Friday, July 15, 2016

शादी की मेंहदी भी नहीं उतरी थी और नक्सली बताकर मार दिया मेरी बेटी को
(पत्रिका)

शेख तैय्यब ताहिर/जगदलपुर. अभी तो उसकी शादी हुई थी साहब! शादी की मेहंदी तक नहीं उतरी थी और उन वर्दी वाले दरिंदों ने उसे मार डाला। मारने से पहले उसके साथ गलत काम भी किए उन लोगों ने।

इतना कहते उस आदिवासी मां मड़कम लक्ष्मी की आंसू छलक पड़े, जिसकी बेटी मड़कम हिड़मे को कुछ दिन पहले ही मुठभेड़ में मारने का दावा पुलिस ने किया था।
कुछ देर रुक कर उसने कहा साहब! शादी वाले दिन ढोल-नगाड़े बज रहे थे और घर मेहमानों से भरा हुआ था, कितनी खुश भी वह। उसने सहेलियों के साथ खूब मस्ती की थी। शादी के पारंपरिक परिधान में बिल्कुल परी जैसी लग रही थी।

हर तरफ हॅंसी-मजाक चल रहा था। उसकी विदाई हुई तो घर खाली हो गया था। इसके आठ दिन बाद वह पहली बार वह नहाय खाय के रस्म के लिए घर आई थी।

किसे पता था अबकी बार वह इतनी दूर चली जाएगी कि कभी लौट कर नहीं आएगी। अब सभी उसे नक्सली बता रहे हैं, लेकिन मेरी बेटी नक्सली नहीं है। हम गांव में रहते हैं, आदिवासी हैं, गरीब हैं तो इंसान नहीं है क्या?

क्या कोई भी हमें ऐसे मार सकता है? कुछ ऐसे ही तीखे सवालों के साथ वह अपनी बात हमारे सामने रख रही थी। शायद इन सवालों का जवाब मेरे पास भी नहीं था।
इस आदिवासी माँ ने पहली पर पार की गांव की सरहद

अपनी बेटी को न्याय दिलाने धुर नक्सल प्रभावित गांव गोमपाड़ की आदिवासी महिला मड़कम लक्ष्मी ने पहली बार गांव की सरहद पार की है। बिलासपुर हाईकोर्ट में वकीलों के सवालों के जवाब से लेकर मीडिया के सवाल का उसे जवाब देना पड़ रहा है।

इसके बाद भी उसके हौसले और जज्बे में कहीं कोई कमी नहीं आई। दिल में बेटी को खोने की टीस लिए वह न्यायिक प्रणाली पर भरोसा करती है। बिलासपुर में अगली पेशी 28 जून को है।

इससे पहले वह यहां एक स्थानीय होटल में कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ रुकी थी। इस दौरान मुलाकात में रिपोर्टर को उसने अपनी व्यथा बताई। बेटी को खोने का दर्द चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था।

आंखें नम थीं और बोलते हुए होंठ कांप रहे थे। शायद गांव के बाहर की चकाचौंध भरी दुनिया की वह आदी नहीं थी। इसलिए वह कुछ सहमी हुई थी। धीरे-धीरे अपनी बात कह रही थी।

वह गोंडी बोली में बोल रही थी और उसके पति मड़कम कोसा हमें हिन्दी में उसकी बात का अनुवाद कर रहे थे लेकिन भाषायी दीवार के बाद भी उसकी आवाज का दर्द हम तक पहुंच रहा था।

घसीटते हुए घर से उठा ले गए मेरी बेटी को
उस दिन की बात कहते हुए उसकी आंखें भर आई और आंखों में दर्द का सैलाब उमड़ आया। लक्ष्मी ने बताया, हिड़मे शादी के बाद पहली बार नहाने की रस्म के लिए मायके आई थी। यहां आने के बाद वह बीमार हो गई थी।

13 जून की सुबह वह और उसकी बेटी घर पर थी और परिवार के दूसरे लोग खेत गए थे। हिड़मे घर के बाहर पेज बनाने के लिए धान कूट रही थी, तभी पुलिस के जवान वहां आ धमके। उसे पकड़ लिया और उसे अपने साथ ले जाने लगे।

वह चिल्लाई तो उसकी आवाज सुनकर बेटी को छुड़ाने वह दौड़ी। जवानों ने उसे गिरा दिया और उसे घसीटते हुए कुछ दूर ले गए। इसके बाद एक जवान ने कहा कल तेरी बेटी को छोड़ देंगे और हिड़मे को घसीटते हुए अपने साथ लेकर जंगल की ओर चले गए।

उसे बचाने वह उसके पीछे दौड़ती रही लेकिन जवानों ने उसे धमकाया और कहा पीछे आई तो गोली मार देंगे। इसके बाद अगले दिन बेटी की लाश घर पहुंची। एक दिन पहले जो पुलिस वाले उसे घर से जिंदा ले गए थे, वहीं उसे ताबूत में बंद कर लेकर लाए थे।

अब सिर्फ न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा
बेटी के साथ इतना कुछ होने के बाद भी धुर नक्सल प्रभावित गांव के इस दंपत्ति को न्यायिक प्रणाली पर पूरा भरोसा है। उनका मानना है, एक न एक दिन उनकी बेटी के साथ जो कुछ हुआ उसका सच सामने आएगा।

उन हत्यारे पुलिस वालों को इसकी सजा जरूर मिलेगी। उन्होंने बताया, इस लड़ाई में सामाजिक कार्यकर्ता और आप नेत्री सोनी सोरी ने उनकी मदद की। उनकी मदद से ही वे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सके।

इसके बाद हाईकोर्ट ने हिड़मे के शव को कब्र से निकालकर मेकॉज में दुबारा पोस्टमार्टम करवाया है।27 जून को सरकार को पीएम रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत करना है। उनका मानना है कि पीएम रिपोर्ट से इस घटना की असलियत सामने आ जाएगी।

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