बस्तर से टाटा को टाटा बाय बाय
लोहाडीगुडा बना सिंगूर
*******************
* आखिर टाटा ने बस्तर से वापस जाने के निर्णय की औपचारिक घोषणा कर ही दी .
* टाटा, छत्तीसगढ़ सरकार और बस्तर में तैनात फोर्स पर बहुत शाप है आदिवासियों का.
* जो टाटा के सामान समेटने पर सियापा कर रहे है और विकास की दुहाई दे रहे है उन्हें एनएमडीसी के आसपास के गाँव और दही सा बन गये लालपानी को देख लेना चाहिए उनकी सारी विकास की अवधारणा की हवा निकल जायेगी.
* टाटा के प्रवक्ता ने कहा कि माओवादी हिंसा के कारण वह बस्तर से जा रहे है , जाते जाते बड़ा झूठ बोल गया टाटा .
यह झूठ जनतांत्रिक आन्दोलन के खिलाफ हिंसा को जस्टिफाई करने के लिये दिया गया है .
***
टाटा और उसके लठैत के रूप में काम कर रहे स्थानीय प्रशासन ने हर गैर कानूनी काम किये.
कलेक्टर जगदलपुर ने कैसे फोर्स के बल पर जबरदस्ती ग्राम सभायें कराई ,एक कमरे में बारी बारी से ग्रमीणों को बुलाकर अंगूठे लगवाये गये कौन नहीं जानता.
तीनों ने मिलकर आदिवासियों की 2500 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया .
लोहाडीगुडा और आसपास के दस गाँव को उजाड़ा गया ,घरबार स्कूल अस्पताल खतम कर दिये गये.
और हां यही टाटा है इसके साथ जिस दिन अनुबंध हुआ उसी दिन से सलवाजुडूम की शुरुआत हुई ,यह माना जाता है कि सलवाजुडूम के लिये टाटा ने ही महेंद्र कर्मा और सरकारी योजना को वित्तीय यहायता पहुचाने का काम किया . इसके लिये वक्ती कलेक्टर ने वाकायदा प्रोजेक्ट तैयार किया.
बृह्मदेव शर्मा ने सबसे पहले टाटा के खतरे से सबको आगाह किया और उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. जगदलपुर की सडकों पर व्यापारियों भाजपाई और हां कांग्रेसियों ने उनको अपमानित करते हुये प्रोसेशन निकाला ,यह अपमान टाटा को बहुत मंहगा पडने वाला था.
इसके बाद प्रतिरोध फूट पडा ,आदिवासी महासभा और मनीष कुंजाम ने लंबी लडाई लडी ,आदिवासी संगठन भी सडक पर उतरे और एक बडा जन आंदोलन खड़ा हो गया. लोगों ने ग्राम सभा और जनसुनवाई का बहिष्कार किया ,अपनी जमीन से कब्ज़ा छोडने से इंकार कर दिया .
भारी फोजफांटा और टाटा के लिये प्रतिबद्ध शासन भी टाटा को मर्सिया पढने से रोक नहीं पाया.
9500 करोड़ 2000 हेक्टेयर जमीन और 2500 हेक्टर बेलाडीला से आयरन ओर डिपोजिट आवंटन भी टाटा को बस्तर में अपनी लूट को कायम नहीं रहने दिया.
अब कानून और न्याय तो यही कहता है कि जिन आदिवासियों से जमीन छीनी या अधिग्रहित की गई है उन्हें वापस कर दी जायें और जितना नुकसान इन सालों में हुआ है उसका मुआवजा टाटा से वसूल करके इन्हें प्रदान किया जायें.
अब वो जाते जाते कह रहे है कि माओवादी हिंसा के कारण वे वापस जा रहे है .,
उनका यह रणनीतिक बयान लोकतांत्रिक आंदोलन के खिलाफ और माओवादी हिंसा को ज़ायज बताने के लिए ही है .
चलो मान लेते है कि टाटा को भगाने में उनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका है, यदि ऐसा है तो उनका यह काम प्रशंसा के योग्य ही कहा जायेगा .
रायगढ जशपुर सरगुजा से लेके जांजगीर तक ऐसे आंदोलन की जरूरत है .
काश वहाँ से भी लुटेरों की लूट खतम हो.
प्रतिरोध तो सब जगह है और आज नहीं तो कल जीत उनकी ही होनी है .
