Friday, July 15, 2016

बस और नहीं l
देश की विकास के लिए कब तक कोरबा की जनता देती रहेगी बलिदान ?
पिछले 60 वर्षों से कोरबा ज़िला ना सिर्फ देश में कोयला खनन का महत्वपूर्ण केंद्र है बल्कि भारत के औद्योगिक विकास की रीढ़ बना हुआ है l  कोरबा जिले से ही देश का 15 प्रतिशत से भी अधिक कोयला खनन होता है और यहाँ 10 से अधिक ताप विद्युत् संयत्र हैं जिनका देश की ऊर्जा उत्पादन में बड़ा योगदान हैं l  परन्तु इसके लिए कोरबा जिले के मूल निवासियों को एक भारी कीमत चुकानी पड़ी है l  कई लोगों को बिना मुआवज़े व पुनर्वास के ही विस्थापित होना पड़ा है और अपनी जीवन-यापन, पहचान तथा संस्कृति को नष्ट होते देखना पड़ा है l साथ ही एक हरे भरे, दुर्लभ जैव-विविधता से परिपूर्ण और खुशहाल क्षेत्र की पहचान कहीं इतनी खो चुकी है की आज वही कोरबा जिले देश के सबसे अधिक प्रदूषित जिलों में से एक है जहां खुशहाल जीवन तो क्या सांस लेने में भी निवासियों को ज़हर का सेवन करना पड़ता है l
पिछले 60 सालों में सरकार की परियोजना स्वीकृति, पुनर्वास और मुआवज़े की नीतियों में कई जन-पक्षीय परिवर्तन आये परन्तु कंपनी और प्रशासन के मूल दृष्टिकोण में शायद ही कुछ बदलाव हुआ हैं l यही कारण हैं की प्रशासन और कंपनिया आज भी ज़िले के मूल निवासियों के प्रति असंवेदनशील है और उन्हें मात्र विकास की राह में बाधा के रूप में देखती है l  इसलिए सभी जनपक्षीय कानूनों ( जैसे की पेसा कानून 1996, वनाधिकार मान्यता कानून 2006, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1984, भू अधिग्रहण कानून 2013 या राज्य की पुनर्वास नीति 2007आदि) के क्रियान्वयन में इतनी भारी अनियमित्ताएं हैं की केवल औद्योगिक मुनाफे के लिए सभी कानूनों का मज़ाक भर बन के रह गया है l  इसीलिए शायद कोरबा का विकास मॉडल आज भी र्विस्थापितों की न्यायपूर्ण मागों के लिए शांतिपूर्ण संघर्ष तथा  कंपनी और सरकार के बीच  शक्ति प्रदर्शन के बीच उलझ के रह गया है |l इसी सन्दर्भ  में मई माह में क्षेत्र के भू-विस्थापितों को अपनी न्यायिक मांगों की सुनवाई के लिए भारी संख्या में विरोध प्रदर्शन कर गेवरा ओपन कास्ट माइन का साइलो बंद कराना पड़ा थाl
इन्हीं विषयों और कोयला खदानों तथा रेल कॉरीडोर से उत्पन्न विस्थापन की समस्याओं के अध्ययन के लिए सोमवार 6 जनवरी 2016 को एक प्रतिनिधि मंडल ने प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया और किसानों व भू-विस्थापितों से विस्तृत चर्चा की l जांच दल में छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के सदस्य और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव का. संजय पराते, छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन के संयोजक मंडल सदस्य  आलोक शुक्ला, IIM कलकत्ता से शोध-करता प्रियांशु, दिल्ली से आये सत्यम श्रीवास्तव, माकपा के कोरबा ज़िला इकाई के सचिव सपुरन कुलदीप, संदीप पटेल तथा सुखरंजन नंदी शामिल थे l  दल के सदस्यों ने एसईसीएल के गेवरा परियोजना से प्रभावित गाँव भठोरा, रलिया, बाहनपाठ और नरईबोध का विस्तृत दौरा किया l पाली में आयोजित एक बैठक में कुसमुंडा परियोजना से प्रभावित गाँव सोनपुरी, रिस्दी, पड़निया, पाली, जटराज के किसानों से भी चर्चा की l  इसके अतिरिक्त गेवरा – पेंड्रा रेल कॉरीडोर तथा एसईसीएल के खदान विस्तार परियोजना से प्रभावित ग्राम भैरोताल, रोहिना, मडवाढोढा, पुरैना गाँवों का भी दौरा किया और प्रभीवित किसानों से चर्चा की l

