- 46 मिनट पहले
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Tuesday, March 31, 2015
जेनेरिक-ब्रांडेड दवा का मायाजाल --जेके कर:
जेनेरिक-ब्रांडेड दवा का मायाजाल --जेके कर:
Sunday, March 29, 2015
[छत्तीसगढ़ खबर से ]
बिलासपुर | जेके कर:
दवा उद्योग के मालिकान द्वारा अपने दवा के बारें में गर्व से डींग हांकी जाती है. मसलन हमारा दवा उच्च कोटि का है, इसलिये अच्छा असर करता है तथा इसे बड़े दवा निर्माण संयंत्र में बनाया जाता है. जबकि सच्चाई इससे कोसों दूर है. यहां तक की भारत में विदेशी दवा कंपनी जैसे नौल तथा भारत की बड़ी दवा कंपनिया सिपला, कैडिला, यूनिकेम, एल्केम, रैनबैक्शी तथा एँग्लो फ्रेंच तक अपनी दवा या तो कांट्रेट के तहत या लोन लाइसेंस से बनवाती है. जिसका अर्थ होता है कि इन दवाओँ को दवाओं का निर्माण करने वाली दूसरी कंपनियों के संयंत्र में बनवाया जाता है. फिर दावा किस आधार पर किया जाता है.
दवा उद्योग के मालिकान द्वारा अपने दवा के बारें में गर्व से डींग हांकी जाती है. मसलन हमारा दवा उच्च कोटि का है, इसलिये अच्छा असर करता है तथा इसे बड़े दवा निर्माण संयंत्र में बनाया जाता है. जबकि सच्चाई इससे कोसों दूर है. यहां तक की भारत में विदेशी दवा कंपनी जैसे नौल तथा भारत की बड़ी दवा कंपनिया सिपला, कैडिला, यूनिकेम, एल्केम, रैनबैक्शी तथा एँग्लो फ्रेंच तक अपनी दवा या तो कांट्रेट के तहत या लोन लाइसेंस से बनवाती है. जिसका अर्थ होता है कि इन दवाओँ को दवाओं का निर्माण करने वाली दूसरी कंपनियों के संयंत्र में बनवाया जाता है. फिर दावा किस आधार पर किया जाता है.
असल में दावा, उक्त दवा निर्माण करने वाली कंपनियों को मिले गुणवत्ता के आधार पर किया जाता है, जहां से कई अन्य मार्केटिंग करने वाली छोटी दवा कंपनिया भी करवाती हैं. इन दवाओँ का निर्माण करने वाली कंपनियों के पास निश्चित तौर पर राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार जीएमपी तथा आईएसओ का सर्टिफिकेट रहता है. इन दवा निर्माण करने वाली कंपनी के विशेषज्ञ तथा कर्मचारी अपनी ही कंपनी से पगार पाते हैं, मार्केटिंग करने वाली कंपनियों से नहीं.
इसी के साथ ब्रांडेड तथा जेनेरिक दवा का भ्रम भी दूर कर लेना चाहिये. जेनेरिक दवा उसे कहते हैं जो वैज्ञानिक या चिकित्सीय नाम से बेची जाती है. ब्रांड नेम दरअसल मार्केटिंग करने वाली कंपनी के नाम रजिस्टर्ड होता है. इस मार्केटिंग के चक्कर में दवाओँ के दाम आसमान छूने लगते है यह दिगर बात है. इस बात की पूरी संभावना है कि भारत में बिकने वाली जेनेरिक तथा ब्रांडेड दवा एक ही कंपनी से बनाये गये हो.
इस कारण से सरकारी अस्पतालों में मिलने वाले जेनेरिक दवा को गुणवत्ता के आधार पर खारिज़ नहीं किया जा सकता है.
जेनेरिक तथा ब्रांडेड का फर्क पेंटेट अधिकार के आधार पर किया जाता है. जिस दवा को उसके उसके पेटेंट धारक द्वारा बेचा जाता है उसे ब्रांड नेम से बेचा जाता है. जिस दवा को पेंटेट धारक के अलावा अन्य के द्वारा बेचा जाता है उसे विदेशों में जेनेरिक कहा जाता है. हमारे देश के पेंटेट कानून के अनुसार रॉयल्टी देकर कोई दूसरी दवा कंपनी भी उसे बेचती है या दवा का पेंटेट अधिकार का समय समाप्त हो जाने के बाद कोई भी इसे अपने ब्रांड नेम से बेच सकता है.
वर्तमान में हमारे देश में बिकने वाली ज्यादातर दवाओँ का पेंटेट समाप्त हो चुका है. मसलन विदेशी दवा कंपनी बायर का एंटीबायोटिक सिप्रोफ्लॉक्सासिन से पेटेंट अधिकार साल 2003 में समाप्त हो गया है. इसी कंपनी को रक्त को पतला करने वाली दवा एस्प्रिन का पेटेंट अधिकार 1899 में मिला था जिसे खत्म हुये 100 से भी ज्यादा साल बीत चुके हैं.
अब हम मूल मुद्दे पर आते हैं कि किस तरह से हमारे देश में जेनेरिक-ब्रांडेड का अलावा छोटी-बड़ी दवा कंपनी के नाम पर भरमाया जाता है.
