Saturday, August 20, 2016

उडीसा और छत्तीसगढ़ के जनसंगठनों ने किया महानदी के बचाने पर गंभीर विचार विमर्श .
*****
** महानदी बेसिन का अहम् मुद्दा उड़ीसा बनाम छत्तीसगढ़ नहीं बल्कि उद्योग बनाम कृषि है – छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के जनसंगठनों ने एक साथ होकर मुद्दे से भटकाने वाले राजनैतिक प्रयासों के विरोध में लिया संकल्प.
** छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के जन संगठनों का संयुक्त संकल्प और मांग पत्र.
** महानदी के मुद्दे पर उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की जनता के बीच में भ्रम उत्पन्न ना किया जाए और विवाद  की स्थिति को रोका जाए .
** छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के जनसंगठनो के द्वारा महानदी को बचाने के लिए महानदी बचाओ यात्रा की जाएगी .
** जन-संगठनों ने चिंता जताई की पिछले कुछ दिनों में दोनों राज्यों में राजनैतिक दलों ने महानदी के पानी के अधिकार को लेकर एक विवाद की स्थिति बना दी है.
****-

(रायपुर, 11 अगस्त 2016)
महानदी छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा की जीवन-रेखा के रूप में दोनों ही राज्यों के किसानों तथा आम नागरिकों के जीवन-यापन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण जल-स्त्रोत है | पिछले कुछ दिनों से महानदी के पानी को लेकर दोनों राज्यों में राजनैतिक दलों के द्वारा एक विवाद की स्थिति उत्पन्न की जा रही है |
इसी परिपेक्ष में महानदी के जल-उपयोग के मुख्य तथ्यों तथा उभरते राजनैतिक परिदृश्य पर विस्तृत परिचर्चा करने के लिए देश भर के सामाजिक संस्थाएं और छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के विभिन्न जनसंगठन, आज रायपुर के वृन्दावन हाल में एकत्रित हुए | इस एक दिवसीय चर्चा में फोरम फॉर पालिसी डायलाग ओन वाटर कांफ्लिक्ट्स इन इण्डिया नाम की एक संस्था ने महानदी बेसिन पर वैज्ञानिक शोध से निकले कई महत्वपूर्ण आंकड़े तथा तथ्यों को सभा के समक्ष रखा |

 चर्चा उपरांत यह निर्णय लिया गया की छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के जनसंगठनो के द्वारा महानदी को बचाने के लिए महानदी बचाओ यात्रा की जाएगी l

