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दंतेवाड़ा में युवक और मंगेतर को नक्सली बताकर पुलिस ने मार डाला!
Created By : नेशनल दस्तक ब्यूरो
Date : 2017-01-31
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दंतेवाड़ा। दंतेवाड़ा पुलिस पर एक बार फिर फर्जी इनकाउंटर का आरोप लगा है। रविवार को पुलिस ने हिरोली-पुरंगल के जंगल में एक महिला सहित दो नक्सलियों को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था। जबकि मृतक के भाई का कहना है कि पुलिस ने उनके भाई और उसकी मंगेतर को किरंदुल बाजार से लौटते वक्त पकड़ा कर फर्जी इनकाउंटर में मार दिया। मृतक के भाई ने नेशनल दस्तक को खास बातचीत में बताया कि पुलिस उस पर अपने भाई को नक्सली बताने के लिए लगातार दवाब डाल रही है।
मृतक के भाई का आरोप है कि पुलिस ने उसके भाई और उसकी साली को मार दिया, उसका भाई (भीमा) और साली (सुकमति) शनिवार को बाजार के लिये निकले थे बाजार से सामान लेकर लौटते समय रास्ते से पुलिस वाले दोनों को अपने साथ ले गये। दंतेवाड़ा पुलिस ने शनिवार रात तक दोनों को कहां रखे थे यह बामन कड़ती का सवाल है, रविवार सुबह 9 बजे दोनों की लाश सौंपते है, बामन कड़ती कहता है कि हमारे घर का पता किसने दिया, शनिवार को पकडे़ दोनों को क्यों मार दिया, मेरा भाई खेती कर परिवार चलाता है मां की देखभाल करता है और मैं यहां किरंदुल में एनएमडीसी में लेबर हूं यहां रहता हूं।
मृतक के भाई के मुताबिक पुलिस वाले मुझसे मेरे भाई को नक्सली है कहने कह रहे हैं। मैं अपने भाई को नक्सली क्यों कहूं जबकि ऐसा कुछ भी नही है। पुलिस वाले मेरे भाई की तरह ही बस्तर के आदिवासियों को मार रहे हैं। क्या कहीं ऐसा होता है। पुलिस कहती है कि मेरे भाई से बहुत सारी दवाईयां, पिस्टल, रायफल मिला है, जबकि ऐसा कुछ भी नही है मेरी साली सुकमति जिसका ब्याह होने वाला था साथ गई थी उसको भी मार दिया। दोनों मेरे घर आये थे मेरी पत्नी से मुझे पूछा, मेरी पत्नी ने खाना खाने के लिये बोली लेकिन बाद में खाऊँगा कहकर वे बाजार चला गया।
पोस्टमार्टम के सवाल पर बामन ने कहा कि पोस्टमार्टम पहले से करवा कर लाये थे....मेरी साली साड़ी पहने हुई थी लेकिन फ्राक पहना दी गई है सर...मेरा भाई दूसरा कपड़ा पहना था...क्या ऐसे ही मारा जायेगा हमें...???ऐसा रहा तो हम सब कहां रहेंगे। वहीं मृतक के परिजनों ने अभी तक दोनो का अंतिम संस्कार भी नहीं किया है, उनका कहना है कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिलता तब तक वो अंतिम संस्कार नहीं करेंगे।
नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: देश के जाने-माने लोगों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर में कानून के राज की मांग की है. देश के 125 प्रख्यात पत्रकार, संपादक, अर्थशास्त्री, फिल्मकार, अभिनेत्री तथा सुप्रीम कोर्ट के सीनियर अधिवक्ताओं ने एक पत्र के माध्यम से मांग की है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में मानवाधिकार के हनन के शिकार व्यक्ति तक कोई भी पहुंच सके तथा मानवाधिकार का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्यवाही हो.
संयुक्त हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है कि बस्तर में कानून का राज हो तथा सुरक्षा बल व राज्य की अन्य संस्थायें कानून और संविधान के दायरे में रहकर काम करें. इस पत्र में अपील की गई है कि दबंगई पर उतारु कानून और मानवाधिकार का सम्मान ना करने वाले किसी भी समूह को राज्य की ओर से समर्थन न दिया जाये. साथ ही उत्पीड़न तथा मानवाधिकार के उल्लंघन के लिये जिम्मेदार लोगों पर जल्द और कड़ी कार्यवाही हो.
इस पत्र में हाल ही में बस्तर के जगदलपुर में रहने वाली बेला भाटिया के घर पर करीब 30 लोगों द्वारा धावा बोले जाने तथा उन्हें बस्तर छोड़ देने की कथित धमकी दिये का विस्तार से उल्लेख किया गया है. संयुक्त हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है कि बीते कुछ महीनों में जगदलपुर लीगल ऐड नाम के समूह को बस्तर छोड़ना पड़ा है, स्क्रॉल की पत्रकार मालिनी सुब्रमण्यम तथा बीबीसी के आलोक पुतुल को बस्तर छोड़ने के लिये मजबूर कर दिया गया था. इसके अलावा भी कई स्थानीय पत्रकार लिंगराम कोडोपी, संयोष यादव तथा समरू नाग को सताया जा रहा है. आम आदमी पार्टी के सोनी सोरी तथा सीपीआई के मनीष कुंजाम को प्रायः धमकाया जाता है.
