Thursday, April 27, 2017

नर्मदा डूब प्रभावितों की विशाल चुनौती रैली, 4 मई 2017 को भोपाल चलो संघर्ष संवाद


नर्मदा घाटी से लाखों की पुकार। डूबे नहीं मानव अधिकार।

नर्मदा डूब प्रभावितों की विशाल चुनौती रैली, 4 मई 2017 को भोपाल चलो

 संघर्ष संवाद


4 मई : भोपाल मे विशाल चुनौती : विस्थापन और विकास पर मध्य प्रदेश शासन से सवाल।

नर्मदा घाटी के लोग सरदार सरोवर बाँध के सभी पहलुओं पर 31 सालों के संघर्ष के बाद अभी भी गंभीर चुनौती का सामना कर रहे हैं। हमारे कई समर्थक, देश भर में फैले सहयोगी, सभी न जाने क्या सोच रहे हैं! कईयों को लगता होगा, बाँध तो पूरा हुआ और सर्वोच्च अदालत के अभी अभी (8.2.2017) घोषित हुए फैसले ने विस्थापित किसानों को प्रत्येक 60 लाख रुपये दिए तो पुनर्वास भी पूरा हुआ! लेकिन यह सही नहीं है। आज फिर से लड़ाई चोटी पर पहुंची है।

नरेन्द्र मोदी जी ने प्रधानमंत्री बनते ही गुजरात के पक्ष में बाँध की ऊंचाई बढ़ाने का निर्णय लिया और कार्य पूरा भी कर दिया, बस 17 मी. के गेट्स बंद करना बाकी है। बाँध की ऊंचाई 2006 में 122 मी. पर इसलिए रोकी गयी थी क्योंकिहजारों परिवारों का पुनर्वासतो हुआ किन्तु हजारों हज़ार का अभी भी बाकी है।लगभग 40,000 से 45,000 परिवार डूब क्षेत्र में ही बसे हैं, जो विशेषतः मध्य प्रदेश के निमाड़ के गाँवों में है। महाराष्ट्र और गुजरात के भी मूल गाँवों  और  बसावटों में बसे हुए परिवारों का संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ है,तथा सैकड़ों का पुनर्वास बाकी है।

मध्य प्रदेश के गाँवों में हजारों घर, केला, पपीता, कपास, गन्ना, सोयाबीन, गेंहू, मकई, सब्जियों के साथ हजारों हेक्टेयर खेत, गाँव - गाँव में शालाएं, धर्मशालाएं, मंदिर-मस्जिदें, सब होते हुए, राज्य शासन ने केंद्रीय प्राधिकरण से जुड़कर,‘पुनर्वास पूरा हुआ’, यह झूठा दावा अपने हलफनामों से सर्वोच्च अदालत में पेश किया। बाँध की ऊंचाई बढ़ाने का निर्णय, नर्मदा ट्रिब्यूनल फैसला, जो कानून है, और सर्वोच्च अदालत के ही कई आदेशों का उल्लंघन है, इस बात पर सुनने से स्वयं सर्वोच्च न्यायाधीश ने ही 2014 में नकार दिया है।

अब 2017 में न्यायाधीश खेहार की खंडपीठ ने कुछ सुनवाई की लेकिन वह भी परिपूर्ण नहीं हो पायी! अदालत ने माना कि मध्य प्रदेश सरकार के दावों में सच्चाई नहीं है, फिर भी मध्य प्रदेश सरकार ने शपथ पत्रों में गलत आंकडें पेश किये। तीन राज्यों के, करीबन 15000 परिवारों ने, नगद राशि न लेते हुए, कृषिभूमि ली है, यह बात अदालत तक नहीं पहुंचायी। हजारों महिला खातेदारों को भूमि के अधिकार से वंचित रखना; 2002 और 2005 में भूमि न देते नगद राशि देने की योजना से 1589 फर्जी रजिस्ट्रियों का तथा भूमिहीनों को आजीविका के बदले अनुदान और पुनर्वास स्थलों का निर्माण जैसे हर कार्य में हुआ करोड़ों का भ्रष्टाचार; 15946 परिवारों को,आधे लाभ देने के बाद बैकवाटर लेवल्स, अवैज्ञानिक, गैर कानूनी आधार पर बदलकर डूब क्षेत्र से बाहर बताना आदि गंभीर हकीकत अदालत तक सही रूप से पहुँचने व उनपर बहस होने नहीं दी!

