Tuesday, January 3, 2017

जस्टिस ठाकुर ने अपने पिता को भी नहीं छोड़ा था .-बीबीसी

जस्टिस ठाकुर ने अपने पिता को भी नहीं छोड़ा था .
  • 3 जनवरी 2017
टीएस ठाकुरImage copyrightPTI
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर प्रधानमंत्री को उनके भाषण के सिलसिले में कटघरे में खड़ा कर चुके हैं.
सवाल करने उनके स्वभाव का हिस्सा रहा है, उन्होंने कभी अपने पिता को भी नहीं बख़्शा था.
न्यायाधीश ठाकुर ने एक बार अपने पिता की सरकार की बर्खास्तगी की भी मांग कर दी थी.
यह ग़ुलाम मोहम्मद शाह की सरकार थी, जिसमें टीएस ठाकुर के पिता देवीदास ठाकुर उपमुख्यमंत्री थे.
ग़ुलाम मुहम्मद शाह 2 जुलाई 1984 से 6 मार्च 1986 तक जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे.
उस दौरान तीरथ सिंह ठाकुर जम्मू हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष हुआ करते थे.
बार एसोसिएशन में उनके पुराने साथी बताते हैं कि ग़ुलाम मोहम्मद शाह की सरकार विवादों में थी और चारों तरफ सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे थे.
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्टImage copyrightMAJID JAHANGIR
जस्टिस ठाकुर लंबे समय से जानने वाले और वरिष्ठ वकील बीएस सलाथिया कहते हैं, "तीरथ सिंह ठाकुर हमेशा से सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने का माद्दा रखते थे."
बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा, "जब वे अपने पिता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा सकते हैं तो आप समझ जाइए कि वो ग़लत होते हुए नहीं देख सकते हैं. और वो जिस पद पर आज हैं वहां वो भला कैसे चुप रह सकते हैं जब पूरे देश में जजों की इतनी कमी है. अब जम्मू कश्मीर उच्च न्यायलय को देख लीजिए. यहाँ 17 स्वीकृत पद हैं मगर जजों की मौजूदा संख्या सिर्फ आठ है. तो वो भला कैसे नहीं बोलें?"
हाल ही में न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर ने सबको अचम्भे में तब डाल दिया जब वो एक समारोह में मंच से बोलते-बोलते रो पड़े थे.
सु्प्रीम कोर्टImage copyrightAP
मौक़ा था राज्यों के मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायाधीशों के सम्मलेन का जिसमें प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी भी मौजूद थे.
न्यायमूर्ति ठाकुर यह कहते-कहते आंसुओं में डूब गए कि आम आदमी का न्याय प्रणाली पर विश्वास निम्नतर स्तर पर पहुंच चुका है.
यह घटना इस साल अप्रैल माह की थी. तीन महीनों के बाद यानी स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर उन्होंने फिर एक समारोह में क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद की मौजूदगी में प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए कहा "आप ग़रीबी हटाएं, रोज़गार का सृजन करें, योजनाएं लाएं मगर देश के लोगों के लिए न्याय के बारे में भी सोचें."
इससे पहले जजों की नियुक्ति को लेकर मुख्य न्यायाधीश ने सरकार के ख़िलाफ़ तल्ख़ टिप्पणी भी की थी.
उन्होंने कहा था कि अगर जजों की नियुक्ति के मामले में सरकार कुछ नहीं करती है तो फिर न्यायपालिका को ही हस्तक्षेप करने पर मजबूर होना पड़ेगा.
यह भी बहुत कम लोगों को ही पता होगा कि तीरथ सिंह ठाकुर एक बार चुनाव भी लड़ चुके हैं.
उन्होंने चुनाव बतौर निर्दलीय उम्मीदवार लड़ा था.
जम्मू-कश्मीर
जम्मू कश्मीर में 1987 के विधानसभा के चुनावों में उन्होंने रामबन विधानसभा क्षेत्र से अपना भाग्य आज़माया और उनका मुक़ाबला भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भरत गांधी के साथ था.
