दंतेवाडा से गोमपाड़ पदयात्रा : आधुनिक युग में आदिम युग और बर्बरता की झलक
**संकेत ठाकुर
बस्तर के सुकमा जिला के ग्राम गोमपाड़ से लौटकर रायपुर आये अभी 36 घंटे ही हुए है लेकिन 9 अगस्त से 15 अगस्त तक की अगस्त क्रांति – तिरंगा पदयात्रा की यादें जस की तस स्मृति पटल पर रह रहकर कौंध रही है.
खासकर तनाव भरे वो 48 घंटे जो 13 अगस्त से 15 अगस्त के मध्य हमने गुजारे.
9 अगस्त की शाम 5 बजे दंतेवाडा से बस्तर में आदिवासियों के निर्मम दमन, लोकतान्त्रिक अधिकारों के हनन, सैन्यीकरण तथा संसाधन की लूट के खिलाफ अगस्त क्रांति – तिरंगा पदयात्रा आम आदमी पार्टी की आदिवासी नेत्री सोनी सोरी जी के नेतृत्व में प्रारम्भ हुई थी. जब हम दंतेवाडा के दंतेश्वरी मंदिर स्थित नई धर्मशाला पहुंचे तभी से ही यह अहसास हो गया था कि यह यात्रा साधारण नही है. पुलिस के सादे वर्दी धारी सिपाहियों की चौकसी तत्काल प्रारम्भ हो गयी थी, जब एक बेहद साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति हमारी आपसी बातचीत की वीडियो रिकार्डिंग कर रहा था, हमने आपत्ति दर्ज की तो हमारी कथित सुरक्षा के लिए तैनात सब इंस्पेक्टर की ओर इशारा कर बताया कि उन्होंने ही वीडियो रिकार्डिंग का उसे आदेश दिया हुआ है. हमारी आपत्ति दर्ज कराने पर वीडियो रिकार्डिंग तो बंद हो गई, लेकिन रिपोर्टिंग जारी रही.
9 अगस्त से 13 अगस्त की सम्पूर्ण यात्रा का विवरण एक लाइन में यह है कि हम लगातार पुलिस की निगरानी में रहे. कभी मिडिया के नाम पर तो कभी आईबी, एलआईबी, एसआईबी के नाम पर कोई ना कोई व्यक्ति हमारी गतिविधियों की रिकार्डिंग करता रहा. यही नही हमें असहयोग करने के लिए स्थानीय निवासियों, दुकानदारों पर दबाव बना रहा. यह तब समझ आया जब हमे जिला मुख्यालय दंतेवाडा में एक अदद लाऊड स्पीकर किराये पर उपलब्ध नही हो सका. एक व्यवसायी ने तो साफ साफ कह दिया साहब पदयात्रा के लिए हम आपकी मदद नही कर सकते हमे माफ़ करें.
कुम्हाररास में 9 अगस्त को रात्रि विश्राम ग्राम के सरपंच के सहयोग से निर्माणाधीन पंचायत भवन के हाल में निर्माण श्रमिको के साथ हुआ. 10 अगस्त को सोनी जी को कोर्ट में पेशी हेतु जाना था अत: वे पदयात्रा में 2 घंटे शामिल होकर गन्जेनार से जगदलपुर के लिए निकल गयी और हम लोग नकुलनार, मैलावाडा (जहाँ गत मार्च में रोड ब्लास्ट में 7 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए थे) होते हुए हम भूसारास पहुंचे. सोनी जी देर शाम को पुन: पदयात्रा में शामिल हुई. भूसारास में सोनी सोरी जी के रिश्तेदार के घर इस शर्त के तहत ठहरे कि उनका हमसे कोई राजनैतिक सम्बन्ध नहीं है. 11 अगस्त की सुबह सोनी सोरी जी थोड़ी देर पदयात्रा करने के बाद ग्राम कोर्रा से जगदलपुर के लिए निकल गयी. हमारी पदयात्रा कोर्रा, गादीरास, होते हुए सुकमा के निकट पहुंची. सुकमा में ठहरने की व्यवस्था करने मैंने स्थानीय सम्पर्क का इस्तेमाल किया तो मुझे दो टूक शब्दों में बता दिया गया कि आप लोगों के पल पल की खबर पुलिस-प्रशासन के पास है यहाँ आपको कोई मदद नही करने के हिदायत दी गई है. सुकमा में रात्रि विश्राम की व्यवस्था कठिन हो गयी थी, इसी बीच शाम को खबर आई कि सोनी सोरी जी पर दोपहर 12 बजे के करीब कोर्ट जाते वक्त कोडेनार के नजदीक उसी स्थान पर हमले की कोशिश की गई जहाँ 20 फरवरी 16 की रात्रि उन पर केमिकल हमला हुआ था. यह सुनकर हम सब स्तब्ध रह गये. यह प्रश्न पुन: उठा कि क्या इस यात्रा को किसी भी तरह से रोकने की शासन चाल चल रहा है ? लेकिन हम सभी ने तय किया चाहे जो हो बस्तर के सच को हम बेनकाब करके रहेंगे. लेकिन अब हमे भी बेहद सावधान रहने की जरुरत महसूस हुई. हमने फिर तय किया कि हम सुकमा में ठहरने की बजाय कहीं और ठहरेंगे. सुकमा के स्थानीय पत्रकार साथी की मदद से एक सुरक्षित स्थान हमने ढूंढ निकाला. इस बार हमने सावधानी बरतते हुए इस स्थान को चिन्हांकित करने से बचा लिया. रात्रि हमारे क्रन्तिकारी पदयात्रियों की बैठक हुई हमने तय किया अब हम फोन का इस्तेमाल कम से कम करेंगे और सन्देश वाहक का प्रयोग ज्यादा करेंगे. सोनी जी को संदेश भिजवाया गया कि वे पहले जगदलपुर में कोर्ट का कार्य करें और वहीं रुक जाएँ रात्रि सफर ना करें. बिना किसी बाधा के रात्रि विश्राम कर भोर होते ही 12 अगस्त को हम सब सुकमा की ओर निकल पड़े. सुकमा में नाश्ता करने के बाद हम कोंटा की ओर निकल पड़े. एसआईबी और पुलिस के खोजी पत्रकार हमारी निगरानी करते रहे रिपोर्टिंग के बहाने.
