फिर भी हम गद्दार ही कहे गये ...
**
मेरे एक मित्र है ,नाम है उनका मोहम्मद हमीद उल्ला,
वे नेट फेसबुक जैसे सोशल मीडिया से कोसों दूर है
हम दोनों ने पोस्ट ग्रेजुएशन साथ साथ ग्वालियर साईस काँलेज से किया है .
जीवन के अठारह बीस साल साथ पढे लिखे और मस्ती की ,हमने एक ही विभाग में करीब तीस नौकरी भी की .
**
तो ,उन्होंने यूपी चुनाव के परिणामों से चिंतित होकर मुझे व्यंग में बधाई दी ,उनकी इस बधाई में व्यथा साफ दिख रही थी .
**
उनके दो बेटे है
एक बीएसएफ में दिल्ली में ,
तो दूसरा एयर फोर्स में गुजरात में पोस्टेज है .
इनके पिता एस ए एफ ( स्पेशल आर्म फोर्स ) में कंपनी कमांडर हो कर रिटायर्ड हुये ,ऊन्हे हम सब अब्बा जी कहते थे .
इनके भाई वसीउल्लाह भी सीआरपीएफ में रहे और दीमापुर में शहीद हुये ,उस समय उनकी उम्र करीब अठ्ठाईस तीस की रही होगी .
हमीद जी ,हा़ हम सब दोस्त इन्हें यही कहते है.
इनका गांव मोरेना (मप्र) से बीस किलोमीटर दूर "काजी बसई " है .,
बहुत नाम है इस गांव का ,फौजियों का गांव कहलाता है .
काजीबसई मुस्लिम बाहुल्य है ,आसपास हिन्दुओ के गांव, सामाजिक और धार्मिक सोहाद्र से भरपूर ,आपसी मेलमिलाप और प्यार भरी रिश्तेदारीयों से भरा .
इस गांव में अभी तक करीब आठ सो अस्सी लोग विभिन्न फोर्स में रहे.
और चौदह लोग शहीद हुये .
कई वीरता पुरस्कार मिले इन सिपाहीयों को .
लगभग हर घर से कोई न कोई फोर्स में नौकरी करता है .
ऐसा है बहादुरों का गांव काजीबसई !
में छुट्टियां में बार गांव जाया करता था. उनकी अम्मी और अब्बा मुझे बेटे की तरह ही मानता थे ,पूरे गांव का आज भी में प्रिय लाखन हूँ .
**
आज हमीद जी ने फोन पर कहा की मेरे पूरे परिवार और मेरे गांव ने देश के लिये कुर्बानियां दी ,सैना में सेवा की ,मेरे दोनों बेटे आज भी सैना में है ,,
और फिर भी हम गद्दार कहलाते है .
कोई कुछ पूछता नही है ,बस उसके लिये मेरा मुसलमान होना ही काफी है ,मेरी देशभक्ति नापने के लिये .
हमीद जी कह रहे थे ,हमने अपने जीवन में और भी बुरे दिन देखें है ,लेकिन आज जैसे नही .
**
मे सही में बडे अपराध बोध से ग्रसित हूँ ,मेरे पास उनका कोई जबाब नही है .
एजसच उनका कोई प्रश्न नही था ,उनका भोगा गया यथार्थ था ,बहुत सी कहानियाँ है उनके पास .
मुझे लगता है की में ही अपराधी हूँ ,ऊनका .
**
मुसलमान होना और मुसलमानो के लिए बोलने में बहुत फर्क है .
जो मुस्लिम है ,कभी उनके दिल में झांक कर देखिए
बडा दर्द का दरिया है ..
अगर आप सही में कूछ बोझ कम करना चाहते है ,तो मुस्लिम हो कर सोचिए ,मुसलमानों के लिये नही .
**
भारयीय मुस्लिम के लिये बहुत कठिन समय है और आने वाला भी है.
इन्हें अकेला मत छोडिये ,,
एक बार हम कर चुके है ,अब और नहीं .
