Sunday, August 31, 2014

केवल ओवैसी क्यों?





[खामोशी की चीख शीर्षक से 11 फरवरी 2013 को जनसत्ता में प्रकाशित] 



पर केवल ओवैसी ही क्यों पूछ रहे मेरे दोस्त की 
आँखों में कोई गुस्सा नहीं बस एक गहरा खालीपन था. गुस्सा तो वह शायद हो भी नहीं सकता था क्योंकि बीते तीन दशक में धीरे धीरे इस देश के साम्प्रदायिक सहजबोध का हिस्सा बना दी गयी तमाम रूढ़ियाँ इस प्यारे से दोस्त के व्यक्तित्व के सामने ध्वस्त हो जाती हैं. भगवा हमलों के जवाब में बढ़ती जा रही टोपियों के दौर में रोजों के बीच भी शराबखोरी कर लेने और फिर उसकी याद आने पर हलके से कुछ बुदबुदा कर माफी मांग लेने वाले इस प्यारे से दोस्त का होना भर न सिर्फ इस मुल्क में गंगाजमनी तहजीब के जिन्दा होने का सबसे बड़ा सबूत है बल्कि वहाबी इस्लाम के सूफी इस्लाम को खारिज करने की कोशिशों के एक दिन असफल हो जाने की जिन्दा उम्मीद भी.

हमने उसे सारी उम्र इस्लाम खतरे में है के नारों पर हँसते देखा है. देखा है कि कैसे उसने जहरीली तक़रीर करने आये मौलानाओं को बड़ी गंभीरता से सुनने के बाद धीरे से पूछा है कि मियाँ, ये सब तो ठीक है पर आप ये बताइये कि मस्जिदों पर ज्यादा हमले कहाँ होते हैं हिंदुस्तान में कि पाकिस्तान में? ये बताइए कि जेहादियों के हाथ ज्यादा कहाँ के मुसलमान क़त्ल होते हैं? और फिर स्तब्ध खड़े मौलाना को धीरे से यह कहते हुए भी कि मियाँ इस्लाम खतरे में तो है मगर इस पार नहीं, उस पार और वहां बचा लीजिये यहाँ अपने आप बच जाएगा.

हमने इस दोस्त की आँखों में कौम के स्वयंभू ठेकेदारों, फिर वह चाहे हिन्दू हों या मुसलमान, गुस्सा ही देखा था. हमारी साझेदारियों में इससे पहले ओवैसी और उनकी पार्टी मजलिस--इत्तेहादुल मुसलमीन सिर्फ एक बार आये थे वह भी तब जब उन्होंने प्रख्यात बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन पर हमला किया था और भारत के एक बहुत प्रगतिशील समझे जाने वाले शिक्षण संस्थान जेनयू में मुस्लिम कट्टरपंथियों के इस हमले पर पसरी गहरी चुप्पी के बीच हमने उनके खिलाफ पोस्टर चिपकाए थे, पर्चे बांटे थे.

ऐसा भी नहीं की हम हमेशा एक दूसरे से सहमत ही रहे हों. सच कहें तो भारत में इस्लाम पर लगातार बढ़ रहे दक्षिणपंथी हमले को लगभग खिलंदड़ाना अंदाज़ में खारिज कर देने की उसकी आदत हमारे बीच लगातार होने वाली लड़ाइयों का सबसे बड़ा सबब बनती रही थी. हमें लगता था कि उसका इस मुल्क की जनता के अमनपसंद होने पर बहुत गहरा यकीन कई बार उसे गहराते जा रहे संकट को देखने नहीं दे रहा.

आप गुजरात कहें और वो कहता कि यही वजह है कि भाजपा दुबारा कभी इस देश की सत्ता में नहीं आ पायी. आप न्याय के बारे में पूछें और वह कहेगा कि देर से सही गोधरा के तमाम बेगुनाह बरी तो हो गए न. आप दंगाइयों को अब तक सजा न मिलने के बारे में पूछें और हिन्दुस्तान की अदालतों में यकीन से लैस वह बतायेगा कि वे बच नहीं पायेंगे. आप सच्चर कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र करें और वह कहेगा कि बरखुरदार, हालात इतने संगीन होते तो ये बेजुबान प्रधानमंत्री कभी यह दावा न कर पाता कि वैश्विक जेहाद में किसी हिन्दुस्तानी मुसलमान के शरीक न होने पर उसे गर्व है. 

पर सिर्फ ओवैसी क्यों पूछते उसी दोस्त की आँखों में इस बार वही यकीन गायब था. ऐसा भी नहीं कि उसके इस यकीन का छीजना हमें दिखा नहीं था. शहर बदल जाने के बाद आभासीय दुनिया में गाहेबगाहे मुठभेड़ हो जाने पर पूछे जाने वाले उसके सवालों में एक गहरी खामोशी और उससे भी गहरी उदासी थी. बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद उसने पूछा था कि इन्हें भी तिरंगे में लपेट दिया मियाँ? ये तो मुसलमानों को कैंसर कहते थे न और साम्प्रदायिक घृणा फैलाने के अदालत से सजायाफ्ता थे?

उसे अब तक साम्प्रदायिकता की आग के सामने अमन की मिसाल बने खड़े पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने पर गर्व था. राममंदिर आन्दोलन के चरम दौर में भी इस इलाके में दंगा करवा पाने की असफल कोशिशें अवाम पर उसको इंसानियत के जिन्दा होने का सबूत लगती थीं. पर फिर धीरे धीरे यह इलाका भी बदलने लगा था. हमें इस इलाके की हवाओं में फिरकापरस्ती का जहर घोलने की कोशिश कर रहे लोग अपने इरादों में कामयाब होते नजर आने लगे थे. 

रमजान काका का राम राम भगवा झंडों वाले जय श्रीराम में कब और कैसे बदल गया यह हम दोनों साथ साथ और साफ़ देख पा रहे थे.  एक बार कहा भी था उसने कि ये योगी आदित्यनाथ जैसे लोग और उनके खिलाफ कार्यवाही न करने वाली सरकारें ही हैं जो मुख्तार अन्सारियों को मुसलमानों का नेता बना देती हैं और इसे रोकना ही होगा.

इस बार उसने और किसी का जिक्र नहीं किया. सिर्फ इतना भर पूछा कि सिर्फ ओवैसी क्यों? उसकी खाली, भावहीन आँखों में मुझे इस सवाल से बचने की कोशिशों के नतीजे दिख रहे थे. याद रखिये कि हमने 1992 में ऐसे ही एक सवाल से बचने की कोशिश की थी और फिर इस मुल्क में कभी न होने वाले बमविस्फोट हमारे शहरों का आम नजारा हो गए थे. इस बार कीमत शायद और बड़ी हो.