यह कंपनी Aar ess remedies, Knoll, Akumentis pharma, Koye pharma, Aliniche, Mabric health care, Alna, Macleods, Anglo french, Makers(ipca), Biomax, Neiss lab, Biophar life science, Nukind, Bmw pharmaco, Percos, Cadila, Prochem, Cmr life science, Sigma, Comed, Solumed, Concept, Systemic health care, Frogen, Uniphar, Growmax, Vivid biotech, Grownburry, Zenact pharma, Hetro, Zota health care, Indoco, Zunsion health care आदि के लिये दवायें बनाती हैं. इस कंपनी का पता है- Mascot Health Series Pvt. Ltd.
75,76,77, LSC, DDA Market,
J Block, Vikaspuri, Delhi 110018
E-mail: info@mascothealth.com
उदाहरण 2- हेल्थ बॉयोटेक लिमिटेड-
75,76,77, LSC, DDA Market,
J Block, Vikaspuri, Delhi 110018
E-mail: info@mascothealth.com
उदाहरण 2- हेल्थ बॉयोटेक लिमिटेड-
यह कंपनी Cipla Limited, Cadila Limited, Lupin Limited, Wockhardt Limited, Zydus Cadila [German Remedies], Hetero Drugs Limited, Unichem Laboratories, Lyka Labs Limited, Sanat Products Limited [Dabur Group], Cachet Pharma [Alkem Group], Ajanta Pharma , Ind Swift Limited, Vhb Lifesciences, Medlay Pharma, Syncom Health Care Limited, Biochem Pharma, Elder Pharmaceuticals Limited, Cytogen Pharma, Unichem Laboratories, Claris Life Sciences Limited, TTK Health Care Limited, Flamingo, Ajanta Pharma Ltd., Molekule, Galpha, Human Pharmacia, Intas Pharmaceutical, Mancure Drugs आदि के लिये दवा बनाती हैं. इस कंपनी का पता है- Health Biotech Limited.
Contact Person : Mr. Gaurav Chawla
S. C. O. 162-164, Indian Airlines Building, Top Floor, Sector- 34 – A, Chandigarh (160022) India.
Contact Person : Mr. Gaurav Chawla
S. C. O. 162-164, Indian Airlines Building, Top Floor, Sector- 34 – A, Chandigarh (160022) India.
यह कंपनी Cipla, Alkem, Abbott, Wockhardt, Glenmark, Ranbaxy, Unichem, Ajanta Pharma, Makers, Gulpha, Anglo French, Cadila, Zydus Cadila आदि के लिये दवा बनाती हैं. इसका पता है- General Manager
Email: ggn@earindia.com
Address: 120 Suncity Business Tower
Sector-54, Gurgaon (Haryana).
Email: ggn@earindia.com
Address: 120 Suncity Business Tower
Sector-54, Gurgaon (Haryana).
उपरोक्त उदाहरणों से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वास्तव में दवा कंपनियां दवा एक ही स्थान से बनवाकर अलग-अलग दामों पर बेचती हैं. हां, इतना जरूर है कि मार्केटिंग करने वाली कंपनियों के पास अपना खुद का ड्रग लाइसेंस होता है जिसके आधार पर दवा बनवाई जाती है. कहने का मतलब है एक ही शराब अलग-अलग बोतलों में भर कर बेचे जाने जैसा है. फर्क यदि कहीं होता है तो अग्रेसिव मार्केटिंग का होता है जिसकी योजनायें बड़े-बड़े होटलों के ठंडे कमरों में बनाई जाती है. इसका खर्च भी मरीजों से वसूल लिया जाता है.
Monday, March 30, 2015
न्यायपालिका ,सरकार और कार्पोरेट के गठजोड़ ने हराया जुग्गा देवी और ग्रामसभा को
न्यायपालिका ,सरकार और कार्पोरेट के गठजोड़ ने हराया जुग्गा देवी और ग्रामसभा को
छत्तीसगढ़ के सरगुजा में सूरजपुर जिले के प्रेमनगर क्षेत्र सारे गॉव में पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ प्रारम्भ से ही आन्दोलनरत थे , पूरा जिला पांचवी अनु सूचि के तहत पेसा कानून के अंतर्गत आता है ,जिसमे ग्रामसभाओं को विशेष अधिकार हैं ,
सभी ग्रामसभाएं जमींन जाने और पानी की तंगी के कारण विरोध कर रहे थे ,बड़े बड़े विरोध प्रदर्शन हुए ,बीड़ी शर्मा तक कई बार आये उन्होंने सभाए ली ,कांटारोली ग्राम आंदोलन के केंद्र में था ,पहले तो जैसे की सब जगह होता ही है ,आंदोलन को कुचलने के लिए कार्यकर्ताओ को प्रताड़ित किया गया ,झूट मुक़दमे लादे गए और अंत में एक प्रमुख कार्यकर्त्ता को खरीद भी लिया गए ,जो बाद में वह से वहला भी गया ,खैर ये तो होना ही था ,
छत्तीसगढ़ शाशन ने एक घटिया तरीका निकाला , वो ये की प्रेमनगर ग्रामसभा को नगर पंचायत बनाने की घोषणा कर दी , प्लान ये थे की इससे ग्रामसभा की स्वीकृति से पीछा छूट जायेगा , जब की अनुसूचित क्षेत्र में प्रशाशन के ढांचे के मूल में परिवर्तन किया ही नहीं जा सकता था ,खैर , गॉव में तो किसी को पता ही नहीं चला की कब ये कारनामा कर दिया सरकार ने.