रामाराम, केरलापाल होते हुए पूरे 38 किमी पैदल चलने के बाद पदयात्री दोंरनापाल पहुंचे. यहाँ एक राहगीर से विश्राम का पता पूछा तो उसने 1 घंटे लगातार साथ रहकर रात्रि विश्राम की व्यवस्था करने में अकल्पनीय मदद की. इस बीच खबर आई कि सोनी जी शाम को हमे ज्वाइन करना चाहती है. मैंने सन्देश भिजवाया कि वे सुबह हमें ज्वाइन करें तो बेहतर होगा और वे मान भी गई. दोरनापाल में रात्रि विश्राम के बाद 13 अगस्त की सुबह 7 बजे हमारा दल अगले पड़ाव की ओर रवाना हो गया. हम लोग हर 5 किमी में एक सीआरपीएफ केम्प को पार करते हुए एर्राबोर पहुंचे जहाँ सोनी सोरी जी ने हमे ज्वाइन किया. एर्राबोर से इंजरम होते हुए हमारा दल कोंटा पहुंचा तब तक रात्रि के 8 बज चुके थे. हमारे रुकने की व्यवस्था स्थानीय रेस्ट हाउस के बरामदे में हुई.
कोंटा में अनेक तरह की सूचनाएं मिली जिनका सार यह था कि पदयात्रियों के विरोध के लिए पूर्व सलवा जुडूम के एक नेता का आगमन शाम को ही हो चुका था और वे साहब रात्रि विश्राम के लिये रेस्ट हाउस की ही मांग एसडीएम से कर रहे थे. इस बाबत सुकमा के एसपी साहब का फोन भी आ गया था मानो जुडूम नेताजी राजकीय मेहमान हो. लेकिन गलत भी क्या पुलिस की मदद करने वाला हर व्यक्ति बस्तर में व्हिआइपी सुविधाये पाता ही है. जब सोनी जी के साथ हम सब कोंटा प्रवेश कर रहे थे तो अचानक दर्जनों की तादात में कथित प्रेस कर्मी प्रकट हो गये और लगातार कमरों से फ्लेश चमकने लगे. कोंटा की रात्रि में सन्नाटा पसरा हुआ था, देर रात पुलिस का सायरन बज रहा था, चौक-चौक पर सुरक्षा बलों का जमावड़ा था. ऐसा लगा रहा था मानो कर्फ्यू लगा हो. एक बात बड़ी स्पष्ट थी कि कोई बड़ी गडबडी हो सकती है. हम सबने देर रात बैठक की, एक एक मुद्दों पर गम्भीरता से विचार विमर्श हुआ, सम्भावित गडबड क्या क्या हो सकती है, विरोध की दशा में हमे कैसे संयम बरतना है, पुलिस-प्रशासन से चर्चा के लिए टीम बनायीं गयी आदि. कुल मिलाकर तय किया गया कि सम्भावित विरोध से बचने के लिए अल्लसुबह 5 बजे निकला जाये.
गोमपाड़ जाने का ऐसा जूनून कि हम सब रात्रि 1 बजे सोये और 4 बजे उठकर तैयार होने लगे. सुबह सुबह 6 बजे कोंटा की सडक-गली ”हिडमे को न्याय दिलाने गोमपाड़ चलो गोमपाड़ चलो” के नारों से गूंज उठा. कोंटा शहर पार करते ही सीआरपीएफ का केम्प पड़ा, जहाँ बेरियर लगाकर हमें रोक दिया गया. सीआरपीएफ के अधिकारी ने कहा आगे सडक जगह जगह से काट दी गयी है, आगे खतरा है, आप लोग नही जा सकते.... सोनी सोरी जी ने कहा हम खतरों से नही डरते, आप हमारी चिंता छोडो, हमें जाने दो. कुछ साथी तैश में आने लगे, अपने ही देश में आने जाने पर रोक टोक क्यों ? कुछ ही देर में बेरियर हटा दिया गया, हम चलते रहे, क्रांति के जनगीत गाते रहे....जंगल छोड़ब नाही, गाँव छोडब नाही... केम्प आता तो नारा शुरू हो जाता.
मुरलीगुडा के पास कोंटा क्षेत्र का सीआरपीएफ का अंतिम केम्प है, इस केम्प से जैसे ही आगे बढ़े सडक खत्म हो गई, पगडंडी प्रारम्भ हुई, उबड खाबड़ रास्ते मिले. बंडाग्राम के पास कच्ची सडक भी कटी हुई है, कही कही पर पेड़ काटकर फंसा दिया गया है. याने आगे जाने का रास्ता सिर्फ पैदल या बाइक से ही सम्भव.
बंडा गांव से आगे का ग्राम बेलपोसा है, वहां ग्रामवासियों ने हमारा जमकर स्वागत किया ख़ुशी जाहिर कि उनके क्षेत्र में पहलीबार इतने सारे शहरी लोग आये. बेलपोसा से 4 किमी आगे हमारी मंजिल गोमपाड़ थी, लेकिन साथी इतने व्याकुल थे कि बस अब पहुँच ही जाये. हम लोग पहाड़ का रास्ता चलकर गोमपाड़ 3 बजे पहुंचे. स्व. मडकम हिडमे की माँ लक्ष्मी और पिता कोसा से मुलाकात हुई. उन्होंने हमारे आवभगत की पूरी व्यवस्था कर रखी थी.
गोमपाड़ बस्तर का एक ऐसा गाव है जो होने को तो कोंटा से मात्र 25 किमी की दुरी पर स्थित है लेकिन यहाँ आदिम युग की झलक मिल जाती है. सड़क नही, बिजली नही, पानी नही, एक भी पक्का मकान नही, स्वास्थ्य केंद्र नही, स्कुल नही, राशन दुकान नही, आंगनबाड़ी नही, सरकारी कर्मचारी नही, कोई दुकान नही. लेकिन सभी 90 मकान साफ सुथरे. ढेंकी से धान कूटा जाता है, मसूर कुल्थी को दरा जाता है, इमली और मिर्ची की चटनी बनायी जाती है.
