छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले में तमनार और घरघोड़ा ब्लॉक में कोयला खदानों, वॉशरीज़ और ताप बिजली घरों में और आसपास पर्यावरण सम्बंधी उल्लंघन
तथ्यांवेषी दल की रिपोर्ट.
**
2016 , नवंम्बर
रिपोर्ट का सारांश
एक दो सदस्यी फेक्टफाईंडिंग टीम ने छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले के तमनार और घरघोड़ा ब्लॉक्स की कोयला खदानों, कोल वाशरीज़, और ताप बिजली घरों में पर्यावरण प्रदूषण, ज़मीन व आजीविकाओं की क्षति, जन स्वास्थ्य के संकट और विभिन्न उल्लंघनों तथा गैर-कानूनी कामकाज की शिकायतों की जांच की।
इस दल के सदस्य थे पर्यावरण व सामाजिक शोधकर्ता श्रीपाद धर्माधिकारी और मानसी अशर.
दल ने इन दो ब्लॉक्स में गांवों का दौरा भी किया और गांववासियों तथा अन्य हितधारियों से बातचीत की। दल ने अपना ध्यान पानी से सम्बंधित प्रभावों पर केंद्रित किया.
तमनार व घरघोड़ा ब्लॉक की कोयला खदानें गारे पेल्मा कोयला ब्लॉक का हिस्सा हैं। गारे पेल्मा कोयला ब्लॉक मांड-रायगढ़ कोयला क्षेत्र के 80 कोयला ब्लॉक्स में में सबसे बड़ा है और 16,649 हैक्टर क्षेत्रफल में फैला है। मांड-रायगढ़ कोयला क्षेत्र 1,20,000 हैक्टर से ज़्यादा क्षेत्र में फैला है और यहां अनुमानित 2,11,170 लाख टन कोयला है.
यह रिपोर्ट विभिन्न पर्यावरणीय प्रभावों, और इस इलाके में उपस्थित उद्योंगों द्वारा गैर-कानूनी कार्यों और उल्लंघनों पर केंद्रित है। इसमें इस आरोप पर भी विचार किया गया है कि नियामक अधिकारी इन उद्योगों पर कानूनन लागू पर्यावरणीय शर्तों की निगरानी करने और अनुपालन सुनिश्चित करवाने में नाकाम रहे हैं। रिपोर्ट में पारिस्थितिकी व अपने जीवन के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर आदिवासियों की आजीविका पर इन खामियों के असर का भी आकलन किया गया है।
** निष्कर्ष
अपने दौरे के दौरान दल ने देखा कि समस्त खदान व औद्योगिक क्षेत्रों के समान यहां भी इन विकासों की भारी कीमत स्थानीय लोगों को ही चुकानी पड़ी है। लोग रोज़ाना घने काले धुएं भरे कोहरे में जी रहे हैं और अपने प्राकृतिक संसाधनों और स्वास्थ्य का तेज़ी से ह्रास होते देख रहे हैं.
अधिकांश लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, पशु पालन और वनोपज संग्रह रहा है। क्षेत्र में खनन व औद्योगिक गतिविधियों के विस्तार के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर अर्थ व्यवस्था के हर पहलू पर प्रतिकूल असर हुआ है॥
** अपने दौरे में दल ने निम्नलिखित बातें देखीं:
1. खदानों, ताप बिजली घरों और कोयला वाशरीज़ से निकट के गांवों में वायु की अत्यंत घटिया गुणवत्ता.
2. यह भी देखा गया कि उद्योगों द्वारा जल दोहन के चलते भूजल स्तर में भयानक गिरावट हुई है। दल को बताया गया कि कुछ स्थानों पर तो भूजल स्तर 30-40 फीट से गिरकर 250 फीट नीचे पहुंच गया है। तमनार ब्लॉक के 116 में से कम से कम 90 गांव गिरते भूजल स्तर से प्रभावित हुए हैं।
3. यह भी देखने में आया कि खदानों के डीवॉटरिंग असर के चलते सतही जल संसाधन में अत्यधिक कमी आई है और सतही पानी सूख गया है.
