नोटबंदी से कितने काबू में आये नक्सली
- 30 दिसंबर 2016
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर की शाम जब नोटबंदी का फ़ैसला पूरे भारत को सुनाया था उस वक़्त उन्होंने ऐसा करने के कई कारण गिनवाए थे.
उनका कहना था कि इससे काले धन पर लगाम लगेगी, भ्रष्टाचार की रोकथाम होगी, पड़ोसी देश से संचालित चरमपंथी गतिविधियों में कमी आएगी, नक़ली नोटों की पकड़ होगी वग़ैरह-वग़ैरह.
बाद में इस लिस्ट को आगे बढ़ाते हुए अपने संसदीय क्षेत्र बनारस के दौरे के समय उन्होंने कहा कि नोटबंदी के कारण नक्सलवाद पर भी क़ाबू पाया जा रहा है, माओवादियों के पास खाने तक के पैसे नहीं हैं इसलिए वो भारी मात्रा में आत्मसमर्पण कर रहे हैं.
केंद्रीय गृहमंत्रालय के अनुसार साल 2016 में अब तक 1399 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है और ख़ासकर नोटबंदी के बाद यानी कि आठ नवंबर, 2016 के बाद कुल 564 माओवादियों ने सरेंडर किया है.
आइए नक्सल प्रभावित राज्यों के अलग-अलग आंकड़ों पर एक नज़र डालते हैं.
रायपुर से आलोक प्रकाश पुतुल कहते हैं कि छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक माओवाद प्रभावित बस्तर में हालात प्रधानमंत्री के दावों के ठीक उलटे हैं.
बस्तर के सात ज़िलों के आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि नोटबंदी के बाद कथित माओवादियों के आत्मसमर्पण की रफ़्तार को तगड़ा झटका लगा है और इस साल पहली बार ऐसा हुआ है, जब नवंबर और दिसंबर में सबसे कम आत्मसमर्पण हुए हैं.
राज्य के गृहमंत्री रामसेवक पैंकरा सफ़ाई देते हुये कहते हैं, " माओवादियों के समर्पण का कोई महीना नहीं रहता. कम या ज़्यादा का महीना नहीं रहता. जब-जब मुठभेड़ में आते हैं, जब दबाव काफी पड़ता है, उस समय विचार भी बदलते हैं और मुख्यधारा से जुड़ने की उनकी मंशा रहती है, इसलिये वो आत्मसमर्पण करते हैं."
इस साल की बात करें तो एक जनवरी से अक्तूबर 2016 तक बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, बीजापुर, कांकेर, बस्तर और कोंडागांव ज़िले में लगभग 1165 कथित माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है. यानी हर महीने 116 कथित माओवादियों ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया है.
लेकिन नोटबंदी के बाद से अब तक राज्य में माओवादी आत्मसमर्पण का आंकड़ा 30 पर जा कर अटक गया है. यानी हर महीने औसतन 116 माओवादी आत्मसमर्पण का आंकड़ा केवल 15 पर रुक गया है.
माओवादी मामलों के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार रुचिर गर्ग का कहना है कि नोटबंदी के बाद बस्तर से किसी भी बड़े आत्मसमर्पण की कोई ख़बर अब तक नहीं आई है. रुचिर गर्ग के अनुसार नोटबंदी से माओवादियों को नुकसान पहुंचा होगा लेकिन वे अपनी दैनिक ज़रुरतों को कैसे पूरा करते हैं, यह बात सबको पता है.
रुचिर गर्ग कहते हैं,"जो माओवादियों की रणनीति को जानते-समझते हैं, उन्हें पता है कि गुरिल्ला युद्ध का यह आधार ही होता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी कैसे ज़िंदा रहा जाये और कैसे अपनी लड़ाई लड़ी जाए."
लेकिन छत्तीसगढ़ में मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल के अध्यक्ष डॉक्टर लाखन सिंह कथित माओवादियों के आत्मसमर्पण पर ही सवाल खड़े करते हैं.
लाखन सिंह का आरोप है कि बस्तर में फ़र्ज़ी तरीक़े से गांव वालों को माओवादी बता कर उनका कथित आत्मसमर्पण कराया जाता है.