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लोहाडीगुडा बना सिंगूर
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* आखिर टाटा ने बस्तर से वापस जाने के निर्णय की औपचारिक घोषणा कर ही दी .
* टाटा, छत्तीसगढ़ सरकार और बस्तर में तैनात फोर्स पर बहुत शाप है आदिवासियों का.
* जो टाटा के सामान समेटने पर सियापा कर रहे है और विकास की दुहाई दे रहे है उन्हें एनएमडीसी के आसपास के गाँव और दही सा बन गये लालपानी को देख लेना चाहिए उनकी सारी विकास की अवधारणा की हवा निकल जायेगी.
* टाटा के प्रवक्ता ने कहा कि माओवादी हिंसा के कारण वह बस्तर से जा रहे है , जाते जाते बड़ा झूठ बोल गया टाटा .
यह झूठ जनतांत्रिक आन्दोलन के खिलाफ हिंसा को जस्टिफाई करने के लिये दिया गया है .
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टाटा और उसके लठैत के रूप में काम कर रहे स्थानीय प्रशासन ने हर गैर कानूनी काम किये.
कलेक्टर जगदलपुर ने कैसे फोर्स के बल पर जबरदस्ती ग्राम सभायें कराई ,एक कमरे में बारी बारी से ग्रमीणों को बुलाकर अंगूठे लगवाये गये कौन नहीं जानता.
तीनों ने मिलकर आदिवासियों की 2500 हेक्टेयर जमीन पर कब्जा किया .
लोहाडीगुडा और आसपास के दस गाँव को उजाड़ा गया ,घरबार स्कूल अस्पताल खतम कर दिये गये.
और हां यही टाटा है इसके साथ जिस दिन अनुबंध हुआ उसी दिन से सलवाजुडूम की शुरुआत हुई ,यह माना जाता है कि सलवाजुडूम के लिये टाटा ने ही महेंद्र कर्मा और सरकारी योजना को वित्तीय यहायता पहुचाने का काम किया . इसके लिये वक्ती कलेक्टर ने वाकायदा प्रोजेक्ट तैयार किया.
बृह्मदेव शर्मा ने सबसे पहले टाटा के खतरे से सबको आगाह किया और उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा. जगदलपुर की सडकों पर व्यापारियों भाजपाई और हां कांग्रेसियों ने उनको अपमानित करते हुये प्रोसेशन निकाला ,यह अपमान टाटा को बहुत मंहगा पडने वाला था.
इसके बाद प्रतिरोध फूट पडा ,आदिवासी महासभा और मनीष कुंजाम ने लंबी लडाई लडी ,आदिवासी संगठन भी सडक पर उतरे और एक बडा जन आंदोलन खड़ा हो गया. लोगों ने ग्राम सभा और जनसुनवाई का बहिष्कार किया ,अपनी जमीन से कब्ज़ा छोडने से इंकार कर दिया .
भारी फोजफांटा और टाटा के लिये प्रतिबद्ध शासन भी टाटा को मर्सिया पढने से रोक नहीं पाया.
9500 करोड़ 2000 हेक्टेयर जमीन और 2500 हेक्टर बेलाडीला से आयरन ओर डिपोजिट आवंटन भी टाटा को बस्तर में अपनी लूट को कायम नहीं रहने दिया.
अब कानून और न्याय तो यही कहता है कि जिन आदिवासियों से जमीन छीनी या अधिग्रहित की गई है उन्हें वापस कर दी जायें और जितना नुकसान इन सालों में हुआ है उसका मुआवजा टाटा से वसूल करके इन्हें प्रदान किया जायें.
अब वो जाते जाते कह रहे है कि माओवादी हिंसा के कारण वे वापस जा रहे है .,
उनका यह रणनीतिक बयान लोकतांत्रिक आंदोलन के खिलाफ और माओवादी हिंसा को ज़ायज बताने के लिए ही है .
चलो मान लेते है कि टाटा को भगाने में उनकी भी महत्वपूर्ण भूमिका है, यदि ऐसा है तो उनका यह काम प्रशंसा के योग्य ही कहा जायेगा .
रायगढ जशपुर सरगुजा से लेके जांजगीर तक ऐसे आंदोलन की जरूरत है .
काश वहाँ से भी लुटेरों की लूट खतम हो.
प्रतिरोध तो सब जगह है और आज नहीं तो कल जीत उनकी ही होनी है .
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