(गेवरा कोयला परियोजना )

च से निकले कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
एस.ई.सी.एल द्वारा भूमि अधिग्रहण के मूल उद्देश्य के विपरीत ज़मीन की जमाखोरी और स्थानांतरण – सन 1964, 1965 और1971 में ग्राम भैरोताल, रोहिना, इत्यादि में एस.ई.सी.एल. ने कोयला खनन के लिए ज़मीन अधिग्रहण या लीज़ पर ली थी परन्तु आज तक इस जमीन का उपयोग एस.ई.सी.एल. द्वारा नहीं किया गया l इन जमीनों पर कब्ज़ा आज भी किसानो का हैं वो या तो उस पर निवासरत हैं या इसमें खेती कर रहे हैं l इनमें से कई परिवारों को मुआवज़ा या पुनर्वास भी एस.ई.सी.एल. के द्वारा नहीं दिया गया था, परन्तु सभी ज़मीन के कागज़ कंपनी के नाम पर चले गए हैं | कई वर्षों तक इन जमीनों का उपयोग ना होने के बावजूद, और लीज़ लेने के 50 वर्षों के बाद भी ज़मीन के पट्टे मूल भू स्वामियों  के नाम स्थानांतरित नहीं किये गए | वर्तमान में बिना ग्रामीणों से परामर्श किये या उनको मुआवज़ा, पुनर्वास दिए बिना ही एस.ई.सी.एल. अब इस ज़मीन गेवरा-पेंड्रा रेल कॉरीडोर को स्थानांतरित कर रहा है जोकि ना सिर्फ ग्रामवासियों के अधिकारों का हनन है बल्कि भू अधिग्रहण के मूल उद्देश्य के विपरीत एक गैर कानूनी कार्यवाही है |
बिना सहमती के भूमि अधिग्रहण और अवैध रूप से रेल कॉरीडोर का निर्माण – गेवरा – पेंड्रा रेल कॉरीडोर के अधिग्रहण से पूर्व ग्रामवासियों की आपत्तियों पर कोई सुनवाई नहीं हुई | आपत्ति लगाने के लिए कलेक्टर ऑफिस में बुलाया गया ना की गाँव में जिससे कई लोग अपनी आपत्तियां नहीं लगा पाए | लगाई गयी आपत्तियों पर भी कोई ध्यान दिए बिना ही भूमि अधिग्रहण किया जा रहा है | इनमें पुरैना मडवा ढोढा के 54 किसानों के साथ अन्य गाँवों के लोग भी शामिल हैं | साथ ही रेल कॉरीडोर बंद पड़ी अंडरग्राउंड माइन के उपर बनाया जा रहा है जोकि कानूनी प्रावधान के विपरीत है | इस रेल कॉरीडोर से केवल कोयला ढूलाई का प्रयोग होगा जिसके लिए पहले से ही रेल मार्ग उपलब्ध है | अतः केवल कुछ किलोमीटर का रास्ता कम करने के लिए ही ग्रामवासियों को विस्थापित किया जा रहा है | इसके साथ ही इस रेल मार्ग के लिए बड़े पैमाने पर वनों की कटाई भी की जाएगी जो की एक समृद्ध वन क्षेत्र हैं l
कोल इंडिया लिमिटेड की पुनर्वास नीति में जन-विरोधी रोज़गार प्रावधान और उनके क्रियान्वयन में गड़बड़ियां – कोल इंडिया पुनर्वास नीति 2012 में कट-ऑफ पॉइंट सिस्टम के कारण विस्थापितों को बहुत कम रोज़गार दिए जा रहे हैं | 0.53 एकढ़ से कम खातेदार छोटे किसानों को कोई रोज़गार उपलब्ध नहीं है | इस प्रणाली के चलते कई रोज़गार केवल इसलिए रिक्त हो जा रहे हैं क्यूंकि बड़े किसानों के परिवार में रोज़गार योग्य व्यक्ति नहीं हैं | एस. ई. सी. एल के द्वारा प्रभावितों को न्यूनतम मुवावजा, पुनर्वास और रोजगार देना पड़े इसके लिए वह अपनी सुविधा अनुसार प्रावधानों का पालन करता हैं l ग्रामीणों के अनुसार रथोबाई बनाम एसईसीएल के प्रकरण में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए  विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने स्प्ष्ट रूप से कहा है कि कोल इण्डिया पुनर्वास नीति की कोई वैधानिकता नही है । लेकिन इसके बावजूद नए भू-अधिग्रहण कानून को लागू करने के बजाय एस. ई. सी. एल  भू-विस्थापितों पर अपनी असंवैधानिक नीति थेाप रही है । गेवरा विस्तार परियोजना के लिए किये गए भू अधिग्रहण से प्रभावित 989 लोगो को रोजगार का प्रावधान था लेकिन एस. ई. सी. एल के द्वारा मात्र  294 लोगो को ही रोजगार मिला है ।