लाखन सिंह कहते हैं,"प्रधानमंत्री जब नोटबंदी से माओवादियों के आत्मसमर्पण को जोड़ते हैं तो यह साफ़ है कि पीएमओ में बैठे लोगों को कुछ भी अता-पता नहीं है. मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री हर समस्या का समाधान नोटबंदी को बताने की असफल कोशिश में गुमराह करने वाला यह बयान दे रहे हैं."
भुवनेश्वर से संदीप साहू
राज्य गृह विभाग से मिली सूचना के अनुसार पिछले छह महीनों में ओडिशा में 17 माओवादियों ने और 513 माओवादियों के समर्थकों ने आत्मसमर्पण किया.
ग़ौरतलब है कि 17 माओवादी कैडरों में से नवंबर के बाद केवल तीन ने आत्मसमर्पण किया. हालाँकि इन छह महीनों में आत्मसमर्पण करने वाले 513 में से 495 समर्थकों ने केवल नवंबर में आत्मसमर्पण किया.
एक जुलाई से लेकर अब तक सुरक्षा बलों ने कुल तीस माओवादियों को मार गिराया जिसमें से 30 केवल मलकानगिरी के जंगलों में 24 अक्टूबर को हुए एनकाउंटर में मारे गए.
रांची से रवि प्रकाश कहते हैं कि झारखंड में 'आपरेशन नई दिशा' के तहत इस साल 32 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. इनमें से 15 लोगों ने आठ अक्टूबर के बाद सरेंडर किया.
सरेंडर करने वाले ज्यादादतर नक्सलियों ने मीडिया से कहा कि वे मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं.
हालांकि, 8 अक्टूबर के बाद सरेंडर करने वाले 15 लोगों में से आठ के नक्सली होने पर स्पेशल ब्रांच ने ही सवाल उठाए हैं.
विशेष सचिव विभूति भूषण प्रसाद ने 18 नवंबर को अपर मुख्य सचिव को लिखी अपनी चिट्ठी में स्पष्ट लिखा है कि 17 अक्तूबर को पुलिस मुख्यालय मे सरेंडर करने वाले पश्चिमी सिंहभूम जिले के नौ कथित नक्सलियों में से आठ का कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है.
पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी 13 दिसंबर को प्रेस कांफ्रेंस कर गृहमंत्री राजनाथ सिंह से इस मामले की जांच कराने का अनुरोध किया. उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस वाहवाही लूटने के लिए भोले-भाले ग्रामीणों को नक्सली बताकर उनका सरेंडर करा रही है.
हालांकि, झारखंड के डीजीपी डी के पांडेय ने बीबीसी से कहा- 'हमने चाईबासा के डीसी और एसपी की रिपोर्ट के बाद पीएलएफआई के नौ नक्सलियों का सरेंडर कराया. लिहाज़ा, इसपर संदेह की कोई गुंजाईश नहीं है. हम इसकी जाँच क्यों कराएंगे.'
राज्य पुलिस प्रवक्ता के मुताबिक झारखंड में अभी तक कुल 114 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है. इनके पुनर्वास के लिए सरकार ने सवा तीन करोड़ रुपये से भी अधिक की राशि का चेक दिया है.
झारखंड सरकार अपनी सरेंडर पालिसी के तहद जुलाई-2010 से 'ऑपरेशन नई दिशा' चला रही है. इसमें नक्सलियों के सरेंडर करने पर उन्हें पुलिस में नौकरी तक दी जाती है. इसकी शुरुआत के बाद साल 2010 में 19, 2011 में 15, 2012 में 7, 2013 में 16, 2014 में 12, 2015 में 13 और 2016 में 32 नक्सलियों ने पुलिस के समक्ष हथियार डाले हैं.
झारखंड पुलिस ने कुल 190 फ़रार नक्सलियों की सूची भी जारी की है. इनपर 20.48 करोड़ रूपए का इनाम रखा गया है. इनमें से कुछ पर एक करोड़ रुपए तक के इनाम घोषित किए गए हैं.
सलमान रावी के अनुसार तेलंगाना में इस साल जनवरी से नवंबर तक कुल 169 माओवादियों ने सरेंडर किया है लेकिन उसके बाद से उनके आत्मसमर्पण की कोई ख़बर नहीं है.
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