सुबह की थकान खटिया पर कुछ देर विश्राम के बाद मिटी. शाम को मिडिया के कुछ साथी रायपुर, रायगढ़, जगदलपुर से भी आ गये. शाम को अँधेरा गहरा गया, गाव में लालटेन भी नही क्योंकि मिट्टीतेल कहाँ से लाये ? शाम शाम होते खबर आई कि पुलिस के कुछ लोग गाव में घुस आये है, थोड़ी देर बाद खबर मिली की माओवादी भी आ सकते है. एक आशंका ने जन्म भी ले लिया कि अब क्या होगा ? सोनी जी के साथ गाव वालों ने बैठक की और कहा कि कल तिरंगा झंडा तो हम फहराएंगे लेकिन हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा ? पुलिस हमारे लोगों को फर्जी मुठभेड़ में मारती है, माओवादी अलग परेशान करते है, जवान बच्चो को दलम में शामिल होने दबाव डालते है, और तो और जो कल तक माओवादी थे वे अब डीआरजी पुलिस बनकर हमे ही परेशान करते है. सोनी जी के साथ साथ हम सब तनाव में आ गये, यदि कल झंडा नही फहरा तो क्या होगा ? पुलिस आखिरी दम तक हमे रोकने का प्रयास करेगी. माओवादी कुछ अलग घटना को अंजाम दे सकते है. खबर यह भी उड़ी कि एक तरफ सुरक्षा बलों की टीम आसपास है तो माओवादी भी पास कहीं ठहरे है.... लेकिन हिडमे की माँ से मिलकर हम सबकी हिम्मत बढ़ गई जब उसने कहा कल तो सिर्फ तिरंगा झंडा ही फहरेगा !
रात्रि गहरा गयी थी, मैंने कोर टीम के 4 साथियों के साथ कल के प्लानिंग पर चर्चा की, सोनी जी की सहमती बनी और हमने तय किया कि हमारी योजना कल क्या होगी.
15 अगस्त की सुबह बेहद सुहानी थी, सुबह 4 बजे मुर्गे-मुर्गियों की बांग से हम सबकी नींद खुल गई. सुबह और भी कुछ साथी, पत्रकार आदि आ गये. हम सब तैयार होकर सबसे पहले मडकम हिडमे के समाधि स्थल पर गये, स्व. हिडमे को श्रद्धांजलि दी गयी. दृश्य बेहद करूण हो गया था जब हिडमे की दादी समाधि स्थल के पास आकर फूट फूट कर रोने लगी. हम सबकी भी ऑंखें भर आई, हिडमे की माता, छोटी बहन शांति की आँखों से आंसू थम नही रहे थे. सोनी जी के साथ साथ मैं भी भावुक हो गया....
श्रद्धांजलि के पश्चात् हम सब ध्वजारोहण स्थल की ओर गये. हमे बताया गया यहाँ पर हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को माओवादी काला झंडा फहराते है. हमने तय किया कि सुबह 10 बजे तक हम ध्वजारोहण कर लें और किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति से बचते हुए जल्द से जल्द गोमपाड़ से निकल जाये. नियत समय पर ध्वजारोहण हुआ, सोनी सोरी जी ने हिडमे की छोटी बहन लक्ष्मी के साथ मिलकर तिरंगा झंडा की पूजा की, सुकल दादा ने नारियल फोड़ा, मैंने अगरबत्ती जलाई और आज़ादी के 69 साल बाद पहली बार गोमपाड़ में सोनी सोरी ने तिरंगा फहराया. ध्वजारोहण के बाद भारत माता की जय, तिरंगा झंडा अमर रहे, वन्दे मातरम के नारों से गोमपाड़ का समूचा इलाका गूंज गया.
इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने लगभग 500 लोग जिनमे गोमपाड़ और पड़ोसी ग्राम के आदिवासियों सहित बड़ी संख्या में सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता, मिडिया कर्मी और सादे वेश में सुरक्षा कर्मी शामिल हुए.
सोनी सोरी ने उद्बोधन गोंडी में किया, हिडमे की माँ लक्ष्मी ने ओजस्वी भाषण गोंडी में दिया, पत्रकार कमल शुक्ल ने क्रांति गीत गाया. इस बीच एक व्यक्ति ने एकाएक खबर दिया कि कुछ ही देर में 100-150 लोग आने वाले है और वे काला झंडा फहराएंगे. यह सुनकर मैं चौंक गया, अब क्या करें ? उस व्यक्ति से पूछताछ की गई तो उसने बताया कि वह पड़ोस के गाव का रहने वाला है और उसने गोमपाड़ आते आते कुछ लोगों को खाना बनाते देखा और सुना कि वे लोग खाना खाकर गोमपाड़ जायेंगे. हम सबने किसी भी अप्रिय स्थिति का सामना करने का निश्चय किया. इस दौरान सोनी जी को खबर दी गयी कि आसपास के 10-15 गावों के लोग अपनी व्यथा सुनाने आना चाहते है और हम सब वही गाव में उनका इंतजार करें. तब तक 11.30 बज चुका था. कोंटा शाम तक पहुचने के लिहाज से हमे निकल जाना था लेकिन हमने गोमपाड़ में कुछ और देर तक रुकने का निर्णय लिया.....
इस बीच यह खबर भी तेजी से फैली कि माओवादी आने वाले है, कुछ ने कहा उन्होंने सशस्त्र लोगो को आते देखा है, वे माओवादी है या सुरक्षा कर्मी मालूम नही ? याने आशंका बढ़ गयी, कुछ अनहोनी ना हो जाये ? कहीं यह पुलिस की तो कोई चाल नही ? कही यह माओवादियो की चाल तो नही ?
दोपहर 12 बजे तक उसी मैदान में फिर से भीड़ जुट गई. इस बार पहले से अधिक संख्या में लोग आये. गोमपाड़ के चारो दिशाओं से आदिवासी आते दिखे. सोनी सोरी जी के साथ हम कुछ अन्य साथी उनसे मिलने गये.
एक बुजुर्ग व्यक्ति ने अपनी व्यथा सुनाई कि उसका जवान बेटा पिछले 2 साल से लापता है !
एक महिला ने अश्रुपुरित नेत्रों से बताया कि उसके पति को 4 साल पहले पुलिस उठाकर ले गई लेकिन आज तक उसका पता नही चला !
