Sunday, December 4, 2016

बस्तर में आना मना है -बीबीसी - सलमान रावी रिपोर्ट

बस्तर में आना मना है -बीबीसी 

  • 2 घंटे पहले
बस्तर का 'नो एंट्री ज़ोन'
दूर तक सड़क पर किसी इंसान का नाम-ओ-निशां नहीं है. गाड़ियां भी नदारद हैं. जंगलों के बीच से गुज़रती हुई यह सड़क कभी इतनी वीरान नहीं हुआ करती थी. सुकमा से कोंटा जाने वाली इस सड़क पर अब खौफ़ साफ़ झलक रहा है.
छत्तीसगढ़ के बस्तर के हर ग्रामीण इलाक़े में कम-ओ-बेश यही आलम है जहां किसी भी अनहोनी का ख़तरा हमेशा मंडराता रहता है.
मेरी गाड़ी की स्पीड ब-मुश्किल 10 से 15 किलोमीटर प्रति घंटा है क्योंकि इस सड़क का हाल बहुत बुरा है. पिछले कई सालों से यह सड़क बन नहीं पायी है.
स्थानीय अधिकारियों का आरोप है कि माओवादी छापामार बस्तर की ज़्यादातर सड़कों को बनने नहीं दे रहे हैं.
माओवादी छापामार बस्तर की ज़्यादातर सड़कों को बनने नहीं दे रहे हैं
Image captionमाओवादी छापामार बस्तर की ज़्यादातर सड़कों को बनने नहीं दे रहे हैं
मगर, कुछ हफ्ते पहले जब मैं वहां से गुज़रा तो सन्नाटा कुछ अलग कारणों से था. पास ही में स्थित ओडिशा के मलाकनगिरी में आंध्र प्रदेश पुलिस के विशेष दल -'ग्रे हाउंड' ने 28 माओवादियों को मुठभेड़ में मार गिराने का दावा किया था जिसके विरोध में इस भूमिगत संगठन ने पूरे इलाक़े में बंद का आव्हान किया था.
हर क़दम पर प्रतिबंधों का साया
क्या होता है जब एक दिन का बुलाया गया बंद दो दिनों तक चले? पूरा जन जीवन अस्त व्यस्त. हालांकि यह यहां के लिए अब एक आम बात है.
वैसे यह सब कुछ सिर्फ माओवादियों के प्रतिबंध तक ही सीमित नहीं है. यहां हर क़दम पर प्रतिबंधों का ही साया है.
माओवादियों का पर्चा
Image captionयहां हर क़दम पर प्रतिबंधों का ही साया है
प्रतिबंध तो यहां पिछले कुछ महीनों में बने 'विजिलांटे' गुट, यानी क़ानून के 'स्वयंभू रक्षक' होने का दावा करने वाले गुटों ने भी लगा रखा है. बस्तर में बाहर से आने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार इनके निशाने पर ज़्यादा रहते हैं.
हाल ही में दरभा घाटी के आगे तोंगपाल के इलाक़े में माओवादियों ने श्यामनाथ बघेल की ह्त्या कर दी जो पुलिस द्वारा कथित रूप से प्रायोजित 'टंगिया गुट' का सदस्य बताया जाता है.
नक्सल विरोधी रैली
Image captionपिछले कुछ महीनों में बने 'विजिलांटे' गुट, यानी क़ानून के 'स्वयंभू रक्षक' गुटों ने भी लगा रखा है
इस ह्त्या के विरोध में 'विजिलांटे' गुट 'अग्नि' यानी 'एक्शन ग्रुप फॉर नेशनल इंटेग्रिटी' ने भी सड़क को जाम कर रखा है.
बघेल की ह्त्या के सिलसिले में बस्तर की पुलिस ने दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेस्सर और सामजिक कार्यकर्ता नंदिनी सुन्दर, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर रचना प्रसाद और इंस्टिट्यूट आफ सोशल स्टडीज़ के वनीत तिवारी के अलावा भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के नेता संजय पराते के ख़िलाफ़ ह्त्या और 'आर्म्स एक्ट' का मामला दर्ज किया.
पुलिस का आदेश
Image captionबस्तर की पुलिस ने नंदिनी सुन्दर और सामजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया है
'अग्नि' के निशाने पर सामजिक कार्यकर्ता और बाहर से आने वाले पत्रकार हैं जिनके पुतले बीच सड़क पर जलाए जा रहे हैं.
अग्नि के फ़ारूक़ अली
ऐसा ही कुछ बस्तर के मुख्यालय जगदलपुर में विशेष पुलिस अधिकारी यानी 'एसपीओ' भी कुछ ऐसा ही कर रहे हैं.