4. सतही व भूजल में बहुत अधिक प्रदूषण देखा गया। इसके प्रमुख कारण निम्नानुसार हैं:
क) खदानों, ताप बिजली घरों व कोयला वाशरीज़ से प्रदूषकों और अपजल को सीधे छोड़ा जाना। इनमें अन्य कई के अलावा डोंगामहुआ, गारे IV/1, IV/2, IV/3, IV/4, IV/5 खदानें, जिंदल ताप बिजली घर के राख स्थल और महावीर ताप बिजली घर शामिल हैं।
ख) राख के तालाबों, राख फेंकने के स्थलों, कोयले की धूल, फ्लाई एश वगैरह से लीचिंग और ओवरफ्लो के कारण सतही पानी व भूजल का संदूषण।
ग) लीचिंग व अन्य तरीकों से भूजल का संदूषण।
5. उद्योगों के लिए पानी को मोड़ने के चलते नदियों व अन्य जल राशियों का सूखना।
6. भूमिगत खदानों में आग और धुंआ नागरमुंडा गांव तथा गारे IV/1 खदान में देखे गए.
7. बिजली घरों की कोयले की धूल को कृषि भूमि तथा बस्तियों के पास फेंका गया है। इसकी वजह से जल स्रोत दूषित हुए हैं और यह संदूषण अंतत: भोजन चक्र में प्रवेश कर जाएगा.
8. कोयला खदानों का गैर-कानूनी विस्तार हुआ है और कोसमपल्ली जैसे गांवों में इसकी वजह से बस्तियों के लिए संकट पैदा हो गया है.
9. खदानों के विस्तार की वजह से विस्थापित गांववासियों का पुनर्वास न तो पर्याप्त हुआ है और न ही पूरा हुआ है.
10. उपरोक्त सबका मिला-जुला असर स्थानीय लोगों की आजीविका, स्वास्थ्य और खुशहाली पर देखा जा सकता है।
बातचीत के दौरान लोगों ने लगातार हवा और पानी की घटिया गुणवत्ता, घटते जल संसाधनों, जल स्रोतों उपयोग के काबिल न रह जाने, मछलियों की कमी तथा मृत्यु, जंगल के विनाश, कोयले की धूल मिला पानी, राखभरा कीचड़, खदान का संदूषित पानी कृषि भूमि, जलराशियों में छोड़े जाने, तथा स्थानीय व प्रांत स्तरीय प्रसासन द्वारा दोषी इकाइयों से किसी मानक या दिशानिर्देश का अनुपालन सुनिश्चित करने में नाकामी की शिकायत की।
** दल की सिफारिशें
1. सरकार को अविलंब खनन, धुलाई, ढुलाई, बिजली उत्पादन और सम्बंधित गतिविधियों के समस्त गंभीर पर्यावरणीय व सामाजिक प्रभावों के दस्तावेज़ीकरण तथा मानचित्रण की एक समग्र कवायद शुरू करनी चाहिए।
इस कार्य में स्वतंत्र, विश्वसनीय विशेषज्ञों व संस्थाओं और स्थानीय लोगों को शामिल किया जाना चाहिए।
हमने पाया है कि औद्योगिक गतिविधियां इस इलाके में भारी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं। पर्यावरणीय शर्तों और मानकों का घोर उल्लंघन हो रहा है। जल संसाधन कम हो रहे हैं और संदूषित हो रहे हैं। अत: समग्र प्रभाव आकलन की तत्काल ज़रूरत है।
2. प्रदूषण व संदूषण के गंभीर स्तर को देखते हुए, प्रभावित इलाकों में स्वास्थ्य पर प्रभाव का आकलन भी किया जाना चाहिए।
3. विभिन्न परियोजनाओं को दी गई पर्यावरणीय स्वीकृति, स्थापना व संचालन की स्वीकृति तथा अन्य कानूनी अनुमतियों की विभिन्न शर्तों के अनुपालन व उल्लंघनों का आकलन फौरन किया जाना चाहिए।