चने के लिए भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में गड़बड़ियां की जा रही हैं | गेवरा विस्तार परियोजना के लिए 7 गाँव भटोरा, पोड़ी, बाहनपाठ, आमगांव, रलिया, भिलाईबाजार, तथा नरईबोट            भूमि 2004 में अधिग्रहण कर मुआवज़ा कम दाम पर तय कर दिया गया जिसका मुआवज़ा 12 साल बाद 2016 में दिया गया | ग्राम भठोरा में 2010 में मुआवज़ा राशि का दर तय कर दिया गया जिसका मुआवज़ा 2016 में दिया जाना है जबकि इस दर पर आज कोई भी ज़मीन खरीदना असंभव है | साथ ही पक्का घर का मुआवज़ा लागत से बहुत ही कम है | भू-अधिग्रहण कानून (“भूमि अर्जन पुनर्वास व् पुनर्विस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013 यथा संशोधन 2015”) के प्रावधानों की पूर्णतया अवहेलना की जा रही है | कई गाँव का केवल आंशिक अधिग्रहण हुआ है जिससे उचित मुआवज़ा और पुनर्वास नहीं दिया जा रहा है |
नियमों एवं सुरक्षा कायदों की अनदेखी कर बिना पुनर्वास दिए ,15 दिन के अन्दर गाँव खाली करने का निर्देश – किसी भी परियोजना को शुरू करने के पूर्व प्रभावितों के हको का संरक्षण करते हुए मुवावजा और पुनर्वास देना आवश्यक हैं, परन्तु कोरबा में इसका पालन नहीं हो रहा हैं l     एस.ई.सी.एल. की गेवरा विस्तार परियोजना से प्रभावित ग्राम बाहनपाठ में घरों के बिलकुल बगल में ब्लास्टिंग कार्य किया जा रहा है, जबकि वहां अभी तक परिवार रह रहे हैं | गाँव के 743 घरो को तोडा गया है और 40 घरों को तोडना बाकि है l ग्रामीणों ने चर्चा के दोरान बताया की पुनर्वास की जगह पेसा दिया जा रहा हैं उसमे भी बहुत से लोगो को पेसा नहीं मिला हैं l  इस गाँव में 123 परिवारों में से केवल 25 लोगो को ही नौकरी दी गयी है और 4 लोगो को नोकरी के बदले पेसा दिया गया हैं | बिना पुनर्वास के लोगो की उजाडना और गाँव के समीप ही बिलास्टिंग किया जा रहा हैं जो ना केवल कानूनों का उल्लंघन है बल्कि मानवाधिकारों का भी हनन हो रहा है | वनाधिकार पत्रक ना होने के कारण उन्हें उन्हें वन भूमि में काबिज जमीन का मुआवजा नहीं मिला

