दैनिक 'छत्तीसगढ़ हविशेष संपादकीय
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हत्या की धमकी और फतवा, देने वाले अफसरों के खिलाफ ही कार्रवाई काफी नहीं होगी...
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-सुनील कुमार,संपादक
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छत्तीसगढ़ के अखबारों सहित सोशल मीडिया इस बात से भरे पड़े हैं कि किस तरह बस्तर के पूर्व आईजी एस.आर.पी. कल्लूरी को राज्य सरकार ने दो नोटिस जारी किए हैं। इनमें से एक इस बात के लिए है कि वे अपने पिछले कार्यक्षेत्र बस्तर में एक निजी कारोबारी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कैसे शामिल हुए, और सरकार के यह निर्देश हैं कि शासकीय अधिकारी इस तरह के निजी कार्यक्रमों में न जाएं, तो ऐसे में क्यों न उनके खिलाफ इसके लिए कार्रवाई की जाए। कल की ही तारीख का पुलिस महानिदेशक के ही दस्तखत का दूसरा नोटिस है जिसमें कल्लूरी को कहा गया है कि बस्तर में अभी हुए तबादलों के बारे में सोशल मीडिया पर कल्लूरी ने जो ट्वीट किए हैं उनका प्रसारण टीवी चैनलों पर हो रहा है, और अभी फरवरी में ही राज्य शासन ने सोशल मीडिया पॉलिसी जारी की है जिसमें ऐसी कार्रवाई की मनाही है, तो क्यों न इसके लिए उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।
जिस कार्यक्रम को लेकर प्रदेश के पुलिस प्रमुख ने ये नोटिस जारी किए हैं, उस कार्यक्रम की असलियत कुछ और है, और उसका मुद्दा ही कुछ और है। उसे अनदेखा करते हुए कल्लूरी को ये दो नोटिस जारी करना कुछ उसी तरह का है कि किसी गाड़ी से कोई सोच-समझकर कुचलकर किसी की हत्या कर दे, और उसे इस बात का नोटिस दिया जाए कि गाड़ी में नंबर प्लेट पर लिखे गए अंक सही आकार के नहीं हैं। कल्लूरी के साथ प्रदेश के पुलिस प्रमुख की रियायत इन दो नोटिसों के बाद भी समझने वालों को साफ समझ आती है कि असल मुद्दे को अलग धरकर ये नोटिस ऐसी बात के लिए जारी किए गए हैं जो कि महत्वहीन हैं। अभी तक ऐसा कोई नोटिस पुलिस ने, या कि गृह विभाग ने जारी नहीं किया है जो कि बताए कि ऐसा बयान देने वाले एसपी के खिलाफ पुलिस में केस क्यों दर्ज नहीं किया जा रहा है? कल्लूरी और उनके वफादार अफसरों की इस टीम ने इस पूरी सरकार के लोकतांत्रिक बर्दाश्त को जिस परले दर्जे की चुनौती दी है, उसे कोई बच्चा भी समझ सकता है, लेकिन इस सरकार में बैठे लोग उसे समझने से इंकार कर रहे हैं।
