हम सैनिकों के खिलाफ नहीं हैं,
हम सैन्यवाद के खिलाफ हैं,
सैन्यवाद क्या होता है आइये इस पर चर्चा करते हैं,
एक लोकतंत्र में जनता पूरे देश और सरकार की मालिक होती है,
सरकार को जनता खुद बनाती है,
सरकार को जनता के हुक्म से काम करना होता है,
यह नियम है लोकतंत्र का,
लोकतंत्र के नियम में जनता और सरकार के बीच में सैनिक कहीं नहीं होने होते,
सरकार तो जनता की नौकर होती है,
नौकर अपने मालिक को कैसे पीट सकता है ?
लेकिन जब नागरिक बराबर नहीं होते,
जब जाति या सम्प्रदाय या पैसे के दम पर कुछ नागरिकों का समूह ज्यादा ताकतवर बन जाता है,
और जब यह ताकतवर नागरिकों का समूह सरकार पर कब्ज़ा कर लेता है,
और यह समूह सरकार से अपने फायदे के काम करवाने लगता है,
तो बाकी के नागरिक उसका विरोध करते हैं,
तब सरकार बाकी के नागरिकों को पीट पीट कर या जान से मार कर चुप कराने के लिए सैनिकों को भेजती है,
इसे ही सैन्यवाद कहा जाता है,
एक खराब लोकतंत्र उसे कहते हैं जिसमें सरकार हर बात में सैनिकों का इस्तेमाल करती है,
अच्छा लोकतंत्र वह होता है जो जिसमें सरकार जनता से बातचीत कर के फैसला लेती है,
अब उदहारण के लिए कालेज में विद्यार्थियों ने फीस बढाने के लिए प्रदर्शन किया,
सरकार को विद्यार्थियों से बातचीत करनी चाहिए,
लेकिन सरकार सिपाहियों को भेज कर विद्यार्थियों को पिटवाती है,
इसे सैन्यवाद कहते हैं,
बस्तर में अमीर उद्योगपतियों को ज़मीन चाहिए,
सरकार सैनिकों को भेज कर आदिवासियों को मारने पीटने और जेलों में ठूंसने का काम करती है,
ताकि आदिवासी डर जाएँ और ज़मीन छीनने का विरोध ना कर सकें,
इसे सैन्यवाद कहते हैं,
कश्मीर, मणिपुर में जनता से बातचीत ना करके सैनिक भेज कर नागरिकों को मारना पीटना सैन्यवाद कहलाता है,
ताकतवर आबादी सैन्यवाद का समर्थन करती है,
क्योंकि उसे सैन्यवाद के कारण आर्थिक सामाजिक और राजनैतिक ताकत मिल रही होती है,
लेकिन गरीब, कमज़ोर जनता सैन्यवाद का विरोध करती है,
सैन्यवाद का शिकार हमेशा अल्पसंख्यक और गरीब होते हैं,
सैन्यवाद बढ़ने का मतलब है लोकतंत्र कमज़ोर हो रहा है,
भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने कहा है कि वह हर साल तीस प्रतिशत अर्ध सैनिकों की संख्या बढ़ाएगा,
इसका मतलब है हर साल तीस प्रतिशत लोकतंत्र कम होता जाएगा,
यह सैनिक किसके खिलाफ इस्तेमाल किये जायेंगे ?
क्या भ्रष्ट अफसरों, भ्रष्ट व्यापारियों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के खिलाफ ?
नहीं सैनिक इस्तेमाल किये जायेंगे आदिवासियों दलितों, मजदूरी मांगने वाले मजदूरों, बराबरी मांगने वाले अल्पसंख्यकों के खिलाफ या महिलाओं या छात्रों के खिलाफ,
तो आप समझ सकते हैं कि सैन्यवाद के दम पर चलने वाला लोकतंत्र असल में जनता के विरोध में काम करने लगता है,
इसलिए हम लोकतंत्र को नियम से चलाने की जिद करते हैं और सैन्यवाद को कम से कम करते जाने का आग्रह करते हैं,
हम गरीब सैनिकों के खिलाफ नहीं हैं,
हम सैन्यवाद के खिलाफ हैं,
- हिमांशु कुमार
हम सैन्यवाद के खिलाफ हैं,
सैन्यवाद क्या होता है आइये इस पर चर्चा करते हैं,
एक लोकतंत्र में जनता पूरे देश और सरकार की मालिक होती है,
सरकार को जनता खुद बनाती है,
सरकार को जनता के हुक्म से काम करना होता है,
यह नियम है लोकतंत्र का,
लोकतंत्र के नियम में जनता और सरकार के बीच में सैनिक कहीं नहीं होने होते,
सरकार तो जनता की नौकर होती है,
नौकर अपने मालिक को कैसे पीट सकता है ?