***
Lakhan singh
12.03.2017
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मेरे एक मित्र है ,नाम है उनका मोहम्मद हमीद उल्ला,
वे नेट फेसबुक जैसे सोशल मीडिया से कोसों दूर है
हम दोनों ने पोस्ट ग्रेजुएशन साथ साथ ग्वालियर साईस काँलेज से किया है .
जीवन के अठारह बीस साल साथ पढे लिखे और मस्ती की ,हमने एक ही विभाग में करीब तीस नौकरी भी की .
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तो ,उन्होंने यूपी चुनाव के परिणामों से चिंतित होकर मुझे व्यंग में बधाई दी ,उनकी इस बधाई में व्यथा साफ दिख रही थी .
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उनके दो बेटे है
एक बीएसएफ में दिल्ली में ,
तो दूसरा एयर फोर्स में गुजरात में पोस्टेज है .
इनके पिता एस ए एफ ( स्पेशल आर्म फोर्स ) में कंपनी कमांडर हो कर रिटायर्ड हुये ,ऊन्हे हम सब अब्बा जी कहते थे .
इनके भाई वसीउल्लाह भी सीआरपीएफ में रहे और दीमापुर में शहीद हुये ,उस समय उनकी उम्र करीब अठ्ठाईस तीस की रही होगी .
हमीद जी ,हा़ हम सब दोस्त इन्हें यही कहते है.
इनका गांव मोरेना (मप्र) से बीस किलोमीटर दूर "काजी बसई " है .,
बहुत नाम है इस गांव का ,फौजियों का गांव कहलाता है .
काजीबसई मुस्लिम बाहुल्य है ,आसपास हिन्दुओ के गांव, सामाजिक और धार्मिक सोहाद्र से भरपूर ,आपसी मेलमिलाप और प्यार भरी रिश्तेदारीयों से भरा .
इस गांव में अभी तक करीब आठ सो अस्सी लोग विभिन्न फोर्स में रहे.
और चौदह लोग शहीद हुये .
कई वीरता पुरस्कार मिले इन सिपाहीयों को .
लगभग हर घर से कोई न कोई फोर्स में नौकरी करता है .
ऐसा है बहादुरों का गांव काजीबसई !
में छुट्टियां में बार गांव जाया करता था. उनकी अम्मी और अब्बा मुझे बेटे की तरह ही मानता थे ,पूरे गांव का आज भी में प्रिय लाखन हूँ .
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आज हमीद जी ने फोन पर कहा की मेरे पूरे परिवार और मेरे गांव ने देश के लिये कुर्बानियां दी ,सैना में सेवा की ,मेरे दोनों बेटे आज भी सैना में है ,,
और फिर भी हम गद्दार कहलाते है .
कोई कुछ पूछता नही है ,बस उसके लिये मेरा मुसलमान होना ही काफी है ,मेरी देशभक्ति नापने के लिये .
हमीद जी कह रहे थे ,हमने अपने जीवन में और भी बुरे दिन देखें है ,लेकिन आज जैसे नही .
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मे सही में बडे अपराध बोध से ग्रसित हूँ ,मेरे पास उनका कोई जबाब नही है .
एजसच उनका कोई प्रश्न नही था ,उनका भोगा गया यथार्थ था ,बहुत सी कहानियाँ है उनके पास .
मुझे लगता है की में ही अपराधी हूँ ,ऊनका .
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मुसलमान होना और मुसलमानो के लिए बोलने में बहुत फर्क है .
जो मुस्लिम है ,कभी उनके दिल में झांक कर देखिए
बडा दर्द का दरिया है ..
अगर आप सही में कूछ बोझ कम करना चाहते है ,तो मुस्लिम हो कर सोचिए ,मुसलमानों के लिये नही .
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भारयीय मुस्लिम के लिये बहुत कठिन समय है और आने वाला भी है.
इन्हें अकेला मत छोडिये ,,
एक बार हम कर चुके है ,अब और नहीं .
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Lakhan singh
12.03.2017
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