Friday, July 15, 2016

दिल्ली में बस्तर पुलिस की कड़ी आलोचना
(आलोक पुतुल )
छत्तीसगढ़ में आत्मसमर्पित माओवादियों को ग्रामीण बता कर उनसे डीयू और जेएनयू प्रोफेसरों के खिलाफ बयान दिलवाना बस्तर पुलिस को भारी पड़ सकता है. एक तरफ जहां ग्रामीणों ने बस्तर पुलिस के इस झूठ के खिलाफ कैमरे के सामने बयान दिया है, वहीं अब देश की मुख्य राजनीति में भी बस्तर के आईजी पुलिस एसआरपी कल्लुरी और एसपी आरएन दास की कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

जेएनयू-डीयू के संयुक्त प्रतिनिधिमंडल के बस्तर दौर के बाद मचे बवाल के बीच वामपंथी दलों के निशाने पर बस्तर कलेक्टर अमित कटारिया आ गए हैं। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और भाकपा महासचिव सुधाकर रेड्डी ने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह और मुख्यमंत्री रमनसिंह को पत्र लिखकर मांग की है कि बस्तर में राजनीतिक पार्टियों को बिना भय के गतिविधियां संचालित करने तथा पत्रकारों को ईमानदारी से जमीनी सच्चाई की रिपोर्टिंग करने की अनुमति दी जाएं। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने बस्तर प्रशासन द्वारा प्रतिनिधिमंडल पर लगाए आरोपों को निराधार बताया और सोशल मीडिया में कलेक्टर अमित कटारिया की भूमिका पर सवाल उठाते हुए उनके व्यवहार को गैर-जिम्मेदाराना भी बताया है।

वाम नेताओं ने कहा कि वह प्रशासन व पुलिस को निर्देशित करें कि हमारे प्रतिनिधिमंडल सहित स्वतन्त्र शोधकर्ताओं, पत्रकारों व विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने व उनपर झूठे मुकदमे लादने से बाज आएं। माकपा के छत्तीसगढ़ राज्य सचिव संजय पराते ने माकपा महासचिव सीताराम येचुरी और भाकपा महासचिव सुधाकर रेड्डी द्वारा जारी पत्रों को शनिवार को मीडिया में जारी किया। सीताराम येचुरी ने पत्र में कहा है कि एक पंजीकृत और राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त पार्टी होने के नाते हमें बस्तर और छत्तीसगढ़ सहित देश के किसी भी हिस्से में जाने, लोगों की समस्याओं को समझने, उनसे बातचीत करने तथा संगठित कर उनकी मांगों को उठाने का संवैधानिक और कानूनी अधिकार है। राजनीतिक विरोधियों के दमन से माओवादी समस्या हल करने में कोई मदद नहीं मिलेगी।

नक्सल समर्थक का आरोप सरासर गलत

पूर्व लोकसभा सदस्य व भाकपा महासचिव सुधाकर रेड्डी ने राज्य व केन्द्र सरकार को लिखे पत्र में बस्तर प्रशासन व पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा कि जो पुलिस के साथ नहीं है, वह नक्सल-समर्थक है, सरासर वाहियात है। बस्तर पुलिस और विशेषकर आइजी एसआरपी कल्लूरी पत्रकारों, शोधकर्ताओं, वकीलों व अन्य लोगों को स्वतंत्र रूप से बस्तर में घूमने तथा मानवाधिकारों के उल्लंघन की घटनाओं को प्रकाश में लाने से रोकने का काम कर रहे हैं। पुलिस का काम कानून-व्यवस्था को बनाए रखना है, लेकिन ऐसा लगता है कि वे सरकार की नीतियों को ही निर्देशित कर रहे हैं। किसी भी जनतांत्रिक समाज के लिए यह घातक है।

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