एक अन्य महिला ने तस्वीर दिखाई कि 2009 से उसके गाव के पति-पत्नी का जोड़ा लापता है !
बेलपोसा का रमेश कोंटा में ग्यारहवी क्लास के आगे नही पढ़ सका क्योंकि पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था बिना किसी जुर्म के !
एक एक कर अनेक व्यक्तियों ने जो व्यथा सुनाई वह रोंगटे खड़ी कर देने वाली है. वे सब एक ही बात कर रहे थे. वे पुलिस से डरते है, पुलिस उनके गाव आती है और उनके घर का सामान लूटकर ले जाती है, बर्तन, गहना, पैसा से लेकर मुर्गी तक ! माओवादी आते है और उन्हें मारते है. वे जाएँ तो जाये कहाँ ?
यह सब सुनकर हम सब सन्न रह गये. हिडमे की माँ लक्ष्मी का कहना था – “सरकार हमे आखिर कब इन्सान मानेगी ? हमारे साथ जानवरों जैसा बरताव् कब खत्म होगा ? आखिर कब तक माओवादी बताकर हमारे लोगो को मारा जाता रहेगा ? हमारे गाव में कोई कुत्ता अगर पागल हो जाता है तो भी उसके मालिक से पूछकर उसे मारा जाता है लेकिन यह सरकार तो हमारे लोगो को बस मारे जा रही है. अब तिरंगा हाथ में लिया है मैंने, अब माओवादियो और सरकार इन दोनों से मुकाबला अब मै तिरंगे के सहारे ही करूंगी.”
गोमपाड़ से यू तो लौट आया हूँ लेकिन हिडमे की माँ के शब्द और बहन शांति, लक्ष्मी की कातर आँखे 180 किमी की लम्बी पदयात्रा के थकान बाद भी मुझे सोने नही देती है. लगता है सरकार ने ठान रखा है आदिवासियों को आदिम युग में जीने देने के लिए, मरने के लिए. तभी तो बार बार मुझे लगता है जैसे गोमपाड़ जाकर मैंने आदिम युग की झलक देख ली हो जहाँ बर्बरता चरम पर है पुलिस सुरक्षा के नाम पर !
*-***
ताकि सनद रहे वक्त जरूरत काम आये
***
अगस्त क्रांति –तिरंगा यात्रा
दन्तेवाड़ा से गोमपाड 9 से 15 अगस्त
में शामिल पदयात्री.
स्थानीय जनसमूह के अलावा
***
१. सोनी सोरी, गीदम २. सुकल प्रसाद नाग, मंतेमुर गीदम ३. कवासी हिडमे, गीदम ४. लिंगाराम कोड़ोपी, गीदम ५. रश्मि ठाकुर रिंकी, समेली, दंतेवाड़ा ६. संजय पन्त, दंतेवाडा ७. तिरुपति येलम, बीजापुर ८.डॉ. संकेत ठाकुर, रायपुर ९. सत्येन बोरदोलोई, मुंबई १०. मलय तिवारी, कोलकाता ११. अतीन्द्रियो, कांकेर १२. एपी जोसी, भिलाई १३. अली मोहम्मद माज़, नयी दिल्ली १४. प्रियंका शांडिल्य, सरगुजा १५. प्रभात सिंह, दंतेवाडा १६. अनुपम रॉय, कोलकाता १७. अफरोज आलम, नई दिल्ली १८. सिराजुद्दीन, नई दिल्ली १९. ईश्वर निर्मलकर, दल्ली राजहरा २०. बसंत रावटे, दल्ली राजहरा २१. कमलेश ठाकुर, दल्ली राजहरा २२. शत्रुघन साहू, दल्ली राजहरा २३.महाजन, दल्ली राजहरा २४. नंदू, दल्ली राजहरा २५. डॉ. गोल्डी जार्ज, रायपुर २६. दुर्गा झा, रायपुर २७. नागेश बंछोर, रायपुर २८. कमल शुक्ल, कांकेर २९. तामेश्वर सिन्हा, बस्तर ३०. निकिता अग्रवाल नई दिल्ली ३१. तन्मय, बिहार ३२. विजेंद्र तिवारी, भिलाई ३३. वासुकी प्रसाद उन्मत, भिलाई ३४. रोहित आर्य, जगदलपुर ३५. समीर खान, जगदलपुर ३६. विवेक शर्मा, जगदलपुर ३७. जगमोहन बघेल, बस्तर ३८. गद्रे जी, बस्तर ३९. कलादास डहरिया, भिलाई ४०. डॉ लाखन सिंह, बिलासपुर ४१. आनंद मिश्र, बिलासपुर ४२. नन्द कश्यप, बिलासपुर ४३. आलोक शुक्ला, रायपुर ४४. श्रेया, रायपुर ४५. शालिनी गेरा, बिलासपुर ४६. बेला भाटिया, जगदलपुर ४७. परमेश रजा, जगदलपुर ४८. भावेश सत्पथी, जगदलपुर ४९. शिल्पी लकड़ा, जगदलपुर ५०. अर्चना गुप्ता, जगदलपुर ५१. अरविन्द गुप्ता, दंतेवाड़ा ५२. पप्पू गुप्ता, दंतेवाड़ा ५३. जनकलाल ठाकुर, डोंडी लोहारा ५४. प्रसाद राव भिलाई, ५५. प्रकाश झारिया, रायपुर
56 दंतिराम पोयम बस्तर 57 लक्षमण वेको बस्तर 58 अनंतराम भद्रे बस्तर 59 शोभा राघवन दिल्ली 60 अरुंधति दिल्ली मेकपीस एम्नेस्टी इंटरनेशनल बंगलौर 61 to 63 चंद्रशेखरन गांधी आश्रम चिंतुर और उनके चार साथी भी शामिल हुए , जिनके नाम नहीं मालूम 64 : अरुणा चंद्रशेखर 65 बंग 66 सौरा यादव व् उनके साथी 67 उमाप्रकाश ओझा आप
67 पवन चन्द्राकर 67अरुणा चंद्रशेखर एमनेस्टी इंटरनेशनल 68 to 74 निरा, उर्मीला, रमाकांत ,भिलाई, संगिता ,चुन्नी रोशन
:75 निजाम भिलाई 76 .अमरनाथ पाण्डेय
****
**संकेत ठाकुर
बस्तर के सुकमा जिला के ग्राम गोमपाड़ से लौटकर रायपुर आये अभी 36 घंटे ही हुए है लेकिन 9 अगस्त से 15 अगस्त तक की अगस्त क्रांति – तिरंगा पदयात्रा की यादें जस की तस स्मृति पटल पर रह रहकर कौंध रही है.
