- क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच छत्तीसगढ़
* राम्या पर मुकदमा देशद्रोह कानून का दुरूपयोग है
* देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है
* अतिअमीरों के हित में प्रचारित अंधराष्ट्रवाद का विरोध करें
** -क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच
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रायपुर, 26 अगस्त 2016. क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम) छत्तीसगढ ने एक बयान जारी कर कहा कि कन्नड़ अभिनेत्री राम्या को महज इतना कहने पर कि पाकिस्तान जहन्नुम नहीं है देशद्रोही बताना असहिष्णुता की इंतहा है।
यह एक प्रकार से झूठा देशप्रेम है जो किसी भी सामान्य असहमति से खंडित हो जाता है और उसे सहमत करने उससे तर्क करने की बजाय उसे दंडित करना जरूरी मानता है। यह सही है कि राम्या का बयान देश केे रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर के उस बयान पर सीधा चोट करता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें पाकिस्तान नही जाना है, क्योंकि वह तो नरक है, लेकिन लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों के बयान को खारिज करना न तो राष्ट्र को खारिज करना हैै और न ही देशद्रोह है।
वह महज अभिव्यक्ति है, जिनके शब्दों को देखने से उसका इरादा जाहिर हो जाता है। राम्या ने अपनी बात को स्पष्ट किया है कि वे माफी नहीं मांगेगी, क्योंकि उनका बयान उन लोगों से असहमति है जो नफरत फैला रहे हैं। जाहिर है कि पाकिस्तान के प्रति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सद्भावपूर्ण बयान देते हैं और अचानक अफगानिस्तान से लौटते समय बिना निर्धारित कार्यक्रम के लाहौर जाकर वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की माता के पैर छू आते हैं तो इससे उनका देशप्रेम खंडित नहीं होता। उनकी तारीफ की जाती है और स्वयं भाजपा के बड़े पदाधिकारी यहां तक कह देते है कि हम तो भारत-पाक महासंघ बनाने के पक्ष में हैं, क्योंकि जनसंघ के बड़े नेता दीनदयाल उपाध्याय और समाजवाद के पुरोधा डाॅ. राम मनोहर लोहिया ऐसा चाहते थे।
इस बीच जब राजनाथ सिंह और मनोहर पर्रिकर के आक्रामक बयान आ जाते हैं तो दूसरी तरह की चर्चाएं होने लगती हैं। पाकिस्तान के प्रति ऐसे नरम-नरम बयान और रिश्ते लम्बे समय से चलते आ रहे हैं और उनमें किसी एक को स्थायी नहीं समझा जाता।
कोशिश यही होना चाहिए कि जीत सद्भाव की ही हो और दोनो देशों की कटुता खत्म की जाए। एैसे में अगर कोई यह बयान दे रहा है कि पाकिस्तान नरक नहीं है तो वह कहां से देशद्रोह हो गया?
विडंबना यह है कि संघ परिवार व उनके जैसों के आक्रामक देशप्रेम और देशद्रोह के विभाजन ने कांग्रेस के बीच भी संशय पैदा कर दिया है। ऐसे में सच्चे देशप्रेमियों को माफी न मांगने पर अड़ी राम्या का साथ देना चाहिए।
भाजपा की तरह कांग्रेस भी बड़े पूंजीपतियों, बड़े जमींदारों की पार्टी है इसीलिए वह अपने द्वारा शासित राज्य कर्नाटक में तथाकथित हिंदू वोट बैंक के लिए संघ परिवार का साथ दे रही है।
कन्न्ड़ अभिनेत्री के विरूद्ध शिकायत से पहले बंगलौर में एमनेस्टी इंटरनेशनल पर भी इसी धारा के तहत मामला बनाया गया है। मामले पहले भी दर्ज होते रहे हैं लेकिन केन्द्र में एनडीए की सरकार आने के बाद ऐसे मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है। जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार सहित कई छा़त्रों को जेल भेजा गया, तो गुजरात के हार्दिक पटेल पर भी देशद्रोह का मामला बनाया गया।
यूपीए शासनकाल में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी, अरूंधति राय, विनायक सेन सहित हुर्रियत नेताओं पर भी देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2014 में बिहार, झारखंड, केरल, ओडिसा, पश्चिम बंगाल, आंधप्रदेश, हिमांचल प्रदेश और छत्तीसगढ में देशद्रोह के 47 मामले दर्ज किए गए। ज्यादातर मामलों की पृष्ठभूमि तथाकथित माओवाद है।