न्याय, और सबके साथ न्याय ही एक देश को देश बना के रखता है. एक समुदाय को न्याय से वंचित रखने की कोशिशें न केवल मजहबी कट्टरपंथ को जन्म देती हैं और जिन्दा रखती हैं बल्कि उस समुदाय के भीतर की अमनपरस्त आवाजों को जिबह भी कर देती हैं. और फिर किसी भी धर्म के भीतर बैठे चंद मजहबी कट्टरपंथियों से लड़ना आसान है, पर पूरे समुदाय के हारे हुए यकीन से नहीं. 

What NIA said on Patna Modi rally blasts: IM, SIMI turned Chhattisgarh into a terror safe hou


New Delhi: Terror outfits Indian Mujahideen and SIMI are trying to turn communally peaceful states such as Chhattisgarh into new hubs of terror activities. Investigation into the blasts at Narendra Modi's election rally in Patna on 27 October last year has thrown up this startling finding. Chhattisgarh figures prominently in the charge sheet filed by the National Intelligence Agency in connection with the Patna bomb blasts of 27 October, 2013. The blasts had taken place at an election rally of BJP's chief campaigner Narendra Modi.
While consecutive arrests made by the state police in November and December 2013 revealed a conspiracy hatched by SIMI-IM combine to unleash 'fidayeen' attack on Narendra Modi during his pre-poll campaigns, it also jolted the people of Chhattisgarh to the rude awakening that terror plots are being hatched in their backyard.
Representational image. AP
Representational image. AP
Of the 10 accused whom the NIA chargesheeted for their alleged involvement in the Bodh Gaya and Patna blasts on 7 July and 27 October respectively, four members — Haidar Ali alias Abdullah, Numan Ansari, Taufeeq Ansari and Mojibullah — took shelter in Raipur for over a fortnight immediately after the incident. They left Raipur on 15 November, 2013, a day after the rally of the BJP’s then prime ministerial candidate Modi in Chhattisgarh.
A key SIMI member, Umer Siddiqui, who used to run a coaching centre at Raja Talab in Raipur arranged a rented accommodation for the four terror suspects at Sanjay Nagar. "The arrest of these local SIMI members linked with IM could be made on the basis of monitoring of their suspicious movements and activities over the last three years and interception of calls. The IM operatives were in touch with Siddiqui for guidance," said ADG (Intelligence), CG Police, Mukesh Gupta.
"But, the IM operatives had managed to escape while we were trying to dig out information from the arrested local SIMI members, who acted as sleeper cells," he said.
Prior to Modi’s rally at Raipur in November 2013, the sleeper cell conducted a recee of the area, as the aim was to attack Modi during the rally, "But despite preparations, the terrorists failed because at the last moment they couldn’t get the arms and explosives for which money was already paid by them to their source."
Whether it’s the Naxalites or IM in Chhattisgarh, the sleeper cells have become active over the years, giving shape to major terror plots and unleashing attacks. The sleeper cell members of SIMI whom the police had arrested worked as teachers, property brokers, mechanics, auto drivers, glass merchants, welders, junk dealers etc to give cover to their underground activities.
"Since this state continues to be a land of communal peace, both SIMI and IM found it to be a perfect place for a hideout, where no one would suspect them. Both these groups must have been keeping a close watch on Chhattisgarh for quite some time," said Raipur-based retired bureaucrat and political analyst Sushil Trivedi.
The consecutive arrest of another SIMI member Salim Ahmed, a property dealer from Sanjay Nagar in Raipur on 13 December, 2013, revealed that he was involved in booking hotel rooms and raising funds for the alleged terrorists. The Chhattisgarh police claims that apart from holding a special meeting, a training programme was organised by Siddiqui along with Salim near Barnawapara Sanctuary — nearly 100 kms from Raipur.
Later, in another important catch, the Raipur police arrested a 22-year old SIMI and IM operative, Dheeraj Sao, a native of Bihar on 25 December, 2013. Sao, who had been running a roadside Dhaba at Transport Nagar area, was allegedly involved in raising funds for the banned outfits. After the arrest of 16 suspected SIMI activists from the state capital, the intelligence wing had been keeping an eye on suspects allegedly connected to those arrested. Sao came in touch with one Khalid from Pakistan in 2011 and since then he had received huge amounts from different bank accounts, which were later deposited in the accounts of IM operatives Jubair Hussain and Ayesha Bano in Mangalore, through his own account.
"Apart from the activity of sleeper cells, we also unearthed terror funding racket linked to IM," added Gupta.
If intelligence reports and the disclosure made by arrested IM mastermind Yasin Bhatkal during the course of his interrogation by the NIA are to be believed, a 'lethal cocktail' is fermenting in the backyards of Chhattisgarh. Intelligence sources said the fact couldn’t be ignored that similar to other IM modules like the Dharbhanga module, they were planning a Raipur module as well.
"Since Azamgarh, Bhopal, Indore etc are under the intelligence scanner, the terrorists chose Raipur as their hide-out," a source said. Chhattisgarh-based social economist Vivek Joglekar opines that the surge in SIMI activities or IM operatives in Chhattisgarh is not out of any discrimination or rage, but is due to crackdowns elsewhere.
"The IM operatives found Chhattisgarh a safe haven to hide and continue with their activities elsewhere. Even today when there are riots elsewhere in the country, you won’t ever find a reactionary incident in Chhattisgarh. Even after the arrest of SIMI operatives in Raipur, there was no sharp reaction from the Muslim community. Instead, people questioned how could such activities continue without the knowledge of the police," added Joglekar.
According to intelligence sources, Siddiqui, who has also been named in the chargesheet, had been mentoring one Azhar, to whom he was planning to hand over his Chhattisgarh mantle upon fleeing to Afghanistan.

