Tuesday, January 10, 2017

आला अफसरों जैसे की ig एस.आर.पी. कल्लूरी पर भी आपराधिक कार्यवाही हो, जिनके निर्देशन में बस्तर के आदिवासियों पर पुलिस और सुरक्षा बालों द्वारा अत्याचार बढते जा रहे हैं .





प्रेस विज्ञप्ति
 रायपुर ,दिनांक : 10. 1. 2017

आला अफसरों जैसे की ig एस.आर.पी. कल्लूरी पर भी आपराधिक कार्यवाही हो, जिनके निर्देशन में बस्तर के आदिवासियों पर पुलिस और सुरक्षा बालों द्वारा अत्याचार बढते जा रहे हैं .
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बस्तर में नक्सली उन्मूलन के नाम पर हो रहे पुलिस और सुरक्षा बल के संयुक्त ऑपरेशन के दौरान आदिवासी महिलाओं पर हुए यौनिक हिंसा के शिकायतों पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने 7 जनवरी 2017 को एक अंतरिम आर्डर पास किया। जिसमें आयोग ने उनके द्वारा हुए जांच के बाद पीड़ित महिलाओं की इन शिकायतों को प्रथम दृष्टया सच मानते हुए तीखे शब्दों में  राज्य सरकर को परोक्ष तौर पर जिम्मेदार ठहराया। आयोग के इस आर्डर का हम बस्तर संयुक्त संघर्ष समिति स्वागत करते हैं।
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आयोग का यह आर्डर तीन गाँव - पेद्दागेलुर, कुन्ना और बेल्लम लेन्द्रा में अक्टूबर 2015 और जनवरी 2016 के बीच हुए ३ घटनाओं के ऊपर है। इन तीनों गाँव को मिलाकर करीबन 16 औरतों के साथ सामूहिक बालात्कार और अन्य करीब 18 महिलाओं के साथ यौनिक और शरीरिक उत्पीडन हुआ है। इनमें से आयोग एवं मजिस्ट्रेट द्वारा 16 महिलाओं के बयान लिए जा चुके हैं जिसके बाद आयोग ने यह आर्डर पास किया है। अभी 20 और ऐसी पीड़ित महिलाओं के बयान बाकी हैं। आयोग ने अपने आर्डर में राज्य सरकार को इन मामलों से जुडी ऍफ़आई.आर. में अनुसूचित जनजाति (अत्याचार के रोकथाम) कानू को जोड़ने का और उनके अंतर्गत महिलाओं के लिए जो मुआवजे की राशि है वह देने का निर्देश दिया है । साथ ही आयोग ने सरकार से इन 16 पीड़ित महिलाओं को कुल ३७ लाख के मुआवजा न देने का कारण माँगा है।

आयोग के इस निर्देश को हम सराहते हैं लेकिन साथ ही सिर्फ संज्ञान लेना और मुआवज़ा देना इन पीड़ित महिलाओं को न्याय नहीं दे सकता । इन महिलाओं के साथ जो सरकार के इन संरक्षकों द्वारा किया गया है उसके लिए यह जरुरी है की उन सभी सुरक्षा कर्मी और पुलिस वाले जो इस घटना में शामिल थे उनपर कड़ी से कड़ी आपराधिक कार्यवाही हो और साथ ही में उन आला अफसरों जैसे की ig एस.आर.पी. कल्लूरी पर भी आपराधिक कार्यवाही हो, जिनके निर्देशन में बस्तर के आदिवासियों पर पुलिस और सुरक्षा बालों द्वारा अत्याचार बढते जा रहे हैं । तब ही पीड़ित महिलाओं के साथ हकीकत में न्याय होगा । साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार की बस्तर को लेकर सैन्य समाधान की इस नीति को भी समाप्त करना होगा । तभी बस्तर में लोगों पर चल रहे हमले और उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन रुक सकेगा।

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और वकीलों पर बढते हमले

मिशन 2016 के चलते. बस्तर में पिछले एक साल में कई फर्जी मुठभेड़ों की, फर्जी गिरफ्तारी, फर्जी सरेंडर और महिलाओं की उत्पीडन की कहानिया सामने आई । उसके साथ साथ यह भी देखा गया की जब भी कोई पुलिस द्वारा किये जा रहे अत्याचार और उनके मानव अधिकारों के हनन  की बातें बस्तर में करता है तो उसे बस्तर पुलिस द्वारा नक्सली बता दिया जाता है । आदिवासी नेताओं, मानव अधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों,पत्रकारों, प्रोफेसरों को निशाना बनाकर, उन्हें नक्सली समर्थक कहकर पुलिस और उनके द्वारा बनाये गए गैर कानूनी समूहों जैसे-अग्नि द्वारा  धमकाया, डराया जा रहा है l पुलिस के ऐसे बर्ताव से साफ़ दिखता है की पुलिस नहीं चाहती की आदिवासियों के मानव अधिकारों का जो घोर उल्लंघन हो रहा है उसकी खबरें बाहर आये । इसी के चलते पिछले वर्ष संतोष यादव , सोमारू नाग, मालिनी सुब्रमण्यम , जगदलपुर लीगल ऐड ग्रुप के वकील, सोनी सोरी,बेला भाटिया , मनीष कुंजाम पर हमले होते देखे ।