4. जिन प्रभावों का दस्तावेज़ीकरण पहले ही किया जा चुका है उनकी रोकथाम, उन्हें कम करने या मुआवज़े देने की प्रक्रिया तत्काल शुरू की जानी चाहिए। इनमें खास तौर से अनुपचारित अपजल को स्थानीय जलराशियों तथा आसपास के पर्यावरण में छोड़ने तथा फ्लाई एश, कीचड़ जैसे ठोस कचरे को आसपास के इलाके में फेंकने जैसे मामले शामिल हैं।
5. दोषी उद्योगों तथा नियामक प्रक्रियाओं की जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए और दोषी उद्योगों तथा उद्योगों में पर्यावरणीय शर्तों की निगरानी व क्रियांवयन के लिए ज़िम्मेदार नियामक संस्थाओं के अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
6. यह देखते हुए कि खनन, वॉशरीज़ और बिजली घरों की गतिविधियां बढ़ने वाली हैं, हमारी यह भी अनुशंसा है कि वहन क्षमता और समग्र प्रभाव आकलन की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी जाए और किसी भी नई गतिविधि के बारे में निर्णय इस प्रक्रिया के परिणामों के आधार पर ही लिया जाए।
7. और अंत में, हमारी सिफारिश है कि वन व पर्यावरण मंत्रालय (MoEF) तथा CECB सारे प्रासंगिक परियोजना दस्तावेज़ (पर्यावरण आकलन प्रतिवेदन, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट, स्वीकृतियां वगैरह) उपयुक्त व संपूर्ण रूप में सार्वजनिक रूप से, और खासकर समस्त ग्राम पंचायतों तथा स्थानीय प्रशासनिक कार्यालयों में उपलब्ध करवाएं। यह कदम प्रशासन की पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण है और वास्तव में यह प्रभावित लोगों का बुनियादी अधिकार है।
***
संपर्क :
रिनचिन 094 25 377349
डिग्री प्रसाद चौहान 09407628753
रिपोर्ट तैयार :
पर्यावरण व सामाजिक शोधकर्ता श्रीपाद धर्माधिकारी और मानसी अशर.
***
तथ्यांवेषी दल की रिपोर्ट.
**
2016 , नवंम्बर
रिपोर्ट का सारांश
एक दो सदस्यी फेक्टफाईंडिंग टीम ने छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले के तमनार और घरघोड़ा ब्लॉक्स की कोयला खदानों, कोल वाशरीज़, और ताप बिजली घरों में पर्यावरण प्रदूषण, ज़मीन व आजीविकाओं की क्षति, जन स्वास्थ्य के संकट और विभिन्न उल्लंघनों तथा गैर-कानूनी कामकाज की शिकायतों की जांच की।
इस दल के सदस्य थे पर्यावरण व सामाजिक शोधकर्ता श्रीपाद धर्माधिकारी और मानसी अशर.
दल ने इन दो ब्लॉक्स में गांवों का दौरा भी किया और गांववासियों तथा अन्य हितधारियों से बातचीत की। दल ने अपना ध्यान पानी से सम्बंधित प्रभावों पर केंद्रित किया.
तमनार व घरघोड़ा ब्लॉक की कोयला खदानें गारे पेल्मा कोयला ब्लॉक का हिस्सा हैं। गारे पेल्मा कोयला ब्लॉक मांड-रायगढ़ कोयला क्षेत्र के 80 कोयला ब्लॉक्स में में सबसे बड़ा है और 16,649 हैक्टर क्षेत्रफल में फैला है। मांड-रायगढ़ कोयला क्षेत्र 1,20,000 हैक्टर से ज़्यादा क्षेत्र में फैला है और यहां अनुमानित 2,11,170 लाख टन कोयला है.