खासकर तनाव भरे वो 48 घंटे जो 13 अगस्त से 15 अगस्त के मध्य हमने गुजारे.
9 अगस्त की शाम 5 बजे दंतेवाडा से बस्तर में आदिवासियों के निर्मम दमन, लोकतान्त्रिक अधिकारों के हनन, सैन्यीकरण तथा संसाधन की लूट के खिलाफ अगस्त क्रांति – तिरंगा पदयात्रा आम आदमी पार्टी की आदिवासी नेत्री सोनी सोरी जी के नेतृत्व में प्रारम्भ हुई थी. जब हम दंतेवाडा के दंतेश्वरी मंदिर स्थित नई धर्मशाला पहुंचे तभी से ही यह अहसास हो गया था कि यह यात्रा साधारण नही है. पुलिस के सादे वर्दी धारी सिपाहियों की चौकसी तत्काल प्रारम्भ हो गयी थी, जब एक बेहद साधारण सा दिखने वाला व्यक्ति हमारी आपसी बातचीत की वीडियो रिकार्डिंग कर रहा था, हमने आपत्ति दर्ज की तो हमारी कथित सुरक्षा के लिए तैनात सब इंस्पेक्टर की ओर इशारा कर बताया कि उन्होंने ही वीडियो रिकार्डिंग का उसे आदेश दिया हुआ है. हमारी आपत्ति दर्ज कराने पर वीडियो रिकार्डिंग तो बंद हो गई, लेकिन रिपोर्टिंग जारी रही.
9 अगस्त से 13 अगस्त की सम्पूर्ण यात्रा का विवरण एक लाइन में यह है कि हम लगातार पुलिस की निगरानी में रहे. कभी मिडिया के नाम पर तो कभी आईबी, एलआईबी, एसआईबी के नाम पर कोई ना कोई व्यक्ति हमारी गतिविधियों की रिकार्डिंग करता रहा. यही नही हमें असहयोग करने के लिए स्थानीय निवासियों, दुकानदारों पर दबाव बना रहा. यह तब समझ आया जब हमे जिला मुख्यालय दंतेवाडा में एक अदद लाऊड स्पीकर किराये पर उपलब्ध नही हो सका. एक व्यवसायी ने तो साफ साफ कह दिया साहब पदयात्रा के लिए हम आपकी मदद नही कर सकते हमे माफ़ करें.
कुम्हाररास में 9 अगस्त को रात्रि विश्राम ग्राम के सरपंच के सहयोग से निर्माणाधीन पंचायत भवन के हाल में निर्माण श्रमिको के साथ हुआ. 10 अगस्त को सोनी जी को कोर्ट में पेशी हेतु जाना था अत: वे पदयात्रा में 2 घंटे शामिल होकर गन्जेनार से जगदलपुर के लिए निकल गयी और हम लोग नकुलनार, मैलावाडा (जहाँ गत मार्च में रोड ब्लास्ट में 7 सीआरपीएफ के जवान शहीद हुए थे) होते हुए हम भूसारास पहुंचे. सोनी जी देर शाम को पुन: पदयात्रा में शामिल हुई. भूसारास में सोनी सोरी जी के रिश्तेदार के घर इस शर्त के तहत ठहरे कि उनका हमसे कोई राजनैतिक सम्बन्ध नहीं है. 11 अगस्त की सुबह सोनी सोरी जी थोड़ी देर पदयात्रा करने के बाद ग्राम कोर्रा से जगदलपुर के लिए निकल गयी. हमारी पदयात्रा कोर्रा, गादीरास, होते हुए सुकमा के निकट पहुंची. सुकमा में ठहरने की व्यवस्था करने मैंने स्थानीय सम्पर्क का इस्तेमाल किया तो मुझे दो टूक शब्दों में बता दिया गया कि आप लोगों के पल पल की खबर पुलिस-प्रशासन के पास है यहाँ आपको कोई मदद नही करने के हिदायत दी गई है. सुकमा में रात्रि विश्राम की व्यवस्था कठिन हो गयी थी, इसी बीच शाम को खबर आई कि सोनी सोरी जी पर दोपहर 12 बजे के करीब कोर्ट जाते वक्त कोडेनार के नजदीक उसी स्थान पर हमले की कोशिश की गई जहाँ 20 फरवरी 16 की रात्रि उन पर केमिकल हमला हुआ था. यह सुनकर हम सब स्तब्ध रह गये. यह प्रश्न पुन: उठा कि क्या इस यात्रा को किसी भी तरह से रोकने की शासन चाल चल रहा है ? लेकिन हम सभी ने तय किया चाहे जो हो बस्तर के सच को हम बेनकाब करके रहेंगे. लेकिन अब हमे भी बेहद सावधान रहने की जरुरत महसूस हुई. हमने फिर तय किया कि हम सुकमा में ठहरने की बजाय कहीं और ठहरेंगे. सुकमा के स्थानीय पत्रकार साथी की मदद से एक सुरक्षित स्थान हमने ढूंढ निकाला. इस बार हमने सावधानी बरतते हुए इस स्थान को चिन्हांकित करने से बचा लिया. रात्रि हमारे क्रन्तिकारी पदयात्रियों की बैठक हुई हमने तय किया अब हम फोन का इस्तेमाल कम से कम करेंगे और सन्देश वाहक का प्रयोग ज्यादा करेंगे. सोनी जी को संदेश भिजवाया गया कि वे पहले जगदलपुर में कोर्ट का कार्य करें और वहीं रुक जाएँ रात्रि सफर ना करें. बिना किसी बाधा के रात्रि विश्राम कर भोर होते ही 12 अगस्त को हम सब सुकमा की ओर निकल पड़े. सुकमा में नाश्ता करने के बाद हम कोंटा की ओर निकल पड़े. एसआईबी और पुलिस के खोजी पत्रकार हमारी निगरानी करते रहे रिपोर्टिंग के बहाने.
