सोनी सोढ़ी के साथ तिरंगा यात्रा,
नंदकश्यप
अक्सर ही यह सवाल उठा करता है कि इस समय तिरंगा यात्रा ही क्यों,9अगस्त से शुरू हुए इस यात्रा का उद्देश्य उन लोगों को आईना दिखाना है जो देशभक्ति की आड़ में आदिवासियों का दमन कर रहे हैं और नैसर्गिक खनिज जंगल और पानी बेचकर पूंजीपतियों को लाभ पहुँचा रहे हैं, इन क्षेत्रों के गावों की आबादी घट गई है, कुछ गाँव में चंद वृद्ध बचे हैं, युवा और महिलाएं भयभीत और असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, ऐसे समय में दमन और संघर्ष में तपकर सोनी सोरी बाहर आईं और आसपास के बड़े क्षेत्र में पुलिस अत्याचार पीड़ितों के साथ खड़ी हुईं, आज भी गोमपाड़ (जहां यात्रा का समापन होना है) के रास्ते के अधिकांश गांव आधारभूत सुविधाओं से वंचित हैं, उन गावों को शायद यह भी पता नहीं कि देश आजाद है और उसका एक राष्ट्रीय ध्वज भी है, दूसरी ओर माओवाद के नामपर कुछ लोग बंदूक के आतंक पर आदिवासियों पर अपनी हुकूमत कायम करने की कोशिशों में हैं,
एक लोकतांत्रिक सरकार का फर्ज होता है कि वह जंगलों में उसकी रक्षा करते बसे इन नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराकर उनके नागरिक अधिकारों की रक्षा करती, परंतु सरकार ने इन नागरिकों की तुलना में संसाधनों के दोहन को प्राथमिकता दी चाहे उसके लिए इन आदिवासी नागरिकों की बलि ही क्यों न देनी पड़े।
ऐसी परिस्थिति में सोनी सोरी की जिद कि आजादी की रोशनी इन गांवों तक ले कर जाएंगी, एक क्रांतिकारी कदम है, और आजादी के प्रतीक इस तिरंगे को गोमपाड़ में फहराना माओवादियों और सरकार दोनों के लिए चुनौती है,
सोनी सोरी का एन आई ए अदालत जगदलपुर में 8अगस्त से 20 अगस्त तक लगातार सुनवाई रखा गया गया है, उन्हें सुबह 10बजे से 5बजे तक अदालत में रहना ही है, वो सुबह यात्रा शुरू कर अदालत आ जाती हैं ,फिर शाम को यात्रा में शामिल हो जाती हैं,
सोनी सोरी इस यात्रा को अपनी सुविधानुसार आगे पीछे कर सकती थी ,परंतु उसकी जगह उन्होंने उद्देश्य की पूर्ति और आजादी के आंदोलन की प्रेरणा को तरजीह दिया और पुलिस, गुंडों के हमलों की संभावनाओं के बावजूद जान की बाजी लगा यात्रा जारी रखे हुए है।
पदयात्री एक दिन में लगभग 30-32 किलोमीटर की यात्रा करते हैं, दोपहर खुद खाना बनाते गोकुलनार में पदयात्री
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नंदकश्यप
अक्सर ही यह सवाल उठा करता है कि इस समय तिरंगा यात्रा ही क्यों,9अगस्त से शुरू हुए इस यात्रा का उद्देश्य उन लोगों को आईना दिखाना है जो देशभक्ति की आड़ में आदिवासियों का दमन कर रहे हैं और नैसर्गिक खनिज जंगल और पानी बेचकर पूंजीपतियों को लाभ पहुँचा रहे हैं, इन क्षेत्रों के गावों की आबादी घट गई है, कुछ गाँव में चंद वृद्ध बचे हैं, युवा और महिलाएं भयभीत और असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, ऐसे समय में दमन और संघर्ष में तपकर सोनी सोरी बाहर आईं और आसपास के बड़े क्षेत्र में पुलिस अत्याचार पीड़ितों के साथ खड़ी हुईं, आज भी गोमपाड़ (जहां यात्रा का समापन होना है) के रास्ते के अधिकांश गांव आधारभूत सुविधाओं से वंचित हैं, उन गावों को शायद यह भी पता नहीं कि देश आजाद है और उसका एक राष्ट्रीय ध्वज भी है, दूसरी ओर माओवाद के नामपर कुछ लोग बंदूक के आतंक पर आदिवासियों पर अपनी हुकूमत कायम करने की कोशिशों में हैं,
एक लोकतांत्रिक सरकार का फर्ज होता है कि वह जंगलों में उसकी रक्षा करते बसे इन नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराकर उनके नागरिक अधिकारों की रक्षा करती, परंतु सरकार ने इन नागरिकों की तुलना में संसाधनों के दोहन को प्राथमिकता दी चाहे उसके लिए इन आदिवासी नागरिकों की बलि ही क्यों न देनी पड़े।
ऐसी परिस्थिति में सोनी सोरी की जिद कि आजादी की रोशनी इन गांवों तक ले कर जाएंगी, एक क्रांतिकारी कदम है, और आजादी के प्रतीक इस तिरंगे को गोमपाड़ में फहराना माओवादियों और सरकार दोनों के लिए चुनौती है,
सोनी सोरी का एन आई ए अदालत जगदलपुर में 8अगस्त से 20 अगस्त तक लगातार सुनवाई रखा गया गया है, उन्हें सुबह 10बजे से 5बजे तक अदालत में रहना ही है, वो सुबह यात्रा शुरू कर अदालत आ जाती हैं ,फिर शाम को यात्रा में शामिल हो जाती हैं,
सोनी सोरी इस यात्रा को अपनी सुविधानुसार आगे पीछे कर सकती थी ,परंतु उसकी जगह उन्होंने उद्देश्य की पूर्ति और आजादी के आंदोलन की प्रेरणा को तरजीह दिया और पुलिस, गुंडों के हमलों की संभावनाओं के बावजूद जान की बाजी लगा यात्रा जारी रखे हुए है।
पदयात्री एक दिन में लगभग 30-32 किलोमीटर की यात्रा करते हैं, दोपहर खुद खाना बनाते गोकुलनार में पदयात्री
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