कोई मुझे बतायेगा कि इन्हें क्या करना चाहिये ?
जो हथियार उठायें है उनकी खूब आलोचना कर लीजिए ,लेकिन उनकी आड़ में इन्हें अकेला मत छोड़िए ,यह पूरी नस्ल संकट में है .
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दूर बैठकर शांति और लोकतंत्र की बात करनी आसान है ,यह कहना भी आसान है की न्याय का शासन है,कोर्ट कचहरी और लोकतांत्रिक संस्थाये बची हुई है ,संविधान सबके साथ न्याय के सिदांत पर काम करता है .
यह सब ठीक भी हो सकता है, होगा भी किसी किसी के लिए .
लेकिन कभी बस्तर आईये ,आप रोज पढते भी होगें ही .
आप मेरी चिंता को नक्सली कह कर मत टालिए ,यदि आप एसा कहते या मानते है तो निश्चित ही आप हत्यारों और बलात्कारीयों के साथ खड़े है ,माफ़ किजिये बात कडवी है लेकिन यही सही है .
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अभी दुर्गा अष्टमी के दिन की बात से शुरुवात करता हूँ ,चिंतागुफा के पटेलपारा के एक आदिवासी घर में सुरक्षाबल के तीन सैनिक सवेरे चार बजे घुसते है , सबके साथ मरपीट करते है ,एक 14-15 साल की लड़की के साथ घर में ही दुष्कर्म करते है ,पिता के आगे रायफल तान देते है ,भामी और माँ बचाव में आती हैं तो उसे मारपीट कर भगा देते है,तीनो हवश पूरी करने के बाद पूरे घर को नक्सली बता कर जेल में सडाने और मार डालने की धमकी देते हुए वापस चले जाते है , हो सकता है कि उसी शाम को उन तीनो ने पूरे रीतिरिवाज के साथ दुर्गा अष्टमी भी मनाई हो ,पता नहीं !
चिन्तागुफा और आसपास के तीन चार गाँव में सीआरपीएफ और राज्य पुलिस के बडी संख्या में सैनिको 15 दिनो से आतंक मचाये हुये थे ,घरो में घुस घुस कर महिलाओं बच्चों और लडको के साथ बुरी तरह मारपीट ,गर्भवती महिला के साथ दुर्व्यवहार ,महिला के कपडे उतार कर मारपीट से लेकर पूरे गाँव में हाहाकार मचाने वाले सैनिक शान के साथ लगातार यही दोहरा रहे थे .तीन गाँव के लोग अपना घर छोडकर आंध्र भाग गए .
यह न पहली घटना है और न आखरी .
सौ पचास नहीं हजारो बार हुआ है इनके साथ.!
गाँव के गाँव जला दिये गए ,कई सौ गाँव खाली करवा दिए गये ,लगमग सभी गाँव के सभी नौजवानों के नाम वारंट जरी कर दिए गए ,कई सौ आदिवासी लडके लडकी बिना किसी सुनवाई के जेलों में सड़ रहे है ,गाँव में हमले की शक्ल में सुरक्षा बल " जिन्हें हमला बल कहना ज्यादा सार्थक है " घुस कर गाँव का गाँव जलाना , लूटपाट करना ,लोगो को घर से खींच कर जंगल में लेजाकर गोली से मार देना आम बात हैं ,,स्कुल के बच्चे हों या महिला या बुजुर्ग सबके साथ यही .
फ़ोर्स अपने साथ नक्सलियों की ड्रेस और बरामदगी के लिये हथियार और साहित्य लेकर चलती है.
बलात्कार !!
हां ,यह सुरक्षा बलो का रणनीतिक हथियार बन गया है ,कई बार कई जगह कई आदिवासी महिलाओं के साथ यह दोहराया गया.,महिलाओ के साथ अपमानजनक व्यवहार तो इनकी कार्यप्रणाली ही है.
प्रमाण !
कितने चाहिए !
कोर्ट ,जनजाती आयोग ,मानव अधिकार आयोग से लेके सरकार द्वारा गठित जाचं आयोग तक और उन्ही की सीबीआई तक चीख चीख कर यही कह रहे है . निष्पक्ष जाचं रिपोर्ट और मिडिया रेपोर्ट तो भरी पडी है जो बार बार कह रही है कि सरकार ने अपने लोगो के खिलाफ ही युद्ध छेड़ दिया है .
कई बार व्यक्तिगत बातचीत में फोर्स के अधिकारी भी यही कहते है!
तो युद्ध है ? तो युद्ध घोषित तो करो !
निहत्ते लोगो के खिलाफ शशस्त्र हमले के भी नियम नहीं है कहीं भी !
जेनेवा समझोता पर आपके पूर्वजों ने हस्ताक्षर किये है ,उसे तो मानो ?
* नहीं आप कुछ नहीं करेंगे !
आप ,आपकी सैना कारपोरेट के लठैत बन गए है .
हमारे पास क्या रास्ता बचा है ?
वही न !
अब आप बड़े बड़े भाषण देगें !
कोर्ट ,कचहरी ,पुलिस ,प्रशासन ,और लोकतांत्रिक संस्थाओ के प्रति सम्मान !
हमने कब नहीं किया है ,हम कब कब कहाँ कहाँ नहीं गए ?
हुआ क्या ?
तब हम क्या करे ?
हथियार कोई नहीं उठाना चाहता , हम भी नही !
आप तो सरकार है ,हमने चुना है आपको .
संविधान आप तो मानिये ?
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