गिरफ्तार ग्रामीण नक्सली नहीं भाकपा कार्यकर्ता : कुंजाम

गिरफ्तार ग्रामीण नक्सली नहीं भाकपा कार्यकर्ता : कुंजाम

Bhaskar News Network | Aug 28, 2014, 02:05AM IST
जगदलपुर| भारतीयकम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व विधायक आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मनीष कुंजाम ने बस्तर पुलिस के द्वारा सुखदेव नाग और मांझी राम कश्यप की गिरफ्तारी का विराेध किया है।

सुकमा कलेक्टर को मुख्यमंत्री के नाम सौंपे गए एक ज्ञापन में कुंजाम ने कहा है कि गिरफ्तार किए गए दोनों ग्रामीण भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के पदाधिकारी हैं। इनमें से सुखदेव नाग दरभा जनपद पंचायत का सदस्य है, जबकि मांझीराम टाहकवाड़ा में पार्टी ब्रांच का सचिव है। इन्हें 25 अगस्त को तोंगपाल थाना में बुलाया गया था। थानेदार के नहीं मिलने पर शाम को ये फिर थाना गए थे।

अगले दिन इन्हें झीरम हमले में शामिल होने और महेंद्र कर्मा को गाेली मारने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। जबकि दो बार पहले भी एनआईए ने सुखदेव नाग से पूछताछ की थी। जिसमें एनआईए को कोई प्रमाण नहीं मिला था। इस घटनाक्रम का विरोध किया जाएगा।

कंुजाम ने बताया कि इस संबंध में पुलिस महानिदेशक और एडीजी इंटेलिजेंस से बात की गई है। अब अगले चरण में रणनीति के तहत इसका विरोध किया जाएगा।

http://epaper.patrika.com/c/3388026

Vcadantewada Kawalnar Ashram

30 अग (1 दिन पहले)
SudhaAjayAPमुझेdegreeGautamRajendrashishirAtindriyoSamanthaDrZulekhaalokSureshprabhakar1938KavitaGautamAshishVivekSharanyaShivaniMuraliSurendraAdvAmitdyuti
रामारामइलाके में कुछ दिनों पूर्व फोर्स ने अंधाधुंध फायरिंग की। इसके बाद पुलिस ने दावा किया कि यहां नक्सली मौजूद थे और मुठभेड़ में 11 नक्सली मारे गए। 

घटना में कोई नक्सली नहीं मारा गया है। फोर्स ने यहां जबरन दो निर्दोष को मौत के घाट उतारा दिया। यह दावा आम आदमी पार्टी की सोनी सोढ़ी ने शुक्रवार को आयोजित पत्रवार्ता में किया। उन्होंने बताया कि आप पार्टी के सदस्यों ने पिछले कुछ दिनों में कई मामलों की जांच अपने स्तर पर की। इस दौरान उन्हें पता चला कि पुलिस ने रामाराम में जिस मुठभेड़ की बात कही है वह गलत है। जांच में पता चला कि यहां फोर्स के लोग अचानक पहुंचे और अंधाधुंध गोलीबारी करने लगे। 

घटना में गांव की इड़मे गट्‌टी इड़मा की मौत हो गई। मौके से पुलिस ने इड़मा का शव ले जाने में सफल हुए जबकि महिला के शव को गांव की महिलाओं ने नहीं ले जाने दिया। ग्रामीण इड़मा का शव दिखाकर पुलिस ने 11 नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया। 

इसके अलावा राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि ताड़मेटला में ग्रामीणों के घर जलवाने वाले एसआरपी कल्ल्ुरी को बस्तर का आईजी बना दिया गया है। सोढ़ी ने यह भी आरोप लगाए कि इन दिनों बस्तर में निर्दोषों को आत्मसमर्पण करवाने का दौर चल निकला है। उन्होंने बताया कि बड़े गुड़सा के इरमा को सरेंडर करवाया गया, पर उसे जेल में ही कैद कर रखा गया है। जबकि सरेंडर करने वाले लोगों को तुरंत रिहा किया जाता है। जब सोढ़ी से पूछा गया कि इरमा नक्सलियों से जुड़ा था या नक्सली था तो उनका कहना था कि वह भी ग्रामीण है और उसका नक्सलवाद से कोई संबध नहीं।

उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस आदिवासियों को ढूंढकर उनका आत्मसमर्पण करवा रही है पर कारली से लापता हुई रामदई कश्यप, सुनीता ताती, कोदे ताती को ढूंढने का कोई प्रयास नहीं कर रही है। कारली पुलिस एफआईआर तक नहीं लिख रही थी। बीजापुर एसपी से शिकायत के बाद रिपोर्ट दर्ज की गई पर इन युवतियों को ढूंढने का कोई प्रयास पुलिस ने नहीं किया है। 

स्टीलप्लांट के नाम पर भाजपा नेता जमीन खपाने में लगे : आपपार्टी के संकेत ठाकुर ने आरोप लगाया कि बस्तर में लग रहे स्टील प्लांट का फायदा भाजपा के कुछ आदिवासी नेता उठाने की तैयारी में है।

Polavaram Project in AP Enveloped in Lies, Deceit and Much More

Polavaram Project in AP Enveloped in Lies, Deceit and Much More

By P S Dileep
Published: 28th August 2014 06:00 AM
Last Updated: 28th August 2014 09:59 AM
The New Indian Express
BHADRACHALAM (HYDERABAD) : A trail of lies unravels as one travels through the Papikonda hills, with the Godavari river slicing through it. Village after village certifies that the authorities have lied - first about complying with the Forest Rights Act provisions and now about compensation to  tribals. Far from being a boon to both Andhra and Telangana as is being bandied about, the Polavaram project will be causing a huge devastation. The multi-purpose project would massively displace people numbering over two lakh (nearly four lakh unofficially) from over 300 villages in nine mandals of Khammam (VR Puram, Kunavaram, Chintur, Bhadrachalam, Velerpadu, Kukunur and Burghampad), Devipatnam mandal (East Godavari) and Polavaram mandal (West Godavari), all of them in the Fifth Scheduled area, besides parts of Konta block in Dantewada district of Chhattisgarh and Motu block of Malkangiri district of Odisha.
Though the government officially claims that the displacement would be less than two lakh in Andhra Pradesh following merger of the seven mandals of Khammam district and a few thousands in the neighbouring Chhattisgarh and Odisha, the reality seems to be different. Sunnam Venkataramana, secretary of People Against Polavaram Project(PAPP) says, “Most villages that will be submerged due to the Polavaram project have not been given their rights.”
Only recently, a majority of the tribals came to know about the Scheduled Tribes and Other Traditional Forest Dwellers (Recognition of Forest  Rights) Act-2006, popularly known as Forest Rights Act (FRA). Section 4(5) of the Act states no forest dweller can be removed from his land until the process of recognition of rights is completed. Apart from FRA, the agitators fighting against the project claim that there was gross negligence in abiding to the 1/70 Act of Andhra Pradesh (prohibits alienation of land in the scheduled areas to a non-tribal),
Fifth Schedule Area rights, Panchayat Extension to Scheduled Areas (PESA) Act-1996 (mandates the approval of the affected gram sabhas) and special rights to tribals under the Constitution.
“The forest clearance given by the Ministry of Environment and Forests (MoEF) in 2010 for the project was the result of plain violation of FRA on a number of counts.
The State government had lied to obtain the clearance telling the MoEF that there were no forest rights to be settled under FRA in the project-affected areas. The reality is that gram sabha consent for diversion of forest land for non-forest purposes has not been obtained,” argued VS Krishna, general secretary of Human Rights Forum.
As per the announcement made by the Centre in Parliament and the Andhra Pradesh government assurances, the relief and rehabilitation package, including land-to-land compensation, will be made as per the Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act-2013.

