आदिवासियों के जीवन में अंधेरा कर काले सोने से चमका रहे देश को.
** ** प्रभावितों को नहीं दी कोई सूचना
** तीन राज्यों के आदिवासियों का जीवन अंधेरे में ढकेलने की स्क्रिप्ट लिख ली गई है।
** छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के पास दावे की गुंजाइश ही नहीं बची .
** पर्यावरण कानून यहां धराशायी
** कानून सिमटे कागजों में
** एमनेस्टी इंटरनेशनल का चौंकाने वाला खुलासा
** सुबोध सिंह ने कहा
भूमि अधिग्रहण में किसी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ है.
*******
(योगेश मिश्रा, पत्रिका रायपुर )
रायपुर. केंद्र सरकार की विकास की इबारत में छत्तीसगढ़ समेत तीन राज्यों के आदिवासियों का जीवन अंधेरे में ढकेलने की स्क्रिप्ट लिख ली गई है। दुनिया के तीसरे सबसे बड़े कोयला उत्पादक हमारे देश में बिजली बनाने के लिए 2020 तक कोयले का उत्पादन सालाना दोगुना तक करने की केंद्र की नीति आदिवासियों के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही है। देश का 70 प्रतिशत कोयला छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में है। इन राज्यों में देश की आदिवासी आबादी के करीब 25 फीसदी यानी 2.60 करोड़ आदिवासियों का अंधाधुंध खनन से जीवन बदतर होता जा रहा है। आदिवासियों की पीड़ा है कि कोयले के खनन से उनकी जमीन छिन रही है और उनके पेट पर लात मारी जा रही है।
** प्रभावितों को नहीं दी कोई सूचना
जून 2009 में विस्तार के समय प्रभाव क्षेत्र में आने वाले पांच गांवों (रिस्दी, सोनपुरी, पाली, पडनिया और जटरज) के लगभग 3600 आदिवासियों को अखबार के माध्यम से भूमि अधिग्रहण की सूचना दी गई। कम पढ़े-लिखे होने की वजह से आदिवासियों तक यह बात ठीक से नहीं पहुंच सकी। उन्हें सीधी कोई सूचना नहीं दी गई। अप्रैल-2014 में प्रभावितों ने बताया, बाद में उन्हें केवल एक सूचना मिली कि एसईसीएल ने उनकी 752 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित कर ली है।
20 जुलाई 2014 को कोयला मंत्रालय ने गजट में प्रकाशित किया कि कुसमुंडा खदान के एक और विस्तार के लिए पांच गांवों (आमगांव, चुरैल, खोदरी, खैरबावना और गेवरा) के 1051 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा, जिससे लगभग 13,000 लोग प्रभावित होंगे। 30 दिन के अंदर मुआवजे और विस्थापन के लिए दावा-आपत्ति मंगाई गई, लेकिन प्रभावितों ने कहा, उन्हें कोई सूचना नहीं मिली।
** छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के पास दावे की गुंजाइश ही नहीं बची
कुसमुंडा खदान देश के सबसे बड़े खदानों में से एक है और छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित है। भूमि अधिग्रहण से प्रभावित आमगांव के आदिवासी कहते हैं- एसईसीएल वाले अधिग्रहण का नोटिस पंचायत के दफ्तर में चिपका कर चलते बने, भला हम दावा करते भी तो कैसे? कुसमुंडा खदान 2382 हेक्टेयर में फैला हुआ है। इसका वार्षिक उत्पादन 2009 में 10 मिलियन टन से 15 मिलियन टन तक बढ़ा दिया गया। वर्ष 2014 में उत्पादन 18.75 मिलियन टन हुआ और 2016 की पहली तिमाही तक यह आंकड़ा 26 मिलियन टन हो गया।
** पर्यावरण कानून यहां धराशायी
दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादन करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम कोल इंडिया लिमिटेड ने 2020 तक एक बिलियन टन के वार्षिक उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आक्रामक नीति बनाई है। इसके तहत कोल इंडिया की तीन इकाइयां- एसईसीएल, सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड और महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड- छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में भूमि अधिग्रहण से लेकर पर्यावरण कानूनों को धता बताकर और प्रभावित आदिवासियों को बिना भरोसे में लिए खदान विस्तार की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ा रही है।