वर्तमान में तो हालात और बिगड़ गए हैं । बस्तर में आपातकाल की स्थिति बन गयी है । इस साल ig कल्लूरी ने एक नए मिशन की शुरुवात की है- मिशन 2017, जिसके अंतर्गत ig कल्लूरी और उनके द्वारा खडे करे अग्नि के लोगों द्वारा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और लीगल ऐड समूह के वकीलों को धमकी और चेतावनी दी जा रही है की वह बस्तर न आये ।

पिछले कुछ महीने पहले दिल्ली विश्वविध्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुन्दर, jnu की प्रोफेसर अर्चना प्रसाद, जोशी अधिकार इंस्टिट्यूट एवं सीपीआई के विनीत तिवारी, CPI(m) के संजय पराते , नामापारा से मंगला एवं गादीरास से मंजू कवासी  जब बस्तर में हो रही घट रही घटनाओं पर जांच करने गए तब उनके खिलाफ अग्नि संस्था द्वारा बहुत प्रदर्शन हुए. इसके कुछ महीने बाद पूरे जांच दल पर पुलिस द्वारा एक आदिवासी को खून करने का एक झूठा मुकदमा बनाया गया।

अभी कुछ दिन पूर्व फर्जी मुठभेड़ की एक घटना की याचिका पर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद जब जगदलपुर लीगल ऐड ग्रुप की अधिवक्ता शालिनी गेरा, प्रियंका शुक्ला , किता अग्रवाल जब गए तो   कल्लूरी  माओवादियों के लिए बंद नोटों को बदलने का सरासर झूठा आरोप लगाया । उसी दौरान तेलांगना से भी आया एक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं  के जांच दल के सदस्य, जिनमें से 3 वकील, 2 पत्रकार, 2 विद्यार्थी थे, जब बस्तर    में ऐसे ही फर्जी मुठभेड़ों की जांच करने गए तो उन्हें बस्तर पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर माओवादियों के लिए नोट बदलने के झूठे अपराध में छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया।

यह घटनाएं साफ़ दिखाती है की बस्तर में लोकतंत्र ख़त्म हो चुका है और छत्तीसगढ़ बस एक पुलिस राज्य बन कर रह गया है जहाँ पुलिस की गलतियां बताना ही गैरकानूनी हो गया है। ऐसा करना पुलिस द्वारा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को आतंकित करने का एक हथकंडा है और सत्ता और अधिकार का दुरूपयोग है।

पुलिस की ऐसी हरकतें स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र भ्रमण, और कानूनी सहायता के अधिकार जैसे मौलिक अधिकारों का खुला हनन है। 7 जनवरी को आयोग के आर्डर के बाद ig कल्लूरी और छतीसगढ़ सरकार क्या आयोग को भी नक्सली कहेंगे?

हमारा यह अभिमत है कि सामाजिक  कार्यकर्ताओं ,वकीलों ,पत्रकारों के खिलाफ इस तरह की कार्यवाही एक बदला लेने की भावना से प्रेरित है क्योंकि छत्तीसगढ़ के बस्तर में माओवादी-विरोधी ऑपरेशन की आड़ में पुलिस और सुरक्षा बलों द्वारा जो भी जघन्य अपराध किये जा रहे हैं, उनका पर्दा-फाश करने में यह सब अग्रणीय भूमिका  निभा रहे हैं।
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अतः हम निम्नलिखित मांग रखते हैं कि

1. राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग द्वारा पारित आदेश को छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा कड़ाई से लागू करवाना चाहिए।

2. क्यूंकि पहली भी अनुसूचित जनजाती आयोग द्वारा भी महिलाओं के साथ उत्पीडन की उपरोक्त घटनाओं पर जांच करने के बाद पुलिस और सुरक्षा कर्मियों को दोषी ठहराया जा चुका है और अब राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग भी इसी निष्कर्ष पर आया है,  अतः मामले में देरी करे बिना छत्तीसगढ़ सरकार को दोषी पुलिस और सुरक्षा कर्मियों पर एवं ig कल्लूरी जिनके नेत्रत्व में बस्तर के आदिवासियों पर लगातार अत्याचार बढते जा रहे हैं । पर भी कड़ी से कड़ी आपराधिक कार्यवाही की जाए।

3. अनीता झा आयोग द्वारा मीना खलखो के मामले में 25 पुलिस कर्मियों को दोषी पाया गया, उसके बावजूद दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ आज तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है, बिना देरी किये उनपर भी कड़ी कार्यवाही की जाये।

4. राज्य सरकार उन सभी अधिवक्तागणों और मानव अधिकार रक्षकों की प्रतारणा, उन्हें डराना-धमकाना, फर्जी मामलों में फंसाने हो रही कोशिशों को तुरंत रोकें,और इसमें लिप्त पुलिस अफसरों से अराजक आपराधिक तत्वों जैसे अग्नि संगठन के लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दायर करे।
5. हाल ही गिरफ्तार किये गए 7 मानवाधिकार कार्यकर्ताओ पर से झूठे मुकदमे वापस लेते हुए,उनको रिहा किया जाये।

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अरविन्द्र नेताम        आरडीसी पी राव
पूर्व केंद्रीय मंत्री       राज्य सचिव सीपीआई

सुधा भारद्वाज          आनंद मिश्र
 अधिवक्ता                समाजवादी, किसान नेता

नंदकुमार कश्यप ,      आलोक शुक्ला
   (छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन )

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