** जो अभी तक मानवाधिकार संगठन कहते रहे है ठीक वही सुप्रीम कोर्ट ने कहा .
छत्तीसगढ़ में बिना आफसा लागू कि हालात उससे भी ज्यादा ख़राब है .
** इंडियन आर्मी द्वारा 1528 एक्सट्रा जुडीशियल किलिंग ( मुठभेड़ ) की जांच के आदेश दिये सुप्रीम कोर्ट ने.
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AFSPA का गलत इस्तेमाल नहीं करे आर्मी- सुप्रीम कोर्ट
(8.7.2016.)
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इंडियन आर्मी और पैरामिलिट्री फोर्स को अपने अधिकारों का बेजा इस्तेमाल न करने की नसीहत दी है।
कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि इंडियन आर्मी या पैरामिलिटरी फोर्स की तरफ से अत्यधिक प्रतिहिंसक ताकत का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि उन इलाकों में भी ऐसा नहीं किया जाता है जहां विवादित आर्म्ड फोर्सेज (स्पेशल पावर्स) ऐक्ट (AFSPA) लागू है।
सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर 2000-2012 के दौरान कथित रूप से इंडियन आर्मी द्वारा 1,528 एक्स्ट्रा-जुडिशल किलिंग्स के मामलों की सीबीआई या एक स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम से जांच कराने की मांग की गई थी। इसी याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया है।
सुप्रीम कोर्ट में जो बेंच इस याचिका की सुनवाई कर रही थी उसके हेड जस्टिस एमबी लोकुर ने कहा, 'चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ को इन सभी इलाकों में 10 नियमों का पालन करना है। इनमें एक इलाका वह भी है जहां AFSPA लागू है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के उस तर्क को खारिज कर दिया कि मिलिटरी मैन के खिलाफ किसी भी केस की सुनवाई क्रिमिनल कोर्ट के क्षेत्राधिकार में नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट पूर्वोत्तर के राज्यों में एक्स्ट्रा जुडिशल किलिंग्स (फर्जी आरोप लगातर हत्या) के इन मामलों की स्वतंत्र जांच कराने पर राजी हो गया है। हालांकि बेंच ने कहा कि कौन सी एजेंसी जांच करेगी इसका फैसला इस मामले के सभी केसों के क्रमवार डेटा वकील मेनका गुरुस्वामी से मिलने के बाद होगा। इस केस में मेनका गुरुस्वामी सुप्रीम को मदद कर रही हैं।
कोर्ट ने कहा कि आर्मी के पास इसकी आजादी थी कि वह इस मामले में जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कोर्ट ऑफ इन्क्वाइरी शुरू करे, भले ये मामले एक दशक से ज्यादा पुराने क्यों नहीं हैं।
कोर्ट मार्शल कार्यवाही को सीमित अवधि तक ही रोककर रखा जा सकता है। अब इन मामलों को चार हफ्ते बाद संज्ञान में लाया जाएगा। तब तक वकील गुरुस्वामी 62 मामलों के जुड़े डेटा को जुटाएंगी। इन मामलो की जांच पहले ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और कोर्ट द्वारा नियुक्त एक कमिटी की तरफ से किया जा चुका है। इस कमिटी की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस संतोष हेगड़े ने की थी। इस कमिटी ने जांच के बाद पाया कि 62 में से 15 मामले फर्जी हैं। हालांकि ह्यूमन राइट्स वॉचडॉग ने 31 मामलों को फर्जी बताया है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सुरक्षा बल इन कार्रवाइयों से बच सकते थे क्योंकि इन्होंने यह कदम AFSPA के तहत उठाया। AFSPA के तहत आर्म्ड फोर्सेज को खास कवच मिला हुआ है। इस ऐक्ट के तहत ये किसी को भी अरेस्ट कर सकते हैं सर्च अभियान चला सकते हैं। सुरक्षाबलों से जुड़े सदस्यों पर इन मामलों में कोई कानूनी कार्रवाई भी नहीं की जा सकती है।
लोकल पुलिस को दोषी आर्मी स्टाफ के खिलाफ कोई भी कार्रवाई से पहले केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होती है। केंद्र इन मौतों का बचाव करता है। केंद्र का तर्क है कि यह संप्रभुता के पक्ष में यूनियन ऑफ इंडिया का कदम है। अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि इन मौतों को लिए आर्मी पर आरोप नहीं लगाया जा सकता।
