सीआरपीएफ की गोलीबारी में बीजापुर के युवक की मौत, जांच के आदेश
राजकुमार सोनी
@CatchHindi | 13 December 2016,
सोमवार को जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह सरकार के 13 साल पूरे होने की खुशी में तारीफ कर रहे थे, तब बस्तर (बीजापुर) के एक गांव तिम्मापुर के ग्रामीण सीआरपीएफ कैंप का घेराव कर ग्रामीणों को मारे जाने के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे.
ग्रामीण गुस्से में इसलिए थे क्योंकि रविवार और सोमवार की दरमियानी रात तिम्मापुर गांव के दो युवकों पर पुलिस ने गोली चलाई.
जिसमें से एक पूनेम नंदू की मौत हो गई और दूसरे के पैर में गोली लगी जिनका इलाज अब रायपुर के अस्पताल में चल रहा है. ग्रामीणों का दावा है कि दोनों युवक अपने खेत की रखवाली करने गए थे जबकि पुलिस और सुरक्षाबल इससे इनकार कर रहे हैं.
माओवाद प्रभावित तिम्मापुर से कुछ ही दूरी पर सीआरपीएफ की 168 बटालियन तैनात है. पुलिस के अधिकारियों का कहना है कि रविवार की रात 10 बजकर 40 मिनट पर जब कैंप के जवान सर्चिंग कर वापस लौट रहे थे, तभी एक खेत के पास संदिग्ध आवाज सुनाई दी और फायरिंग शुरू हो गई.
जवाब में जवानों ने भी फायरिंग की तो दो युवक बीच में आ गए जिसमें से एक की मौत हो गई. इधर ग्रामीणों का आरोप है कि गांव और उसके आसपास किसी भी तरह की मुठभेड़ नहीं हुई बल्कि कैंप के जवानों ने जानबूझकर फायरिंग की.
फरमान नहीं मानना पड़ा महंगा?
मारा गया युवक पूनेम नंदू उसूर ब्लाक कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सुकलू पूनेम का बेटा है. सुकलू ने बताया कि उनका बेटा कभी भी माओवादियों के संपर्क में नहीं रहा बल्कि वह समय-समय पर कैंप के जवानों के लिए चाय-नाश्ते और सब्जी-भाजी की व्यवस्था करता था.
सुकलू के मुताबिक जवानों ने पूनेम से महिला माओवादियों के बारे में जानकारी जुटाने को कहा था, लेकिन पूनेम ने पुलिस का मुखबिर बनने से इन्कार किया था. इसी नाराजगी के चलते शायद उन लोगों ने मेरे बेटे को जान से मार दिया.
आदिवासियों पर नहीं थम रहे हमले
घटना की जानकारी मिलने के बाद कोंटा के कांग्रेस विधायक कवासी लखमा ने जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष विक्रम मंडावी के साथ इलाके का दौरा किया. इस दौरान सीआरपीएफ के अधिकारियों के साथ कांग्रेसियों की तीखी बहस भी हुई. सीआरपीएफ के अधिकारी परिजनों को शव नहीं दे रहे थे, तब गुस्साए ग्रामीणों ने सरकार और पुलिस विरोधी नारे लगाए.
विधायक लखमा ने आरोप लगाया कि सरकार एक सोची-समझी साजिश के तहत आदिवासियों के खात्मे में लगी हुई है. लखमा का कहना है कि सरकार पूरा बस्तर कार्पोरेट कंपनियो के हवाले करना चाहती है लेकिन आदिवासी सबसे बड़ी बाधा बने हुए हैं. मंगलवार को बीजापुर बंद का ऐलान किया गया है.
इधर बीजापुर के पुलिस अधीक्षक केएल ध्रुव का कहना है कि पुलिस के पास इस बात की पुख्ता सूचना थी कि इलाके में माओवादी किसी बड़ी घटना को अंजाम देने के फिराक में हैं. पुख्ता सूचना के बाद ही जवानों को गश्त के लिए रवाना किया गया था. हालांकि हंगामा बढ़ने पर प्रशासन से जांच का आदेश दे दिया है. जांच का दायरा सिर्फ यह जानना है कि मारे गए नौजवान सामान्य ग्रामीण थे या फ़िर माओवादी.
ध्रुव के मुताबिक जब जवान वापस लौट रहे थे तब पुलिस और माओवादियों के बीच मुठभेड़ हो गई. इस मुठभेड़ की चपेट में एक ग्रामीण युवक आ गया जिससे उसकी मौत हो गई. पुलिस अधीक्षक ने बताया कि सीआरपीएफ के जवानों ने इलाके से 7 अन्य संदिग्ध लोगों को भी पकड़ा है जिनसे पूछताछ चल रही है. अगर वे किसी तरह की माओवादी गतिविधियों में लिप्त नहीं होंगे तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा
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