" बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के 61वें परिनिर्वाण दिवस पर गुरुघासीदास विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं और कोनी ग्राम के नागरिकों का संयुक्त आयोजन . "
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* शास्त्रीय हिंदू धर्म संहिताबद्ध विषमता का संविधान है, इस सोच के रहते समाजिक न्याय और समानता संभव ही नहीं.
* अंबेडकर ने अध्ययन पर विशेष जोर इसीलिए दिया क्योंकि अध्ययन ही हमें सभी समस्याओं से मुक्ति दिला सकता है.
* डाक्टर अंबेडकर ने नृतत्वशास्त्री अध्ययन से यह साफ किया कि किस प्रकार अपने को सत्ता में बनाए रखने ब्राह्मणों ने समाज के श्रमिक हिस्सों को गुलाम बनाये रखने का षडयंत्र किया।
* अपने आर्थिक चिंतन में वे मार्क्स के नजदीक हैं, दो ही बिंदुओं पर उनके प्रमुख मतभेद हैं एक तानाशाही के प्रश्न पर, अंबेडकर किसी भी की तानाशाही के खिलाफ हैं, और राष्ट्रों के खत्म हो जाने की स्थिति को वह असंभव कल्पना कहते हैं.
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बिलासपुर 6 दिसंबर 2016
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अंबेडकर ने अपने समय को सही पहिचाना था, और यदि उनके अध्ययन और शोध को भारतीय राजनीति ने स्वीकार किया होता तो देश आज जिन विषमताओं और अव्यवस्था में घिरा है वैसा नही होता, परंतु सनातनी हिंदू धर्म जिसका आधार ही संहिता बद्ध विषमता है, वह अंबेडकर के विचारों को स्वीकारने की छोड़िये ,उसके आसपास फटकने भी तैयार नहीं था।
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उन्होंने अपने सामाजिक परिवर्तन के लक्ष्य को पाने ,और दलित उत्पीड़न से निजात पाने अंततः उन्होंने हिंदू धर्म छोड़ने का फैसला लिया और 14अक्टूबर 1956 को नागपुर में सात लाख अनुयाईयों के साथ उन्होंने बौद्ध धर्म को अपनाया।
आज कोई भी भारतीय राजनेता जब भारत से बाहर जाता है तो अपने को बुद्ध और गांधी के देश के होने का गौरवशाली बयान देता है परंतु, देश के भीतर वे वही विषमता वादी हिंदुत्व को ही लागू करते हैं जिसके कारण संसाधनों से भरपूर देश में गरीबी और भुखमरी के साथ सामाजिक उत्पीड़न अपने चरम पर है।
उक्त बातें डाक्टर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के 61वें परिनिर्वाण दिवस पर गुरुघासीदास विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं और कोनी ग्राम के नागरिकों के संयुक्त कार्यक्रम में आईं।
प्रदीपकुमार के संयोजकत्व में इसमें विभिन्न विषयों पर शोधकर्ताओं ने अपने वक्तव्य रखे। कमलेश कुमार ने अंबेडकर और 21वीं सदी पर बोलते हुए कहा कि संविधान में निहित समता समानता और बंधुत्व की भावनाओं के खिलाफ है आज की व्यवस्था, इसलिए पूरे समाज की संपत्ति चंद लोगों के हांथों सिमटते जा रही है, और सामाजिक उत्पीड़न उसी अनुपात में बढ़ रहा है, आज अंबेडकर उनके विचारों का पालन ही इस संकट से छुटकारा दिला सकता है।
ग्रामसी ने 21वीं सदी में अंबेडकर ,उनके स्त्रीवादी विचारों के संदर्भ में ,अपनी बात रखते हुए कहा कि संविधान में स्त्री अधिकारों की बात पर संविधान सभा के तमाम सनातनी हिंदू आग बबूला हो गए, अंबेडकर का समर्थन पंडित नेहरू ने किया, उसी तरह संसद में हिंदू कोड बिल पर सारे सनातनी एक तरफ हो स्त्री अधिकारों के खिलाफ थे।
वे अंबेडकर ही हैं जिनके कारण आज आधी आबादी इतने आधुनिक विचारों के कारण मुक्त है,उन्होंने गांधी पर कटाक्ष करते कहा कि आजादी के आंदोलन को जिस तरह गांधी सनातनी हिंदुत्व की ओर ले गए वही काम आज गरीबों और दलितों का नाम लेकर प्रधानमंत्री मोदी कर रहे हैं, हमें इस हिंदुत्व वादी षडयंत्र से सावधान रहने की जरूरत है।
धर्मवीर पटेल ने अंबेडकर के आर्थिक चिंतन की वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर बोलते हुए कहा कि अंबेडकर ने तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत के दरमियान भारत में बढ़ते बेरोजगारी पर अध्ययन किया और देखा कि अंग्रेज़ी सरकार की मौद्रिक नीति इसके लिए जिम्मेदार है, उन्होंने देखा कि भारतीय कपड़ा उद्योग, शिल्पी और कुटीर उद्योग दुनिया के श्रेष्ठतम उद्योगों में हैं और भारत तमाम योरोप में अपने निर्मित कपड़ा सहित अन्य वस्तुओं का निर्यातक है, अपने problem of rupee नामक शोध में अंबेडकर कहते हैं कि इंग्लैंड के बने औद्योगिक उत्पादों को बेचने अंग्रेजों ने रूपये का मूल्य पौंड की तुलना में ज्यादा रखा है ताकि भारतीय उत्पाद मंहगे हो जाएँ और भारत में अंग्रेज़ी उत्पाद सस्ते में बिकने लगे। और हुआ भी वैसा ही। हमारे बुकर ,कारीगर और कुटीर उद्योग तबाह हो गए और कभी अंग्रेजों को कर्ज़ देनेवाला देश उनका कर्जदार हो गया।