'अग्नि' के फ़ारूक़ अली का आरोप है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं और बाहर से आने वाले पत्रकार माओवादियों का समर्थन करते हैं. इस लिए उन्हें बस्तर में घुसने नहीं दिया जाएगा.
इन 'विजिलांटे' गुटों की गतिविधियों के कारण सामजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को आने जाने में परेशानी हो रही है.
नक्सल विरोधी रैली
Image caption'अग्नि' का आरोप है कि सामाजिक कार्यकर्ताओं और बाहर से आने वाले पत्रकार माओवादियों का समर्थन करते हैं.
हथियारबंद गुट 'सलवा जुडूम' के अगुवा महेंद्र कर्मा के पुत्र और कांग्रेस के नेता छवींद्र कर्मा का आरोप है कि नक्सल विरोधी अभियान सिर्फ एक दिखावा है.
छविंद्र कर्मा, काँग्रेस नेता
उनका आरोप है कि नक्सलियों का विरोध करने के लिए बनाये गए यह संगठन लोगों को डराकर पैसों की उगाही कर रहे हैं.
गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2015 में सुरक्षा बलों और माओवादी छापामारों के बीच चल रहे संघर्ष में 1088 हिंसक वारदातें हुई हैं.
आम लोगों को ज़्यादा नुकसान
इन वारदातों में मरने वाले 168 आम लोग थे जबकि 58 सुरक्षा बलों के जवान और 89 माओवादी थे. यह आंकड़े इस बात का संकेत देते हैं कि इस संघर्ष में आम लोगों को ज़्यादा नुकसान हो रहा है.
हिंसा
Image captionसुरक्षा बलों और माओवादी छापामारों के बीच चल रहे संघर्ष में 1088 हिंसक वारदातें हुईं
सबसे ज़्यादा बुरे हालात छत्तीसगढ़ के बस्तर के पांच ज़िलों - बस्तर, कोंडागांव, नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा - में हैं.
बस्तर से लगा हुआ ओडिशा के मलकानगिरी का इलाक़ा भी इस संघर्ष का केंद्र बनता जा रहा है.
बस्तर
Image captionमाओवादी बस्तर के एक बड़े हिस्से को अपना 'लिबरेटेड ज़ोन' यानी 'मुक्त अंचल' बनाना चाहते है
बस्तर की अगर बात की जाए तो यह ऐसा लड़ाई का मैदान है जहां लकीरें साफ़ खिचीं हुईं हैं. एक तरफ सरकार तो दूसरी तरफ माओवादी छापामार. यह संघर्ष कई दशकों से चलता आ रहा है जिसमें हज़ारों लोग मारे गए हैं.
यह संघर्ष है इस इलाक़े को 'मुक्त' करने का. सरकार इसे माओवादियों से मुक्त करना चाहती है तो माओवादी इसे अपना 'लिबरेटेड ज़ोन' यानी 'मुक्त अंचल' बनाना चाहते हैं.
यूं तो पूर्वी और मध्य भारत के अलावा दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में माओवादियों का ख़ासा प्रभाव है.
नक्सल विरोधी पुलिस अभियान
Image captionसरकार इस इलाक़े में चलाये जा रहे अभियान की सफलता का भी दावा कर रही है
मगर छत्तीसगढ़ के बस्तर का इलाक़ा इस संघर्ष का एक ऐसा केंद्र रहा है जिसने कई मौतें देखीं हैं.
लगभग 4000 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाक़े के बारे में सरकार का दावा है कि लंबे अरसे से यह माओवादियों के बड़े नेताओं की शरणस्थली है.
वो इसलिए क्योंकि इस इलाक़े की सीमाएं ओडिशा, महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के जंगल के इलाक़ों से लगी हुई हैं.
पुलिस बलों का विश्राम स्थल
Image captionअधिकारी दावा कर रहे हैं कि अभियान की वजह से बड़े पैमाने पर नक्सलियों ने आत्म समर्पण करना शुरू कर दिया है.
सुरक्षा बलों का यह भी दावा है कि बस्तर और इससे लगे इलाक़ों की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि जब भी किसी राज्य में माओवादी छापामारों के ख़िलाफ़ कोई अभियान चलाया जाता है तो उन्हें इलाक़ा बदलने में आसानी होती है.
पिछले दो वर्षों से चलाये जा रहे सघन अभियान के बाद सरकार का यह भी दावा है कि उसने माओवादी छापामारों के प्रभाव को कम किया है.