वस्तुतः देशद्रोह कानून औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों ने 1860 में बनाया था, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष जताने पर लागू होता था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इसमें संशोधन कर असंतोष जताने को देशद्रोह नहीं माना गया, बल्कि हिंसा भड़काने की अपील को इस कानून से जोड़ा गया। विडम्बना ही है कि सैकड़ो की संख्या में पुराने कानूनों को खत्म करने के बाद भी अंग्रेजों के जमाने के देशद्रोह कानून को न सिर्फ जतन से ढोया जा रहा है बल्कि इसका इस्तेमाल राजनीतिक हितों के लिए भी हो रहा है।
कानूनविदों, मानवाधिकारवादियों अदालतों की स्पष्ट राय के बाद भी इस कानून की परिभाषा अपनी इच्छा के अनुकूल गढ़ी जा रही है। पड़ोसी देशों के साथ हमारे रिश्ते बेहतर हों तनावहीन हो तथा सब गरीब देश मिलकर सब के लिए विकास करें। लेकिन यह न होकर केवल युद्धोन्मादी बयान दिए जा रहे हैं। हमें रोजी-रोटी और जनवाद चाहिए न कि परमाणु बम और पड़ोसी देशों से जंग। यह सब गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, मंहगाई से जनता का ध्यान हटाने के लिए कुटिल साजिश है और जो यह कर रहे हैं उनका न तो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का इतिहास है और न ही वे स्वंय देशप्रेमी हैं।
देशद्रोह कानून की समीक्षा के साथ-साथ इस बात पर भी बहस होनी चाहिए कि संविधान प्रदत्त अधिकारों को कुचलना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन, सामाजिक समरसता और ताने-बाने को तोड़ने की कोशिशों को किस श्रेणी में रखा जाए ?
कसम ने अति अमीर और सांप्रदायिक फासिस्टों द्वारा देश के काॅर्पोरेटीकरण की आड़ में तथाकथित अंधराष्ट्रवाद या झूठे राष्ट्रवाद के खिलाफ बुद्धिजीवियों से उठ खड़ा होने की तथा पर्दाफाश करने की अपील की है।
चंन्द्रिका ,संयोजक
कसम छत्तीसगढ़
* राम्या पर मुकदमा देशद्रोह कानून का दुरूपयोग है
* देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है
* अतिअमीरों के हित में प्रचारित अंधराष्ट्रवाद का विरोध करें
** -क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच
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रायपुर, 26 अगस्त 2016. क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम) छत्तीसगढ ने एक बयान जारी कर कहा कि कन्नड़ अभिनेत्री राम्या को महज इतना कहने पर कि पाकिस्तान जहन्नुम नहीं है देशद्रोही बताना असहिष्णुता की इंतहा है।
यह एक प्रकार से झूठा देशप्रेम है जो किसी भी सामान्य असहमति से खंडित हो जाता है और उसे सहमत करने उससे तर्क करने की बजाय उसे दंडित करना जरूरी मानता है। यह सही है कि राम्या का बयान देश केे रक्षामंत्री मनोहर पार्रिकर के उस बयान पर सीधा चोट करता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि उन्हें पाकिस्तान नही जाना है, क्योंकि वह तो नरक है, लेकिन लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों के बयान को खारिज करना न तो राष्ट्र को खारिज करना हैै और न ही देशद्रोह है।
वह महज अभिव्यक्ति है, जिनके शब्दों को देखने से उसका इरादा जाहिर हो जाता है। राम्या ने अपनी बात को स्पष्ट किया है कि वे माफी नहीं मांगेगी, क्योंकि उनका बयान उन लोगों से असहमति है जो नफरत फैला रहे हैं। जाहिर है कि पाकिस्तान के प्रति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सद्भावपूर्ण बयान देते हैं और अचानक अफगानिस्तान से लौटते समय बिना निर्धारित कार्यक्रम के लाहौर जाकर वहां के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की माता के पैर छू आते हैं तो इससे उनका देशप्रेम खंडित नहीं होता। उनकी तारीफ की जाती है और स्वयं भाजपा के बड़े पदाधिकारी यहां तक कह देते है कि हम तो भारत-पाक महासंघ बनाने के पक्ष में हैं, क्योंकि जनसंघ के बड़े नेता दीनदयाल उपाध्याय और समाजवाद के पुरोधा डाॅ. राम मनोहर लोहिया ऐसा चाहते थे।
इस बीच जब राजनाथ सिंह और मनोहर पर्रिकर के आक्रामक बयान आ जाते हैं तो दूसरी तरह की चर्चाएं होने लगती हैं। पाकिस्तान के प्रति ऐसे नरम-नरम बयान और रिश्ते लम्बे समय से चलते आ रहे हैं और उनमें किसी एक को स्थायी नहीं समझा जाता।
कोशिश यही होना चाहिए कि जीत सद्भाव की ही हो और दोनो देशों की कटुता खत्म की जाए। एैसे में अगर कोई यह बयान दे रहा है कि पाकिस्तान नरक नहीं है तो वह कहां से देशद्रोह हो गया?