आन्दोलन ने पिछले 31 सालों में लड़कर, कानून, नीति और जन अधिकारों को मैदानी तथा कानूनी संघर्ष से आगे बढ़ाया। सह-खातेदारों को व वयस्क पुत्र/पुत्री को स्वंतंत्र परिवार मानकर प्रत्येक की 5 एकड़ जमीन पायी। तीनों राज्य और केंद्र शासन को विस्थापितों के पुनर्वास के मुद्दे पर कार्यरत रहना पड़ा। जमीन देने के बदले हुआ रजिस्ट्रियों का फर्जीवाड़ा और पुनर्वास स्थलों पर निर्माण कार्य में हुए 1500 करोड़ रुपये के भष्टाचार की जाँच करवाई। न्या. झा आयोग के द्वारा 7 सालों के बाद प्रस्तुत किये रिपोर्ट पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय एवं सर्वोच्च न्यायालय में शासनकर्ताओं ने सुनवाई नहीं होने दी । रिपोर्ट से स्पष्ट होता है  की संपूर्ण भ्रष्टाचार के लिए नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के अधिकारी और दलालों का मजबूत गठजोड़ मुख्यतः जिम्मेदार है। फिर भी कुछ 150 विस्थापित और बेगुनाह भूमि विक्रेताओं को शासन ने जेल में डाला। आखिर में सर्वोच्च न्यायाधीश ने भ्रष्टाचार संबंधी सभी सिविल व अपराधी प्रकरण अदालत से ही रद्द घोषित किये। फिर भी मध्य प्रदेश शासन ने ना सिर्फ अधिकारियों और दलालों को मात्र बचाया; विस्थापित अभी तक जमानत के चक्कर में फँसे हैं। न्यायलायीं आदेशों की अवमानना मध्य प्रदेश शासन का गुण-धर्म है!
    
फैसला ही न्याय!

इस स्थिति में सर्वोच्च न्यायाधीश की खंडपीठ ने जल्द गति से सुनवाई के बाद 8 फरवरी 2017 के रोज फैसला दिया। उन्होंने कहा, ‘अब संघर्ष खत्म होना जरुरी है। दोनों पक्षों का नुकसान हो रहा है (सरकार और विस्थापित) तो कानून को बाजू में रखकर रास्ता निकालना होगा’। शासन के आंकड़े अंदाजित मानते हुए अदालत ने 681 किसानों को 5 एकड़ कृषि भूमि खरीदने के लिए मध्य प्रदेश शासन के 5.58 लाख रुपये के पैकेज के बदले 60 लाख रुपये मंजूर किये। प्रत्यक्ष में यह संख्या हजारों की है और न्यायमूर्ति जी ने छूटे हुए परिवारों को शिकायत निवारण प्राधिकरण से मंजूरी लेने को कहा है। फर्जीवाड़े में फसायें गए 1358 परिवारों को 15 लाख रुपये प्राप्त राशि उसी में से काटकर। 5.58 लाख रुपये के पैकेज की दोनों किश्त (पूरी राशि) सालों तक रूककर आखिर दलालों तथा अधिकारियों के दवाब में ले चुके सैकड़ों विस्थापितों को कोई नई राशि नहीं दी। 60% जनसँख्या भूमिहीन, कृषि से अलग व्यावसायिकों, मछुआरें, कारीगर, मजदूर, कुम्हार, व्यापारीइत्यादि होते हुए उन्हें नहीं बक्शा गया| डूब क्षेत्र में हजारों परिवार, करीबन 2-2.5 लाख होते हुए, 31.7.2017 को बाँध के गेट्स बंद करना मंजूर करते हुए लोगों को नगद राशि लेने के पहले वचनपत्र के द्वारा 31 जुलाई के पूर्व भूमि छोड़ने की शर्त मानने का आदेश है। डूब क्षेत्र में 31 जुलाई के बाद कोई व्यक्ति बचने पर राज्य शासन को बलपूर्वक हटाने की भी मंजूरी दी गयी है। क्या न्यायपूर्ण पुनर्वास, पुनर्वास स्थलों पर सुविधायें, पात्र परिवारों को जमीन, भूमिहीनों हो आजीविका के साथ इस अंतिम तिथि के पहले होगा?

फैसले के बाद नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण और मध्य प्रदेश शासन ने शपथपत्रों द्वारा दी हुई संख्या बिलकुल अपूर्ण होने के कारण आन्दोलन से सूचियाँ मांगी। लेकिन पहले सूची नहीं हैकहकर, फिर 681 के बदले मात्र 608 की सूची देकर कहा, यह बदल सकती है। प्रत्यक्ष में कुछ और सैकड़ों याहज़ार विस्थापित पात्र होंगे, उनके बारे में अभी निर्णय बाकी है। पुनर्वास स्थलों पर निर्माण / सुधार के आदेश, विस्थापितों द्वारा दर्ज की हुई शिकायतों पर शिकायत निवारण प्राधिकरण जवाब कब देगा और न.घा.वि.प्रा. कार्य कब करेगा? भ्रष्टाचारी इंजिनियर तो हटाये गए लेकिन कम गुणवत्ता के उनके कार्य को सुधारना तो आजतक शुरू नहीं हुआ, पूरा होगा तो कब? डूब क्षेत्र में ही रहनेवाले हजारों परिवार उन स्थलों पर या जहाँ जमीन खरीदेंगे, वहाँ घर बांधेंगे कब? मूल गाँवों में सभी सांस्कृतिक, सामजिक, धार्मिक स्थलों का स्थानांतरण, नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले अनुसार होगा कब? मकान बांधना संभव नहीं, क्यूंकि 2000 के पहले था, तत्काल बाद कम से कम मुआवजा देकर, आजतक काली कपास की मिटटी के बहुतांश स्थलों पर नींव तक नहीं बाँध पाएं हैं, न पायेंगे, 60% से अधिक परिवार। इसीलिए तो कई स्थल खाली हैं, निमाड़ के गाँव भरपूर जनसँख्या के साथ जीवित! इन गाँवों में पूर्ण क्षेत्र अनुसूचित जनजाति का होने के कारण ‘पेसा’ कानून लागू हैं, पर सुनता हैं कौन? ग्रामसभाओं के प्रस्तावों को मानता हैं कौन?