बस्तर की खबरें बताती हैं कि एक आटोमोबाइल एजेंसी के कारोबारी कार्यक्रम में कल्लूरी पहुंचे जो कि वहां घोषित रूप से मुख्य अतिथि थे। दर्जनों मीडिया में आए एक जैसे समाचारों के मुताबिक उनके अलावा बस्तर के दो पुलिस अधीक्षक वहां मौजूद थे, इनमें से एक एसपी ने अपने भाषण में बस्तर में काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ताओं का नाम लेकर कहा कि ऐसी नई गाडिय़ों से इन कार्यकर्ताओं को सड़क पर कुचलकर मार देना चाहिए। पिछले तीन दिनों से लगातार यह बयान खबरों में आया है, लेकिन संबंधित अधिकारी ने इसका कोई खंडन नहीं किया है, और बोलने की आजादी के अपने अधिकार की वकालत की है। इसलिए आज इस पर लिखते हुए हमको इस बात में कोई शक नहीं है कि एसपी ने यह बात कही है, क्योंकि हत्या करने की ऐसी बात एक इतना बड़ा जुर्म है कि वह जिसके नाम के साथ चिपके, और वह इंसान मौजूद रहते हुए भी उसका खंडन न करे, तो वह बात सच मानने के अलावा और कोई जरिया नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि पुलिस तो राज्य शासन का महज एक विभाग है, और पुलिस प्रमुख प्रदेश शासन के गृह सचिव के लिए जवाबदेह रहते हैं। मतलब यह कि गृह सचिव भी अपने ऊपर सरकार या मीडिया, या संसद और विधानसभा, या अदालत और मानवाधिकार आयोग जैसी हर संस्था के लिए संवैधानिक रूप से जवाबदेह हैं। जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है तो पिछले बरसों में यह बात बार-बार और हर जगह स्थापित हुई है कि गृह सचिव बी.वी.आर. सुब्रमण्यम और डीजीपी ए.एन. उपाध्याय लगातार कल्लूरी के रक्षक बने हुए डटे रहे, और उन्होंने राज्य की सबसे बुरी बदनामी करवाने के जिम्मेदार कल्लूरी का बाल भी बांका नहीं होने दिया। आज का यह मौका यह बात भी लिखने का है कि एक मीडिया संस्थान के रूप में हमारा या तजुर्बा रहा कि छत्तीसगढ़ का कोई भी हिस्सा कितना भी लहूलुहान हो जाए, गृह सचिव मीडिया की पहुंच से स्थायी रूप से बाहर रहते हैं, और मुख्यमंत्री सारी बदनामी झेलते हुए अकेले जवाबदेह रहते हैं।
अब सरकार के ढांचे को जो लोग समझते हैं, वे जानते हैं कि जिम्मेदारी और अधिकार के अलग-अलग दर्जे होते हैं। कल्लूरी के मातहत एसपी ने कत्ल की धमकी दी, और फतवा दिया, तो इसके लिए वहां मौजूद कल्लूरी जवाबदेह है। दूसरी तरफ कल्लूरी ने इन बरसों में बस्तर में जिस तरह कत्ल और रेप के दौर को बढ़ाया, उसके लिए डीजीपी और गृह सचिव सीधे जिम्मेदार हैं। लेकिन इससे ऊपर एक सवाल यह खड़ा होता है कि डीजीपी और गृह सचिव की तैनाती करने वाले मुख्यमंत्री की जवाबदेही क्या है? वे महज तैनाती के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए बिना किसी जिम्मेदारी के नहीं रह सकते। राज्य के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में मुख्य सचिव और निर्वाचित मुखिया के रूप में मुख्यमंत्री ने कल्लूरी के मातहतों से लेकर कल्लूरी के ऊपर के उसके रक्षकों तक पर क्या कार्रवाई की? भारत जैसे लोकतांत्रिक प्रशासनिक ढांचे में अब बात महज एक एसपी, एक आईजी, या एक डीजीपी तक सीमित नहीं रह जाती, अब शासन के प्रशासनिक प्रमुखों, और सीधे मुख्यमंत्री तक इस बात की आंच आती है कि अपनी जिम्मेदारियों को देखते हुए उन्होंने अपने अधिकारों का कोई इस्तेमाल क्यों नहीं किया?
