यह युद्ध थमना चाहिए क्योंकि इसमें जीत किसी की नहीं: बेला भाटिया
महताब आलम| Updated on: 26 April 2017, 18:03 IST
सोमवार की दोपहर छत्तीसगढ़ के सुकमा में माओवादियों ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के 26 जवानों की हत्या कर दी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हमले को ‘कायराना और भयावह ’ कहा है. वहीं कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संगठनों ने भी माओवादियों की इस कार्रवाई पर सख़्त नाराज़गी जताई है.
भारत के सबसे बड़े मानवाधिकार एवं नागरिक स्वतंत्रता समूह (पीयूसीएल) ने जवानों पर हमले को ‘बर्बरतापूर्ण कार्रवाई’ करार दिया है और उस पर नाराज़गी जताई है. संगठन की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष डॉ. लाखन सिंह और महासचिव सुधा भारद्वाज ने कहा, छत्तीसगढ़ पीयूसीएल माओवादियों द्वारा 24 अप्रैल को सुकमा जिले में चिंतागुफा थाना क्षेत्र में हुए हमले की कड़ी निंदा करता है. साथ ही 25 जवानों के मारे जाने पर शोक व्यक्त करता है, जो कि ज्यादातर गरीब परिवारों के युवा सदस्य थे.
बस्तर के विशेष जानकार और सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश ने भी हमले की निंदा करते हुए मृतकों के परिजनों को एक-एक करोड़ का मुआवजा देने की मांग की है. साथ ही उन्हें मृतकों को शहीद घोषित करने की भी मांग की है. उन्होंने ट्वीट करके लिखा ‘‘मैं सुकमा में माओवादियों द्वारा सीआरपीएफ के 24 जवानों की हत्या किए जाने की निंदा करता हूं. मैं प्रत्येक मृतक के लिए 1-1 करोड़ रूपए के मुआवजे और उन्हें शहीद घोषित करने की मांग करता हूं.’’
सरकारी नीति में हो बदलाव
डीयू प्रोफेसर और ‘द बर्निंग फॉरेस्टः इंडियाज वार इन बस्तर’ की लेखिका नंदिनी सुंदर ने कैच न्यूज को कहा, सुकमा में निर्दोष जवानों की बेवजह मौत का बेहद दुख है. आखिर सरकार कब यह स्वीकार करेगी कि उग्रवादियों के खिलाफ उसकी नीति नाकारा साबित हुई है? उन्होंने कहा, ‘अगर 5 पुलिस थाने ओर सीआरपीएफ की 15 बटालियनें मिल कर भी हालात पर काबू नहीं रख पा रही हैं तब तो कम से कम सरकार को यह मान लेना चाहिए कि लोगों को उनके अधिकारों से अवगत करवाने और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के अलावा और कोई चारा नहीं है.
आदिवासियों के लिए काम कर रहीं बस्तर निवासी कार्यकर्ता सोनी सोरी ने दंतेवाड़ा से फोन पर कैच न्यूज को कहा ‘‘मुझे इस घटना से काफी सदमा लगा है. ऐसी घटनाएं तुरंत रोकी जानी चाहिए.’’ सोरी ने कहा, बंदूकों के बल पर क्षेत्र में सामान्य हालात बहाल नहीं किए जा सकते. ‘‘ आदिवासी समूहों, सिविल सोसायटी संगठन और राजनीतिक दलों के सहयोग से तुरंत शांति प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए.’’ कुछ लोगों का कहना है यह सब कुछ इसलिए हुआ है क्योंकि बस्तर के आईजी एसआरपी कल्लुरी का तबादला हो गया है, मगर वे यह क्यों भूल जाते हैं कि उनके कार्यकाल में ही आदिवासियों के साथ रेप हुआ और उनकी हत्या की गई.’’
आत्म समर्पण कर चुके माओवादियों संबंधी सरकारी नीति पर सवाल उठाते हुए सोरी ने कहा, ‘‘एक ओर तो सरकार मानवाधिकार कार्यर्ताओं पर जरूरत से ज्यादा संदेह कर उन्हें ‘माओवादी’ घोषित कर रही है और दूसरी ओर यह उन्हीं लोगों पर अत्यधिक भरोसा कर रही है, जो कुछ समय पूर्व तक सरकार के दुश्मन माने जाते थे. आत्मसमर्पण कर चुके माओवादियों की भूमिका की भी जांच होनी चाहिए.’’
थमना चाहिए ये युद्ध
करीब दो दशकों से बस्तर में काम कर रहे गांधीवादी विचारक हिमांशु कुमार ने कहा, दरअसल इस तरह की घटनाएं हमारी सरकार द्वारा एक कमजोर वर्ग को दूसरे के सामने लाकर खड़ा कर देने का नतीजा है. जितना अधिक ये घटनाएं जारी रहेंगी, आदिवासी और आम सुरक्षा बलों के जवान मारे जाते रहेंगे.
हिमांशु कुमार के मुताबिक अगर सरकार वाकई में हिंसा का दुष्चक्र रोकना चाहती है तो उसे प्राकृतिक संसाध्नों पर आदिवासियों को उनका हक देना होगा. वह उन्हें उनकी आजीविका के प्रमुख स्रोत जमीन, पानी और जंगल से दूर नहीं कर सकती. पीयूसीएल ने भी अपने बयान में यह कहा, हिंसक घटनाओं में कमी लाने के लिए सरकार को आदिवासियों के हितों की रक्षा करने वाले कानून पेसा व वन अधिकार कानून कड़ाई से लागू करने होंगे ताकि आदिवासी और जनजातीय लोग सरकार पर भरोसा कर सकें.
उन्होंने कहा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, शिक्षा, कल्याणकारी गतिविधियां, न्याय और पहचान मिलने की संभावना, लोक प्रशासन की बहाली (कुछ अंदरूनी इलाकों में सुरक्षा बल लोक प्रशासन के विरोध में हैं), इसके अलावा सर्व आदिवासी समाज या अन्य स्थानीय आदिवासी संगठनों द्वारा उठाई जाने वाली मांगें पूरी करना इस समस्या के राजनीतिक समाधान हो सकते हैं.
बार-बार माओवादियों की ‘समर्थक’ बताई जाने वाली बस्तर की एक शोधकर्ता बेला भाटिया ने कहा, ‘‘यह युद्ध समाप्त होना ही चाहिए. बहुत मार-काट हो चुकी. दोनों ही पक्षों को कुछ हासिल नहीं हुआ. दोनों पक्षों की गतिविधियों से समाज तरक्की करने के बजाय कहीं बहुत पीछे रह गया.’’
बेला भाटिया ने कहा, ‘‘बस्तर की जनता की भलाई के लिए युद्ध विराम का आह्वान करना होगा और दोनों पक्षों को इसका सम्मान करना चाहिए. दोनों ही पक्षों को राजनीतिक समाधान निकालना होगा. आम नागरिक को इस युद्ध का मूक दर्शक बनकर चुप नहीं बैठना है, जिसका कोई मकसद नहीं है और कोई इसमें जीतने वाला नहीं है.’’
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