रामाराम में पुलिस ने ग्रामीणों पर दागी गोलियां : सोनी सोढ़ी

Bhaskar News Network | Aug 30, 2014, 02:00AM IST
रामाराम में पुलिस ने ग्रामीणों पर दागी गोलियां : सोनी सोढ़ी
कोई नक्सली नहीं मरा। दो निर्दोष ग्रामीण मारे गए। ताड़मेटला में घर जलाने वाले को राज्य सरकार ने बनाया आईजी।

भास्कर न्यूज|जगदलपुर

रामारामइलाके में कुछ दिनों पूर्व फोर्स ने अंधाधुंध फायरिंग की। इसके बाद पुलिस ने दावा किया कि यहां नक्सली मौजूद थे और मुठभेड़ में 11 नक्सली मारे गए।

घटना में कोई नक्सली नहीं मारा गया है। फोर्स ने यहां जबरन दो निर्दोष को मौत के घाट उतारा दिया। यह दावा आम आदमी पार्टी की सोनी सोढ़ी ने शुक्रवार को आयोजित पत्रवार्ता में किया। उन्होंने बताया कि आप पार्टी के सदस्यों ने पिछले कुछ दिनों में कई मामलों की जांच अपने स्तर पर की। इस दौरान उन्हें पता चला कि पुलिस ने रामाराम में जिस मुठभेड़ की बात कही है वह गलत है। जांच में पता चला कि यहां फोर्स के लोग अचानक पहुंचे और अंधाधुंध गोलीबारी करने लगे।

घटना में गांव की इड़मे गट्‌टी इड़मा की मौत हो गई। मौके से पुलिस ने इड़मा का शव ले जाने में सफल हुए जबकि महिला के शव को गांव की महिलाओं ने नहीं ले जाने दिया। ग्रामीण इड़मा का शव दिखाकर पुलिस ने 11 नक्सलियों के मारे जाने का दावा किया।

इसके अलावा राज्य सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि ताड़मेटला में ग्रामीणों के घर जलवाने वाले एसआरपी कल्ल्ुरी को बस्तर का आईजी बना दिया गया है। सोढ़ी ने यह भी आरोप लगाए कि इन दिनों बस्तर में निर्दोषों को आत्मसमर्पण करवाने का दौर चल निकला है। उन्होंने बताया कि बड़े गुड़सा के इरमा को सरेंडर करवाया गया, पर उसे जेल में ही कैद कर रखा गया है। जबकि सरेंडर करने वाले लोगों को तुरंत रिहा किया जाता है। जब सोढ़ी से पूछा गया कि इरमा नक्सलियों से जुड़ा था या नक्सली था तो उनका कहना था कि वह भी ग्रामीण है और उसका नक्सलवाद से कोई संबध नहीं।

उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस आदिवासियों को ढूंढकर उनका आत्मसमर्पण करवा रही है पर कारली से लापता हुई रामदई कश्यप, सुनीता ताती, कोदे ताती को ढूंढने का कोई प्रयास नहीं कर रही है। कारली पुलिस एफआईआर तक नहीं लिख रही थी। बीजापुर एसपी से शिकायत के बाद रिपोर्ट दर्ज की गई पर इन युवतियों को ढूंढने का कोई प्रयास पुलिस ने नहीं किया है।

स्टीलप्लांट के नाम पर भाजपा नेता जमीन खपाने में लगे : आपपार्टी के संकेत ठाकुर ने आरोप लगाया कि बस्तर में लग रहे स्टील प्लांट का फायदा भाजपा के कुछ आदिवासी नेता उठाने की तैयारी में है। 

Saturday, August 30, 2014

नारायण चौहान साहब ने छत्तीसगढ़ के भयानक माहौल में रहते हुए भी सच की लड़ाई जारी रखी है .

नारायण चौहान

उजड़े हुए जंगलों को फिर से हरा भरा करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार को सैंकडों करोड़ रूपये दिए गए .

छत्तीसगढ़ सरकार के नेताओं और अधिकारियों ने उस पैसे से सैंकडों सालों से अपने गाँव बसा कर रहने वाले आदिवासियों को उजाड़ा और 

सरकार ने नए जंगल काटे और उन आदिवासियों को वहाँ ला कर पटक दिया .

नए गाँव में न फसल होती है , घर गिर गए हैं ,न स्कूल न अस्पताल ,न रिश्तेदार , जिंदगी मुश्किल है

सरकार ने जंगल लगाने के लिए मिले पैसों से कारें खरीदी

बंगले बनवाए

जबकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाये गए नियमों में इन सब के लिए मनाही थी

इस पर महालेखाकार ने अपनी आपत्तियां भी उठाई

पर उसकी परवाह किसे है

रमन सिंह फिर चुनाव जीत गये है

और उनके गुरु मोदी अब प्रधान मंत्री है

नारायण चौहान साहब ने छत्तीसगढ़ के भयानक माहौल में रहते हुए भी सच की लड़ाई जारी रखी है .

नारायण चौहान साहब ने इस सब के खिलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में सरकार के खिलाफ़ मुकदमा दायर कर दिया है .

नारायण चौहान साहब के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुके हैं .

वो कहीं छुपे हुए हैं .

राष्ट्र निर्माण जारी है


http://tehelkahindi.com/campa-funds-scam/

अंत में आपके पास जलाने के लिए कुछ नहीं बचेगा


अंत में आपके पास जलाने के लिए कुछ नहीं बचेगा

साहेब ,महात्मा गांधी की हत्या आपके गुरु ने करी 

इस पाप को छुपाने के लिए आपने सबूत की फाइलें जलवा दी हैं 

लेकिन अभी तो बहुत कुछ ऐसा है जिसे आप को जलाना पड़ेगा 

वो चिट्ठियाँ भी जलवा दीजिए जो आपके संघ के गुरुओं ने अंग्रेजों को माफी नामे के तौर पर भेजी थीं .

क्योंकि इससे आपकी गद्दारी की परम्परा की पोल खुल जाने का भय है

आपको वो बयान भी जलाने हैं जो आपके दल के अटल साहब ने अंग्रेजों के सामने दिए थे ,जिसमे उन्होंने उस दौर के क्रांतिकारियों के खिलाफ मुखबिरी करी थी .