कुसमुंडा खदान क्षेत्र में पेसा और वनाधिकार कानूनों का उल्लंघन – क्षेत्र में 5 गाँवों का विस्थापन कार्य जारी है परन्तु वनाधिकार मान्यता कानून का क्रियान्वयन ना होने के कारण लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है | एसइसीएल लगातर अपनी मनमर्जी से कार्य करा रहा है l कोरबा जिला पांचवी अनुसूचित जिला हैं जहाँ किसी भी भू- अधिग्रहण के पूर्व ग्रामसभा की अनुमति आवश्यक हैं, परन्तु कुसमुंडा विस्तार परियोजना में भू-अधिग्रहण के पूर्व प्रभावित गाँव की ग्रामसभाओ से सहमती नहीं ली गई l यह  कानूनी मामला अभी कोर्ट में लंबित है |

(कुसमुंडा कोयला खदान कोरबा )
ज़ाली स्वीकृति के साथ माइन क्लोज़र  - कोल बेयरिंग एक्ट के  प्रावधान  अनुसार किसी भी भूमिगत खदान को बंद करने के पूर्व स्थानीय ग्रामसभा या निकाय से अनुमति लेना आवश्यक हैं परन्तु एस.ई.सी.एल. के द्वारा इसका भी खुला उल्लंघन किया जा रहा हैं l  ग्राम मडवा ढोढा में पुरानी अंडरग्राउंड माइन को बंद करने से पूर्व आवश्यक ग्राम सभा की स्वीकृति में भारी पैमाने पर फर्जी हस्ताक्षर हैं और ग्रामवासियों को पता भी नहीं था की यहाँ माइन को बंद किया जा रहा है | इसके माइन क्लोज़र के बाद ज़मीन धसने से ना सिर्फ गाँव वालों पर खतरा उत्पन्न हो गया है बल्कि उनकी फसल इत्यादि पर भी प्रभाव पड़ा है |
डिस्ट्रिक्ट मिनरल फण्ड का गैरकानूनी इस्तेमाल – खनन की रॉयल्टी को विस्थापितों के हितों के लिए इस्तेमाल करना अनिवार्य है परन्तु इसके लिए अधिवक्ता संघ के लिए भवन, पत्रकार भवन, वृद्धाशाला, ओवेरब्रिज का निर्माण किया जा रहा है जोकि कानून का उल्लंघन है |
   