विडंबना यह है कि संघ परिवार व उनके जैसों के आक्रामक देशप्रेम और देशद्रोह के विभाजन ने कांग्रेस के बीच भी संशय पैदा कर दिया है। ऐसे में सच्चे देशप्रेमियों को माफी न मांगने पर अड़ी राम्या का साथ देना चाहिए।
भाजपा की तरह कांग्रेस भी बड़े पूंजीपतियों, बड़े जमींदारों की पार्टी है इसीलिए वह अपने द्वारा शासित राज्य कर्नाटक में तथाकथित हिंदू वोट बैंक के लिए संघ परिवार का साथ दे रही है।
कन्न्ड़ अभिनेत्री के विरूद्ध शिकायत से पहले बंगलौर में एमनेस्टी इंटरनेशनल पर भी इसी धारा के तहत मामला बनाया गया है। मामले पहले भी दर्ज होते रहे हैं लेकिन केन्द्र में एनडीए की सरकार आने के बाद ऐसे मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है। जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार सहित कई छा़त्रों को जेल भेजा गया, तो गुजरात के हार्दिक पटेल पर भी देशद्रोह का मामला बनाया गया।
यूपीए शासनकाल में कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी, अरूंधति राय, विनायक सेन सहित हुर्रियत नेताओं पर भी देशद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया था। एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार 2014 में बिहार, झारखंड, केरल, ओडिसा, पश्चिम बंगाल, आंधप्रदेश, हिमांचल प्रदेश और छत्तीसगढ में देशद्रोह के 47 मामले दर्ज किए गए। ज्यादातर मामलों की पृष्ठभूमि तथाकथित माओवाद है।
वस्तुतः देशद्रोह कानून औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों ने 1860 में बनाया था, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष जताने पर लागू होता था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान इसमें संशोधन कर असंतोष जताने को देशद्रोह नहीं माना गया, बल्कि हिंसा भड़काने की अपील को इस कानून से जोड़ा गया। विडम्बना ही है कि सैकड़ो की संख्या में पुराने कानूनों को खत्म करने के बाद भी अंग्रेजों के जमाने के देशद्रोह कानून को न सिर्फ जतन से ढोया जा रहा है बल्कि इसका इस्तेमाल राजनीतिक हितों के लिए भी हो रहा है।
कानूनविदों, मानवाधिकारवादियों अदालतों की स्पष्ट राय के बाद भी इस कानून की परिभाषा अपनी इच्छा के अनुकूल गढ़ी जा रही है। पड़ोसी देशों के साथ हमारे रिश्ते बेहतर हों तनावहीन हो तथा सब गरीब देश मिलकर सब के लिए विकास करें। लेकिन यह न होकर केवल युद्धोन्मादी बयान दिए जा रहे हैं। हमें रोजी-रोटी और जनवाद चाहिए न कि परमाणु बम और पड़ोसी देशों से जंग। यह सब गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, मंहगाई से जनता का ध्यान हटाने के लिए कुटिल साजिश है और जो यह कर रहे हैं उनका न तो अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का इतिहास है और न ही वे स्वंय देशप्रेमी हैं।
देशद्रोह कानून की समीक्षा के साथ-साथ इस बात पर भी बहस होनी चाहिए कि संविधान प्रदत्त अधिकारों को कुचलना, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन, सामाजिक समरसता और ताने-बाने को तोड़ने की कोशिशों को किस श्रेणी में रखा जाए ?
कसम ने अति अमीर और सांप्रदायिक फासिस्टों द्वारा देश के काॅर्पोरेटीकरण की आड़ में तथाकथित अंधराष्ट्रवाद या झूठे राष्ट्रवाद के खिलाफ बुद्धिजीवियों से उठ खड़ा होने की तथा पर्दाफाश करने की अपील की है।
चंन्द्रिका ,संयोजक
कसम छत्तीसगढ़
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