आपको वो इतिहास भी जलाना पड़ेगा जिसमे बताया गया है कि किन बौद्ध मठों को तोड़ कर मंदिर बनाये गए .

आपको इतिहास की वो सारी किताबें जलानी पड़ेंगी जिनमे दलितों की बस्तियों को जलाने की तफसीलें दर्ज़ हैं .

अट्ठारह सौ सत्तावन में हिंदुओं और मुसलमानों की एकता और मिल कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने का पूरा विवरण भी तो अभी जलाना बाकी है .

आज़ादी की लड़ाई में जहां जहां भी मुसलमानों के नाम दर्ज़ है उन सब किताबों को जलाना भी बाकी है .

इसके बाद जलाने का हुक्म दीजियेगा उन सभी बस्तियों को जहां मुसलमान और ईसाई रहते हैं .

फिर इस देश की सांझी संस्कृति को जला दीजियेगा .

फिर इस देश को जला दीजियेगा .

आग कम पड़े तो कुछ अपने आदर्श हिटलर से और कुछ इस्राईल से ले लीजियेगा .

अंत में आपके पास जलाने के लिए कुछ नहीं बचेगा .

तब आप आराम करियेगा .[ दन्तेवाड़ा  वाणी  ब्लॉग ]

Engaging Sangh Pariwar: Bhagwat gives Opportunity, Any Takers?

Sadanand Patwardhan

Since 10th of August a controversy has erupted over the reported remarks of Mohan Bhagwat that All those who stay in Hindustan are Hindus. Reactions across the board followed usual rut. But, if one took a closer look, then the situation had several novel features. It warrants a serious dialogue among all political parties if they are willing to give up, to use Modi’s phrase, राजनीती in favour of राष्ट्रनीति. It is a tall order, but not impossible, though improbable.
quote
Moot points in the acrimonious debates are overlooked and lost as is usually the case. For one, "India" / "Hindu" have same roots in "Indus"/ "Sindhu". For another, even Government entities duly established by "law" like Hindustan Aeronautics, Hindustan Petroleum, would be all unconstitutional if word "Hindustan" were repugnant to Constitution. Third, the endearing term of RSS for हिंदुराष्ट्र is भारतवर्ष (अखंड भारत), and abandoning it for Hindustan (which tacitly accepts the fact of partition) makes it pari passu with Pakistan, would have been sacrilege had someone else dared. What a comi-tragic mix-up with "secularist" pumping for Bharat and "Hindutva-vadi" for Hindustan.
unquote
Here is why in my opinion such dialogue should happen.
http://searchlight-is-on.blogspot.in/2014/08/engaging-sangh-pariwar-bhagwat-gives.html

sp

The Green Route To Corruption


The Green Route To Corruption

Funds under a Central programme meant for mitigating environmental damage caused by industries have been misused by the Raman Singh government. Pradeep Sati reports
Pradeep Sati 2014-09-06 , Issue 36 Volume 11