सनातनी गांधी इस पूंजीवादी साजिश के खिलाफ लड़ने की जगह देशी पूंजीपतियों के सहयोग से स्वदेशी आंदोलन चलाते हैं और शोषक राष्ट्रवाद को पैदा करते हैं। आज स्वदेशी जागरण मंच जैसे संगठन नये शोषकों को जन्म दे रहे हैं, उनका सामाजिक न्याय और समतामूलक समाज से कोई सरोकार नहीं है।इसलिए आर्थिक चिंतन के क्षेत्र में अंबेडकर ही प्रासंगिक हैं क्योंकि सामाजिक न्याय के बिना कोई भी विकास सम्मान जनक जीने के अधिकारों को नही दे सकता।
शमशेर कुमार ने अंबेडकर और उनका दर्शन में कहा कि बौद्ध धर्म को अपना कर उनहोंने दुनिया को शांति बंधुत्व और समानता का संदेश दिया। आधुनिक औद्योगिक संस्कृति के इस दौर में उन्होंने भारतीय मूल्यों को सामाजिक न्याय से जोड़ने का काम किया।
पवन कुमार ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर बोलते हुए कहा कि उन्होंने मानव शाश्त्रीय अध्ययन से लेकर कानून और अर्थशास्त्र का अध्ययन अपने कैरियर के लिए नहीं वरन् हाशिये के लोगों के उत्थान के लिए किया।
वंशनारायण ने उनके सामाजिक चिंतन के श्रोत का जिक्र करते हुए कहा कि बालक अंबेडकर स्कूल से बाहर कोने में इसलिए बैठकर पढ़ने मजबूर किया जाता है क्योंकि वह एक अश्पृश्य जाति का है, जबकि वहां मौजूद तमाम विद्यार्थियों में वह सबसे कुशाग्र बुद्धि का है, वहीं से उस बालक के भीतर इस जातिवादी हिंदू व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह पनपता है, अखिलेश सिंहेल और विनय ने भी अपनी बातें रखी और कहा कि आज हम यहाँ यह कार्यक्रम कर ले रहे हैं इसके लिए अंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान है, वर्ना मनुवादी तो हमें जला देते ।
अपने विद्वता पूर्ण उद्बोधन में लेखक चिंतक शाकिर अली ने कहा कि अंबेडकर ने अध्ययन पर विशेष जोर इसीलिए दिया क्योंकि अध्ययन ही हमें सभी समस्याओं से मुक्ति दिला सकता है। जातिवाद को समाज पर कोढ़ बताते हुए इसके खिलाफ सतत् संघर्ष का आव्हान किया .
कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के रूप में बोलते हुए सामाजिक कार्यकर्ता नरेन्द्र रामटेके ने आज के दौर में भी फैले अंधविश्वास और कुरीतियों पर तीखा प्रहार करते हुए, कार्यक्रम में महिलाओं की क्षीण उपस्थित को हिंदूवादी मानसिकता का प्रभाव बताया और कहा कि हमें उन विद्रोही संतों की पूजा नहीं उनके रास्तों पर चलने की जरूरत है। इस संदर्भ में उन्होंने कबीर रैदास रविदास तुकाराम आदि संतों के उद्दहरण देते हुए इस बात का भी उल्लेख किया कि बाबा घासीदास के जन्म को जन्माष्टमी से इतर 18 दिसंबर होने में डाक्टर बाबा साहेब अंबेडकर के शोध है। वर्ना बाबा घासीदास भी हिंदुत्व धारा में समाहित रहते और आज सतनाम पंथ नहीं बचता।
अपने उद्बोधन में कामरेड नंद कुमार कश्यप ने कहा कि शास्त्रीय हिंदू धर्म संहिताबद्ध विषमता का संविधान है, इस सोच के रहते समाजिक न्याय और समानता संभव ही नहीं। डाक्टर अंबेडकर ने नृतत्वशास्त्री अध्ययन से यह साफ किया कि किस प्रकार अपने को सत्ता में बनाए रखने ब्राह्मणों ने समाज के श्रमिक हिस्सों को गुलाम बनाये रखने का षडयंत्र किया। रिडल्स आफ हिंदुइज्म और एनीहिलेशन आफ कास्ट में उन्होंने पूरे षडयंत्र का खुलासा किया है।
अपने आर्थिक चिंतन में वे मार्क्स के नजदीक हैं, दो ही बिंदुओं पर उनके प्रमुख मतभेद हैं एक तानाशाही के प्रश्न पर, अंबेडकर किसी भी की तानाशाही के खिलाफ हैं, और राष्ट्रों के खत्म हो जाने की स्थिति को वह असंभव कल्पना कहते हैं।
प्रदीप कुमार ने अपनी अप्रकाशित कविता का पाठ किया।
गुरु घासीदास मंदिर के पुजारी ने कोनी गांव की ओर तमाम आगंतुकों के वक्तव्य को उपलब्धी बताया और कहा कि इससे हमारे ज्ञान में समृद्धि आई
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कार्यक्रम में चिंतक कवि और जनवादी लेखक संघ के छत्तीसगढ़ प्रदेश अध्यक्ष साथी कपूर वासनिक एवं छत्तीसगढ़ लोक स्वातंत्र्य संगठन (पीयूसीएल) के प्रदेश अध्यक्ष साथी डाक्टर लाखनसिंह की गरिमामयी उपस्थित रही।साथी कमलेश के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हुई।
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