यह रिपोर्ट विभिन्न पर्यावरणीय प्रभावों, और इस इलाके में उपस्थित उद्योंगों द्वारा गैर-कानूनी कार्यों और उल्लंघनों पर केंद्रित है। इसमें इस आरोप पर भी विचार किया गया है कि नियामक अधिकारी इन उद्योगों पर कानूनन लागू पर्यावरणीय शर्तों की निगरानी करने और अनुपालन सुनिश्चित करवाने में नाकाम रहे हैं। रिपोर्ट में पारिस्थितिकी व अपने जीवन के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर आदिवासियों की आजीविका पर इन खामियों के असर का भी आकलन किया गया है।
** निष्कर्ष
अपने दौरे के दौरान दल ने देखा कि समस्त खदान व औद्योगिक क्षेत्रों के समान यहां भी इन विकासों की भारी कीमत स्थानीय लोगों को ही चुकानी पड़ी है। लोग रोज़ाना घने काले धुएं भरे कोहरे में जी रहे हैं और अपने प्राकृतिक संसाधनों और स्वास्थ्य का तेज़ी से ह्रास होते देख रहे हैं.
अधिकांश लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, पशु पालन और वनोपज संग्रह रहा है। क्षेत्र में खनन व औद्योगिक गतिविधियों के विस्तार के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर अर्थ व्यवस्था के हर पहलू पर प्रतिकूल असर हुआ है॥
** अपने दौरे में दल ने निम्नलिखित बातें देखीं:
1. खदानों, ताप बिजली घरों और कोयला वाशरीज़ से निकट के गांवों में वायु की अत्यंत घटिया गुणवत्ता.
2. यह भी देखा गया कि उद्योगों द्वारा जल दोहन के चलते भूजल स्तर में भयानक गिरावट हुई है। दल को बताया गया कि कुछ स्थानों पर तो भूजल स्तर 30-40 फीट से गिरकर 250 फीट नीचे पहुंच गया है। तमनार ब्लॉक के 116 में से कम से कम 90 गांव गिरते भूजल स्तर से प्रभावित हुए हैं।
3. यह भी देखने में आया कि खदानों के डीवॉटरिंग असर के चलते सतही जल संसाधन में अत्यधिक कमी आई है और सतही पानी सूख गया है.
4. सतही व भूजल में बहुत अधिक प्रदूषण देखा गया। इसके प्रमुख कारण निम्नानुसार हैं:
क) खदानों, ताप बिजली घरों व कोयला वाशरीज़ से प्रदूषकों और अपजल को सीधे छोड़ा जाना। इनमें अन्य कई के अलावा डोंगामहुआ, गारे IV/1, IV/2, IV/3, IV/4, IV/5 खदानें, जिंदल ताप बिजली घर के राख स्थल और महावीर ताप बिजली घर शामिल हैं।
ख) राख के तालाबों, राख फेंकने के स्थलों, कोयले की धूल, फ्लाई एश वगैरह से लीचिंग और ओवरफ्लो के कारण सतही पानी व भूजल का संदूषण।
ग) लीचिंग व अन्य तरीकों से भूजल का संदूषण।
5. उद्योगों के लिए पानी को मोड़ने के चलते नदियों व अन्य जल राशियों का सूखना।
6. भूमिगत खदानों में आग और धुंआ नागरमुंडा गांव तथा गारे IV/1 खदान में देखे गए.
7. बिजली घरों की कोयले की धूल को कृषि भूमि तथा बस्तियों के पास फेंका गया है। इसकी वजह से जल स्रोत दूषित हुए हैं और यह संदूषण अंतत: भोजन चक्र में प्रवेश कर जाएगा.
8. कोयला खदानों का गैर-कानूनी विस्तार हुआ है और कोसमपल्ली जैसे गांवों में इसकी वजह से बस्तियों के लिए संकट पैदा हो गया है.
9. खदानों के विस्तार की वजह से विस्थापित गांववासियों का पुनर्वास न तो पर्याप्त हुआ है और न ही पूरा हुआ है.