chattisgarh_karalayaEpicentre of the scam The office of the Principal Chief Conservator of Forests, Chhattisgarh
When Chhattisgarh Chief Minister Raman Singh met Prime Minister Narendra Modi on 10 June — their first meeting since the PM assumed office — among the various issues they discussed was the Compensatory Afforestation Management and Planning Authority (CAMPA). Raman Singh demanded that the funds deposited under CAMPA should be handed over to the state.
The CAMPA fund was set up by the Union Ministry of Environment and Forests (MoEF) in 2009 to facilitate environmental conservation. Under the scheme, Chhattisgarh was expected to receive around Rs 3,000 crore over the next five years. Raman Singh emphasised that if the Centre released the entire amount, the state government would be able to speed up the work. As he praised his own government for efficiently utilising the funds, Modi assured him that he would look into the matter.
But just a day after the CM made the demand, a PIL petition was filed in the Supreme Court accusing the Chhattisgarh government of misusing the funds. The petition claimed the government did not spend the money in accordance with the CAMPA guidelines and that it was spent in ways that did not benefit the public. It alleged that senior government officials colluded to spend the money for purposes other than what it was meant for. It also accused the Central Empowerment Committee (CEC) constituted under the MoEF of doing nothing despite being aware of the scam.
The petition warned that the state government was seeking the release of the entire fund to serve its own interests and sought a probe by an independent agency to recover the misutilised money from the accused persons. When the apex court admitted the petition filed by freelance journalist and social activist Narayan Singh Chauhan, questions were raised over why Raman Singh was demanding the release of the funds.
In his petition, Chauhan listed the various activities for which the funds were allegedly used, including illegal constructions, purchase of luxury vehicles, eco-tourism, deforestation and unofficial tours by officers. More than Rs 100 crore was spent on these activities, the petitioner alleged.
To Hell With Guidelines
♦ The CAMPA guidelines allow for the provision of vehicles to forest officials below the Range Officer level as they have to tour extensively in their jurisdiction. But in Chhattisgarh, most of the vehicles were purchased for officials of higher rank. Also, the vehicles included luxury cars — a clear violation of the guidelines
♦ The guidelines prohibit the use of the funds for eco-tourism activities, yet crores were spent for that purpose in Chhattisgarh. The CAG also questioned it
♦ It was decided to plant 400 trees per hectare at the rate of Rs 15,100, yet at some places, the rates jumped to Rs 52,704 per hectare
♦ Claiming that non-forest land was unavailable for afforestation, already dense forest areas were shown as plantation sites
Interestingly, CAMPA had been set up following the Supreme Court’s verdict on another PIL. That petition, which had been filed by several civil society groups, had sought to draw the court’s attention to environmental damage caused by industrialisation and demanded compensation for loss of forest land due to non-forest uses. The apex court had then directed the Centre to set up the CAMPA fund along with the governments of 14 states that had seen destruction of forests. The idea was that when forest land is sold to industries, an equivalent area would be purchased elsewhere to plant trees as “compensatory afforestation”.
In its guidelines dated July 2009, the MoEF not only directed where to use the fund money but also clearly mentioned where it was not to be used. As per the SC order, 10 percent of the fund amount is given to the concerned state’s forest department every year. In the 2009-13 period, Chhattisgarh received tranches of Rs 123.21 crore, Rs 134.11 crore, Rs 99.54 crore and Rs 114.38 crore, respectively.
Misutilisation of the CAMPA fund in Chhattisgarh was first revealed in the reports of the Comptroller and Auditor General (CAG) for 2010-11 and 2011-12. Documents obtained through RTI also give credence to the allegations by petitioner Chauhan, who had complained to the MoEF as well as the governor, CM and Lokayukta of Chhattisgarh before taking the matter to court.
One of the most egregious ways in which the funds were misutilised was through the purchase of luxury vehicles for officials. Documents obtained through RTI reveal that Rs 20 crore was spent merely on the purchase of vehicles between 2009 and 2013. According to the MoEF guidelines, vehicles can be bought only for officials of the rank of Range Officer or below. But most of the vehicles purchased were allotted to officers of higher rank. Moreover, the purchases included a fleet of new vehicles such as Tata Safari and Tata Manza, though the guidelines clearly do not allow it.
According to the CAG report of 2011-12, the state government bought 23 vehicles by using money from the CAMPA fund in that financial year. The report revealed that Rs 20 lakh was spent only on the purchase of two Tata Safaris for the forest minister and the principal secretary (forest). Chauhan calls it an outright plunder of fund money.
In the past five years, money from the CAMPA fund was also used for the construction of at least a dozen lavish bungalows for officers. Located in different forest ranges across the state, these bungalows were allotted to officers ranging from District Forest Officers to Forest Conservators. More than Rs 24 crore was incurred as the construction cost of these residential bungalows as well as other offices.
When the CAG report questioned it, the state government tried to defend the move by referring to the CAMPA guidelines, which allow the government to use fund money for providing basic amenities required for activities under the scheme. The state government used this clause to justify the allotment of bungalows to senior officers, though the guidelines clearly limit this provision only to officials of the rank of Range Officers and below. Three transit hostels were also set up in Durg, Bilaspur and Raipur with Rs 16 crore from the CAMPA fund.
On 8 September 2013, IG (Forest) CD Singh, working under the MoEF, sent a copy of the CAMPA guidelines to the Principal Chief Conservator of Forests, Chhattisgarh, which laid down that the fund cannot be used for activities like renovation, construction, purchase of vehicles, foreign trips and eco-tourism.
Despite the guidelines clearly mentioning that the money should not be used for eco-tourism, a huge amount was spent in this sector as well. According to the PIL, more than Rs 12 crore was spent in the name of promoting eco-tourism. The 2011-12 CAG report also questions this expenditure.
According to the report, the state government used 77,500 hectares of forest land for eco-tourism-related activities even though the Forest Conservation Act prohibits it. Chauhan’s petition alleges that the funds were used for Raman Singh’s ‘dream project’ — the Jungle Safari Project. Referring to the audit report of 2011-12, the petition claims that a total of Rs 2.4 crore was spent on the project. The audit report had raised serious questions over it.
CAMPA funds were used to rehabilitate the residents of RampurCAMPA funds were used to rehabilitate the residents of Rampur
Chauhan alleges that the Jungle Safari Project was started at the behest of the chief minister only to obtain more money from the Centre, even though the state already had a jungle park called Nandanvan. The Opposition has also criticised Raman Singh over this. Chauhan claims that he complained to the Centre against the misuse of money on this project but no action was taken. “The apathy of the Centre has emboldened the state government, which now has nothing to fear,” he says.
A vivid example of this can be seen in another step taken by the state government in a clear violation of the CAMPA guidelines: the displacement and resettlement of 25 villages. In fact, it brings under the scanner the very purpose of CAMPA.
With the objective of efficiently carrying out CAMPA-related activities, the Chhattisgarh government decided to rehabilitate 25 villages coming under the Barnawapara Wildlife Sanctuary in 2010. Three villages — Rampur, Latadadar and Nawapara —were marked for the first round. It was decided that 135 families of Rampur will be rehabilitated 58 km away in Mahasamund district, in a new settlement called Srirampur. To provide housing, agricultural land and other basic amenities, Rs 10 lakh was to be spent on each family. The total amount needed for this was Rs 13.5 crore.
Interestingly, the MoEF had already released a sum of Rs 5.4 crore during 2009-10 for the relocation of the families living in Rampur. Therefore, only Rs 8.1 crore was required from the CAMPA fund. But information obtained through rti reveals that Rs 14.6 crore was released from the fund. By 2010-11, the state government had only spent Rs 81 lakh from the money released by the ministry in 2009 and then the fund lapsed. Thereafter, money from the CAMPA fund was used for the rehabilitation project.
That was not all. Information obtained through RTI shows that Rs 16 lakh was spent on the inauguration ceremony of the new village in June 2012, where Raman Singh was invited as chief guest.
After the MoEF fund for rehabilitation lapsed, the state government had requested the Centre to revive it. But despite filing of RTI applications, there has been no clear response from the state regarding how the money was used. According to a social activist, the state government is aware that sooner or later it will receive the amount from the Centre. He says that until then, the government will keep spending from the CAMPA fund, so that when the rehabilitation fund is finally released, it can spend it on other activities.
The long list of activities involving the misuse of CAMPA funds suggests that the Chhattisgarh government won’t let go any opportunity to use it for whatever purpose it deems fit. For instance, in January 2012, when five senior officials of the state forest department, including the Principal Chief Conservator of Forests, planned a foreign trip, the Chhattisgarh government decided to finance it from the CAMPA funds. This was a clear violation of the guidelines. Soon, many social activists filed RTI applications seeking details of the money spent on the trip, following which the government hastily backtracked and transferred money from the forest department’s funds for the purpose. Documents reveal that more than Rs 22 lakh was spent on the foreign trip. “If information had not been sought, a much bigger chunk of CAMPA money would have been pillaged,” says Chauhan.
The audit report of 2011-12 reveals another instance of the misuse of funds. The Principal Chief Conservator had set aside Rs 15,100 for planting 400 trees per hectare over two years. But in Dhamtari and East Sarguja districts, Rs 52,704 was spent per hectare. It amounted to a total additional expenditure of Rs 2.5 crore. According to the report, the forest department falsely claimed that there was no non-forest land available for afforestation and apparently carried out plantations in areas with dense forest cover. Besides, documents also reveal that the wrong species of trees were purchased at higher rates for plantation, leading to an additional expenditure of more than Rs 1 crore.
Flouting the rules Documents reveal the misutilisation of funds for building bungalows and buying new vehicles for senior forest officials and the forest ministerFlouting the rules Documents reveal the misutilisation of funds for building bungalows
and buying new vehicles for senior forest officials and the forest minister
When TEHELKA contacted Chhattisgarh’s Principal Chief Conservator of Forests Ram Prakash, he excused himself by saying that he had been appointed to the post only a few days ago. “I do not have much information. It would be better if you contact state CAMPA in-charge BK Sinha, who has been looking after CAMPA-related activities for quite some time,” he said. Asked about the PIL in the Supreme Court, he said he did not know about it.
Then TEHELKA contacted Sinha, who said, “All the allegations regarding misuse of CAMPA money are false. There has been no misuse anywhere.” As for the PIL, he said the government will present its case before the court.
Chauhan says that the officials actually do not have an answer and “that’s why they shrug off any blame just by saying that the allegations are wrong”.
The CAMPA scam could end up being a big blow to the Chhattisgarh government’s claims of “good governance”, which had paved the way to the BJP’s victory in the Assembly election last year. The Supreme Court’s verdict on the PIL, whenever it comes, could present a different take on governance under the Raman Singh regime. Will the BJP government in Chhattisgarh acknowledge its mistakes and make amends before it is too late?
Translated from Tehelka Hindi by Naushin Rehman
letters@tehelka.com