कहने के लिए सरकार यह सफाई दे सकती है कि उसने ऐसे बयान छपने के तुरंत बाद उसके पीछे के एसपी को एक दिन के भीतर बस्तर से हटा दिया, लेकिन दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ ने यह बात भी अच्छी तरह दर्ज की है कि विधानसभा में विपक्ष ने जब एसपी की इस धमकी को पूरी ताकत से उठाया, तो उसके घंटों बाद जाकर सरकार को शायद बेबसी में ऐसा करना पड़ा, क्योंकि सरकार खुद अगर चाहती, तो कुछ घंटों में ही एसपी के बयान को जांच-परखकर उसे वहां से हटा सकती थी, सरकार को ऐसा करना चाहिए था, और सरकार ऐसा करने की अपनी जिम्मेदारी दर्ज करवाने का मौका खो चुकी है।
आज यह लिखने की वजह यह है कि लगातार लोकतंत्र के खिलाफ जाकर, सरकारी सेवा नियमों के खिलाफ जाकर तरह-तरह के भयानक जुर्म करने वाले अफसरों का तबादला जो लोग काफी समझते हैं, वे लोग आज भी मुख्यमंत्री को उनकी जिम्मेदारी याद नहीं दिला रहे। राज्य के हित में जिम्मेदार लोगों को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र की जिम्मेदारियों को पूरा करना ही होगा, क्योंकि ऐसा न करने पर किसी इतिहासकार की जरूरत नहीं पड़ेगी, अदालतें, मीडिया, और मानवाधिकार आयोग इसे दर्ज करते चल रहे हैं। आज की जरूरत यह है कि सरकार अपने घर को सुधारे, और राज्य पुलिस की इस गिरावट को महज पुलिस की गिरावट न माने, यह गिरावट शासन की गिरावट है, और इसके लिए मुख्यमंत्री को आज के मौजूदा ढांचे में मजबूती से फेरबदल करना चाहिए क्योंकि ऐसा न करने पर उनके पास दो बरस बाद प्रदेश की जनता को देने के लिए कोई जवाब नहीं रहेगा। आज भी हत्या की ऐसी धमकी के खिलाफ पुलिस विभाग और राज्य शासन का गृह विभाग, और राज्य शासन, और मुख्यमंत्री कोई कार्रवाई करते नहीं दिख रहे हैं, और ऐसे में आंच सीधे-सीधे मुख्यमंत्री पर आ रही है, और अगर वे ऐसी नौबत में भी फैसला नहीं लेंगे, तो कब लेंगे?
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हत्या की धमकी और फतवा, देने वाले अफसरों के खिलाफ ही कार्रवाई काफी नहीं होगी...
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-सुनील कुमार,संपादक
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छत्तीसगढ़ के अखबारों सहित सोशल मीडिया इस बात से भरे पड़े हैं कि किस तरह बस्तर के पूर्व आईजी एस.आर.पी. कल्लूरी को राज्य सरकार ने दो नोटिस जारी किए हैं। इनमें से एक इस बात के लिए है कि वे अपने पिछले कार्यक्षेत्र बस्तर में एक निजी कारोबारी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कैसे शामिल हुए, और सरकार के यह निर्देश हैं कि शासकीय अधिकारी इस तरह के निजी कार्यक्रमों में न जाएं, तो ऐसे में क्यों न उनके खिलाफ इसके लिए कार्रवाई की जाए। कल की ही तारीख का पुलिस महानिदेशक के ही दस्तखत का दूसरा नोटिस है जिसमें कल्लूरी को कहा गया है कि बस्तर में अभी हुए तबादलों के बारे में सोशल मीडिया पर कल्लूरी ने जो ट्वीट किए हैं उनका प्रसारण टीवी चैनलों पर हो रहा है, और अभी फरवरी में ही राज्य शासन ने सोशल मीडिया पॉलिसी जारी की है जिसमें ऐसी कार्रवाई की मनाही है, तो क्यों न इसके लिए उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए।