तीरथ सिंह ठाकुर ये चुनाव हार गए थे.उन्हें कुल 8597 वोट मिले थे जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी भरत गांधी को 14339.
रामबन के पुराने लोगों में से एक ग़ुलाम क़ादिर वानी बताते हैं कि ठाकुर चुनाव इसलिए हार गए थे क्योंकि राजनीति और ख़ास तौर पर चुनावों में जो तिकड़म नेता अपनाया करते हैं, उससे वो पूरी तरह अनभिज्ञ थे.
ग़ुलाम क़ादिर वानी कहते हैं, "चुनाव जीतने के लिए सब कुछ करना पड़ता है. सिर्फ उसूलों से चुनाव जीते नहीं जाते. हालांकि उनके पिता उपमुख्यमंत्री रहे हैं, मगर तीरथ सिंह ठाकुर को वो सारे तिकड़म नहीं आते थे. इसलिए वोटरों को रिझाने के लिए वो ऐसा कुछ नहीं कर पाए."
साल 1987 में भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर में हुए विधानसभा के चुनाव काफी विवादित हुए जिसमे बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के आरोप लगाए गए. इस चुनाव में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच गठजोड़ हुआ था और इस गठजोड़ ने 66 सीटें जीती थीं.
कश्मीरImage copyrightPTI
कहा जाता है कि इस दौर में जम्मू कश्मीर में 'मिलिटेंसी' शुरू हुई थी.
जस्टिस ठाकुर जम्मू-कश्मीर के रामबन ज़िले की उखेड़ा तहसील के रहने वाले हैं और उनका परिवार हमेशा से ही जाना माना रहा.
उनके पिता देवीदास ठाकुर शेख अब्दुल्ला के सहयोगी भी रह चुके थे और 1975 में वो शेख अब्दुल्लाह के मंत्रिमंडल में वित्त मंत्री भी रह चुके थे.
डोडा ज़िले में उनके परिवार को क़रीब से देखने वाले पुराने लोगों के अनुसार चूँकि राजनीति में आने से पहले देवीदास ठाकुर जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में जज थे, राजनीति में उनकी जो इज़्ज़त थी वो शायद ही उस दौर में उनके समकक्ष किसी राज नेता की रही हो.
यही सम्मान उनके परिवार के बाक़ी के सदस्यों को भी मिला. खास तौर पर उनके पुत्र तीरथ सिंह ठाकुर को.
सुप्रीम कोर्टImage copyrightAFP
बतौर जज भी तीरथ सिंह ठाकुर अपने फ़ैसलों के लिए जाने जाते रहे हैं क्योंकि हर मामले में उनका अध्ययन साफ़ झलकता रहा.
उनके कुछ प्रमुख फ़ैसले जिनकी चर्चा हुई-
  • महाराष्ट्र में पर्यूषण पर्व के दौरान मांस पर प्रतिबन्ध के मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने टिप्पणी की: मांस प्रतिबन्ध किसी के गले के अंदर ज़बरदस्ती ठूंसे नहीं जा सकते.
  • उन्होंने कबीर का हवाला देते हुए कहा : कबीर ने कहा था कि तुम उन लोगों के घरों में तांक-झाँक क्यों करते हो जो मांस खाते हैं. वो जो कर रहे हैं उन्हें करने दो भाई. तुम्हें इतनी चिंता क्यों है.
  • फरवरी 2015 में न्यायमूर्ति ठाकुर और न्यायमूर्ति एके गोयल की खंडपीठ ने बहु-विवाह पर कहा था कि इस्लाम में यह प्रथा नहीं है और सरकार इसपर क़ानून बना सकती है.
  • इससे पहले 2015 के जनवरी माह में एक आदेश में कहा कि बीसीसीआई का क्रिकेट में कोई व्यावसायिक हित नहीं होना चाहिए. इस फ़ैसले के बाद बीसीसीआई के अध्यक्ष एन श्रीनिवासन को अपना पद छोड़ना पड़ा.
  • इसके अलावा कई और भी महत्वपूर्ण मामले मुख्य न्यायाधीश की अदालत में चल रहे हैं जैसे गंगा की सफाई का मामला, शारदा चिट फंड मामला और वन रैंक वन पेंशन.
जाने-माने वकील शांति भूषण कहते हैं कि तीरथ सिंह ठाकुर दिल्ली उच्च न्यायलय में भी बतौर जज रहे हैं और उनकी अदालतों में उन्हें जाने का मौक़ा भी मिला है.
हाईकोर्टImage copyrightREUTERS
शांति भूषण का कहना है कि अदालत के बाहर उन्होंने कभी भी ठाकुर को इस तरह बोलते नहीं सुना.
शांति भूषण कहते हैं, "वो प्रशासनिक प्रमुख भी हैं और जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार का रवैया ऐसा है तो कोई कैसे ना 

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