Friday, August 29, 2014

झीरम घाटी के असली गुनाहगारो को बचाने में लगी है पुलिस : भूपेश बघेल का आरोप

झीरम घाटी के असली गुनाहगारो को बचाने  में लगी है पुलिस : भूपेश बघेल का आरोप 

छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रेजिडेंट भूपेश बघेल ने गिरफ्तार किये जा रहे नक्सलियो  को झीरम घाटी में संलिप्त होने पे प्रशन उठाये हैं ,उन्होंने कहा है की पुलिस पुख्ता  सबूतो के  आधार पर नहीं बल्कि बनावटी और सतही तर्कों के आधार पे आदिवासियों को झुटे मामले में फंसा रही हैं।

पुलिस हर रोज नई  कहानी गढ़ रही हैं ,और झीरम  घाटी में शामिल नेताओ को बचाने  में लगी हैं ,बघेल ने कहा की पुलिस जिस सुखदेव नाग और मांगी राम कश्यप को महेन्द्र  कर्मा  का हत्यारा बता रही है ,उसमे एक व्यक्ति दरभा जनपद का सदस्य हैं ,बघेल ने कहा की ये कैसे संभव है की कोई स्थानीय नेता महेंद्र कर्मा को न जानता  हो ,बघेल ने कहा की यदि सुखदेव नाग कैसे स्थानीय नेता शामिल होते तो उन्हें महेंद्र कर्मा को पहचानने  के लिए पूछताझ नहीं करनी पड़ती , बघेल ने पुलिस पे निर्दोष आदिवासियों को हत्या में फ़साने का आरोप लगाया हैं 

अटामी पदमूर से बलात्कार और हत्या की जाँच की मांग /

अटामी पदमूर से बलात्कार और हत्या की जाँच की मांग / छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले से खबर आ रही है कि एक आदिवासी लड़की सामबती अटामी पदमूर नदी में नहा रही थी . तभी वहाँ से पुलिस और सीआरपीएफ वाले गश्त गुज़रे. इन सिपाहियों ने नदी में नहा रही आदिवासी लड़की सामबती को पकड़ लिया और थाने ले गए . थाने में सिपाहियों ने आदिवासी लड़की सामबती अटामी से सामूहिक बलात्कार किया . सुरक्षा बलों के सिपाहियों के क्रूर बलात्कार से सामबती अटामी मरणासन्न हो गयी . पुलिस वाले सामबती अटामी को लेकर बीजापुर अस्पताल पहुंचे . लेकिन अस्पताल पहुँचते ही सामबती मर गयी . पुलिस वाले सामबती की लाश को वापिस थाने ले आये और पुलिस वालों ने लाश को थाने में ही दफना दिया . इस मामले की अभी तक कोई जांच नहीं करवाई गयी है . दहशत की वजह से किसी की इस घटना के बारे में जाकर जांच करने की हिम्मत नहीं हो रही है . बस्तर में बलात्कार और हत्याओं के आरोपी आईजी कल्लूरी को रमन सिंह ने आतंक का राज कायम करने के लिए बस्तर भेज दिया है ताकि पूंजीपतियों के लिए बस्तर की ज़मीनों पर कब्ज़ा करने में कोई भी आवाज़ उठाये तो कल्लूरी उसे इस तरह की क्रूर हरकतों से दबा दे . हम इस घटना की निष्पक्ष जांच की मांग करते हैं . [ PUCL chhattisgarh ]


वार्तालाप संवाद समाप्त |

साईं बाबा के बहाने चर्चा ; न तो ईश्वर किसी का कुछ बना सकता है और न कुछ बिगाड़ सकता हैं , जो खुद अपनी रक्षा नहीं कर सकता वो हमारी क्या करेगा, इतनी मोटी सी बात आखिर किसी को समझ में क्यों नहीं आती /

साईं  बाबा के बहाने चर्चा ;

तो ईश्वर किसी का कुछ बना सकता है और कुछ बिगाड़  सकता हैं , जो खुद अपनी रक्षा  नहीं  कर सकता वो हमारी क्या करेगा, इतनी मोटी  सी बात आखिर किसी को समझ में क्यों नहीं आती  /

कल रात हमारे मोहल्ले में कुछ लोगो ने मंदिर से साईं बाबा की मूर्ति गायब कर दी , पूरे  देश में पिछले कई महीने से साईं  बाबा को लेकर हल्ला मचा है , बलसाड में बड़ी संख्या में लोग आये और साईं की मूर्ति पे कला कपडा ढँक दिया , दूसरे दिन पूरा शहर बंद रहा

मेरी आजतक ये बात समझ नहीं आये की जिन भगवानो पे सारे समाज की रक्षा की जिम्मेदारी है ,वो खुद असहाय हो गए हैं। कोई भी आके उन्हें हटा देता है 

ज्यादा दिन नहीं हुए जब कुछ लोगो ने मस्जिद ढहा  दी थी , कुछ लोगो ने मंदिर पे हमला किया था ,बुद्ध की मूर्ति अफगानिस्तान में तोड़फोड़ डाली गई , मजार तोड़ी गई ,चर्चो पे हमले कोई नई  बात नहीं हैं , पादरियों , मुल्लाओ ,पुजारियों को मारपीट की  जाना आम बात हैं , मूर्तियों की तोड़फोड़ तो हजारो साल से हो रही हैं , दुनिया के बड़े बड़े पूजा घर जलाये गए चाहे वो मस्जिद हो मंदिर हो गिरजाघर हो या बुद्ध के स्थल , तो क्या आपको कभी लगा की इन तोड़ने वाले को किसी ने सजा दी आय उन्ह इसके बुरे परिणाम भुगतना पड़े ,नहीं ना ? हुआ तो ठीक इसका उल्टा ,जिहोने मस्जिद तोड़ी ,मजार फोड़ी ,
गुजरात और देश के दूसरे हिस्सों में कत्ले  किया उन्हें तो उसी ईश्वर ने देश की हुकूमत सौंप दी , जिन्होंने देश और देश  के बाहर आतंकवाद के नाम  निर्दोषो को मारा उन्हें तो  किसी भगवान ने कोई सजा नहीं दी। जिन  प्रभु के बन्दों ने अफगानिस्तान ,इराक़ ,सीरिया ,ईरान ,पाकिस्तानऔर दूसरे अफ्रीकन देशो में पीढ़ी  की पीढ़ी खत्म का दी उन्हें किसने सजा  दी। 

