एनटीपीसी और जिन्दल ने अधिकारियो के साथ
मिलके 781 हेक्टर जमीन के अधिग्रहण और मुआवज़ा मे आपराधिक गड़बड़ी की , ग्रामीणो
की मांग ज़मीन वापस की जाये और जिम्मेदार अधिकारियो को कानूनी सज़ा दी जाये , दो
संयुक्त केलेक्टर सस्पेंड किये गये .
वैसे तो छत्तीसगढ विशेषकर रायगढ़ मे
जिन्दल और दूसरे उद्योग नित नई कारगुजारिया करते रहते हैं ,कभी ना तो उनके खिलाफ
कोई निर्णायक कार्यवाही होती है और ना ही उनके दलाल कीमटाराह काम करने वाले
अधिकारियो के खिलाफ कुच्छ होता हैं ,हाल ही का मामला रायगढ़ के पुसॉर विलसखंड
मे एनटीपीसी के गॉव लारा मे निर्माणाधीन सयंत्र के तहत 9 गॉव लारा
,झिलमीतर,देवलसुर्रा,आडमुरा, बॉड़झारिया,कांधगढ़,चपोरा ,महलोई ,और सियापली मे 781
हेक्टर ज़मीन के भूअर्जन मे धारा 4 का पालन नहीं किया गया , और ब्यापक पैमाने मे
ज़मीन की छोटे छोटे टुकडो मे बिक्री करवाई गई ,भूमि अधिग्रहण और मुआवज़ा वितरण मे
भरी गैरकानूनी काम किया गया .
जिन्दल ने भी धनगर और बघनपुर ग्राम मे
धारा 4 की रोक के बाबजूद 15,6297 एकड़ ज़मीन खरीदी और उसकी राशि का भुगतान भी नियम
से नहीं किया गया ,भूमि का नामंतरण भी अपने नाम करा लिया गया ,ये सब इसलिये किया
गया ताकि किसानो को पुनर्वास का लाभ नहीं दिया जा सके . केलेक्टर और दूसरे अधीयकरी
अब कह रहे है की धारा 4 के बाद जिस जमीन की बिक्री हुई है उसे निरस्त किया जायेगा ,
दोनो मामले मे तत्कालीन सयुंक्त क्लेक्टर
तीर्थराज अग्रवाल और महासमुन्द के सयुंक्त क्लेक्टर जे आर चोरसिया को निलंबित
का र्दिया गया हैं।
कैसे हुआ घपला ,
सामान्य
प्रशाशन विभाग द्वारा कहा गया की अधिकारियो ने एनटीपीसी के लिये 781 हेक्टर भूमि
अधिग्रहण मे भूराजस्वा संहिता का पालन नहीं किया गया ,इसके कारण निलंबन की
कार्यवाही की गई हैं .रायगढ़ के बघनपुर और कोड़ातराई गॉव मे अनुविभागिया अधिकारी
ने 6 जुलाई 2012 को अधिसूचना जारी करके ख्रिडि बिक्री पे रोक लगा दी थी, इसके बाद
सयुक्त कलेक्टर तीर्थ राज अग्रवाल ने 21 अप्रेल 2013 को अपने आदेश से इस आदेश को
तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिया ,इसके कारण इन गॉव मे गैरकानूनी तरीके से खरीद
बिक्री का खेल शुरू हो गया .इसी तरह दूसरे संयुक्त कलेक्टर चीरसिया ने भी घरघोड़ा
मे अनुविभागिया अधिकारी रहते हुये खेलनारा, बजरमुडा , कारवाही ,खमरिया ,मिलुपरा के
लगभग 445 हेक्टर भूमि सरफेस राइट का प्रतिकार गलात तरीके से निर्धारण करते हुये
साथ ही एनटीपीसी संयत्र के लिये भूअर्जन प्रकरण मे प्रभावित व्यक्तियो को लाभ
पहुचने के लिये षड्यंत्र किया ,
इस
सबका मकसद यही था की नये भूमि अधिग्रहण कानून के कारण उन्हे अधिक मुआवज़ा नहीं मिल
पाये, और उन किसानो को बाजार कीमत से चार गुना मुआवज़ा ना देना पड़े .ये ठीक
है की इस कार्यवाही से जिन्दल और एनटीपीसी के लिये कुछ जमीन ka आवंटन रद्द हो सकता
हैं
लेकिन इन सब गैरकानूनी मामलो मे
नीचे से लेके उपर तक के अधिकारी शामिल थे ,जब धारा 4 के प्रकाशन के बाद सारी खरीद
फ़रोक्त पे रोक लगी थी तो फिर जमीन की रजिस्ट्री कैसे हुई .एनटीपीसी मे 900 करोड़
के मुआवज़ा के घपले मे सिर्फ दो अधिकारियो को निलंबित किया गया था .लेकिन आज
तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई ,
हर हालत मे ओढ़ोगिक घराने और सरकार किसी भी
तरह किसानो और आदिवासियो को उनके वास्तविक अधिका र्नेही देने चाहते ,इसके लिये तरह
तरह के षड्यंत्र करते रहते हैं ,.अभी तक ना तो उद्योगपतीयो को कोई नुकसान हुआ और
नहीं शासकीय अधियारी कभि पकड़ मे आये,
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