** कानून सिमटे कागजों में
कोयला खनन से प्रभावितों के मुआवजे, विस्थापन व विकास के लिए 4 महत्वपूर्ण कानून हैं, कोयला क्षेत्र अधिग्रहण व विकास एक्ट 1957, पर्यावरण (संरक्षण) एक्ट 1986, पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) एक्ट 1996 (पेसा) व वन अधिकार एक्ट 2006। इनसे छत्तीसगढ़, झारखंड व ओडिशा के प्रभावित आदिवासियों को उतना लाभ नहीं मिला जितना सरकारें दावा करती हैं।
** एमनेस्टी इंटरनेशनल का चौंकाने वाला खुलासा
एसईसीएल छत्तीसगढ़ के कुसमुंडा खदान को संचालित कर रही है, जबकि सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड झारखंड के तेतरिखार खदान और महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड ओडिशा के बसुंधरा-वेस्ट खदान का संचालन करती हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इन क्षेत्रों में जनवरी-2014 से जून-2016 तक विस्तृत सर्वे के दौरान पाया कि भूमि अधिग्रहण के निर्णय से पहले वहां रहने वाले आदिवासियों से कोई रायशुमारी नहीं की गई।
ज्यादातर लोगों को तो मुआवजे और विस्थापन के लिए दशकों इंतजार करना भी पड़ा। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार दावा-आपत्ति और जनसुनवाई की सूचनाएं प्रभावितों तक या तो नहीं पहुंची या देर से पहुंची। कम पढ़े-लिखे अथवा अनपढ़ आदिवासियों तक अखबार के बजाय अन्य प्रभावी माध्यमों द्वारा सूचना पहुंचाने का प्रयास कभी नहीं किया गया।
सुबोध सिंह ने कहा
भूमि अधिग्रहण में किसी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ है.
इस संबंध में कोई शिकायत भी नहीं मिली। छत्तीसगढ़ सरकार कोयला खदानों के लिए भूमि अधिग्रहण से पहले मुआवजा व व्यवस्थापन से सम्बद्ध नियमों का पालन करती है। भूमि अधिग्रहण के एवज में दो से चार गुना राशि प्रभावितों को दी गई।
( सुबोध सिंह, सचिव, उद्योग, खनन व खनिज )
******
** ** प्रभावितों को नहीं दी कोई सूचना
** तीन राज्यों के आदिवासियों का जीवन अंधेरे में ढकेलने की स्क्रिप्ट लिख ली गई है।
** छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के पास दावे की गुंजाइश ही नहीं बची .
** पर्यावरण कानून यहां धराशायी
** कानून सिमटे कागजों में
** एमनेस्टी इंटरनेशनल का चौंकाने वाला खुलासा
** सुबोध सिंह ने कहा
भूमि अधिग्रहण में किसी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ है.
*******
(योगेश मिश्रा, पत्रिका रायपुर )
रायपुर. केंद्र सरकार की विकास की इबारत में छत्तीसगढ़ समेत तीन राज्यों के आदिवासियों का जीवन अंधेरे में ढकेलने की स्क्रिप्ट लिख ली गई है। दुनिया के तीसरे सबसे बड़े कोयला उत्पादक हमारे देश में बिजली बनाने के लिए 2020 तक कोयले का उत्पादन सालाना दोगुना तक करने की केंद्र की नीति आदिवासियों के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही है। देश का 70 प्रतिशत कोयला छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में है। इन राज्यों में देश की आदिवासी आबादी के करीब 25 फीसदी यानी 2.60 करोड़ आदिवासियों का अंधाधुंध खनन से जीवन बदतर होता जा रहा है। आदिवासियों की पीड़ा है कि कोयले के खनन से उनकी जमीन छिन रही है और उनके पेट पर लात मारी जा रही है।
** प्रभावितों को नहीं दी कोई सूचना
जून 2009 में विस्तार के समय प्रभाव क्षेत्र में आने वाले पांच गांवों (रिस्दी, सोनपुरी, पाली, पडनिया और जटरज) के लगभग 3600 आदिवासियों को अखबार के माध्यम से भूमि अधिग्रहण की सूचना दी गई। कम पढ़े-लिखे होने की वजह से आदिवासियों तक यह बात ठीक से नहीं पहुंच सकी। उन्हें सीधी कोई सूचना नहीं दी गई। अप्रैल-2014 में प्रभावितों ने बताया, बाद में उन्हें केवल एक सूचना मिली कि एसईसीएल ने उनकी 752 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित कर ली है।