सच तो यह है कि 2013 के नये भू-अधिग्रहण कानून की धारा 24(2) के तहत जैसे याचिकाओं में विस्थापित परिवारों को घर / संपत्ति से हटाने या डूबाने से मनाही की है, उच्च न्यायालय के आदेशों से। यह अधिकार तो डूब क्षेत्र के सभी गाँवों के, न डूबे हो ऐसे सभी मकान, भूमि और संपत्ति के मालिक फिर बन गए हैं किसान व आम नागरिक जिन से आजतक नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने कब्ज़ा नहीं लिया। क्या ये हक भी डूबायेंगें शासनकर्ता या 2013 कानून का पालन करके कम से कम उन्हें पर्याप्त मुआवजा देंगे ताकि वे नई जगह बच्चे-बूढ़ों के साथ बस सकें। क्या इस स्वतंत्र कानूनी दायरें में, न्याय पायेंगे विस्थापित? यह सब लेकर बड़े, छोटे गाँव भी खाली होंगे, 31 जुलाई के पहले?

गुजरात सरकार न अपने संघर्ष पर उतरे आदिवासियों को जवाब दे रही है ना ही किसे कितना लाभ, किसानों को या कंपनियों को यह भी स्पष्ट करना टाल रहीं है। कोका कोला इत्यादि को पानी देने बाद अब अम्बानी, अदानी, इंडस्ट्रियल कॉरिडोर में पानी पहुंचाना है। महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश को एक बूँद पानी पर अधिकार नहीं, मात्र 27% व 56% बिजली मिलनी हैं, वह भी नहीं मिली है इसलिए तो महाराष्ट्र मांग रहा है, 1800 करोड़ रुपये की नुकसान भरपाई। मध्य प्रदेश शासन इसपर भी चुप है।

‘नर्मदा सेवा’ के नामपर ‘मेवा’

यह सब होते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ‘नर्मदा सेवा’ का नर्मदा की रक्षा का नाम लेकर घूमते रहे हैं नर्मदा घाटी में। इस यात्रा के दौरानकरोड़ों रुपये खर्च करके चली यात्रा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी ने एक भी डूब क्षेत्र में गाँव के विस्थापितों को याद नहीं किया, न ही विस्थापन पर कोई बात की। वे डरकर या भ्रष्टाचार छिपाने के लिए टाल गए। लेकिन उन्हीं की सरकार, यात्रा में जहाँ आरती उतारी, जहाँ भोजन किया, जहाँ करोड़ों रुपये खर्च कर आमसभा में मुख्यमंत्री पधारे, जहाँ सवाल उठाते ही गिरफ्तारी की, उन्हीं को डूबाने में, 31.7.2017 को बाँध के गेट्स बंद करने की मंजूरी देने में मध्य प्रदेश शासन क्या कुछ सोचेगी या नहीं?

आन्दोलन यह चुनौती स्वीकारता है। यह नदी को मानव क्या, माता ही मानकर आजतक बचाती आई नदी घाटी की जनता पर आक्रमण है। यह विकास के नाम पर हिंसा है।

इस भ्रष्टाचारी, अत्याचारी विकास पर सवाल उठाने, नर्मदा के 31 सालों से संघर्षरत विस्थापितों ‘न्याय लेके रहेंगे’ की आवाज उठाने हजारों लोग भोपाल पहुंचेंगे।

4 मई, 2017 के रोज भोपाल में आप जरुर पधारें। विविध जनसंगठन जो 31 सालों से हमारे संघर्ष के साथी, सहयोगी रहे सभी को यह एलान है। विकास की चुनौती लेकर शोषक शासनकर्ताओं को चुनौती देने के लिए साथ रहे जरुर। इस कार्यक्रम का ब्यौरा आप तक जल्द ही भेजेंगे। आप के अधिकतम व्यक्तियों के साथ आने की खबर करें।

आपके विनीत,

भागीरथ धनगर, बालायादव,  पेमा भिलाला,  कमला यादव, देवराम कनेरा, श्यामा मछुआरा,  रमेश प्रजापति, सनोबरबी मंसूरी,  मोहन पाटीदार, देवेंद्र तोमर,  सरस्वती, बाबु भाईबलाई,  मुकेश भगोरिया,पवन यादव,  राहुल यादव,  मेधा पाटकर

संपर्क: 091 79 617513/ 9826811982/ 9423965153

No comments:

Post a Comment