जिस कार्यक्रम को लेकर प्रदेश के पुलिस प्रमुख ने ये नोटिस जारी किए हैं, उस कार्यक्रम की असलियत कुछ और है, और उसका मुद्दा ही कुछ और है। उसे अनदेखा करते हुए कल्लूरी को ये दो नोटिस जारी करना कुछ उसी तरह का है कि किसी गाड़ी से कोई सोच-समझकर कुचलकर किसी की हत्या कर दे, और उसे इस बात का नोटिस दिया जाए कि गाड़ी में नंबर प्लेट पर लिखे गए अंक सही आकार के नहीं हैं। कल्लूरी के साथ प्रदेश के पुलिस प्रमुख की रियायत इन दो नोटिसों के बाद भी समझने वालों को साफ समझ आती है कि असल मुद्दे को अलग धरकर ये नोटिस ऐसी बात के लिए जारी किए गए हैं जो कि महत्वहीन हैं। अभी तक ऐसा कोई नोटिस पुलिस ने, या कि गृह विभाग ने जारी नहीं किया है जो कि बताए कि ऐसा बयान देने वाले एसपी के खिलाफ पुलिस में केस क्यों दर्ज नहीं किया जा रहा है? कल्लूरी और उनके वफादार अफसरों की इस टीम ने इस पूरी सरकार के लोकतांत्रिक बर्दाश्त को जिस परले दर्जे की चुनौती दी है, उसे कोई बच्चा भी समझ सकता है, लेकिन इस सरकार में बैठे लोग उसे समझने से इंकार कर रहे हैं।
बस्तर की खबरें बताती हैं कि एक आटोमोबाइल एजेंसी के कारोबारी कार्यक्रम में कल्लूरी पहुंचे जो कि वहां घोषित रूप से मुख्य अतिथि थे। दर्जनों मीडिया में आए एक जैसे समाचारों के मुताबिक उनके अलावा बस्तर के दो पुलिस अधीक्षक वहां मौजूद थे, इनमें से एक एसपी ने अपने भाषण में बस्तर में काम कर रही सामाजिक कार्यकर्ताओं का नाम लेकर कहा कि ऐसी नई गाडिय़ों से इन कार्यकर्ताओं को सड़क पर कुचलकर मार देना चाहिए। पिछले तीन दिनों से लगातार यह बयान खबरों में आया है, लेकिन संबंधित अधिकारी ने इसका कोई खंडन नहीं किया है, और बोलने की आजादी के अपने अधिकार की वकालत की है। इसलिए आज इस पर लिखते हुए हमको इस बात में कोई शक नहीं है कि एसपी ने यह बात कही है, क्योंकि हत्या करने की ऐसी बात एक इतना बड़ा जुर्म है कि वह जिसके नाम के साथ चिपके, और वह इंसान मौजूद रहते हुए भी उसका खंडन न करे, तो वह बात सच मानने के अलावा और कोई जरिया नहीं है।
अब सवाल यह उठता है कि पुलिस तो राज्य शासन का महज एक विभाग है, और पुलिस प्रमुख प्रदेश शासन के गृह सचिव के लिए जवाबदेह रहते हैं। मतलब यह कि गृह सचिव भी अपने ऊपर सरकार या मीडिया, या संसद और विधानसभा, या अदालत और मानवाधिकार आयोग जैसी हर संस्था के लिए संवैधानिक रूप से जवाबदेह हैं। जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है तो पिछले बरसों में यह बात बार-बार और हर जगह स्थापित हुई है कि गृह सचिव बी.वी.आर. सुब्रमण्यम और डीजीपी ए.एन. उपाध्याय लगातार कल्लूरी के रक्षक बने हुए डटे रहे, और उन्होंने राज्य की सबसे बुरी बदनामी करवाने के जिम्मेदार कल्लूरी का बाल भी बांका नहीं होने दिया। आज का यह मौका यह बात भी लिखने का है कि एक मीडिया संस्थान के रूप में हमारा या तजुर्बा रहा कि छत्तीसगढ़ का कोई भी हिस्सा कितना भी लहूलुहान हो जाए, गृह सचिव मीडिया की पहुंच से स्थायी रूप से बाहर रहते हैं, और मुख्यमंत्री सारी बदनामी झेलते हुए अकेले जवाबदेह रहते हैं।
