन लेते हुये एवं उक्त स्थल में कोई धार्मिक स्थल या मंदिर नहीं है एसा झूठी रिपोर्ट माननीय उच्च न्यायालय के समझ पेश किया गया है तो उन सभी अधिकारीयों के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति ' अत्याचार निरोधक ' अधिनियम 1989 संशोधित 2016 की धारा 3 ( 1) च, धारा (1) छ, 3 (1) धारा (1) यक ( अ ) धारा 3 (1 )सर ( ई ), धारा 3 (2 )(7)एवं 4 (1 )के घोर उल्लंघन करने वाले समस्त संबंधित के ऊपर, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति ( अत्याचार निरोधक ) अधिनियम 1969 संशोधित 2016 के तहत कार्यवाही करने की मांग के साथ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 ( 3 )के अनुच्छेद 244 ( 1 ) के तहत पांचवी अनुसूचित झेत्र के अंतर्गत संवैधानिक उपबंधो , अनुसूचित जनजातियों का प्रशासन और नियंत्रण कल्याण के बारे में पंचायत उपबंध ( अनुसूचित झेत्रो पर विस्तार )अधिनियम 1996 तथा अनुसूचित जाति और अन्य परम्परागत वन निवासी अधिनियम 2006 के घोर उल्लंघन करने एवं एक तरफा जमीन अधिग्रहण किया गया है उन सभी मामलो व धाराओं पर सख्त कार्यवाही करने की मांग की है !
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