जुग्गा देवी और ग्राम के लोगो को जब पता चला तो इन लोगो ग्रामभा बुला के इसका विरोध किया ,और प्रस्ताव पास किया ,सब लोग कई बार कलेक्टर ,कमिश्नर के पास गए ,किसी ने कोई सुनवाई नहीं की ,और न ही नगर पंचायत के बारे में कोई आदेश ये अधि सूचना की जानकारी दी ,आखरी में करी लोगो ने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी ,तो उन्हें 2009 में जारी प्राम्भिक अधि सूचना की प्रति दी गई , ग्राम के लोग इसी अधिसूचना के विरोध में उच्च न्यायलय बिलासपुर गए , उन्होंने कहा की पांचवी अनुसूची में पेसा कानून के तहत बिना ग्रामसभा के अनोमोदन के आप नगर पंचायत बना ही नहीं सकते ,
पीयूसीएल के महासचिव और एडवोकेट सुधा भरद्वाज ने इनकी पैरवी की , अभी एक सप्ताह पहले इस केस को ख़ारिज कर दिए गया ,मेरी उनसे [ रायगढ़ जाते समय ] चर्चा हुई तो पता चला की प्रकरण शुद्द तकनिकी आधार पे ख़ारिज कर दिया गया , कोर्ट ने माना की ग्रामवासियो ने प्राम्भिक अधिसूचना को चेलेंज किया है न की दूसरी अधिसूचना को , विडम्बना ये है की दुसरी सूचना कब जारी हुई ,किसी को मालूम ही नहीं था , 2009 में पहली सूचना जारी हुई और 2010 में दूसरी सूचना जारी हुई ,इसकी जानकारी तो प्रशाशन को भी नहीं थी, नहीं तो जब आरटीआई में अधिसूचना की मांग की थी तो कलेक्टर ने एक ही सूचना ही क्यों दी ,
न्यायलय ने तो कमाल का काम किया, क्योकि न्यायधीश ने ही सरकार के जबाब के आधार पे दूसरी सूचना के की वजह से ग्रामवासियो को एचिका में संसोधित करने को अनुमति दी ,बाद में ठीक इसी कारन याचिका ख़ारिज का र्डि की आपने दूसरी याचिका को चुनौती क्यों नहीं दी ,कोर्ट ने ये भी कहा की 6 -7 साल का समय गुजर गया है ,काफी स्थापना का खर्च हो गया है ,तो इस को यदि दुबारा ग्रामपंचायत बना दते है तो बहुत जाएगी ,कमाल है ,की लोग 6 साल से कोर्ट में खड़े है ,और न्यायलय कह रहा है की बहुत देर हो गई।
पूरा प्रकरण लिखने का कारण ये भी है की हम एक बार फिर समझे की कोर्ट ,सरकार और कार्पोरेट का गठबंधन कैसे आदिवासियों के खिलाफ काम करता है , पांचवी अनुसूची में आदिवासियों को दिए गए अधिकार कितनी आसानी से तकनिकी आदर पे कार्पोरेट के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं।
जुगनी देवी से मेरी मुलाकात तीन साल पहले हुई थी ,वे कहरही थी की सारे कानून हमारे पक्ष में है ,तो हम ही जीतेंगे ,वो अलग बात है की प्रेमनगर के पावर प्रोजेक्ट को असियो ने अपने यहाँ से भगा के ही दम लिया ,लेकिन ये आफत दूसरे गॉव में चली गई ,वह लोग ऐसे ही विरोध का र्रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के सरगुजा में सूरजपुर जिले के प्रेमनगर क्षेत्र सारे गॉव में पावर प्रोजेक्ट के खिलाफ प्रारम्भ से ही आन्दोलनरत थे , पूरा जिला पांचवी अनु सूचि के तहत पेसा कानून के अंतर्गत आता है ,जिसमे ग्रामसभाओं को विशेष अधिकार हैं ,
सभी ग्रामसभाएं जमींन जाने और पानी की तंगी के कारण विरोध कर रहे थे ,बड़े बड़े विरोध प्रदर्शन हुए ,बीड़ी शर्मा तक कई बार आये उन्होंने सभाए ली ,कांटारोली ग्राम आंदोलन के केंद्र में था ,पहले तो जैसे की सब जगह होता ही है ,आंदोलन को कुचलने के लिए कार्यकर्ताओ को प्रताड़ित किया गया ,झूट मुक़दमे लादे गए और अंत में एक प्रमुख कार्यकर्त्ता को खरीद भी लिया गए ,जो बाद में वह से वहला भी गया ,खैर ये तो होना ही था ,
छत्तीसगढ़ शाशन ने एक घटिया तरीका निकाला , वो ये की प्रेमनगर ग्रामसभा को नगर पंचायत बनाने की घोषणा कर दी , प्लान ये थे की इससे ग्रामसभा की स्वीकृति से पीछा छूट जायेगा , जब की अनुसूचित क्षेत्र में प्रशाशन के ढांचे के मूल में परिवर्तन किया ही नहीं जा सकता था ,खैर , गॉव में तो किसी को पता ही नहीं चला की कब ये कारनामा कर दिया सरकार ने.