लेकिन जब नागरिक बराबर नहीं होते,
जब जाति या सम्प्रदाय या पैसे के दम पर कुछ नागरिकों का समूह ज्यादा ताकतवर बन जाता है,
और जब यह ताकतवर नागरिकों का समूह सरकार पर कब्ज़ा कर लेता है,
और यह समूह सरकार से अपने फायदे के काम करवाने लगता है,
तो बाकी के नागरिक उसका विरोध करते हैं,
तब सरकार बाकी के नागरिकों को पीट पीट कर या जान से मार कर चुप कराने के लिए सैनिकों को भेजती है,
इसे ही सैन्यवाद कहा जाता है,
एक खराब लोकतंत्र उसे कहते हैं जिसमें सरकार हर बात में सैनिकों का इस्तेमाल करती है,
अच्छा लोकतंत्र वह होता है जो जिसमें सरकार जनता से बातचीत कर के फैसला लेती है,
अब उदहारण के लिए कालेज में विद्यार्थियों ने फीस बढाने के लिए प्रदर्शन किया,
सरकार को विद्यार्थियों से बातचीत करनी चाहिए,
लेकिन सरकार सिपाहियों को भेज कर विद्यार्थियों को पिटवाती है,
इसे सैन्यवाद कहते हैं,
बस्तर में अमीर उद्योगपतियों को ज़मीन चाहिए,
सरकार सैनिकों को भेज कर आदिवासियों को मारने पीटने और जेलों में ठूंसने का काम करती है,
ताकि आदिवासी डर जाएँ और ज़मीन छीनने का विरोध ना कर सकें,
इसे सैन्यवाद कहते हैं,
कश्मीर, मणिपुर में जनता से बातचीत ना करके सैनिक भेज कर नागरिकों को मारना पीटना सैन्यवाद कहलाता है,
ताकतवर आबादी सैन्यवाद का समर्थन करती है,
क्योंकि उसे सैन्यवाद के कारण आर्थिक सामाजिक और राजनैतिक ताकत मिल रही होती है,
लेकिन गरीब, कमज़ोर जनता सैन्यवाद का विरोध करती है,
सैन्यवाद का शिकार हमेशा अल्पसंख्यक और गरीब होते हैं,
सैन्यवाद बढ़ने का मतलब है लोकतंत्र कमज़ोर हो रहा है,
भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने कहा है कि वह हर साल तीस प्रतिशत अर्ध सैनिकों की संख्या बढ़ाएगा,
इसका मतलब है हर साल तीस प्रतिशत लोकतंत्र कम होता जाएगा,
यह सैनिक किसके खिलाफ इस्तेमाल किये जायेंगे ?
क्या भ्रष्ट अफसरों, भ्रष्ट व्यापारियों या भ्रष्ट राजनीतिज्ञों के खिलाफ ?
नहीं सैनिक इस्तेमाल किये जायेंगे आदिवासियों दलितों, मजदूरी मांगने वाले मजदूरों, बराबरी मांगने वाले अल्पसंख्यकों के खिलाफ या महिलाओं या छात्रों के खिलाफ,
तो आप समझ सकते हैं कि सैन्यवाद के दम पर चलने वाला लोकतंत्र असल में जनता के विरोध में काम करने लगता है,
इसलिए हम लोकतंत्र को नियम से चलाने की जिद करते हैं और सैन्यवाद को कम से कम करते जाने का आग्रह करते हैं,
हम गरीब सैनिकों के खिलाफ नहीं हैं,
हम सैन्यवाद के खिलाफ हैं,
- हिमांशु कुमार
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