हाल ही में आंध्रप्रदेश तथा तेलांगना के वकील, पत्रकार एवं मानवाधिकार के काम करने वाले सदस्य जब बस्तर दौरे पर थे तो उन्हें छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया है. दिल्ली की समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया गया है. पत्र में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, पीयूसीएल, एमनेस्टी इंटरनेशनल तथा सुप्रीम कोर्ट ने बस्तर में मानवाधिकार के हनन की लगातार आलोचना की है.
125 प्रख्यात पत्रकार, संपादक, अर्थशास्त्री, फिल्मकार, अभिनेत्री तथा सुप्रीम कोर्ट के सीनियर अधिवक्ताओं द्वारा संयुक्त रूप से हस्ताक्षरित पत्र में आरोप लगाया गया है कि बस्तर के आईजीपी एसआरपी कल्लूरी का मकसद है कि इलाके में चल रहे मनमानी के खिलाफ बोलना वाला कोई न हो. इन सब बातों के कारण बस्तर में बड़ी खतरनाक स्थिति पैदा होने की आशंका है. जहां सुरक्षाबल बिना किसी जवाबदेही के डंडा फटकारेंगे और जन साधारण के पास अपनी रक्षा के लिये कुछ नहीं बचेगा.
इस पत्र पर पत्रकार अरुंणधती राय, जेएनयू के रिटायर्ड प्रोफेसर चमनलाल, न्यूयार्क यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डेबराज राय, नेशनल ज्यूडिशियल अकादमी के पूर्व निदेशक जी मोहन गोपाल, हावर्ड यूनिवर्सिटी के गौतम राय, पूर्व सालिसिटर जनरल गोपाल राय, अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, गीतकार जावेद अख्तर, रांची यूनिवर्सिटी के ज़्याँ द्रेज, भारत सरकार के पूर्व सचिव केशव देसीराजू, लेखक मृणाल पांडे, फिल्मकार नंदिता दास, बिजनेस स्टैंडर्ड के सीनियर एसोसियेट एडीटर नितिन सेठी, इकॉनामिक एंड पॉलिटिकल वीकली के संपादक पारंजय गुहा ठाकुरता, फिल्मकार राहुल राय, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील राजीव धवन, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, आईआईटी दिल्ली के रविन्दर कौर, अभिनेत्री शबाना आज़मी, अभिनेत्री शर्मिला टैगोर, एऩडीटीवी के मैनेजिंग एडीटर श्रीनिवासन जैन, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की सुनीता नारायण, टाइम्स ऑफ इंडिया के सलाहकार संपादक स्वामीनाथन अय्यर, योजना आयोग के पूर्व सदस्य सईद हमीद जैसे 125 जाने-माने पत्रकारों, प्रोफेसरों, फिल्मकारों ने हस्ताक्षर किये हैं.
सुकमी और भीमा को बाजार से लौटते समय पुलिस ने की हत्या , नक्सली कहने का दबाव बना रही है पुलिस - भीमा के भाई बामन का आरोप .
एसपी ने कहा कि आरोप लगाने वालों के है नक्सलियों से संबंध .
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31.01.2017
दंतेवाड़ा / रविवार को हिरोली के जंगल में एक महिला सहित दो नक्सलियों के मार गिराने का दावा पुलिस ने किया था .जबकि मारे गये भीमा के भाई बामन ने आरोप लगाया कि सुकती और भीमा किरंदुल के बाज़ार में सामान खरीदारी करने गये थे ,तब रास्ते में उन्हें पुलिस ने गोली मार दी और कहा कि वे दोनों नक्सली थे.
सुकती की उम्र 13 साल की थी और अगले महीने उसकी शादी होने वाली थी ,भीमा और सुकती के पिता नही है .
सामाजिक कार्यकर्ता मंगल ने कल ही दावा किया था
" दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल थाना क्षेत्र में माओवादी को मार गिराने के नाम फिर एक फर्जी मुठभेड़ किरंदुल बाज़र से साईकिल में वापिस जा रहे गमपुड़ गांव के रहने वाले सुकमति हेमला और भीमा कड़ती को हिरोली के जंगल में पकड़ कर एंकॉउंटर किये अभी तक साईकिल का पता नही दोनों के पिता नही और लड़की की मांगनी हो गयी थी इस साल सादी होने वाली थी ,भीमा कड़ती के बड़े भाई बमान कड़ती किरंदुल में ठेका मज़दूरी कर रहा है, भीमा के भाई
बमान केद्वारा यहाँ पूरी जानकारी दी गई है "
भीमा के भाई ने आज यह जानकारी दी कि पुलिस उसे यह दबाव बना रही हि कि में अपने भाई को नक्सली बता रहा था .
बामन कडती (बडा भाई) कहता है कि ,
पुलिस मेरे भाई को नक्सली था कहो कहती है...,मेरे भाई को मार दिया .
मैं क्यों कहूंगा....बामन कड़ती
तुमने अपने भाई के नक्सली होने का रिपोर्ट लिखवाया है न....दंतेवाड़ा पुलिस
अभी भीमा कड़ती के भाई बामन कड़ती से फोन पर बात किया...उनका आरोप है कि मेरे भाई और साली सुकमति को पुलिस ने मार दिया,भीमा और सुकमति शनिवार को बाजार के लिये निकले थे बाजार से सामान लेकर लौटते समय रास्ते से पुलिस वाले दोनों को ले गये,.