20 जुलाई 2014 को कोयला मंत्रालय ने गजट में प्रकाशित किया कि कुसमुंडा खदान के एक और विस्तार के लिए पांच गांवों (आमगांव, चुरैल, खोदरी, खैरबावना और गेवरा) के 1051 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा, जिससे लगभग 13,000 लोग प्रभावित होंगे। 30 दिन के अंदर मुआवजे और विस्थापन के लिए दावा-आपत्ति मंगाई गई, लेकिन प्रभावितों ने कहा, उन्हें कोई सूचना नहीं मिली।
** छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के पास दावे की गुंजाइश ही नहीं बची
कुसमुंडा खदान देश के सबसे बड़े खदानों में से एक है और छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित है। भूमि अधिग्रहण से प्रभावित आमगांव के आदिवासी कहते हैं- एसईसीएल वाले अधिग्रहण का नोटिस पंचायत के दफ्तर में चिपका कर चलते बने, भला हम दावा करते भी तो कैसे? कुसमुंडा खदान 2382 हेक्टेयर में फैला हुआ है। इसका वार्षिक उत्पादन 2009 में 10 मिलियन टन से 15 मिलियन टन तक बढ़ा दिया गया। वर्ष 2014 में उत्पादन 18.75 मिलियन टन हुआ और 2016 की पहली तिमाही तक यह आंकड़ा 26 मिलियन टन हो गया।
** पर्यावरण कानून यहां धराशायी
दुनिया की सबसे बड़ी कोयला उत्पादन करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम कोल इंडिया लिमिटेड ने 2020 तक एक बिलियन टन के वार्षिक उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आक्रामक नीति बनाई है। इसके तहत कोल इंडिया की तीन इकाइयां- एसईसीएल, सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड और महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड- छत्तीसगढ़, झारखंड और ओडिशा में भूमि अधिग्रहण से लेकर पर्यावरण कानूनों को धता बताकर और प्रभावित आदिवासियों को बिना भरोसे में लिए खदान विस्तार की प्रक्रिया को तेजी से आगे बढ़ा रही है।
** कानून सिमटे कागजों में
कोयला खनन से प्रभावितों के मुआवजे, विस्थापन व विकास के लिए 4 महत्वपूर्ण कानून हैं, कोयला क्षेत्र अधिग्रहण व विकास एक्ट 1957, पर्यावरण (संरक्षण) एक्ट 1986, पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) एक्ट 1996 (पेसा) व वन अधिकार एक्ट 2006। इनसे छत्तीसगढ़, झारखंड व ओडिशा के प्रभावित आदिवासियों को उतना लाभ नहीं मिला जितना सरकारें दावा करती हैं।
** एमनेस्टी इंटरनेशनल का चौंकाने वाला खुलासा
एसईसीएल छत्तीसगढ़ के कुसमुंडा खदान को संचालित कर रही है, जबकि सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड झारखंड के तेतरिखार खदान और महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड ओडिशा के बसुंधरा-वेस्ट खदान का संचालन करती हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इन क्षेत्रों में जनवरी-2014 से जून-2016 तक विस्तृत सर्वे के दौरान पाया कि भूमि अधिग्रहण के निर्णय से पहले वहां रहने वाले आदिवासियों से कोई रायशुमारी नहीं की गई।
ज्यादातर लोगों को तो मुआवजे और विस्थापन के लिए दशकों इंतजार करना भी पड़ा। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार दावा-आपत्ति और जनसुनवाई की सूचनाएं प्रभावितों तक या तो नहीं पहुंची या देर से पहुंची। कम पढ़े-लिखे अथवा अनपढ़ आदिवासियों तक अखबार के बजाय अन्य प्रभावी माध्यमों द्वारा सूचना पहुंचाने का प्रयास कभी नहीं किया गया।
सुबोध सिंह ने कहा
भूमि अधिग्रहण में किसी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ है.
इस संबंध में कोई शिकायत भी नहीं मिली। छत्तीसगढ़ सरकार कोयला खदानों के लिए भूमि अधिग्रहण से पहले मुआवजा व व्यवस्थापन से सम्बद्ध नियमों का पालन करती है। भूमि अधिग्रहण के एवज में दो से चार गुना राशि प्रभावितों को दी गई।
( सुबोध सिंह, सचिव, उद्योग, खनन व खनिज )
******
No comments:
Post a Comment