मंदिरो में और दूसरे पूजा स्थलो में करोडो अरबो की संपत्ति जो एकत्रित की गई है वो क्या ईमानदारी से कमाई गई धन राशि हैं ,क्या  तथाकथित भगवान को मालूम नहीं है की समाज के लुटेरो ने ये राशि जनता के हिस्से से लूट के  चढ़ाई हैं ,इन चोरो का क्या हुआ ,

कई बार इन भगवानो के घरो में मानव निर्मित या प्राकर्तिक प्रकोप आता है तब ये सब अपने घर तक की रक्षा  नहीं कर  पाते , केदारनाथ तो एक उदहारण है ,कुछ साल पहले मक्का  में आग लग गई थी जिसमे कई हजयात्री जल के मर गए थे ,हर साल तीर्थ  यात्रा  में दुर्घटनाओ में हजारो लोग मर जाते है ,कोई भगवन उन्हें कभी बचाने तक नहीं आता , अब पाप पुण्य की बात करके बरगलाने की जरुरत नहीं है मरने वालो में एक दो साल के बच्चे  भी  थे ,और सबसे बडा की उनके मंदिर ही खत्म हो गये , जब वे अपनी मूर्ति और रहने की जगह नहीं  बचा पाये तो भक्तो की कोन  कहे। 

हर साल ऐसे  कई किस्से सुनाई देते है की कई भको ने भगवान की भक्ति में अपनी जान देदी ,या अपनी जीभ चढा  दी, अभी कुछ  महीने पहले एक परिवक के आठ लोगो इस आसरे में अपने प्राण  खत्म कर दिए की भगवान शंकर उन्हें स्वयं आके बचा लेंगे ,लेकिन इन्हे बचने कोई नहीं आया ,आई तो सिर्फ पुलिस ,लाशो का पोस्टमार्टम करवाने , क्यों क्या उन्हें भगवान पे भरोसा  नहीं था , यदि था फिर उन्ह ेबचने कोई आया क्यों नहीं ,पुराणो , ग्रंथो में तो ऐसे ढेर सारा उदाहरण भरे पड़े है ,की भगवन प्रकट हो गए ,ये सब क्या इनके साथ धोका नहीं  हैं

धर्म के नाम से अलग अलग तरह की धाराए है ,कोई ईश्वरवादी है लोई अनीश्वर वादी है ,कोई एक अल्लाह को मानता है तो कोई कई देवताओ को ईश्वर के समान मानते हैं , आत्मा ,परमात्मा ,एकेश्वर  वादी  है तो कई अवतार को मैंने वाले भी हैं ,तरह तरह की पूजा पद्धति है जो आपस में ठीक उलटी है , एक दूसरे का खंडन है , कोई मॉस को मना करता है कोई शराब को मना करता है   तो कोई दोनों को ठीक मानता हैं।  कोई कहता है की कण कण में भगवान है तो कोई कहता है की सिवाय मेरे   देखो तक नहीं ,यानि किसी और को मुझमे शामिल मत करो ,बड़ा मुश्किल है ,यदि कोई ईश्वर है भी तो कायो नहो एक बार सरे भगवानो की बैठक बुला के कॉमन मिनिमम सहमति बना ले और हमें बता से की भई  आखिर बेचारा भक्त करे भी तो क्या करे। 

धर्म और ईश्वर के नाम पे इतिहास में भयंकर जनसंघार  हुए , सब  धर्मो में किया और अभी भी कर रहे हैं , यहूदी मारे  गए ,इस्लाम के अनुआई  मारे  गए ,शैव मरे गए , वैष्णव  मरे गए , ईसाई  मारे  गए , बुद्धिष्ट  मरे गए ,कोन  नहीं मारा गया , लेकिन कभी कोई भगवान अपने भक्तो को बचाने नहीं आया , लोग मरे जाते रहे और धर्म के ठेकेदार अपनी दुकान चमकाते रहे। 
सत्य  की खोज का ही सारा दर्शन सनातन धर्म का है। लेकिन हजारो साल में आज तक वो सत्य की ही खोज नहीं कर पाये ,और जो खोज भी उसे वो  साडी दुनिया क्या अपने संप्रदाय तक को कन्वेंस नहीं कर पाये। सारे धर्मो के ईश्वर क्यों नहीं एक बार एक सा विधान एक सा दर्शन तय  नहीं कर देते , जिससे सारे झगडे ही मिट जाये,  समय समय पे पूरी दनिया में संतो फ़कीरो में स्थापित धर्मो को  चेलेंज किया , उनकी किसी ने नहीं सुनी  , यहाँ तक की इन संतो के अलग संप्रदाय बन गए जिन्होंने  बाद में धर्म का रूप ले लिया , जैन ,बुद्ध ,सिख ,इस्लाम में कई मत  बने ,ईसाइयत के टुकड़े हुए ,और तो और बुद्ध के अनुआईयो ने भी अलग अलग पंथ खोल लिए ,जैसे आजकल राजनैतिक दल टूटते है वैसे ही इन भगवानो के दल बन गए ,

और आज किसी एक मोहल्ले में चार घरो के लोग भी एक साथ बैठ जाये तो वे भगवान को लेके एक मत नहीं हो सकते , और तो और एक घर में भी कई विचार  है .
     

 में  अक्सर एक उदाहरण  देता हूँ की बिना अतिरिक्त बल  के दुनिया का कोई भी भगवान एक पत्ता भी नहीं हिला सकता तो वो  कैसे किसी का भला या बुरा कर सकता हैं। तो फिर काहे को इन धर्मो के ठेकेदारो के इशारो पे अपना जीवन दुभार  करते हो , उनकी बात अलग है जी धरम को धंदा बना लिए है ,में तो बाकि सब को कहता हूँ भाई ये साऱी   दुकानदारी है, इसमें उन्हें कुछ नहीं मिलेगा सिवाय अपना चैन खोने के।