जुग्गा देवी और ग्राम के लोगो को जब पता चला तो इन लोगो ग्रामभा बुला के इसका विरोध किया ,और प्रस्ताव पास किया ,सब लोग कई बार कलेक्टर ,कमिश्नर के पास गए ,किसी ने कोई सुनवाई नहीं की ,और न ही नगर पंचायत के बारे में कोई आदेश ये अधि सूचना की जानकारी दी ,आखरी में करी लोगो ने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी ,तो उन्हें 2009 में जारी प्राम्भिक अधि सूचना की प्रति दी गई , ग्राम के लोग इसी अधिसूचना के विरोध में उच्च न्यायलय बिलासपुर गए , उन्होंने कहा की पांचवी अनुसूची में पेसा कानून के तहत बिना ग्रामसभा के अनोमोदन के आप नगर पंचायत बना ही नहीं सकते ,
पीयूसीएल के महासचिव और एडवोकेट सुधा भरद्वाज ने इनकी पैरवी की , अभी एक सप्ताह पहले इस केस को ख़ारिज कर दिए गया ,मेरी उनसे [ रायगढ़ जाते समय ] चर्चा हुई तो पता चला की प्रकरण शुद्द तकनिकी आधार पे ख़ारिज कर दिया गया , कोर्ट ने माना की ग्रामवासियो ने प्राम्भिक अधिसूचना को चेलेंज किया है न की दूसरी अधिसूचना को , विडम्बना ये है की दुसरी सूचना कब जारी हुई ,किसी को मालूम ही नहीं था , 2009 में पहली सूचना जारी हुई और 2010 में दूसरी सूचना जारी हुई ,इसकी जानकारी तो प्रशाशन को भी नहीं थी, नहीं तो जब आरटीआई में अधिसूचना की मांग की थी तो कलेक्टर ने एक ही सूचना ही क्यों दी ,
न्यायलय ने तो कमाल का काम किया, क्योकि न्यायधीश ने ही सरकार के जबाब के आधार पे दूसरी सूचना के की वजह से ग्रामवासियो को एचिका में संसोधित करने को अनुमति दी ,बाद में ठीक इसी कारन याचिका ख़ारिज का र्डि की आपने दूसरी याचिका को चुनौती क्यों नहीं दी ,कोर्ट ने ये भी कहा की 6 -7 साल का समय गुजर गया है ,काफी स्थापना का खर्च हो गया है ,तो इस को यदि दुबारा ग्रामपंचायत बना दते है तो बहुत जाएगी ,कमाल है ,की लोग 6 साल से कोर्ट में खड़े है ,और न्यायलय कह रहा है की बहुत देर हो गई।
पूरा प्रकरण लिखने का कारण ये भी है की हम एक बार फिर समझे की कोर्ट ,सरकार और कार्पोरेट का गठबंधन कैसे आदिवासियों के खिलाफ काम करता है , पांचवी अनुसूची में आदिवासियों को दिए गए अधिकार कितनी आसानी से तकनिकी आदर पे कार्पोरेट के पक्ष में खड़े दिखाई देते हैं।
जुगनी देवी से मेरी मुलाकात तीन साल पहले हुई थी ,वे कहरही थी की सारे कानून हमारे पक्ष में है ,तो हम ही जीतेंगे ,वो अलग बात है की प्रेमनगर के पावर प्रोजेक्ट को असियो ने अपने यहाँ से भगा के ही दम लिया ,लेकिन ये आफत दूसरे गॉव में चली गई ,वह लोग ऐसे ही विरोध का र्रहे हैं।
Sunday, March 29, 2015
हमारे समय की नायिकाएं ,हिड़मे और सोनी
हमारे समय की नायिकाएं ,हिड़मे और सोनी
हिमांशु कुमार
हिड़मे
कुछ देर पहले छत्तीसगढ़ के शहर जगदलपुर से सोनी सोरी का फोन आया कि गुरूजी हमने हिड़मे को जेल से ले लिया है , पुलिस के एसपी और आईजी वहाँ मौजूद थे . मुझे लगता है पुलिस कुछ और करने की योजना बना रही है .
मैंने धड़कते दिल से सोनी को दिलासा दिया कि जाओ बेटी आराम से उसे अपने घर ले जाओ , जो होगा देखा जाएगा .
कौन है ये हिड़मे ? पुलिस क्यों इसकी रिहाई से इतनी चिंतित है ?
आइये समय की रेखा पर कुछ पीछे को चलते हैं .
हिड़मे एक आदिवासी लड़की है . उस समय हिड़मे की उम्र उस समय करीब सोलह साल की थी . जिला सुकमा राज्य छत्तीसगढ़ के एक गाँव की रहने वाली . हिड़मे के माता पिता बीमारी से चल बसे . हिड़मे मौसी के घर में रहती थी .
