छत्तीसगढ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से दो याचिकायें खारिज करने,
तथा सोनी सोरी और हिमांशु कुमार पर जुर्माना लगाने के लिये कहा है,
पहली याचिका जिसे खारिज करने की मांग छत्तीसगढ़ सरकार ने करी है वह सोनी सोरी की वह याचिका है जिसमें उन्होंने थाने में अपने गुप्तांगों में पुलिस अधीक्षक द्वारा पत्थर भरने के खिलाफ शिकायत करी थी,
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सोनी सोरी की मेडिकल कालेज में जांच कराई थी जिसमें सोनी सोरी के शरीर से पत्थर के टुकड़े निकले थे,
इसके बावजूद सरकार सोनी की इस याचिका को झूठा कह रही है,
दूसरी याचिका मेरी है जिसका विवरण यह है,
सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन ने छत्तीसगढ़ के गोमपाड गाँव में सन 2009 में सोलह आदिवासियों की हत्या करी थी,
गाँव वाले मेरे पास मदद मांगने आये,
दिल्ली और रायपुर से कई साथी इस मामले की जाँच करने गये,
हमने सैंकड़ों आदिवासियों से बात करी, सभी ने इस घटना के बारे में बताया,
बारह आदिवासी मेरे साथ दिल्ली आये और प्रेस कांफ्रेंस में उन्होंने पूरे हत्याकांड का वर्णन किया,
सुप्रीम कोर्ट में बारह आदिवासियों के साथ मैंने पेटीशन दायर किया,
इसके बाद हम सब लौट कर छत्तीसगढ़ गए तो सरकार ने मेरी हत्या की योजना बनाई और मुझे छत्तीसगढ़ छोड़ना पड़ा,
अगले दिन जब यह आदिवासी मुझसे मिलने आये तो सरकार ने इन सभी आदिवासियों का अपहरण कर लिया,
पुलिस ने इन्हें जान से मारने की धमकी दी और दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में इनके बयान दर्ज़ करवाए,
इन बयानों में आदिवासियों ने कहा कि जंगल से वर्दीधारी लोग आये और उन्होंने हमारे घर वालों की हत्या करी,
गाँव तो जंगल से ही घिरा हुआ है, जंगल से सीआरपीएफ भी आ सकती है,
बयान के बाद पुलिस ने इन आदिवासियों को फिर से गायब कर दिया,
इस मुकदमे में अब सिर्फ मैं बचा हूँ जो कोर्ट पहुँच सकता हूँ,
छत्तीसगढ़ सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट में एक लिखित बयान में कहा है कि हिमांशु कुमार ने यह मामला नक्सलियों को मदद पहुंचाने के लिए और सुरक्षा बलों का मनोबल कम करने के लिए दायर किया है इसलिए इस मुकदमे को ख़ारिज कर दिया जाय,
सरकार ने अदालत से यह भी कहा है कि अदालत मुझ पर जुर्माना भी लगाए ताकि आगे से कोई ऐसी जुर्रत ना कर सके,
इसका मतलब यह है कि अगर आपके पास भारत का कोई नागरिक मदद मांगने आता है तो आप उसकी मदद ना करें ?
मेरे विचारों और काम के बारे में सारा देश जानता है,
मैंने और मेरी पत्नी ने शादी के एक महीने बाद छत्तीसगढ़ जाकर आदिवासियों के गाँव में रहना शुरू किया था और हमने अट्ठारह साल वहाँ रहकर आदिवासी मुद्दे का शांतिपूर्ण अहिंसक समाधान निकालने की कोशिश करी,
इसका यह भी मतलब है कि न्याय मांगना और अदालत में जाना ही अपराध है,
अदालत में जाने से कैसे किसी का मनोबल कम हो सकता है ?
अगर मुकदमा झूठा होगा तो अदालत अंधी तो है नहीं जो सैनिकों को सजा दे देगी ?
जहां तक मनोबल का सवाल है इस मुकदमें के दायर होने के बाद भी बस्तर में सैनिक लगातार बलात्कार और निर्दोष आदिवासियों की हत्याएं कर ही रहे हैं,
काश मनोबल का इस्तेमाल संविधान और नागरिकों को बचाने में होता,
लेकिन मनोबल का इस्तेमाल पूंजीपतियों के लिए ज़मीनों पर कब्ज़े के लिए आदिवासियों को डराने और उन पर ज़ुल्म करने के लिए किया जा रहा है,
यह एक चुनौतीपूर्ण समय है लेकिन हम लड़ेंगे ज़रूर,
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