दंतेवाड़ा पुलिस शनिवार रात तक दोनों को कहां रखे थे यह बामन कड़ती का सवाल है
,रविवार सुबह 9 बजे दोनों की लाश सौंपते है, बामन कड़ती कहता है कि हमारे घर का पता किसने दिया,शनिवार को पकडे़ दोनों को क्यों मार दिया,मेरा भाई खेती कर परिवार चलाता है, मां की देखभाल करता है और मैं यहां किरंदुल में एनएमडीसी में लेबर हूं.
यहां रहता हूं, पुलिस वाले मुझसे मेरे भाई को नक्सली है, कहने कह रहा है मैं अपने भाई को नक्सली क्यों कहूं जबकि ऐसा कुछ भी नही है.
मेरे भाई को और ऐसे ही बस्तर के आदिवासियों को मार रहे हैं,क्या कहीं ऐसा होता है,पुलिस वाले मेरे भाई से बहुत सारी दवाईयां, पिस्टल, रायफल मिला है कहता है ,जबकि ऐसा कुछ भी नही है .
मेरी 13 साल की साली सुकमति जिसका ब्याह होने वाला था साथ गई थी उसको भी मार दिया,दोनों मेरे घर आयें थे मेरी पत्नी से मुझे पूछा,मेरी मिसेज ने खाना खाने के लिये बोली लेकिन बाद में खाऊँगा कहकर बाजार चला गया, मेरी पत्नी ने सायकिल से आया था बताई थी लेकिन सायकिल अभी तक नही मिला है.
पोस्टमार्टम के सवाल पर बामन ने कहा कि पोस्टमार्टम पहले से करवा कर लायें थे....मेरी साली साड़ी पहने हुई थी लेकिन फ्राक पहना दी गई है .सर...मेरा भाई दूसरा कपड़ा पहना था...क्या ऐसे ही मारा जायेगा हमें...???
ऐसा रहा तो हम सब कहां रहेंगे ?
दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल थाना क्षेत्र में माओवादी को मार गिराने के नाम फिर एक फर्जी मुठभेड़ किरंदुल बाजार से साईकिल में वापिस जा रहे गमपुड़ गांव के रहने वाले सुकमति हेमला और भीमा कड़ती को हिरोली के जंगल में पकड़कर फर्जी एन्काउंटर किया गया....
जबकि पुलिस का आरोप है कि इनके घरवालों ने ही पहले इसे नक्सली बताया था ,एसपी दंतेवाड़ा का कहना है कि आरोप लगाने वालों के सबंध नक्सलियों से है इसलिए पुलिस पर झूठे आरोप लगा रहे है .
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31.01.2017
फिर फर्जी मुठभेड़ में दो आदिवासी की हत्या :
ग्रामीणों का आरोप
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दंतेवाड़ा जिले के किरंदुल थाना क्षेत्र में माओवादी को मार गिराने के नाम फिर एक फर्जी मुठभेड़ किरंदुल बाज़र से साईकिल में वापिस जा रहे गमपुड़ गांव के रहने वाले सुकमति हेमला और भीमा कड़ती को हिरोली के जंगल में पकड़ कर एंकॉउंटर किये अभी तक साईकिल का पता नही दोनों के पिता नही और लड़की की मांगनी हो गयी थी इस साल सादी होने वाली थी भीमा कड़ती के बड़े भाई बमान कड़ती किरंदुल में ठेका मज़दूरी कर रहा है बमान के द्वारा दी पूरी जानकारी
(मंगल कुंजाम की रिपोर्ट )
30.01.2017
केएम करियप्पा आजादी के बाद भारतीय सेना के पहले भारतीय सैन्य प्रमुख थे। फील्ड मार्शल (तब जनरल) करियप्पा भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ (तस्वीर- भारत सरकार के फोटो डिविजन से साभार)
अमेरिकी की खुफिया एजेंसी सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी (सीआईए) द्वारा सार्वजनिक (डिक्लासिफाइड) किए जा रहे दस्तावेजों से कई चौंकाने वाले दावे सामने आ रहे हैं। सीएआई के दस्तावेज के अनुसार भारत की आजादी के महज तीन साल बाद 1950 में फील्ड मार्शल (तब जनरल) केएम करियप्पा को जाने से मारने की कोशिश की गयी थी। भारतीय सेना के पहले भारतीय सैन्य प्रमुख करियप्पा ने 15 जनवरी 1949 को ब्रिटिश सैन्य अफसर जनरल रॉय बुचर से भारतीय सेना प्रमुख की कमान ली थी। अमेरिका के गोपनीयता कानून के अनुसार सीआईए एक निश्चित समय के बाद ऐतिहसाकि महत्व के गोपनीय दस्तावेज को सार्वजनिक कर दिया जाता है।