थोडी सी ज़मीन थी जिस पर हिड़मे और उसकी मौसी खेती करते थे . खाने के लिए चावल खेत से पूरा हो जाता था . मौसीऔर हिड़मे महुआ के मौसम में महुआ के फूल बेच कर पास के बाज़ार में बेच देती थीं उससे साल भर के लिए कपड़े साबुन आदि का खर्चा निकल आता था .
सन दो हज़ार आठ की बात है .धान की फसल कट चुकी थी . अभी महुआ गिरने में थोडा और समय था . जनवरी का महीना था . हिड़मे के गाँव के पास के गाँव रामराम में मेला लगा था . हिड़मे भी अपनी मौसी और मौसेरी बहनों के साथ रामराम के मेले में पहुँच गयी .
मेले में हिड़मे ने रिबिन और चूड़ियाँ खरीदीं . इसके बाद आस पास से आये हुए लड़के लडकियां गोल घेरा बना कर नाच रहे थे . ढोल बज रहा था . हिड़मे ने भी घेरे में नाचने लगी . सभी लोग साथ में गा भी रहे थे .
नाचते नाचते हिड़मे का गला सूखने लगा . हिड़मे नाचना छोड़ कर थोड़ी दूर लगे हैंड पम्प से पानी पीने के लिए चल दी . पानी पीने के लिए हिड़मे ने जैसे ही हैंड पम्प का हत्था पकड़ा किसी ने हिड़मे का हाथ जोर से पकड़ लिया .
हिड़मे ने गुस्से से नजर उठा कर अपना हाथ पकड़ने वाले की तरफ देखा . अरे ये तो पुलिस वाले थे . कई पुलिस वालों ने हिड़मे को चारों तरफ से पकड़ कर घसीट कर मेले से बाहर खींच लिया . बाहर पुलिस का ट्रक खड़ा था . पुलिस वालों ने हिड़मे के हाथ पैर बाँध दिए और हिड़मे को ट्रक में फर्श पर फेंक दिया .
ट्रक चल पड़ा .
ट्रक जहां रुका वह पुलिस थाना था .
इसके बाद हिड़मे के साथ दरिंदगी शुरू हुई . एक थाने वालों का जी भर जाने के बाद हिड़मे को दूसरे थाने भेज दिया गया . वहाँ से जी भर जाने पर हिड़मे को तीसरे थाने में भेज दिया गया .
भयानक यातनाओं से हिड़मे की हालत मरने जैसी हो गयी थी . पुलिस वालों ने कहा यह थाने में ही ना मर जाय इसलिए अब इसे भी जेल में डाल दो . इस इलाके में आदिवासी लड़कियों को महीनों इस तरह रौंद कर नक्सली कह कर जेल में डालने का धंधा जोर शोर से चल रहा था .
जेल में डालने से पहले हिड़मे को अदालत में पेश करने की औपचारिकता की भी ज़रूरत थी .
लेकिन हिड़मे की हालत अदालत पहुँचने की नहीं थी . हिड़मे को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया . कुछ दिन बाद हिड़मे को अदालत में पेश किया गया . पुलिस ने कहा कि हिड़मे ने तेईस सीआरपीएफ के जवानों की हत्या करी है . अदालत ने हिड़मे को जेल में डालने का हुकुम दे दिया . हिड़मे को जगदलपुर जेल में डाल दिया गया .
थाने में जो हिड़मे के साथ हुआ था वो हैवानियत की इन्तेहा थी . जेल पहुँचने पर हिड़मे का गर्भाशय बाहर निकल आया . हिड़मे जेल में किससे कहती ? उसे बस गोंडी भाषा आती थी . हिड़मे तो हिन्दी भी नहीं बोल सकती थी .
हिड़मे ने अपने शरीर से बाहर निकले हुए उस मांस के लोथड़े को दांत भींच कर फिर से शरीर के भीतर धकेल दिया .
हिड़मे के शरीर से लगातार खून बहता रहता था .
हिड़मे के शरीर से वो मांस का लोथड़ा बार बार बाहर आ जाता था .
एक दिन हिड़मे ने जेल में एक लड़की से कहा कि उसे कहीं से एक ब्लेड का टुकड़ा मिल सकता है क्या ?
अगले दिन उस लड़की ने हिड़मे को एक ब्लेड लाकर दे दिया .
हिड़मे के शरीर से गर्भाशय फिर से बाहर निकल आया था . हिड़में ने मॉस के उस लोथड़े को अपने शरीर से अलग करने का फैसला किया . सभी लडकियां बैरक से बाहर जा चुकी थीं . हिड़मे ने ब्लेड से गर्भाशय को काटने की तैयारी करी . तभी एक लड़की बैरक के भीतर आ गयी और हिड़मे की हालत देख कर जोर से चिल्लाई . बाकी की महिलायें भी जमा हो गयीं . हिड़मे से ब्लेड ले लिया गया . कुछ महिलाओं ने शोर मचा कर जेलर को बुला लिया . जेलर ने सोचा मेरी जेल में कोई औरत मर जायेगी तो खामखाँ मीडिया वाले शोर मचाएंगे . हिड़मे को सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया .
हिड़मे का आपरेशन किया गया . हिड़मे को नौ टाँके आये .
आपरेशन के बाद हिड़मे को फिर से जेल भेज दिया गया .
इधर हिड़मे के खिलाफ़ पुलिस द्वारा बनाया गया फर्ज़ी मुकदमा आगे ही नहीं बढ़ रहा था .
पुलिस ने हिड़मे के खिलाफ़ दो औरतों और दो पुलिस वालों को गवाह बताया था . लेकिन वो दोनों औरतें कभी अदालत के सामने नहीं पेश करी गयीं . दोनों पुलिस वालों ने हिड़मे का किसी मामले में हाथ होने की जानकारी से इनकार कर दिया .
इसी बीच जेल में सोनी सोरी को भी डाल दिया गया था .
सोनी सोरी के साथ भी पुलिस वालों ने थाने में अत्याचार किया था .
खुद पुलिस अधीक्षक ने सोनी को बिजली के झटके दिए थे और सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर ठूंस दिए थे .
हिड़मे की हालत के बारे में सोनी सोरी ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को बताया .
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ओर वकीलों ने हिड़मे के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी .
लेकिन सरकार और अदालत आदिवासियों के मामलों में तो बिलकुल बेपरवाह रहती है .
क्योंकि देश भर में सभी मानते हैं कि आदिवासियों को तो आधुनिक विकास के लिए मार ही डाला जाना है .
मानवाधिकार वकील ने कहा कि अब तो सारी गवाहियां भी पूरी हो चुकी हैं अब तो हिड़मे की रिहाई का हुक्म दे दीजिए मी लार्ड
जज साहब ने कहा भी कि जहाँ सात साल जेल में रही है कुछ और महीने रह लेगी तो क्या हो जाएगा ?
हिड़मे कई और महीने जेल में पड़ी रही .
अंत में हिड़मे को जेल से रिहा करने का आदेश देना ही पड़ा .
आज सुबह हिड़मे जगदलपुर जेल से रिहा हो गई .
सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी हिड़मे को लेने जगदलपुर जेल पहुंचे .
हिड़मे का कोई अपराध नहीं था . सिवाय इसके कि वह एक लड़की थी , और बस्तर में वहाँ पैदा हुई थी जहां की ज़मीनों को सरकार अमीर कंपनियों के लालच के लिए छीनना चाहती है .
जब मैं यह सब लिख रहा हूँ और मैं हिड़मे का चेहरा अपनी आँखों के सामने लाने की कोशिश करता हूँ तो मेरे सामने मेरी अपनी बेटी का चेहरा आ जाता है .
और मैं घबरा कर बिना चेहरे वाली हिड़मे के बारे में लिखने लगता हूँ .
अभी इतना साहस हममे कहाँ है कि हम अपनी बेटी को हिड़मे की जगह रख कर सोच सकें ?
मैंने धड़कते दिल से सोनी को दिलासा दिया कि जाओ बेटी आराम से उसे अपने घर ले जाओ , जो होगा देखा जाएगा .
कौन है ये हिड़मे ? पुलिस क्यों इसकी रिहाई से इतनी चिंतित है ?
आइये समय की रेखा पर कुछ पीछे को चलते हैं .
हिड़मे एक आदिवासी लड़की है . उस समय हिड़मे की उम्र उस समय करीब सोलह साल की थी . जिला सुकमा राज्य छत्तीसगढ़ के एक गाँव की रहने वाली . हिड़मे के माता पिता बीमारी से चल बसे . हिड़मे मौसी के घर में रहती थी .
थोडी सी ज़मीन थी जिस पर हिड़मे और उसकी मौसी खेती करते थे . खाने के लिए चावल खेत से पूरा हो जाता था . मौसीऔर हिड़मे महुआ के मौसम में महुआ के फूल बेच कर पास के बाज़ार में बेच देती थीं उससे साल भर के लिए कपड़े साबुन आदि का खर्चा निकल आता था .
सन दो हज़ार आठ की बात है .धान की फसल कट चुकी थी . अभी महुआ गिरने में थोडा और समय था . जनवरी का महीना था . हिड़मे के गाँव के पास के गाँव रामराम में मेला लगा था . हिड़मे भी अपनी मौसी और मौसेरी बहनों के साथ रामराम के मेले में पहुँच गयी .
मेले में हिड़मे ने रिबिन और चूड़ियाँ खरीदीं . इसके बाद आस पास से आये हुए लड़के लडकियां गोल घेरा बना कर नाच रहे थे . ढोल बज रहा था . हिड़मे ने भी घेरे में नाचने लगी . सभी लोग साथ में गा भी रहे थे .
नाचते नाचते हिड़मे का गला सूखने लगा . हिड़मे नाचना छोड़ कर थोड़ी दूर लगे हैंड पम्प से पानी पीने के लिए चल दी . पानी पीने के लिए हिड़मे ने जैसे ही हैंड पम्प का हत्था पकड़ा किसी ने हिड़मे का हाथ जोर से पकड़ लिया .