रोहतगी ने कहा, 'आर्मी केवल संप्रभु फंक्शन की जिम्मेदारी का निर्वाह कर रही है। यह कदम बाहरी आक्रामकता और आतंकी हमले से बचाव के लिए है। यदि इसमें कोई मारा जाता है तो हम आर्मी को ब्लेम नहीं कर सकते। लोगों का मारा जाना संप्रभुता को सुरक्षित रखने के कार्यक्रम का हिस्सा है। हम इन वाकयों के साथ नियमित रूप से उत्पन्न होने वाली लॉ ऐंड ऑर्डर प्रॉब्लम की तरह बर्ताव नहीं कर सकते।' गौरतलब है कि आफ्सपा का हटाए जाने की मांग लंबे समय से उठती रही है।
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मणिपुर में फर्जी मुठभेड़ों के मामले में सेना और केंद्र सरकार को बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दो दशकों में मणिपुर में हुए सभी एनकाउंटरों की जांच केआदेश दे दिए हैं. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर में सेना की कार्रवाई के विरोध में दायर की गई एक याचिका की सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया है. इंफाल की एक सामाजिक संस्था और एनकाउंटरों में मारे गए लोगों के परिवारों द्वारा दायर की गई इस याचिका में करीब 1500 एनकाउंटरों की जांच सीबीआई या एसआईटी से कराने की मांग की गई थी.
कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि पिछले दो दशकों में सेना और पुलिस द्वारा किए गए 1528 एनकाउंटरों की स्वतंत्र जांचहोना जरूरी है. अदालत ने कहा कि कौन सी एजेंसी यह जांच करेगी, यह बाद में तय किया जाएगा. कोर्ट ने केंद्र से इन सभी मामलों की विस्तृत जानकारी मांगी है. साथ ही उसने यह आदेश भी दिया है कि मणिपुर में अफ्स्पा लगे होने और वहां अशांति होने के बावजूद अपने अभियानों के दौरान सेना अत्यधिक बल का उपयोग नहीं कर सकती है.
इससे पहले 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्व न्यायाधीश संतोष हेगड़े की अध्यक्षता वाली एक समिति को करीब 60 एनकाउंटरों की जांच करने को कहा था. जांच में सभी एनकाउंटर फर्जी पाए गए थे जिसके बाद हेगड़े ने कोर्ट से 1500 एनकाउंटरों की जांच कराए जाने की सिफारिश की थी. उधर, केंद्र सरकार हेगड़े जांच रिपोर्ट को गलत बताती है. उसका कहना है कि ये एनकाउंटर विदेशी ताकतों को रोकने और देश की संप्रभुता की रक्षा करने के लिए की गईं जरूरी मुठभेड़ें थीं.
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सुप्रीम कोर्ट ने भी माना भारतीय सेना ने निर्दोष 1528 लोगो की हत्या की है पूर्वोतर में
| 08 Jul 2016
जन उदय : एक याचिका में सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है की भारतीय सेना द्वारा पूर्वोतर राज्यों में विशेषकर इम्फाल और मणिपुर में १५२८ निर्दोष लोगो की हत्या की है और इसकी जांच के लिए एक विशेष कमेटी बनाई जाएगी
सुप्रीम कोर्ट ने माना है की भारतीय सेना ने सेना के विशेष कानून का गलत इस्तेमाल किया है वहा होने वाले हत्या बलात्कार में सेना के जवान शामिल है
यह बात ध्यान रहनी चाहिए की शर्मिला इरोम नाम की महिला इस कानून के खिलाफ पिछले १६ साल से भूख हडताल पर है , इस तरह के काफी आन्दोलन चले है सेना के इस कानून के खिलाफ , हर राजनैतिक पार्टी यहाँ के लोगो से वादा करती है की अगर उनको जिताया गया तो इस कानून को हटा देंगे लेकिन जितने के बाद इससे सब भूल जाते है
सेना के जवान सिर्फ पूर्वोतर राज्यों में ही नहीं मानवाधिकारों के हनन की बाते कश्मीर , छातिश्गढ़ , महराष्ट्र , ओड़िसा , झारखंड , बिहार ,वेस्ट बंगाल ,तेलंगाना , मध्य प्रदेश आदि सभी जगह सेना अपने अधिकारों का इसेमाल करती है मजबूर , बेसहारा गरीबो को कारती है , कत्ल करती है
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