सीआईए के दस्तावेज के अनुसार, “भारतीय सेना के कमांडर इन चीफ जनरल करियप्पा के पूर्वी पंजाब के दौरे के समय उनकी हत्या की कोशिश की गयी थी।” सीआईए की डिक्लासिफाइड रिपोर्ट “रिफ्ट इन ऑफिसर्स कॉर्प ऑफ द इंडियन आर्मी” (भारतीय सेना के अफसर कॉर्प में मतभेद) नामक ये रिपोर्ट 12 जून 1950 को दर्ज की गयी थी। ये जानकारी इस दस्तावेज के माध्यम से पहली बार सामने आयी है।
सीआईए की इस “गोपनीय” रिपोर्ट के अनुसार तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख करियप्पा की हत्या की कोशिश के लिए छह लोगों को मौत की सजा दी गयी थी। रिपोर्ट में लिखा गया है, “छह लोगों को हत्या की साजिश से जुड़े होने के लिए मौत की सजा दी गयी है। माना जा रहा कि कई बड़े सैन्य अफसर इस मामले में शामिल थे।”
भारतीय सेना के पहले भारतीय सैन्य प्रमुख केएम करियप्पा को फील्ड मार्शन की उपाधि दी गयी। अभी तक सेना में केवल दो सेना प्रमुख को ये पद मिला है। (Express photo by R L Chopra)
सीआईए की इस रिपोर्ट के अनुसार, “जनरल करियप्पा दक्षिण भारतीय हैं इसलिए भारतीय सेना के सिख अफसर उनसे नाखुश हैं। आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) सेना के अफसरों के बीच उत्तर-दक्षिण के विभेद का लाभ उठा रहा है और सिख अफसरों को, जो खबरी की नजर में धोखेबाज और भरोसा करने लायक नहीं, को असंतोष भड़काने के लिए उकसा रहा है। त्रावणकोर (मौजूदा केरल), मद्रास और महाराष्ट्र के अफसर जनरल करियप्पा के प्रति वफादार हैं।”
कहते हैं अयोध्या में राम जन्मे. वहीं खेले कूदे बड़े हुए. बनवास भेजे गए. लौट कर आए तो वहां राज भी किया.
उनकी जिंदगी के हर पल को याद करने के लिए एक मंदिर बनाया गया. जहां खेले, वहां गुलेला मंदिर है.
जहां पढ़ाई की वहां वशिष्ठ मंदिर हैं. जहां बैठकर राज किया वहां मंदिर है. जहां खाना खाया वहां सीता रसोई है. जहां भरत रहे वहां मंदिर है. हनुमान मंदिर है. कोप भवन है. सुमित्रा मंदिर है. दशरथ भवन है.
ऐसे बीसीयों मंदिर हैं. और इन सबकी उम्र 400-500 साल है. यानी ये मंदिर तब बने जब हिंदुस्तान पर मुगल या मुसलमानों का राज रहा.
अजीब है न! कैसे बनने दिए होंगे मुसलमानों ने ये मंदिर! उन्हें तो मंदिर तोड़ने के लिए याद किया जाता है. उनके रहते एक पूरा शहर मंदिरों में तब्दील होता रहा और उन्होंने कुछ नहीं किया!
कैसे अताताई थे वे, जो मंदिरों के लिए जमीन दे रहे थे. शायद वे लोग झूठे होंगे जो बताते हैं कि जहां गुलेला मंदिर बनना था उसके लिए जमीन मुसलमान शासकों ने ही दी. दिगंबर अखाड़े में रखा वह दस्तावेज भी गलत ही होगा जिसमें लिखा है कि मुसलमान राजाओं ने मंदिरों के बनाने के लिए 500 बीघा जमीन दी. निर्मोही अखाड़े के लिए नवाब सिराजुदौला के जमीन देने की बात भी सच नहीं ही होगी.
सच तो बस बाबर है और उसकी बनवाई बाबरी मस्जिद! अब तो तुलसी भी गलत लगने लगे हैं जो 1528 के आसपास ही जन्मे थे. लोग कहते हैं कि 1528 में ही बाबर ने राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई. तुलसी ने तो देखा या सुना होगा उस बात को. बाबर राम के जन्म स्थल को तोड़ रहा था और तुलसी लिख रहे थे मांग के खाइबो मसीत में सोइबो. और फिर उन्होंने रामायण लिखा डाली. राम मंदिर के टूटने का और बाबरी मस्जिद बनने क्या तुलसी को जरा भी अफसोस न रहा होगा! कहीं लिखा क्यों नहीं!
अयोध्या में सच और झूठ अपने मायने खो चुके हैं. मुसलमान पांच पीढ़ी से वहां फूलों की खेती कर रहे हैं. उनके फूल सब मंदिरों पर उनमें बसे देवताओं पर.. राम पर चढ़ते रहे. मुसलमान वहां खड़ाऊं बनाने के पेशे में जाने कब से हैं. ऋषि मुनि, संन्यासी, राम भक्त सब मुसलमानों की बनाई खड़ाऊं पहनते रहे. सुंदर भवन मंदिर का सारा प्रबंध चार दशक तक एक मुसलमान के हाथों में रहा. 1949 में इसकी कमान संभालने वाले मुन्नू मियां 23 दिसंबर 1992 तक इसके मैनेजर रहे. जब कभी लोग कम होते और आरती के वक्त मुन्नू मियां खुद खड़ताल बजाने खड़े हो जाते तब क्या वह सोचते होंगे कि अयोध्या का सच क्या है और झूठ क्या?