हिड़मे ने गुस्से से नजर उठा कर अपना हाथ पकड़ने वाले की तरफ देखा . अरे ये तो पुलिस वाले थे . कई पुलिस वालों ने हिड़मे को चारों तरफ से पकड़ कर घसीट कर मेले से बाहर खींच लिया . बाहर पुलिस का ट्रक खड़ा था . पुलिस वालों ने हिड़मे के हाथ पैर बाँध दिए और हिड़मे को ट्रक में फर्श पर फेंक दिया .
ट्रक चल पड़ा .
ट्रक जहां रुका वह पुलिस थाना था .
इसके बाद हिड़मे के साथ दरिंदगी शुरू हुई . एक थाने वालों का जी भर जाने के बाद हिड़मे को दूसरे थाने भेज दिया गया . वहाँ से जी भर जाने पर हिड़मे को तीसरे थाने में भेज दिया गया .
भयानक यातनाओं से हिड़मे की हालत मरने जैसी हो गयी थी . पुलिस वालों ने कहा यह थाने में ही ना मर जाय इसलिए अब इसे भी जेल में डाल दो . इस इलाके में आदिवासी लड़कियों को महीनों इस तरह रौंद कर नक्सली कह कर जेल में डालने का धंधा जोर शोर से चल रहा था .
जेल में डालने से पहले हिड़मे को अदालत में पेश करने की औपचारिकता की भी ज़रूरत थी .
लेकिन हिड़मे की हालत अदालत पहुँचने की नहीं थी . हिड़मे को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया . कुछ दिन बाद हिड़मे को अदालत में पेश किया गया . पुलिस ने कहा कि हिड़मे ने तेईस सीआरपीएफ के जवानों की हत्या करी है . अदालत ने हिड़मे को जेल में डालने का हुकुम दे दिया . हिड़मे को जगदलपुर जेल में डाल दिया गया .
थाने में जो हिड़मे के साथ हुआ था वो हैवानियत की इन्तेहा थी . जेल पहुँचने पर हिड़मे का गर्भाशय बाहर निकल आया . हिड़मे जेल में किससे कहती ? उसे बस गोंडी भाषा आती थी . हिड़मे तो हिन्दी भी नहीं बोल सकती थी .
हिड़मे ने अपने शरीर से बाहर निकले हुए उस मांस के लोथड़े को दांत भींच कर फिर से शरीर के भीतर धकेल दिया .
हिड़मे के शरीर से लगातार खून बहता रहता था .
हिड़मे के शरीर से वो मांस का लोथड़ा बार बार बाहर आ जाता था .
एक दिन हिड़मे ने जेल में एक लड़की से कहा कि उसे कहीं से एक ब्लेड का टुकड़ा मिल सकता है क्या ?
अगले दिन उस लड़की ने हिड़मे को एक ब्लेड लाकर दे दिया .
हिड़मे के शरीर से गर्भाशय फिर से बाहर निकल आया था . हिड़में ने मॉस के उस लोथड़े को अपने शरीर से अलग करने का फैसला किया . सभी लडकियां बैरक से बाहर जा चुकी थीं . हिड़मे ने ब्लेड से गर्भाशय को काटने की तैयारी करी . तभी एक लड़की बैरक के भीतर आ गयी और हिड़मे की हालत देख कर जोर से चिल्लाई . बाकी की महिलायें भी जमा हो गयीं . हिड़मे से ब्लेड ले लिया गया . कुछ महिलाओं ने शोर मचा कर जेलर को बुला लिया . जेलर ने सोचा मेरी जेल में कोई औरत मर जायेगी तो खामखाँ मीडिया वाले शोर मचाएंगे . हिड़मे को सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया .
हिड़मे का आपरेशन किया गया . हिड़मे को नौ टाँके आये .
आपरेशन के बाद हिड़मे को फिर से जेल भेज दिया गया .
इधर हिड़मे के खिलाफ़ पुलिस द्वारा बनाया गया फर्ज़ी मुकदमा आगे ही नहीं बढ़ रहा था .
पुलिस ने हिड़मे के खिलाफ़ दो औरतों और दो पुलिस वालों को गवाह बताया था . लेकिन वो दोनों औरतें कभी अदालत के सामने नहीं पेश करी गयीं . दोनों पुलिस वालों ने हिड़मे का किसी मामले में हाथ होने की जानकारी से इनकार कर दिया .
इसी बीच जेल में सोनी सोरी को भी डाल दिया गया था .
सोनी सोरी के साथ भी पुलिस वालों ने थाने में अत्याचार किया था .
खुद पुलिस अधीक्षक ने सोनी को बिजली के झटके दिए थे और सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर ठूंस दिए थे .
हिड़मे की हालत के बारे में सोनी सोरी ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को बताया .
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ओर वकीलों ने हिड़मे के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी .
लेकिन सरकार और अदालत आदिवासियों के मामलों में तो बिलकुल बेपरवाह रहती है .
क्योंकि देश भर में सभी मानते हैं कि आदिवासियों को तो आधुनिक विकास के लिए मार ही डाला जाना है .
मानवाधिकार वकील ने कहा कि अब तो सारी गवाहियां भी पूरी हो चुकी हैं अब तो हिड़मे की रिहाई का हुक्म दे दीजिए मी लार्ड
जज साहब ने कहा भी कि जहाँ सात साल जेल में रही है कुछ और महीने रह लेगी तो क्या हो जाएगा ?