सरकार इस इलाक़े में चलाये जा रहे अभियान की कामियाबी का भी दावा कर रही है. अधिकारी दावा कर रहे हैं कि अभियान की वजह से बड़े पैमाने पर नक्सलियों ने आत्म समर्पण करना शुरू कर दिया है.
मगर बड़े पैमाने पर माओवादियों का आत्मसमर्पण करवाने के सरकार के दावों पर भी विवाद छिड़ा हुआ है. इसके अलावा बस्तर में हुई कई मुठभेड़ भी विवादों में हैं.
हथियारबंद गुटों की रैली
Image captionसरकार पर यह भी आरोप लग रहे हैं कि 'सलवा जुडूम' नामक नक्सल विरोधी अभियान पर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबन्ध के बाद उसने इस तरह के कई हथियारबंद निजी गुटों को खड़ा किया है
छत्तीसगढ़ की सरकार पर यह भी आरोप लग रहे हैं कि 'सलवा जुडूम' नामक नक्सल विरोधी अभियान पर सुप्रीम कोर्ट के प्रतिबंध के बाद उसने इस तरह के कई हथियारबंद निजी गुटों को खड़ा किया है जो 'क़ानून अपने हाथों' में लेकर 'क़ानून की हिफाज़त' का दावा कर रहे हैं.
इस साल सितंबर माह में बस्तर ज़िले के बुरगुम के जंगलों के पास दो छात्रों की मुठभेड़ में हुई मौत भी पुलिस के गले की हड्डी बनी हुई है.
गांववालों का आरोप है कि सोनाकु और बिज्नो नाम के यह दो लड़के परिवार में हुई किसी की मौत की सूचना देने दंतेवाड़ा के बारसूर के इलाके से बुरगुम आये थे.
आरोप है की दोनों ही छात्र अपने रिश्तेदार की झोपड़ी में सो रहे थे जब पुलिस उन्हें उठाकर ले गयी. हालाँकि पुलिस का दावा है कि उसने नदी के पास इन दोनों को मुठभेड़ में मारा था.
उप सरपंच बुमरा राव मंडावी
Image captionबुरगुम के उपसरपंच बुमरा राम मंडावी
मामला छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में विचाराधीन है.
बुरगुम के उपसरपंच बुमरा राम मंडावी से मेरी मुलाक़ात उसी जगह हुई जहाँ पुलिस ने दोनों छात्रों को माओवादी होने के शक में मुठभेड़ में मारने का दावा किया था.
मंडावी कहते हैं कि जंगल के गावों में रहने वाले लोग माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच पिस रहे हैं. उनका कहना है कि माओवादी भी आते हैं और किसी को मुखबिर कहकर मार देते हैं जबकि पुलिस भी किसी को माओवादी बताकर मार देती है.
मैं उपसरपंच से बात कर ही रहा था कि तब तक पुलिस वालों ने मुझे रोका और कहा कि मुझे पहले थाने आना चाहिए और फिर पुलिस की अनुमति के बाद ही इलाक़े में जाना चाहिए.
बस्तर के बुरगुम थाने के एक अधिकारी
वर्ष 2011 में अविभाजित दंतेवाड़ा ज़िले के ताड़मेटला के इलाके में हुई एक घटना ने भी पुलिस की मुश्किलें और बढ़ा दीं हैं. इस घटना में जंगल में रह रहे 252 आदिवासियों के घरों में पुलिस की ओर से आगज़नी करने के आरोप हैं.
शुरू में घटना को अंजाम दिए जाने का इलज़ाम माओवादियों पर डाला गया मगर केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी जांच रिपोर्ट में कुछ और बताया.
इस रिपोर्ट में स्थनीय पुलिस बल और विशेष पुलिस अधिकारियों पर घटना को अंजाम देने की बात कही है.
दूर रखने की कवायद
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया कि जब वो घटना की जांच करने ताड़मेटला जा रहे थे तब स्थानीय पुलिस और विशेष पुलिस अधिकारियों ने उन पर भी हमला किया था.
मामला इस लिए भी तूल पकड़ रहा है क्योंकि बस्तर के पुलिस महानिरीक्षक शिवराम प्रसाद कल्लूरी उस वक़्त दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक थे.
दोनों ही मामलों में पुलिस कटघरे में है. जानकारों का आरोप है कि शायद यही कारण हैं कि बस्तर में जो भी चल रहा है, उस से उन लोगों को दूर रखा जा रहा है जो हक़ीक़त सामने ला सकते हैं.
(बीबीसी हिन्दी के

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