अग्रवालों के बनवाए एक मंदिर की हर ईंट पर 786 लिखा है. उसके लिए सारी ईंटें राजा हुसैन अली खां ने दीं. किसे सच मानें? क्या मंदिर बनवाने वाले वे अग्रवाल सनकी थे या दीवाना था वह हुसैन अली खां जो मंदिर के लिए ईंटें दे रहा था? इस मंदिर में दुआ के लिए उठने वाले हाथ हिंदू या मुसलमान किसके हों, पहचाना ही नहीं जाता. सब आते हैं. एक नंबर 786 ने इस मंदिर को सबका बना दिया. क्या बस छह दिसंबर 1992 ही सच है! जाने कौन.
छह दिसंबर 1992 के बाद सरकार ने अयोध्या के ज्यादातर मंदिरों को अधिग्रहण में ले लिया. वहां ताले पड़ गए. आरती बंद हो गई. लोगों का आना जाना बंद हो गया. बंद दरवाजों के पीछे बैठे देवी देवता क्या कोसते होंगे कभी उन्हें जो एक गुंबद पर चढ़कर राम को छू लेने की कोशिश कर रहे थे? सूने पड़े हनुमान मंदिर या सीता रसोई में उस खून की गंध नहीं आती होगी जो राम के नाम पर अयोध्या और भारत में बहाया गया?
अयोध्या एक शहर के मसले में बदल जाने की कहानी है. अयोध्या एक तहजीब के मर जाने की कहानी है.
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले में तमनार और घरघोड़ा ब्लॉक में कोयला खदानों, वॉशरीज़ और ताप बिजली घरों में और आसपास पर्यावरण सम्बंधी उल्लंघन
तथ्यांवेषी दल की रिपोर्ट.
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2016 , नवंम्बर
रिपोर्ट का सारांश
एक दो सदस्यी फेक्टफाईंडिंग टीम ने छत्तीसगढ़ के रायगढ़ ज़िले के तमनार और घरघोड़ा ब्लॉक्स की कोयला खदानों, कोल वाशरीज़, और ताप बिजली घरों में पर्यावरण प्रदूषण, ज़मीन व आजीविकाओं की क्षति, जन स्वास्थ्य के संकट और विभिन्न उल्लंघनों तथा गैर-कानूनी कामकाज की शिकायतों की जांच की।
इस दल के सदस्य थे पर्यावरण व सामाजिक शोधकर्ता श्रीपाद धर्माधिकारी और मानसी अशर.
दल ने इन दो ब्लॉक्स में गांवों का दौरा भी किया और गांववासियों तथा अन्य हितधारियों से बातचीत की। दल ने अपना ध्यान पानी से सम्बंधित प्रभावों पर केंद्रित किया.
तमनार व घरघोड़ा ब्लॉक की कोयला खदानें गारे पेल्मा कोयला ब्लॉक का हिस्सा हैं। गारे पेल्मा कोयला ब्लॉक मांड-रायगढ़ कोयला क्षेत्र के 80 कोयला ब्लॉक्स में में सबसे बड़ा है और 16,649 हैक्टर क्षेत्रफल में फैला है। मांड-रायगढ़ कोयला क्षेत्र 1,20,000 हैक्टर से ज़्यादा क्षेत्र में फैला है और यहां अनुमानित 2,11,170 लाख टन कोयला है.
यह रिपोर्ट विभिन्न पर्यावरणीय प्रभावों, और इस इलाके में उपस्थित उद्योंगों द्वारा गैर-कानूनी कार्यों और उल्लंघनों पर केंद्रित है। इसमें इस आरोप पर भी विचार किया गया है कि नियामक अधिकारी इन उद्योगों पर कानूनन लागू पर्यावरणीय शर्तों की निगरानी करने और अनुपालन सुनिश्चित करवाने में नाकाम रहे हैं। रिपोर्ट में पारिस्थितिकी व अपने जीवन के लिए प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर आदिवासियों की आजीविका पर इन खामियों के असर का भी आकलन किया गया है।
** निष्कर्ष
अपने दौरे के दौरान दल ने देखा कि समस्त खदान व औद्योगिक क्षेत्रों के समान यहां भी इन विकासों की भारी कीमत स्थानीय लोगों को ही चुकानी पड़ी है। लोग रोज़ाना घने काले धुएं भरे कोहरे में जी रहे हैं और अपने प्राकृतिक संसाधनों और स्वास्थ्य का तेज़ी से ह्रास होते देख रहे हैं.
अधिकांश लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती, पशु पालन और वनोपज संग्रह रहा है। क्षेत्र में खनन व औद्योगिक गतिविधियों के विस्तार के कारण प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर अर्थ व्यवस्था के हर पहलू पर प्रतिकूल असर हुआ है॥
** अपने दौरे में दल ने निम्नलिखित बातें देखीं:
1. खदानों, ताप बिजली घरों और कोयला वाशरीज़ से निकट के गांवों में वायु की अत्यंत घटिया गुणवत्ता.
2. यह भी देखा गया कि उद्योगों द्वारा जल दोहन के चलते भूजल स्तर में भयानक गिरावट हुई है। दल को बताया गया कि कुछ स्थानों पर तो भूजल स्तर 30-40 फीट से गिरकर 250 फीट नीचे पहुंच गया है। तमनार ब्लॉक के 116 में से कम से कम 90 गांव गिरते भूजल स्तर से प्रभावित हुए हैं।
3. यह भी देखने में आया कि खदानों के डीवॉटरिंग असर के चलते सतही जल संसाधन में अत्यधिक कमी आई है और सतही पानी सूख गया है.