रामाराम, केरलापाल होते हुए पूरे 38 किमी पैदल चलने के बाद पदयात्री दोंरनापाल पहुंचे. यहाँ एक राहगीर से विश्राम का पता पूछा तो उसने 1 घंटे लगातार साथ रहकर रात्रि विश्राम की व्यवस्था करने में अकल्पनीय मदद की. इस बीच खबर आई कि सोनी जी शाम को हमे ज्वाइन करना चाहती है. मैंने सन्देश भिजवाया कि वे सुबह हमें ज्वाइन करें तो बेहतर होगा और वे मान भी गई. दोरनापाल में रात्रि विश्राम के बाद 13 अगस्त की सुबह 7 बजे हमारा दल अगले पड़ाव की ओर रवाना हो गया. हम लोग हर 5 किमी में एक सीआरपीएफ केम्प को पार करते हुए एर्राबोर पहुंचे जहाँ सोनी सोरी जी ने हमे ज्वाइन किया. एर्राबोर से इंजरम होते हुए हमारा दल कोंटा पहुंचा तब तक रात्रि के 8 बज चुके थे. हमारे रुकने की व्यवस्था स्थानीय रेस्ट हाउस के बरामदे में हुई.
कोंटा में अनेक तरह की सूचनाएं मिली जिनका सार यह था कि पदयात्रियों के विरोध के लिए पूर्व सलवा जुडूम के एक नेता का आगमन शाम को ही हो चुका था और वे साहब रात्रि विश्राम के लिये रेस्ट हाउस की ही मांग एसडीएम से कर रहे थे. इस बाबत सुकमा के एसपी साहब का फोन भी आ गया था मानो जुडूम नेताजी राजकीय मेहमान हो. लेकिन गलत भी क्या पुलिस की मदद करने वाला हर व्यक्ति बस्तर में व्हिआइपी सुविधाये पाता ही है. जब सोनी जी के साथ हम सब कोंटा प्रवेश कर रहे थे तो अचानक दर्जनों की तादात में कथित प्रेस कर्मी प्रकट हो गये और लगातार कमरों से फ्लेश चमकने लगे. कोंटा की रात्रि में सन्नाटा पसरा हुआ था, देर रात पुलिस का सायरन बज रहा था, चौक-चौक पर सुरक्षा बलों का जमावड़ा था. ऐसा लगा रहा था मानो कर्फ्यू लगा हो. एक बात बड़ी स्पष्ट थी कि कोई बड़ी गडबडी हो सकती है. हम सबने देर रात बैठक की, एक एक मुद्दों पर गम्भीरता से विचार विमर्श हुआ, सम्भावित गडबड क्या क्या हो सकती है, विरोध की दशा में हमे कैसे संयम बरतना है, पुलिस-प्रशासन से चर्चा के लिए टीम बनायीं गयी आदि. कुल मिलाकर तय किया गया कि सम्भावित विरोध से बचने के लिए अल्लसुबह 5 बजे निकला जाये.
गोमपाड़ जाने का ऐसा जूनून कि हम सब रात्रि 1 बजे सोये और 4 बजे उठकर तैयार होने लगे. सुबह सुबह 6 बजे कोंटा की सडक-गली ”हिडमे को न्याय दिलाने गोमपाड़ चलो गोमपाड़ चलो” के नारों से गूंज उठा. कोंटा शहर पार करते ही सीआरपीएफ का केम्प पड़ा, जहाँ बेरियर लगाकर हमें रोक दिया गया. सीआरपीएफ के अधिकारी ने कहा आगे सडक जगह जगह से काट दी गयी है, आगे खतरा है, आप लोग नही जा सकते.... सोनी सोरी जी ने कहा हम खतरों से नही डरते, आप हमारी चिंता छोडो, हमें जाने दो. कुछ साथी तैश में आने लगे, अपने ही देश में आने जाने पर रोक टोक क्यों ? कुछ ही देर में बेरियर हटा दिया गया, हम चलते रहे, क्रांति के जनगीत गाते रहे....जंगल छोड़ब नाही, गाँव छोडब नाही... केम्प आता तो नारा शुरू हो जाता.
मुरलीगुडा के पास कोंटा क्षेत्र का सीआरपीएफ का अंतिम केम्प है, इस केम्प से जैसे ही आगे बढ़े सडक खत्म हो गई, पगडंडी प्रारम्भ हुई, उबड खाबड़ रास्ते मिले. बंडाग्राम के पास कच्ची सडक भी कटी हुई है, कही कही पर पेड़ काटकर फंसा दिया गया है. याने आगे जाने का रास्ता सिर्फ पैदल या बाइक से ही सम्भव.
बंडा गांव से आगे का ग्राम बेलपोसा है, वहां ग्रामवासियों ने हमारा जमकर स्वागत किया ख़ुशी जाहिर कि उनके क्षेत्र में पहलीबार इतने सारे शहरी लोग आये. बेलपोसा से 4 किमी आगे हमारी मंजिल गोमपाड़ थी, लेकिन साथी इतने व्याकुल थे कि बस अब पहुँच ही जाये. हम लोग पहाड़ का रास्ता चलकर गोमपाड़ 3 बजे पहुंचे. स्व. मडकम हिडमे की माँ लक्ष्मी और पिता कोसा से मुलाकात हुई. उन्होंने हमारे आवभगत की पूरी व्यवस्था कर रखी थी.
गोमपाड़ बस्तर का एक ऐसा गाव है जो होने को तो कोंटा से मात्र 25 किमी की दुरी पर स्थित है लेकिन यहाँ आदिम युग की झलक मिल जाती है. सड़क नही, बिजली नही, पानी नही, एक भी पक्का मकान नही, स्वास्थ्य केंद्र नही, स्कुल नही, राशन दुकान नही, आंगनबाड़ी नही, सरकारी कर्मचारी नही, कोई दुकान नही. लेकिन सभी 90 मकान साफ सुथरे. ढेंकी से धान कूटा जाता है, मसूर कुल्थी को दरा जाता है, इमली और मिर्ची की चटनी बनायी जाती है.