अब सरकार के ढांचे को जो लोग समझते हैं, वे जानते हैं कि जिम्मेदारी और अधिकार के अलग-अलग दर्जे होते हैं। कल्लूरी के मातहत एसपी ने कत्ल की धमकी दी, और फतवा दिया, तो इसके लिए वहां मौजूद कल्लूरी जवाबदेह है। दूसरी तरफ कल्लूरी ने इन बरसों में बस्तर में जिस तरह कत्ल और रेप के दौर को बढ़ाया, उसके लिए डीजीपी और गृह सचिव सीधे जिम्मेदार हैं। लेकिन इससे ऊपर एक सवाल यह खड़ा होता है कि डीजीपी और गृह सचिव की तैनाती करने वाले मुख्यमंत्री की जवाबदेही क्या है? वे महज तैनाती के अधिकार का इस्तेमाल करते हुए बिना किसी जिम्मेदारी के नहीं रह सकते। राज्य के प्रशासनिक प्रमुख के रूप में मुख्य सचिव और निर्वाचित मुखिया के रूप में मुख्यमंत्री ने कल्लूरी के मातहतों से लेकर कल्लूरी के ऊपर के उसके रक्षकों तक पर क्या कार्रवाई की? भारत जैसे लोकतांत्रिक प्रशासनिक ढांचे में अब बात महज एक एसपी, एक आईजी, या एक डीजीपी तक सीमित नहीं रह जाती, अब शासन के प्रशासनिक प्रमुखों, और सीधे मुख्यमंत्री तक इस बात की आंच आती है कि अपनी जिम्मेदारियों को देखते हुए उन्होंने अपने अधिकारों का कोई इस्तेमाल क्यों नहीं किया?
कहने के लिए सरकार यह सफाई दे सकती है कि उसने ऐसे बयान छपने के तुरंत बाद उसके पीछे के एसपी को एक दिन के भीतर बस्तर से हटा दिया, लेकिन दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ ने यह बात भी अच्छी तरह दर्ज की है कि विधानसभा में विपक्ष ने जब एसपी की इस धमकी को पूरी ताकत से उठाया, तो उसके घंटों बाद जाकर सरकार को शायद बेबसी में ऐसा करना पड़ा, क्योंकि सरकार खुद अगर चाहती, तो कुछ घंटों में ही एसपी के बयान को जांच-परखकर उसे वहां से हटा सकती थी, सरकार को ऐसा करना चाहिए था, और सरकार ऐसा करने की अपनी जिम्मेदारी दर्ज करवाने का मौका खो चुकी है।
आज यह लिखने की वजह यह है कि लगातार लोकतंत्र के खिलाफ जाकर, सरकारी सेवा नियमों के खिलाफ जाकर तरह-तरह के भयानक जुर्म करने वाले अफसरों का तबादला जो लोग काफी समझते हैं, वे लोग आज भी मुख्यमंत्री को उनकी जिम्मेदारी याद नहीं दिला रहे। राज्य के हित में जिम्मेदार लोगों को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र की जिम्मेदारियों को पूरा करना ही होगा, क्योंकि ऐसा न करने पर किसी इतिहासकार की जरूरत नहीं पड़ेगी, अदालतें, मीडिया, और मानवाधिकार आयोग इसे दर्ज करते चल रहे हैं। आज की जरूरत यह है कि सरकार अपने घर को सुधारे, और राज्य पुलिस की इस गिरावट को महज पुलिस की गिरावट न माने, यह गिरावट शासन की गिरावट है, और इसके लिए मुख्यमंत्री को आज के मौजूदा ढांचे में मजबूती से फेरबदल करना चाहिए क्योंकि ऐसा न करने पर उनके पास दो बरस बाद प्रदेश की जनता को देने के लिए कोई जवाब नहीं रहेगा। आज भी हत्या की ऐसी धमकी के खिलाफ पुलिस विभाग और राज्य शासन का गृह विभाग, और राज्य शासन, और मुख्यमंत्री कोई कार्रवाई करते नहीं दिख रहे हैं, और ऐसे में आंच सीधे-सीधे मुख्यमंत्री पर आ रही है, और अगर वे ऐसी नौबत में भी फैसला नहीं लेंगे, तो कब लेंगे?
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