जांच से उभरते सवाल और सरकार का जन-विरोधी चेहरा
इन सभी तथ्यों से एस.ई.सी.एल और सरकार के रवय्ये पर गंभीर सवाल उत्पन्न होते हैं | एस.ई.सी.एल. एक कोयला खनन कंपनी की जगह एक ज़मींदार और ज़मीन जमाखोर के रूप में काम करती प्रतीत होती है जोकि उसके मूल उद्देश्य के बिलकुल विपरीत है | हालांकि पिछले 60 सालों में कई नए कानून बने हैं, सरकार उनके प्रति बिल्कुल असंवेदनशील है और कानूनों की अवहेलना और मानवाधिकारों के हनन से नहीं चूकती है चाहे वो मुआवज़ा,पुनर्वास, रोज़गार, माइन क्लोज़र, या पर्यावरण सम्बन्धी कानून हों|
इससे यह स्पष्ट है की सरकार की नज़र में कोरबा के विकास मॉडल में मूल-वासियों और विस्थापितों के लिए कोई जगह नहीं है और उनके प्रति असंवेदनशील दृष्टिकोण है | सरकार और कंपनी मूल-वासियों को मात्र विकास कार्य में बाधा के रूप में देखते हैं | इससे यह भी स्पष्ट है की देश ने अभी तक कोरबा के मूल-वासियों और किसानों के बलिदानों को नहीं समझा है | 60 साल तक विकास राह में पिसते हुए लोगों से सरकार आज भी और बलिदानों की अपेक्षा करती है |
मांगपत्र
भू-अधिग्रहण के सभी लंबित तथा नए  प्रकरण को “भूमि अर्जन पुनर्वास व् पुनर्विस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013 यथा संशोधन 2015” के आधार पर ही किये जाने चाहिए | कोल इंडिया पुनर्वास नीति 2012 को इस कानून के अनुसार संशोधित किया जाना चाहिए |
किसी भी परियोजना के लिए ज़रुरत से अधिक भूमि लेने की प्रक्रिया तुरंत बंद होनी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जान चाहिए की मूल-निवासियों को कम से कम क्षति हो |
 जिस अधिग्रित भूमि का उपयोग 5 सालो में नही  किया गया हैं, उसे शीघ्र ही भू – स्वामी को वापिस किया जाये l
पेसा कानून 1996 और वनाधिकार मान्यता कानून 2006 का विधिवत क्रियान्वयन किया जाना चाहिए l
 वनाधिकारों की मान्यता प्रक्रिया की समाप्ति और ग्रामसभा की लिखित सहमती के बिना जमीन अधिग्रहण या वन भूमि के डायवर्सन की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए |
गेवरा विस्तार परियोजना क्षेत्र में प्रभावितों के पुनर्वास किये बिना और सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर किये जा रहे खनन कार्य पर तत्काल रोक लगाई जाये ।
माइन क्लोज़र पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए और इस भूमि को पहले जैसा बनाकर मूल-निवासियों को या फिर विस्थापितों को दिया जाना चाहिए |
खदानों के डी-पिल्लरिंग के कारण होने वाले जमीन व संपत्ति नुकसान का मुआवजा एवं फसल नुकसान की क्षतिपूर्ति राशि प्रति वर्ष समर्थन मूल्य के आधार पर भुगतान किया जाना चाहिए  l
पर्यावरण संरक्षण कानूनों का कड़ाई से पालन सुनिशचित किया जाना चाहिए
डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन के मदों का खर्चा उसके उदेश्य अनुसार प्रभावित समुदाय के जीवन स्तर को सुधारने के लिए किया जाना चाहिए l


कुसमुंडा खदान क्षेत्र में पेसा और वनाधिकार कानूनों का उल्लंघन – क्षेत्र में 5 गाँवों का विस्थापन कार्य जारी है परन्तु वनाधिकार मान्यता कानून का क्रियान्वयन ना होने के कारण लोगों के अधिकारों का हनन हो रहा है | एसइसीएल लगातर अपनी मनमर्जी से कार्य करा रहा है l कोरबा जिला पांचवी अनुसूचित जिला हैं जहाँ किसी भी भू- अधिग्रहण के पूर्व ग्रामसभा की अनुमति आवश्यक हैं, परन्तु कुसमुंडा विस्तार परियोजना में भू-अधिग्रहण के पूर्व प्रभावित गाँव की ग्रामसभाओ से सहमती नहीं ली गई l यह  कानूनी मामला अभी कोर्ट में लंबित है |

(कुसमुंडा कोयला खदान कोरबा )
ज़ाली स्वीकृति के साथ माइन क्लोज़र  - कोल बेयरिंग एक्ट के  प्रावधान  अनुसार किसी भी भूमिगत खदान को बंद करने के पूर्व स्थानीय ग्रामसभा या निकाय से अनुमति लेना आवश्यक हैं परन्तु एस.ई.सी.एल. के द्वारा इसका भी खुला उल्लंघन किया जा रहा हैं l  ग्राम मडवा ढोढा में पुरानी अंडरग्राउंड माइन को बंद करने से पूर्व आवश्यक ग्राम सभा की स्वीकृति में भारी पैमाने पर फर्जी हस्ताक्षर हैं और ग्रामवासियों को पता भी नहीं था की यहाँ माइन को बंद किया जा रहा है | इसके माइन क्लोज़र के बाद ज़मीन धसने से ना सिर्फ गाँव वालों पर खतरा उत्पन्न हो गया है बल्कि उनकी फसल इत्यादि पर भी प्रभाव पड़ा है |
डिस्ट्रिक्ट मिनरल फण्ड का गैरकानूनी इस्तेमाल – खनन की रॉयल्टी को विस्थापितों के हितों के लिए इस्तेमाल करना अनिवार्य है परन्तु इसके लिए अधिवक्ता संघ के लिए भवन, पत्रकार भवन, वृद्धाशाला, ओवेरब्रिज का निर्माण किया जा रहा है जोकि कानून का उल्लंघन है |
   