सुबह की थकान खटिया पर कुछ देर विश्राम के बाद मिटी. शाम को मिडिया के कुछ साथी रायपुर, रायगढ़, जगदलपुर से भी आ गये. शाम को अँधेरा गहरा गया, गाव में लालटेन भी नही क्योंकि मिट्टीतेल कहाँ से लाये ? शाम शाम होते खबर आई कि पुलिस के कुछ लोग गाव में घुस आये है, थोड़ी देर बाद खबर मिली की माओवादी भी आ सकते है. एक आशंका ने जन्म भी ले लिया कि अब क्या होगा ? सोनी जी के साथ गाव वालों ने बैठक की और कहा कि कल तिरंगा झंडा तो हम फहराएंगे लेकिन हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा ? पुलिस हमारे लोगों को फर्जी मुठभेड़ में मारती है, माओवादी अलग परेशान करते है, जवान बच्चो को दलम में शामिल होने दबाव डालते है, और तो और जो कल तक माओवादी थे वे अब डीआरजी पुलिस बनकर हमे ही परेशान करते है. सोनी जी के साथ साथ हम सब तनाव में आ गये, यदि कल झंडा नही फहरा तो क्या होगा ? पुलिस आखिरी दम तक हमे रोकने का प्रयास करेगी. माओवादी कुछ अलग घटना को अंजाम दे सकते है. खबर यह भी उड़ी कि एक तरफ सुरक्षा बलों की टीम आसपास है तो माओवादी भी पास कहीं ठहरे है.... लेकिन हिडमे की माँ से मिलकर हम सबकी हिम्मत बढ़ गई जब उसने कहा कल तो सिर्फ तिरंगा झंडा ही फहरेगा !
रात्रि गहरा गयी थी, मैंने कोर टीम के 4 साथियों के साथ कल के प्लानिंग पर चर्चा की, सोनी जी की सहमती बनी और हमने तय किया कि हमारी योजना कल क्या होगी.
15 अगस्त की सुबह बेहद सुहानी थी, सुबह 4 बजे मुर्गे-मुर्गियों की बांग से हम सबकी नींद खुल गई. सुबह और भी कुछ साथी, पत्रकार आदि आ गये. हम सब तैयार होकर सबसे पहले मडकम हिडमे के समाधि स्थल पर गये, स्व. हिडमे को श्रद्धांजलि दी गयी. दृश्य बेहद करूण हो गया था जब हिडमे की दादी समाधि स्थल के पास आकर फूट फूट कर रोने लगी. हम सबकी भी ऑंखें भर आई, हिडमे की माता, छोटी बहन शांति की आँखों से आंसू थम नही रहे थे. सोनी जी के साथ साथ मैं भी भावुक हो गया....
श्रद्धांजलि के पश्चात् हम सब ध्वजारोहण स्थल की ओर गये. हमे बताया गया यहाँ पर हर 15 अगस्त और 26 जनवरी को माओवादी काला झंडा फहराते है. हमने तय किया कि सुबह 10 बजे तक हम ध्वजारोहण कर लें और किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति से बचते हुए जल्द से जल्द गोमपाड़ से निकल जाये. नियत समय पर ध्वजारोहण हुआ, सोनी सोरी जी ने हिडमे की छोटी बहन लक्ष्मी के साथ मिलकर तिरंगा झंडा की पूजा की, सुकल दादा ने नारियल फोड़ा, मैंने अगरबत्ती जलाई और आज़ादी के 69 साल बाद पहली बार गोमपाड़ में सोनी सोरी ने तिरंगा फहराया. ध्वजारोहण के बाद भारत माता की जय, तिरंगा झंडा अमर रहे, वन्दे मातरम के नारों से गोमपाड़ का समूचा इलाका गूंज गया.
इस ऐतिहासिक क्षण के साक्षी बने लगभग 500 लोग जिनमे गोमपाड़ और पड़ोसी ग्राम के आदिवासियों सहित बड़ी संख्या में सामाजिक-राजनैतिक कार्यकर्ता, मिडिया कर्मी और सादे वेश में सुरक्षा कर्मी शामिल हुए.
सोनी सोरी ने उद्बोधन गोंडी में किया, हिडमे की माँ लक्ष्मी ने ओजस्वी भाषण गोंडी में दिया, पत्रकार कमल शुक्ल ने क्रांति गीत गाया. इस बीच एक व्यक्ति ने एकाएक खबर दिया कि कुछ ही देर में 100-150 लोग आने वाले है और वे काला झंडा फहराएंगे. यह सुनकर मैं चौंक गया, अब क्या करें ? उस व्यक्ति से पूछताछ की गई तो उसने बताया कि वह पड़ोस के गाव का रहने वाला है और उसने गोमपाड़ आते आते कुछ लोगों को खाना बनाते देखा और सुना कि वे लोग खाना खाकर गोमपाड़ जायेंगे. हम सबने किसी भी अप्रिय स्थिति का सामना करने का निश्चय किया. इस दौरान सोनी जी को खबर दी गयी कि आसपास के 10-15 गावों के लोग अपनी व्यथा सुनाने आना चाहते है और हम सब वही गाव में उनका इंतजार करें. तब तक 11.30 बज चुका था. कोंटा शाम तक पहुचने के लिहाज से हमे निकल जाना था लेकिन हमने गोमपाड़ में कुछ और देर तक रुकने का निर्णय लिया.....
इस बीच यह खबर भी तेजी से फैली कि माओवादी आने वाले है, कुछ ने कहा उन्होंने सशस्त्र लोगो को आते देखा है, वे माओवादी है या सुरक्षा कर्मी मालूम नही ? याने आशंका बढ़ गयी, कुछ अनहोनी ना हो जाये ? कहीं यह पुलिस की तो कोई चाल नही ? कही यह माओवादियो की चाल तो नही ?
दोपहर 12 बजे तक उसी मैदान में फिर से भीड़ जुट गई. इस बार पहले से अधिक संख्या में लोग आये. गोमपाड़ के चारो दिशाओं से आदिवासी आते दिखे. सोनी सोरी जी के साथ हम कुछ अन्य साथी उनसे मिलने गये.
एक बुजुर्ग व्यक्ति ने अपनी व्यथा सुनाई कि उसका जवान बेटा पिछले 2 साल से लापता है !
एक महिला ने अश्रुपुरित नेत्रों से बताया कि उसके पति को 4 साल पहले पुलिस उठाकर ले गई लेकिन आज तक उसका पता नही चला !