4. सतही व भूजल में बहुत अधिक प्रदूषण देखा गया। इसके प्रमुख कारण निम्नानुसार हैं:
क) खदानों, ताप बिजली घरों व कोयला वाशरीज़ से प्रदूषकों और अपजल को सीधे छोड़ा जाना। इनमें अन्य कई के अलावा डोंगामहुआ, गारे IV/1, IV/2, IV/3, IV/4, IV/5 खदानें, जिंदल ताप बिजली घर के राख स्थल और महावीर ताप बिजली घर शामिल हैं।
ख) राख के तालाबों, राख फेंकने के स्थलों, कोयले की धूल, फ्लाई एश वगैरह से लीचिंग और ओवरफ्लो के कारण सतही पानी व भूजल का संदूषण।
ग) लीचिंग व अन्य तरीकों से भूजल का संदूषण।
5. उद्योगों के लिए पानी को मोड़ने के चलते नदियों व अन्य जल राशियों का सूखना।
6. भूमिगत खदानों में आग और धुंआ नागरमुंडा गांव तथा गारे IV/1 खदान में देखे गए.
7. बिजली घरों की कोयले की धूल को कृषि भूमि तथा बस्तियों के पास फेंका गया है। इसकी वजह से जल स्रोत दूषित हुए हैं और यह संदूषण अंतत: भोजन चक्र में प्रवेश कर जाएगा.
8. कोयला खदानों का गैर-कानूनी विस्तार हुआ है और कोसमपल्ली जैसे गांवों में इसकी वजह से बस्तियों के लिए संकट पैदा हो गया है.
9. खदानों के विस्तार की वजह से विस्थापित गांववासियों का पुनर्वास न तो पर्याप्त हुआ है और न ही पूरा हुआ है.
10. उपरोक्त सबका मिला-जुला असर स्थानीय लोगों की आजीविका, स्वास्थ्य और खुशहाली पर देखा जा सकता है।
बातचीत के दौरान लोगों ने लगातार हवा और पानी की घटिया गुणवत्ता, घटते जल संसाधनों, जल स्रोतों उपयोग के काबिल न रह जाने, मछलियों की कमी तथा मृत्यु, जंगल के विनाश, कोयले की धूल मिला पानी, राखभरा कीचड़, खदान का संदूषित पानी कृषि भूमि, जलराशियों में छोड़े जाने, तथा स्थानीय व प्रांत स्तरीय प्रसासन द्वारा दोषी इकाइयों से किसी मानक या दिशानिर्देश का अनुपालन सुनिश्चित करने में नाकामी की शिकायत की।
** दल की सिफारिशें
1. सरकार को अविलंब खनन, धुलाई, ढुलाई, बिजली उत्पादन और सम्बंधित गतिविधियों के समस्त गंभीर पर्यावरणीय व सामाजिक प्रभावों के दस्तावेज़ीकरण तथा मानचित्रण की एक समग्र कवायद शुरू करनी चाहिए।
इस कार्य में स्वतंत्र, विश्वसनीय विशेषज्ञों व संस्थाओं और स्थानीय लोगों को शामिल किया जाना चाहिए।
हमने पाया है कि औद्योगिक गतिविधियां इस इलाके में भारी प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं। पर्यावरणीय शर्तों और मानकों का घोर उल्लंघन हो रहा है। जल संसाधन कम हो रहे हैं और संदूषित हो रहे हैं। अत: समग्र प्रभाव आकलन की तत्काल ज़रूरत है।
2. प्रदूषण व संदूषण के गंभीर स्तर को देखते हुए, प्रभावित इलाकों में स्वास्थ्य पर प्रभाव का आकलन भी किया जाना चाहिए।
3. विभिन्न परियोजनाओं को दी गई पर्यावरणीय स्वीकृति, स्थापना व संचालन की स्वीकृति तथा अन्य कानूनी अनुमतियों की विभिन्न शर्तों के अनुपालन व उल्लंघनों का आकलन फौरन किया जाना चाहिए।
4. जिन प्रभावों का दस्तावेज़ीकरण पहले ही किया जा चुका है उनकी रोकथाम, उन्हें कम करने या मुआवज़े देने की प्रक्रिया तत्काल शुरू की जानी चाहिए। इनमें खास तौर से अनुपचारित अपजल को स्थानीय जलराशियों तथा आसपास के पर्यावरण में छोड़ने तथा फ्लाई एश, कीचड़ जैसे ठोस कचरे को आसपास के इलाके में फेंकने जैसे मामले शामिल हैं।
5. दोषी उद्योगों तथा नियामक प्रक्रियाओं की जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए और दोषी उद्योगों तथा उद्योगों में पर्यावरणीय शर्तों की निगरानी व क्रियांवयन के लिए ज़िम्मेदार नियामक संस्थाओं के अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
6. यह देखते हुए कि खनन, वॉशरीज़ और बिजली घरों की गतिविधियां बढ़ने वाली हैं, हमारी यह भी अनुशंसा है कि वहन क्षमता और समग्र प्रभाव आकलन की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी जाए और किसी भी नई गतिविधि के बारे में निर्णय इस प्रक्रिया के परिणामों के आधार पर ही लिया जाए।
7. और अंत में, हमारी सिफारिश है कि वन व पर्यावरण मंत्रालय (MoEF) तथा CECB सारे प्रासंगिक परियोजना दस्तावेज़ (पर्यावरण आकलन प्रतिवेदन, विस्तृत परियोजना रिपोर्ट, स्वीकृतियां वगैरह) उपयुक्त व संपूर्ण रूप में सार्वजनिक रूप से, और खासकर समस्त ग्राम पंचायतों तथा स्थानीय प्रशासनिक कार्यालयों में उपलब्ध करवाएं। यह कदम प्रशासन की पारदर्शिता के लिए महत्वपूर्ण है और वास्तव में यह प्रभावित लोगों का बुनियादी अधिकार है।
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संपर्क :
रिनचिन 094 25 377349
डिग्री प्रसाद चौहान 09407628753
रिपोर्ट तैयार :
पर्यावरण व सामाजिक शोधकर्ता श्रीपाद धर्माधिकारी और मानसी अशर.