10. उपरोक्त सबका मिला-जुला असर स्थानीय लोगों की आजीविका, स्वास्थ्य और खुशहाली पर देखा जा सकता है।
बातचीत के दौरान लोगों ने लगातार हवा और पानी की घटिया गुणवत्ता, घटते जल संसाधनों, जल स्रोतों उपयोग के काबिल न रह जाने, मछलियों की कमी तथा मृत्यु, जंगल के विनाश, कोयले की धूल मिला पानी, राखभरा कीचड़, खदान का संदूषित पानी कृषि भूमि, जलराशियों में छोड़े जाने, तथा स्थानीय व प्रांत स्तरीय प्रसासन द्वारा दोषी इकाइयों से किसी मानक या दिशानिर्देश का अनुपालन सुनिश्चित करने में नाकामी की शिकायत की।
** दल की सिफारिशें
1. सरकार को अविलंब खनन, धुलाई, ढुलाई, बिजली उत्पादन और सम्बंधित गतिविधियों के समस्त गंभीर पर्यावरणीय व सामाजिक प्रभावों के दस्तावेज़ीकरण तथा मानचित्रण की एक समग्र कवायद शुरू करनी चाहिए।
इस कार्य में स्वतंत्र, विश्वसनीय विशेषज्ञों व संस्थाओं और स्थानीय लोगों को शामिल किया जाना चाहिए।
हमने पाया है कि औद्योगिक गतिविधियां इस इलाके में भारी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं। पर्यावरणीय शर्तों और मानकों का घोर उल्लंघन हो रहा है। जल संसाधन कम हो रहे हैं और संदूषित हो रहे हैं। अत: समग्र प्रभाव आकलन की तत्काल ज़रूरत है।
2. प्रदूषण व संदूषण के गंभीर स्तर को देखते हुए, प्रभावित इलाकों में स्वास्थ्य पर प्रभाव का आकलन भी किया जाना चाहिए।
3. विभिन्न परियोजनाओं को दी गई पर्यावरणीय स्वीकृति, स्थापना व संचालन की स्वीकृति तथा अन्य कानूनी अनुमतियों की विभिन्न शर्तों के अनुपालन व उल्लंघनों का आकलन फौरन किया जाना चाहिए।
4. जिन प्रभावों का दस्तावेज़ीकरण पहले ही किया जा चुका है उनकी रोकथाम, उन्हें कम करने या मुआवज़े देने की प्रक्रिया तत्काल शुरू की जानी चाहिए। इनमें खास तौर से अनुपचारित अपजल को स्थानीय जलराशियों तथा आसपास के पर्यावरण में छोड़ने तथा फ्लाई एश, कीचड़ जैसे ठोस कचरे को आसपास के इलाके में फेंकने जैसे मामले शामिल हैं।
5. दोषी उद्योगों तथा नियामक प्रक्रियाओं की जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए और दोषी उद्योगों तथा उद्योगों में पर्यावरणीय शर्तों की निगरानी व क्रियांवयन के लिए ज़िम्मेदार नियामक संस्थाओं के अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
6. यह देखते हुए कि खनन, वॉशरीज़ और बिजली घरों की गतिविधियां बढ़ने वाली हैं, हमारी यह भी अनुशंसा है कि वहन क्षमता और समग्र प्रभाव आकलन की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी जाए और किसी भी नई गतिविधि के बारे में निर्णय इस प्रक्रिया के परिणामों के आधार पर ही लिया जाए।
7. और अंत में, हमारी सिफारिश है कि वन व पर्यावरण मंत्रालय (MoEF) तथा CECB सारे प्रासंगिक परियोजना दस्तावेज़ (पर्यावरण आकलन प्रतिवेदन, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट, स्वीकृतियां वगैरह) उपयुक्त व संपूर्ण रूप में सार्वजनिक रूप से, और खासकर समस्त ग्राम पंचायतों तथा स्थानीय प्रशासनिक कार्यालयों में उपलब्ध करवाएं। यह कदम प्रशासन की पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण है और वास्तव में यह प्रभावित लोगों का बुनियादी अधिकार है।
***
संपर्क :
रिनचिन 094 25 377349
डिग्री प्रसाद चौहान 09407628753
रिपोर्ट तैयार :
पर्यावरण व सामाजिक शोधकर्ता श्रीपाद धर्माधिकारी और मानसी अशर.
***
No comments:
Post a Comment