शरद पवार के सपनो की बदरंग सिटी लवासा .
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सुनसान ,बेरंग ओर भुतिहा
लवासा सिटी पुणे .
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आप भी शायद कभी गये होंगे पूणे डेड़ घंटे की दुरी
पर शरद पवार ने बसायी हैं लवासा सिटी .
हाँ ,वही शरद पवार जिन्हें पदमविभूषण सम्मान मिलने की चर्चा थी और केंद्र ,राज्य में कई बार मंत्री रहे .
लवासा सिटी दो बड़े पहाडो पर बसाये स्वप्न शहर जैसा है.
लगभग पूरे पहाडी पर बनाए सिंगल डबल ओर मल्टीस्टोरी ,छितरे इधर उधर ,धूलधूसरित ओर मटमैले बेरंग से मकान .
हजारो नहीं तो कई सौ तो होंगे ही .
पहाड़ पर बने मकान लगभग सभी खाली भुतिहा से लगते.
पानी के लिए दो बड़े इंटेक बेल ,इसके पानी से ही कत्रिम नदी सा आभास .
शहर के अमीर जादो का अपनी काली कमाई को ठिकाने लगाने का आसान तरीका .
मल्टीस्टोरी में करोड़ों का खर्च फिर भी सुनसान .
बड़े बड़े होटल ,सेमिनार हाल ,रेस्टारेंट में बहार सिर्फ बरसात के चार महीने बस ,फिर वेसे ही .
एक तालाब के किनारे को लन्दन सा सजाया ,वैसी ही बिल्डिंग वैसे ही किनारा , धनाडय लोगो की ऐशगाह .
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किसी को मालुम हो तो बतायें कि इतने खुबसूरत पहाड़ को बेचने का हक़ शरदपवार को किसने दिया .
पहाड़ी पर बनाये हजारो मकान के लिए जमींन किसने और कैसे बेचीं .
पहाड़ के मालिक कोन ,कब और कैसे बन गए.
अभी तक खनिज के लिए पहाड़ की लीज सुनी थी ,
लेकिन ऐशगाह बनाने के लिए पहाड़ों की बिक्री पहली बार सुनी .
किसी से भी पूछो ,सबका जबाब एक ही की यह शहर शरदपवार ने बसाया है ,लेकिन कैसे ,कोई नहीं जानता .
पहाड़ के करोडो पेड काट दिये गये , कंक्रीट का जंगल खड़ा ही गया , पहाड पर रहने वाले लोग ,पशु ,पक्षी , जानवर कहाँ गये ,पूरी ईकोलाजी बदलने के लिए कोन जिम्मेदार है. क्या सिर्फ शरदपवार या पूरा सिस्टम !
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में मार्च की 13 तारीख ,सन 17 को गया . अब जब लौट रहा हूँ तब बहुत निराश हूँ ,कई पहाड़ियों की इस दुर्दशा को देखकर .
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पूणे
14.3.17
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