सीआरपीएफ बनाएगी नई ‘बस्तरिया बटालियन’
आलोक प्रकाश पुतुल रायपुर से, बीबीसी हिंदी
12 जुलाई 2016
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ़ अपनी नई ‘बस्तरिया बटालियन’ बनाने जा रही है. गृह मंत्रालय ने इस बटालियन को अपनी मंजूरी दे दी है. लेकिन इस बटालियन को लेकर सवाल भी खड़े होने लगे हैं.
छत्तीसगढ़ में अभी सीआरपीएफ़ की 27 बटालियन तैनात हैं.
सीआरपीएफ़ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "खान-पान, बोली-बानी और इलाके की ठीक-ठीक भौगोलिक जानकारी हो तो किसी भी तरह के ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाना आसान होता है. इस नई बटालियन से छत्तीसगढ़ और विशेष कर बस्तर में माओवादियों से लड़ने में हमें मदद मिलेगी."
इससे पहले पूर्वोत्तर में भी 90 के दशक में इस तरह की नागा बटालियन बनाई गई थी, लेकिन माओवाद प्रभावित किसी इलाके में बटालियन बनाने का काम पहली बार हो रहा है.
इस ‘बस्तरिया बटालियन’ में छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित बस्तर के चार ज़िलों के युवाओं की ही भर्ती की जाएगी. इस भर्ती प्रक्रिया में सीआरपीएफ़ में भर्ती की तयशुदा क़द-काठी में छूट भी दी जाएगी.
भर्ती के बाद इस बटालियन को अगले पांच साल तक छत्तीसगढ़ में ही तैनात किया जाएगा. सीआरपीएफ के अफ़सरों का कहना है कि जो नौजवान माओवादियों के दबाव में आ जाते थे, वे अब सीआरपीएफ़ की तरफ़ आएंगे और इससे रोजगार भी मिलेगा.
लेकिन सरकार के इस निर्णय पर सवाल भी खड़े होने लगे हैं. मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल का कहना है कि 2005 में छत्तीसगढ़ सरकार के संरक्षण में शुरु हुए सलवा जुड़ूम के खिलाफ पीयूसीएल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए उसे भयावह बताकर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था.
लेकिन राज्य सरकार ने उन्हीं सलवा जुड़ूम में शामिल आदिवासियों को 'सहायक आरक्षक बनाकर उन्हें युद्ध में झोंक दिया.'
पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष डॉक्टर लाखन सिंह कहते हैं, "सीआरपीएफ अब उसे स्थानीय संदर्भ देकर दोहराने जा रही है. सीआरपीएफ़ हमेशा राज्य सरकार की पुलिस और एसपीओ का इस्तेमाल चारे के रूप में करती रही है. ऑपरेशन के समय उन्हें भाषा और रास्ते के नाम पर आगे भेजकर उनकी जान जोख़िम में डाला जाता है."
लाखन सिंह ने कहा, "हम पूरे आदेश का अध्ययन करेंगे और ज़रूरत हुई तो हम इस मामले को फिर से अदालत में ले जाएंगे."
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आलोक प्रकाश पुतुल रायपुर से, बीबीसी हिंदी
12 जुलाई 2016
केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ़ अपनी नई ‘बस्तरिया बटालियन’ बनाने जा रही है. गृह मंत्रालय ने इस बटालियन को अपनी मंजूरी दे दी है. लेकिन इस बटालियन को लेकर सवाल भी खड़े होने लगे हैं.
छत्तीसगढ़ में अभी सीआरपीएफ़ की 27 बटालियन तैनात हैं.
सीआरपीएफ़ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "खान-पान, बोली-बानी और इलाके की ठीक-ठीक भौगोलिक जानकारी हो तो किसी भी तरह के ऑपरेशन को अंजाम तक पहुंचाना आसान होता है. इस नई बटालियन से छत्तीसगढ़ और विशेष कर बस्तर में माओवादियों से लड़ने में हमें मदद मिलेगी."
इससे पहले पूर्वोत्तर में भी 90 के दशक में इस तरह की नागा बटालियन बनाई गई थी, लेकिन माओवाद प्रभावित किसी इलाके में बटालियन बनाने का काम पहली बार हो रहा है.
इस ‘बस्तरिया बटालियन’ में छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित बस्तर के चार ज़िलों के युवाओं की ही भर्ती की जाएगी. इस भर्ती प्रक्रिया में सीआरपीएफ़ में भर्ती की तयशुदा क़द-काठी में छूट भी दी जाएगी.
भर्ती के बाद इस बटालियन को अगले पांच साल तक छत्तीसगढ़ में ही तैनात किया जाएगा. सीआरपीएफ के अफ़सरों का कहना है कि जो नौजवान माओवादियों के दबाव में आ जाते थे, वे अब सीआरपीएफ़ की तरफ़ आएंगे और इससे रोजगार भी मिलेगा.
लेकिन सरकार के इस निर्णय पर सवाल भी खड़े होने लगे हैं. मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल का कहना है कि 2005 में छत्तीसगढ़ सरकार के संरक्षण में शुरु हुए सलवा जुड़ूम के खिलाफ पीयूसीएल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए उसे भयावह बताकर प्रतिबंध लगाने का आदेश दिया था.
लेकिन राज्य सरकार ने उन्हीं सलवा जुड़ूम में शामिल आदिवासियों को 'सहायक आरक्षक बनाकर उन्हें युद्ध में झोंक दिया.'
पीयूसीएल की छत्तीसगढ़ इकाई के अध्यक्ष डॉक्टर लाखन सिंह कहते हैं, "सीआरपीएफ अब उसे स्थानीय संदर्भ देकर दोहराने जा रही है. सीआरपीएफ़ हमेशा राज्य सरकार की पुलिस और एसपीओ का इस्तेमाल चारे के रूप में करती रही है. ऑपरेशन के समय उन्हें भाषा और रास्ते के नाम पर आगे भेजकर उनकी जान जोख़िम में डाला जाता है."
लाखन सिंह ने कहा, "हम पूरे आदेश का अध्ययन करेंगे और ज़रूरत हुई तो हम इस मामले को फिर से अदालत में ले जाएंगे."
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