Friday, January 20, 2017

छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. माओवादियों द्वारा लैंड माईनिंग (भूमिगत विस्फोट) के इस्तेमाल की घोर निंदा करता है,



           पीयूसीएल छत्तीसगढ़ ,रायपुर

                         प्रेस विज्ञप्ति

छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. को पुलिस के प्रेस नोट के ज़रिये यह जानकारी प्राप्त हुई है कि नारायणपुर पुलिस थाना अंतर्गत एक आई. ई. डी.विस्फोट में 15  वर्षीय बच्ची के साथ तीन महिलाओं की मौत हो गयी, जिसे माओवादियों द्वारा बिछाया गया था.

 छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. इन मौतों पर गहन शोक प्रगट करता है.  छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. माओवादियों द्वारा लैंड माईनिंग (भूमिगत विस्फोट) के इस्तेमाल की घोर निंदा करता है, जो उन आदवासी ग्रामीणों के जीवन और शारीरिक अंगों को भीषण खतरा और नुक्सान पहुंचाते हैं, जो इस युद्ध में शरीक नहीं हैं, और अंचल में अपना स्वाभाविक जीवन-यापन कर रहे हैं.

 छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. अपनी उस मांग को एक बार फिर यहाँ दोहराती है कि इस युद्ध के इलाके में गैर-शामिल नागरिकों की सुरक्षा के लिए भारत सरकार को इस इलाके में आन्तरिक सशस्त्र टकराहट की स्थिति की घोषणा करनी चाहिए और जिनेवा प्रोटोकॉल के तहत द्वन्द में शामिल दोनों दलों द्वारा मानव अधिकारों के हनन को सख्त और स्वतंत्र निगरानी के लिए सौंप दिया जाए.
क्योंकि खबर यह भी है कि माओवादियों से मुठभेड़ के दौरान एक जवान गंभीर रूप से घायल हो गया था, इसलिए यह और भी लाज़मी है कि इस घटना की सही और विस्तृत जानकारी स्वतंत्र रूप से स्थापित की जाए.  

इसके पहले भी मार्च 2016  में छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. ने एक बयान जारी किया था जब गोरखा गाँव निवासी मुछ्की हिड्में नाम की एक ५५ वर्षीय महिला की आई.ई.डी. विस्फोट में  17  मार्च 2016  की मौत हो गयी थी.
सुकमा के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक डी. श्रवण के अनुसार यह घटना एक “कच्ची” सड़क पर हुई थी, जब भेज्जी पुलिस थाना की सीमा में कोत्ताचेरू गाँव के पास सुरक्षा बल गश्त पर थे. इसी तरह 6 मार्च को करीब 9.30  बजे सुबह छोटे डोंगर पुलिस थाना की सीमा में अमदी घाटी में दो मजदूरों की मौत हो गयी थी. नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक अभिषेक मीना ने पी.टी.आई. को बताया था कि माओवादियों ने एक शक्तिशाली आई.ई.डी. विस्फोट उस समय किया जब छत्तीसगढ़ सशत्र बल और जिला पुलिस मजदूरों के एक समूह को सुरक्षा देते हुए घाटी से ले जा रहे थे, और इसके बाद लगभग दो घंटों तक गोली-बारी हुई, जिसके बाद माओवादी भाग खड़े हुए.
26 नवम्बर 2013 को छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. ने राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एन.एच.आर.सी.) को लिखित में आवेदन दिया था कि एन.एच.आर.सी. को इस पद्धति पर रोक लगाने के आदेश जारी करने चाहिए कि विस्फोटक को बेअसर करने या भूमिगत विस्फोटकों के इलाकों में “पुलिस सहयोगी” के रूप में नागरिकों का इस्तमाल पुलिस द्वारा नहीं किया जाना चाहिए.

छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. ने बस्तर आई.जी. श्री एस.आर.पी. कल्लूरी के उस बयान पर घोर आपत्ति ज़ाहिर की है, जहाँ उन्होंने माओवादियों द्वारा आई.ई.डी. विस्फोट कर तीन महिलाओं की मौत की दुखद घटना के बहाने “ कानूनी सलाहकार समूहों, तथ्य-जमा करने वाली टीम और तथाकथित मानव अधिकार कार्यकर्ताओं” को धमकाने का प्रयास किया है. पी.यू. सी. एल. की सदा-सर्वदा स्पष्ट नीति रही है कि वह किसी भी तरह की हिंसा का समर्थक नहीं है. लेकिन इसका कतई यह मतलब नहीं कि तथ्य-जमा करने वाली टीम, या मानव अधिकार कार्यकर्ता ऐसी घटनाओं की जांच नहीं कर सकते जहां खासकर मुठभेड़ों, यौन हिंसा या आगजनी जैसी यातनाओं के आरोप ग्राम-वासियों द्वारा सुरक्षा बलों पर लगाये जाते हैं, और जिनकी पुष्टि कानूनी संस्थानों जैसे कि राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, केन्द्रीय जांच ब्यूरो और राष्ट्रीय अनूसूचित जाती/अनूसूचित जन-जाति आयोग द्वारा की जाती है.

छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. ने बहुत गंभीरता से इस सच्चाई पर असंतोष ज़ाहिर किया है कि बस्तर के आई.जी. श्री कल्लूरी एक ओर तो बस्तर में काफी सक्रिय दिख रहे हैं, वहीँ दूसरी ओर स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर एन.एच.आर.सी. द्वारा 30  जनवरी 2017  को बुलाई गई बैठक में न जाने का बहाना कर रहे हैं.
 छत्तीसगढ़ पी.यू.सी.एल. का मानना है कि पुलिस को कानूनी रूप से गठित राष्ट्रीय मानव अधिकार संस्थानों में अपनी आस्था प्रगट करनी चाहिए, और उसके द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का भी न केवल अक्षरः बल्कि उसकी अंदरूनी भावना का भी पालन करना चाहिए.


डॉ. लाखन सिंह  सुधा भारद्वाज
अध्यक्ष    महासचिव        


( 19.01.2017 को जारी किये गयी प्रेस विज्ञप्ति का हिन्दी अनुवाद )

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