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बेला कहती हैं कि ये पहली बार नहीं कि उनको इस तरह की धमकी मिली थीं. उनके अनुसार पहले भी उनका पुतला फूंका जा चुका है, कुछ ने उन्हें 'नक्सली दलाल क़रार दिया और उनके ख़िलाफ़ पर्चे भी बांटे गए.
लेकिन 30 सालों से लोगों के अधिकारों के लिए लगातार काम करनेवाली बेला को हिंसा की इस ताज़ा धमकी ने झकझोर कर रख दिया है.
उनसे बात करने पर उनकी आवाज़ में भय, आतंक साफ़ समझ में आता है. वो अपना मकान छोड़ दूसरी जगह देख रही हैं.
पिछले कुछ महीनों में कई सामाजिक कार्यकर्ता, वकील आरोप लगाते रहे हैं कि हिंसा का डर दिखाकर प्रशासन की शह पाए कुछ लोग उन्हें छत्तीसगढ़ से बाहर भगाना चाहते हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ की सरकार इन तमाम आरोपों से इनकार करती है.
पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ माओवादी हिंसा का शिकार रहा है और उस नाम पर पूर्व की कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों पर आदिवासियों के दमन के आरोप लगते रहे हैं.
छत्तीसगढ़ भारत के उन स्थानों में है जहां सुरक्षाबलों की तादाद सबसे ज़्यादा है और यहां पत्रकारों और मानवाधिकारों की बात करने के लिए परिस्थितियां बेहद चुनौतीपूर्ण बताई जाती हैं.
इस तरह की भी ख़बरें आई थीं कि कांग्रेस की तत्कालीन सरकार ने ऑपरेशन ग्रीनहंट नाम के नक्सल विरोधी आंदोलन की रणनीति तैयार की थी, लेकिन सरकार ने इन ख़बरों को ग़लत क़रार दिया था.
लेकिन कई मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया की कहानी को इसका ताज़ा उदाहरण मानते हैं.
बेला भाटिया जैसे कार्यकर्ताओं का आरोप है कि माओवादियों से निपटने की आड़ में सुरक्षाबल और स्थानीय पुलिस लोगों के मानवाधिकार का हनन कर रहे हैं.
23 जनवरी को भी शायद ऐसा ही कुछ हुआ था. बीबीसी से बातचीत में बेला ने उस दिन की घटना का विस्तार से ज़िक्र किया.
बेला बताती हैं कि उस दिन दोपहर धीरे-धीरे भीड़ ने उनकी ओर बढ़ना शुरू किया था. भीड़ का नेतृत्व करने वाले ने अपना नाम राज बताया था.
बेला के अनुसार राज ने बेहद आक्रामक भाषा में तुरंत घर नहीं छोड़ने की सूरत में उनका घर जला देने की धमकी दी.
भीड़ में शामिल लोग एक दूसरे से केरोसीन लाने को कह रहे थे. बेला ने कलेक्टर को फ़ोन किया. पुलिस आई लेकिन घर जला देने को लेकर नारेबाज़ी चलती रही.
बेला कहती हैं, "पुलिस इसे एक प्रदर्शन के तौर पर देख रही थी लेकिन ये प्रदर्शन से बहुत ज़्यादा था."
बेला के अनुसार इस घटना के एक दिन पहले रात क़रीब डेढ़ बजे किसी ने घर के बाहरी दरवाज़े पर ज़ोरदार दस्तक दी थी.
मकान मालिक और बेला दोनो दौड़कर पहुंचे तो बाहर दो लोग खड़े थे.
स्ट्रीट लाइट नहीं होने के कारण बाहर घुप्प अंधेरा था लेकिन थोड़ा आगे बोलेरो जीप और बाइक पर कुछ लोग खड़े दिखाई दे रहे थे.
एक व्यक्ति ने कड़े अंदाज़ में मकान मालिक को बाहर बुलाने को कहा. उन्होंने मना कर दिया.
एक घंटे बाद सभी लोग वहां से चले गए. तब उनकी जान में जान आई.