सभा में एकत्रित सभी जन-संगठनों ने चिंता जताई की पिछले कुछ दिनों में दोनों राज्यों में राजनैतिक दलों ने महानदी के पानी के अधिकार को लेकर एक विवाद की स्थिति बना दी है | सभा में एकत्रित सभी वक्ताओं ने एक स्वर में इन राजनैतिक प्रयासों को भ्रमात्मक बताया और मूल मुद्दों से भटकाने की कोशिश करार दिया |
महत्वपूर्ण मुद्दा यह है की दोनों ही राज्य महानदी को मात्र एक औद्योगिक लाभ के लिए एक संसाधन की दृष्टि से देख रहे हैं, जोकि दोनों ही राज्यों के किसानों और आम आदमियों के हितों के पूर्णतया विपरीत है | प्रमुख सवाल यह है कि इस द्वंद्व में नदी के मूल स्वरूप और प्राकृतिक बहाव पर क्यूँ कोई भी सरकार ध्यान नहीं दे रही है जबकि नदी के जल-स्तर में निरंतर गिरावट आ रही है | नदी पर लगातार बढ़ती बाँध परियोजनाओं से नदी का प्राकृतिक स्वरूप ही नष्ट हो रहा है | दूसरा अहम् सवाल पानी के उपयोग को लेकर है क्यूंकि दोनों ही सरकार औद्योगीकरण के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए कृत संकल्पित हैं और उन्हें खेती के लिए सिंचाई जल या साधारण जीवन-यापन के लिए जल-उपयोग की कोई चिंता नहीं हैं .
यह औद्योगिक पक्षीय नीति इसी बात से स्पष्ट हो जाती है की छत्तीसगढ़ में ऐसे 7 बैराज हैं जिनमें सिंचाई के पानी की कोई व्यवस्था ही नहीं है, इसी तरह हीराकुड डैम तथा उसके नीचे महानदी डेल्टा के भी अधिकाँश जल का उपयोग औद्योगिक परियोजनाओं के लिए ही किया जा रहा है |
  इससे नदी के तल पर खेती करने वाले अनेक किसानों का उजड़ना पड़ा है और मछुआरों की आजीविका भी नष्ट हो गयी है | तीसरा अहम् सवाल नदी में बढ़ते जल प्रदूषण का है जिससे महानदी बेसिन पे खेती, पीने के पानी एवं जल-जीवों पर ख़तरा बढ़ता जा रहा है | सभा में खेती और उधोग के जल उपयोग, नदी के पर्यावरणीय बहाव, प्रदुषण और भूजल के मुद्दों किये गए अध्ययन एवं उससे निकले निष्कर्षो पर भी व्यापक चर्चा हुई .
छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के जन संगठनों का संयुक्त संकल्प और मांग पत्र.
सभा में उपस्थित जनसंगठनों ने संयुक्त निर्णय लेते हुए महानदी के उभरते राजनीतिकरण के प्रयासों का विरोध किया | असली मुद्दा छत्तसीगढ़ बनाम उड़ीसा नहीं बल्कि महानदी के मूल स्वरूप और प्राकृतिक प्रवाह को बचाने का है | अब समय आ गया है की सरकार और सभी राजनैतिक दल जल-उपयोग की नीतियों और कृषि एवं साधारण जीवन-यापन के लिए जल-उपयोग की प्राथमिकताओं को स्पष्ट करें और स्पष्ट नदी निति को तैयार करें  l सभा में उपस्थित छत्तीसगढ़ और उड़ीसा के जन-संगठन मांग करते हैं कि  : -

1.    महानदी के मुद्दे पर उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की जनता के बीच में भ्रम उत्पन्न ना किया जाए और विवाद  की स्थिति को रोका जाए |

2.    नदी के जल उपयोग पर  स्थानीय समुदाय  को विश्वास में लेकर एक स्पष्ट और पारदर्शी निति बनायीं जाये l

3.    नदी पर कोई भी नए बाँध परियोजना से पूर्व एक सम्पूर्ण समग्र अध्ययन किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए की परियोजना से महानदी का मूल स्वरूप और जल प्रबाह प्रभावित ना हो  |

4.    वर्तमान में औद्योगिक परियोजनाओं द्वारा अवैध जल-उपयोग को तुरंत रोका जाए |

5.    औद्योगिक परियोजनाओं से उत्पन्न जल-प्रदूषण को तुरंत रोका जाए और सम्बंधित परियोजनाओं की पर्यावरण स्वीकृति को निरस्त किया जाए |

आज की इस परिचर्चा में उड़ीसा से  प्रफुल्ल सामंतरा, लिंगराज भाई, सरोज महंती सुदर्शन दास, छत्तीसगढ़ से आनंद मिश्र, नंदकुमार कश्यप, वरिष्ट पत्रकार ललित सुरजन,  डा.लाखन सिंह, परिवेश मिश्रा, आलोक शुक्ला  फोरम के सदस्य श्रीपाद धर्माधिकारी, के जे जॉय, हिमांशु कुलकर्णी, मनोज मिश्रा, नफीसा बारोट, पार्थो दास एब्राहम, एकलव्य प्रसाद सहित  कई राज्यों के प्रतिनिधि शामिल हुए l

उड़ीसा के जन संगठनों में लोक शक्ति अभियान, पश्चिम उड़ीसा किसान समन्वय समिति, उड़ीसा नदी सुरक्षा सामुख्य शामिल थे | छत्तीसगढ़ के जन संगठनों में छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन, खेती बचाओ जीवन बचाओ आन्दोलन, जन स्वास्थ्य अभियान, एकता परिषद्, प्रयोग सामाजिक विकास संसथान सहेत फोरम से जुड़े विभिन्न संगठन के लोग शामिल हुए

आलोक शुक्ला
छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन

No comments:

Post a Comment