छत्तीसगढ़ के ,महासमुन्द में आदिवासियों की अभी तक के सबसे बड़े जमीन घोटालों में से एक बडी लूट .
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* फोरलेन डायवर्जन योजना की आड़ में एक हजार 135 एकड़ जंगल और आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर किया.
* 2005 से 2008 के बीच 148 आदिवासी परिवारों की 500 हेक्टेयर जमीनों को गैर-आदिवासियों के नाम पर फर्जी तरीके से रजिस्ट्री कराई गई.
* 148 आदिवासी परिवारों की जमीनों के साथ शासन से मंजूर 500 करोड़ रुपए की मुआवजा राशि भी हड़प ली गई.
* पीड़ितों में महासमुंद, सराईपल्ली, बसरा और पिथौरा जैसी पिछड़ी तहसीलों के गरीब आदिवासी परिवार शामिल हैं
* आदिवासियों की जमीन और जंगलों पर कब्जा करके हजारों एकड़ जमीन और कई सौ करोड़ रुपए की राशि लूटने की एक और करतूत.
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भूू-माफियाओं ने अधिकारियों के साथ मिलकर एक राष्ट्रीय राजमार्ग पर फोरलेन डायवर्जन योजना की आड़ में एक हजार 135 एकड़ जंगल और आदिवासियों की जमीन पर कब्जा कर किया.
इसके बाद सैकड़ों की संख्या में आदिवासी परिवारों की जमीन गैर-आदिवासियों के नाम पर रजिस्ट्री कराई गई और फिर शासन से चार गुना अधिक मुआवजा राशि मंजूर कराते हुए करोड़ों रुपए हड़प लिए गए.
एक अनुमान के मुताबिक यह घोटाला 500 करोड़ रुपए से अधिक का है.
यह पूरा मामला प्रदेश के आदिवासी बहुल जिले महासमुंद का है.
मामले की जांच एंटी करप्शन ब्यूरो कर रहा है.
इसके पहले विभागीय स्तर पर की गई जांच में घोटाला होना सही पाया गया है.
कहा जा रहा है कि इस जमीन के दलालों ने इतने बड़े पैमाने पर घोटाला सत्ताधारी भाजपा के प्रभावशाली नेताओं के संरक्षण में किया है.
जमीनों पर कब्जे वर्ष 2005 से 2008 के बीच में किए गए हैं.
एंटी करप्शन ब्यूरो के एक अधिकारी ने अनुसार ,
"यह तो इस घोटाले की पहली परत है,
इसी से जुड़े 15 अन्य शिकायतें मिली हैं."
वहीं, सूत्र कहते है कि, "इसमें लोकसेवकों द्वारा फर्जी दस्तावेज तैयार करने और शासकीय जमीन बेचने में संलिप्तता है.
शासकीय दस्तावेजों में कूटरचना और धोखाधड़ी करने पर तहसीलदार, आरआई और पटवारी के खिलाफ भ्रष्टाचार अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत अपराध दर्ज किया गया है."
बताया जा रहा है कि इसमें रायगढ़ और महासमुंद जिले की पिथौरा तहसील के कई प्रभावशाली नेता शामिल हैं.
दूसरी तरफ, महासमुंद जिले के वर्तमान कलक्टर उमेश अग्रवाल का कहना है,
"इस घटनाक्रम से संबंधित कई प्रकरण रद्द किए जा चुके हैं. विभागीय जांच पूरी हो चुकी है. अब शासन स्तर पर कार्रवाई की जानी है."
जानकारी के मुताबिक दलालों ने ये कब्जे महासमुंद और सरायपाली के बीच फैले जंगल और उस क्षेत्र में रहने वाले आदिवासियों की जमीन पर किए हैं.
50 हेक्टेयर में करीब 183.53 हेक्टेयर जमीन पिथौरा तहसील के पिल्बापानी क्षेत्र की है.
इस घोटाले के चलते सरकारी खजाने को 500 करोड़ों रुपए की चपत लगी है
2005 में महासमुंद से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग-53 के लिए फोरलेन डायवर्सन योजना तैयार की गई.
2005 से 2008 के बीच 148 आदिवासी परिवारों की 500 हेक्टेयर जमीनों को गैर-आदिवासियों के नाम पर फर्जी तरीके से रजिस्ट्री कराई गई.
इस दौरान सभी 148 आदिवासी परिवारों की जमीनों के साथ शासन से मंजूर 500 करोड़ रुपए की मुआवजा राशि भी हड़प ली गई.
2013 में विभागीय स्तर पर इस प्रकरण की जांच की गई.
इसमें सामने आया कि 2005 से 2008 के बीच तत्कालीन कलेक्टर एसके तिवारी के कार्यकाल के दौरान कलेक्टर के हस्ताक्षर से आदेश जारी होते रहे.
हालांकि तत्कालीन कलेक्टर तिवारी का कहना है कि दस्तावेजों में किसी अन्य व्यक्ति ने फर्जी तरीके से उनके हस्ताक्षर किए हैं.
विभागीय जांच में तत्कालीन रजिस्ट्रार बीबी पंचभाई और एसडीएम केडी वैष्णव भी दोषी पाए गए.
इस वर्ष राज्य शासन को भेजी गई रिपोर्ट के आधार पर सामान्य प्रशासन मंत्रालय के प्रमुख सचिव ने कारण बताओ नोटिस जारी किया.
मगर आज तक इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई.
फिलहाल जांच के लिए यह प्रकरण एंटी करप्शन ब्यूरो के अधीन है.
विभागीय जांच प्रतिवेदन में घोटाला सत्यापित होने के बावजूद आदिवासी परिवारों को मुआवजा तो दूर उनकी जमीनों का नामांतरण तक नहीं हुआ.
जमीन पाने की उम्मीद में यहां के सैकड़ों आदिवासी परिवार कलेक्टर कार्यालय से लेकर राजधानी रायपुर के मंत्रालय तक वर्षों से चक्कर काट रहे हैं.
पीड़ितों में महासमुंद, सराईपल्ली, बसरा और पिथौरा जैसी पिछड़ी तहसीलों के गरीब आदिवासी परिवार शामिल हैं.
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