एक अन्य महिला ने तस्वीर दिखाई कि 2009 से उसके गाव के पति-पत्नी का जोड़ा लापता है !
बेलपोसा का रमेश कोंटा में ग्यारहवी क्लास के आगे नही पढ़ सका क्योंकि पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था बिना किसी जुर्म के !
एक एक कर अनेक व्यक्तियों ने जो व्यथा सुनाई वह रोंगटे खड़ी कर देने वाली है. वे सब एक ही बात कर रहे थे. वे पुलिस से डरते है, पुलिस उनके गाव आती है और उनके घर का सामान लूटकर ले जाती है, बर्तन, गहना, पैसा से लेकर मुर्गी तक ! माओवादी आते है और उन्हें मारते है. वे जाएँ तो जाये कहाँ ?
यह सब सुनकर हम सब सन्न रह गये. हिडमे की माँ लक्ष्मी का कहना था – “सरकार हमे आखिर कब इन्सान मानेगी ? हमारे साथ जानवरों जैसा बरताव् कब खत्म होगा ? आखिर कब तक माओवादी बताकर हमारे लोगो को मारा जाता रहेगा ? हमारे गाव में कोई कुत्ता अगर पागल हो जाता है तो भी उसके मालिक से पूछकर उसे मारा जाता है लेकिन यह सरकार तो हमारे लोगो को बस मारे जा रही है. अब तिरंगा हाथ में लिया है मैंने, अब माओवादियो और सरकार इन दोनों से मुकाबला अब मै तिरंगे के सहारे ही करूंगी.”
गोमपाड़ से यू तो लौट आया हूँ लेकिन हिडमे की माँ के शब्द और बहन शांति, लक्ष्मी की कातर आँखे 180 किमी की लम्बी पदयात्रा के थकान बाद भी मुझे सोने नही देती है. लगता है सरकार ने ठान रखा है आदिवासियों को आदिम युग में जीने देने के लिए, मरने के लिए. तभी तो बार बार मुझे लगता है जैसे गोमपाड़ जाकर मैंने आदिम युग की झलक देख ली हो जहाँ बर्बरता चरम पर है पुलिस सुरक्षा के नाम पर !
*-***
ताकि सनद रहे वक्त जरूरत काम आये
***
अगस्त क्रांति –तिरंगा यात्रा
दन्तेवाड़ा से गोमपाड 9 से 15 अगस्त
में शामिल पदयात्री.
स्थानीय जनसमूह के अलावा
***
१. सोनी सोरी, गीदम २. सुकल प्रसाद नाग, मंतेमुर गीदम ३. कवासी हिडमे, गीदम ४. लिंगाराम कोड़ोपी, गीदम ५. रश्मि ठाकुर रिंकी, समेली, दंतेवाड़ा ६. संजय पन्त, दंतेवाडा ७. तिरुपति येलम, बीजापुर ८.डॉ. संकेत ठाकुर, रायपुर ९. सत्येन बोरदोलोई, मुंबई १०. मलय तिवारी, कोलकाता ११. अतीन्द्रियो, कांकेर १२. एपी जोसी, भिलाई १३. अली मोहम्मद माज़, नयी दिल्ली १४. प्रियंका शांडिल्य, सरगुजा १५. प्रभात सिंह, दंतेवाडा १६. अनुपम रॉय, कोलकाता १७. अफरोज आलम, नई दिल्ली १८. सिराजुद्दीन, नई दिल्ली १९. ईश्वर निर्मलकर, दल्ली राजहरा २०. बसंत रावटे, दल्ली राजहरा २१. कमलेश ठाकुर, दल्ली राजहरा २२. शत्रुघन साहू, दल्ली राजहरा २३.महाजन, दल्ली राजहरा २४. नंदू, दल्ली राजहरा २५. डॉ. गोल्डी जार्ज, रायपुर २६. दुर्गा झा, रायपुर २७. नागेश बंछोर, रायपुर २८. कमल शुक्ल, कांकेर २९. तामेश्वर सिन्हा, बस्तर ३०. निकिता अग्रवाल नई दिल्ली ३१. तन्मय, बिहार ३२. विजेंद्र तिवारी, भिलाई ३३. वासुकी प्रसाद उन्मत, भिलाई ३४. रोहित आर्य, जगदलपुर ३५. समीर खान, जगदलपुर ३६. विवेक शर्मा, जगदलपुर ३७. जगमोहन बघेल, बस्तर ३८. गद्रे जी, बस्तर ३९. कलादास डहरिया, भिलाई ४०. डॉ लाखन सिंह, बिलासपुर ४१. आनंद मिश्र, बिलासपुर ४२. नन्द कश्यप, बिलासपुर ४३. आलोक शुक्ला, रायपुर ४४. श्रेया, रायपुर ४५. शालिनी गेरा, बिलासपुर ४६. बेला भाटिया, जगदलपुर ४७. परमेश रजा, जगदलपुर ४८. भावेश सत्पथी, जगदलपुर ४९. शिल्पी लकड़ा, जगदलपुर ५०. अर्चना गुप्ता, जगदलपुर ५१. अरविन्द गुप्ता, दंतेवाड़ा ५२. पप्पू गुप्ता, दंतेवाड़ा ५३. जनकलाल ठाकुर, डोंडी लोहारा ५४. प्रसाद राव भिलाई, ५५. प्रकाश झारिया, रायपुर
56 दंतिराम पोयम बस्तर 57 लक्षमण वेको बस्तर 58 अनंतराम भद्रे बस्तर 59 शोभा राघवन दिल्ली 60 अरुंधति दिल्ली मेकपीस एम्नेस्टी इंटरनेशनल बंगलौर 61 to 63 चंद्रशेखरन गांधी आश्रम चिंतुर और उनके चार साथी भी शामिल हुए , जिनके नाम नहीं मालूम 64 : अरुणा चंद्रशेखर 65 बंग 66 सौरा यादव व् उनके साथी 67 उमाप्रकाश ओझा आप
67 पवन चन्द्राकर 67अरुणा चंद्रशेखर एमनेस्टी इंटरनेशनल 68 to 74 निरा, उर्मीला, रमाकांत ,भिलाई, संगिता ,चुन्नी रोशन
:75 निजाम भिलाई 76 .अमरनाथ पाण्डेय
****
No comments:
Post a Comment