हालांकि बस्तर के स्थानीय प्रशासन और फिर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने उन्हें सुरक्षा का भरोसा दिलाया है.
कौन हैं बेला भाटिया?
बेला भाटिया ने बिहार के नक्सल आंदोलन पर कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की है. वो मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ में ऑनररी प्रोफ़ेसर भी रहीं.
मानवाधिकार पर उन्होंने दो साल इराक़ और फ़लस्तीन में काम किया. दलित और आदिवासियों पर उन्होंने कई राज्यों में काम किया है.
बेला दिल्ली के सीएसडीएस में काम करती थीं जब वर्ष 2005 में सलवा जुडुम ने उनका ध्यान खींचा.
माओवादियों से निपटने के लिए हथियारों से लैंस सलवा जुदुम को सरकार की मदद से खड़ा किया गया था.
उसके कार्यकर्ताओं पर मानवाधिकार उल्लंघन के कई आरोप लगे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2011 में सलवा जुदुम को अवैध घोषित कर दिया.
हिंसा का महिलाओं पर पड़ने वाले असर को समझने के लिए बेला एक टीम के साथ छत्तीसगढ़ के कैंपों में पहुंची.
वो बताती हैं, "वहां डर और ख़तरे का माहौल था. लोग घबराए हुए थे. हमें हर जगह रोका जाता था. ऐसे हालात में सच का पता लगाना आसान नहीं था."
बेला चाहती थीं कि वो गांव में रहकर लोगों की ज़िंदगी से जुड़ें लेकिन माओवादी हिंसा, ऑपरेशन ग्रीनहंट आदि के कारण उन्हें कोंटा, जगदलपुर कोई भी घर किराए पर नहीं मिला.
उन्होंने कुछ साल मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट में गुज़ारे लेकिन वो लगातार छत्तीसगढ़ आती रहीं.
वर्ष 2013 में वो बस्तर के नारायणपुर ज़िले में एक सरकारी गेस्टहाउस में थी तब रात क़रीब 10 बजे किसी ने उनका दरवाज़ा खटखटाया.
बाहर क़रीब दस लोग खड़े थे.
देर रात इतने सारे लोगों का आना उन्हें पसंद नहीं आया लेकिन उन्हें पता था कि उनके कार्यक्षेत्र में उन्हें आधिकारिक पूछताछ और ऐसी स्थितियों का सामना करना होगा.
छत्तीसगढ़ में उनसे आधिकारिक पूछताछ की ये पहली घटना थी.
बेला बताती हैं, "अधिकारी का कहना था कि उन्हें किसी बाहरी व्यक्ति के आने की सूचना मिली है. वो मेरे सारे दस्तावेज़ों की जांच कर रहे थे. वो हर बात पर मुझ पर शक कर रहे थे और मेरी बात मानने को तैयार नहीं थे."
ये वो दिन थे जब सभी बाहरी लोगों को शक की निगाह से देखा जाता था.
बेला से ये पूछताछ आधे घंटे चली. उनसे पूछा गया कि वो कितनी दिनों नारायणपुर में रहेंगी, किससे और क्यों मिलेंगी.
बार-बार आने-जाने से बचने के लिए 2015 में बेला ने मुंबई से घर-बिस्तर समेटकर बस्तर का रुख़ किया.
अपने साथ वो अपनी क़रीबी कुतिया सोमारी को साथ लेकर आई थीं.
कभी किसी धर्मशाला में वक़्त बीता, कभी किसी दुकानदार से प्रार्थना की कि वो पास ही एक खाट बिछा दें.
वो कहती हैं, "लोग समझ जाते थे कि मेरे पास रहने की जगह नहीं है. मुझे हर जगह लोगों ने मदद की है."
एक मकान किराए पर मिला लेकिन कुछ महीने बाद अचानक मकान मालिक ने मकान ख़ाली करने को कहा.
नवंबर 2015 में परपा गांव स्थित ताज़ा मकान में पहुंची.
उन्हें बाहर निकालने की कोशिशों पर मार्च 2016 में बेला भाटिया ने एक खुला पत्र लिखा.
'मैं बस्तर नहीं छोडूंगी' नाम से इस लेख में उन्होंने लिखा, "मैंने सलवा जुडुम आंदोलन के दौरान गांव वालों पर कई अत्याचार देखे. हज़ारों लोगों के घरों को आग लगा दी गई, कई सौ आदिवासियों को मार दिया गया, उनकी बेटियों, पत्नियों के साथ बलात्कार किया गया."
बेला भाटिया बस्तर पर किताब लिख रही हैं लेकिन वो आज भी बस्तर छोड़न को तैयार नहीं हैं.
उन पर हमला करने वाले लोग कौन हैं, इस पर वो कहती हैं, "यहां बहुत कुछ फ़र्ज़ी हो रहा है. इन सबके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना हमारा कर्तव्य है. उन्हें लगता है कि हम ख़िलाफ़ हैं. फिर वो हमारे ऊपर लेबल डालते हैं, कि हम माओवादी हैं, दलाल हैं. सफ़ेदपोश नक्सली हूं. मैं तीस साल से संविधान के दायरे में काम कर रही हूं. ये एक तरह से नीति की तरह है."
बेला के मुताबिक़ वो अपना काम किसी दूसरी जगह से जारी रखेंगी.