जांच से उभरते सवाल और सरकार का जन-विरोधी चेहरा
इन सभी तथ्यों से एस.ई.सी.एल और सरकार के रवय्ये पर गंभीर सवाल उत्पन्न होते हैं | एस.ई.सी.एल. एक कोयला खनन कंपनी की जगह एक ज़मींदार और ज़मीन जमाखोर के रूप में काम करती प्रतीत होती है जोकि उसके मूल उद्देश्य के बिलकुल विपरीत है | हालांकि पिछले 60 सालों में कई नए कानून बने हैं, सरकार उनके प्रति बिल्कुल असंवेदनशील है और कानूनों की अवहेलना और मानवाधिकारों के हनन से नहीं चूकती है चाहे वो मुआवज़ा,पुनर्वास, रोज़गार, माइन क्लोज़र, या पर्यावरण सम्बन्धी कानून हों|
इससे यह स्पष्ट है की सरकार की नज़र में कोरबा के विकास मॉडल में मूल-वासियों और विस्थापितों के लिए कोई जगह नहीं है और उनके प्रति असंवेदनशील दृष्टिकोण है | सरकार और कंपनी मूल-वासियों को मात्र विकास कार्य में बाधा के रूप में देखते हैं | इससे यह भी स्पष्ट है की देश ने अभी तक कोरबा के मूल-वासियों और किसानों के बलिदानों को नहीं समझा है | 60 साल तक विकास राह में पिसते हुए लोगों से सरकार आज भी और बलिदानों की अपेक्षा करती है |
मांगपत्र
भू-अधिग्रहण के सभी लंबित तथा नए  प्रकरण को “भूमि अर्जन पुनर्वास व् पुनर्विस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013 यथा संशोधन 2015” के आधार पर ही किये जाने चाहिए | कोल इंडिया पुनर्वास नीति 2012 को इस कानून के अनुसार संशोधित किया जाना चाहिए |
किसी भी परियोजना के लिए ज़रुरत से अधिक भूमि लेने की प्रक्रिया तुरंत बंद होनी चाहिए और यह सुनिश्चित किया जान चाहिए की मूल-निवासियों को कम से कम क्षति हो |
 जिस अधिग्रित भूमि का उपयोग 5 सालो में नही  किया गया हैं, उसे शीघ्र ही भू – स्वामी को वापिस किया जाये l
पेसा कानून 1996 और वनाधिकार मान्यता कानून 2006 का विधिवत क्रियान्वयन किया जाना चाहिए l
 वनाधिकारों की मान्यता प्रक्रिया की समाप्ति और ग्रामसभा की लिखित सहमती के बिना जमीन अधिग्रहण या वन भूमि के डायवर्सन की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए |
गेवरा विस्तार परियोजना क्षेत्र में प्रभावितों के पुनर्वास किये बिना और सुरक्षा मानकों की अनदेखी कर किये जा रहे खनन कार्य पर तत्काल रोक लगाई जाये ।
माइन क्लोज़र पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए और इस भूमि को पहले जैसा बनाकर मूल-निवासियों को या फिर विस्थापितों को दिया जाना चाहिए |
खदानों के डी-पिल्लरिंग के कारण होने वाले जमीन व संपत्ति नुकसान का मुआवजा एवं फसल नुकसान की क्षतिपूर्ति राशि प्रति वर्ष समर्थन मूल्य के आधार पर भुगतान किया जाना चाहिए  l
पर्यावरण संरक्षण कानूनों का कड़ाई से पालन सुनिशचित किया जाना चाहिए
डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन के मदों का खर्चा उसके उदेश्य अनुसार प्रभावित समुदाय के जीवन स्तर को सुधारने के लिए किया जाना चाहिए l


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