हिड़मे कई और महीने जेल में पड़ी रही .
अंत में हिड़मे को जेल से रिहा करने का आदेश देना ही पड़ा .
आज सुबह हिड़मे जगदलपुर जेल से रिहा हो गई .
सोनी सोरी और लिंगा कोडोपी हिड़मे को लेने जगदलपुर जेल पहुंचे .
हिड़मे का कोई अपराध नहीं था . सिवाय इसके कि वह एक लड़की थी , और बस्तर में वहाँ पैदा हुई थी जहां की ज़मीनों को सरकार अमीर कंपनियों के लालच के लिए छीनना चाहती है .
जब मैं यह सब लिख रहा हूँ और मैं हिड़मे का चेहरा अपनी आँखों के सामने लाने की कोशिश करता हूँ तो मेरे सामने मेरी अपनी बेटी का चेहरा आ जाता है .
और मैं घबरा कर बिना चेहरे वाली हिड़मे के बारे में लिखने लगता हूँ .
अभी इतना साहस हममे कहाँ है कि हम अपनी बेटी को हिड़मे की जगह रख कर सोच सकें ?
Posted by Vcadantewada Kawalnar Ashram at Saturday, March 28, 2015
निरपराध कवासी हिड़मे और सलवा मुक्ता को सात साल जेल के बाद कोर्ट ने रिहा किया , कोर्ट ने माना की वो निर्दोष थी
निरपराध कवासी हिड़मे और सलवा मुक्ता को सात साल जेल के बाद कोर्ट ने रिहा किया , कोर्ट ने माना की वो निर्दोष थी
माओवाद के नाम पे 23 जवानो की हत्या की आरोपी कवासी हिड़मे और सलवा मुक्ता को दंतेवाड़ा फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने दोषमुक्त करार दे दिया ,पुलिस इन दोनों के खिलाफ कोई साबुत पेश नहीं कर सकी, न्यायधीश धनेश्वरी ने सबूतो और गवाहों के अभावो में दोनों को निर्दोष माना , कोर्ट के आदेह के बाद दोनों आदिवासी महिलाओ को जेल से रिहा कर दिया गया ,
कवासी हिङमा और सलवा मुक्त को सात साल पहले 23 जवानो की हत्या के आरोप में इन्हे घर से गिरफ्तार किया था ,विचाराधीन कैदी के रूप में इन्हे सात साल तक जेल में रहना पड़ा ,फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट ने सात साल में निर्णय दिए की वो निर्दोष है,इन्हे बिना अपराध के पकड़ा गया हैं
आप पार्टी की नेता सोनी सोढ़ी के पुलिस पे इस महिला को लेके गंभीर आरोप हैं ,पत्रकारों ने जब हिङमा से पूछा की उसे क्यों गिरफ्तार किया गया है तो उसने कहा की मालूम नहीं ,सोनो सोरी ने पुलिस की बर्बरता से सहमी हुई हैं , सोनी ने कहा की पुलिस के अत्याचार की वजह से उसकी बच्चेदानी ख़राब हुई हैं। पुलिस बर्बरता के कारण अस्पताल में ऑपरेशन भी हुआ था। बच्चेदानी की खराबी की अभी तक रिपोर्ट नहीं मिली हैं जेल अधीक्षक गायकवाड़ ने बताया की दो दिनों बाद रिपोर्ट मिल जाएगी ,
सोनी सॉरी जो जेल में इन महिलाओ के रिहा होने के अवसर पे मौजूद थी ,इन्होने पत्रकारों को बताया कि पुलिस ने दोनों महिलाओ को रामराम मेले से गिरफ्तार किया था गिरफ्तर करने के 20 दिन बर उन्हें न्ययालय में पेश किया गया ,इन महिलाओ को न्यायालय में पेश करने के पहले प्रताड़ित किया गया ,सोनी ने ये भी कहा की इन्हे अलग अलाह थानो में रख के अनाचार भी किया गया ,
पुलिस का आरोप था की सुकमा के उपलमेटा की पहाड़ियों में चढ़ के माओवदियो ने सर्चिंग दल पे जून 2006 में गोलिया चलाई ,इस वरदात में 23 जवानो की मोत हो गई और आधा दर्जन सिपाही घायल हुए।
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ रायगढ़ के राष्ट्रीय सम्मेलन में संकल्प पारित , राष्ट्रपति अध्यादेश दुबारा स्वीकृत न करे और सरकार 2013 का कानून को लागु करे ,
भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ रायगढ़ के राष्ट्रीय सम्मेलन में संकल्प पारित , राष्ट्रपति अध्यादेश दुबारा स्वीकृत न करे और सरकार 2013 का कानून को लागु करे ,
रायगढ़/ छत्तीसगढ़ में जिलाबचाओ संघर्ष समिति द्वारा आयोजित जान नायक , स्वंत्रता संग्राम सेनानी और संघर्ष के प्रतीक रामकुमार अग्रवाल की पुण्यतिथि 28 मार्च 15 को भू अधिग्रहण के खिलाफ सम्मलेन में राज्य भर के आंदोलन करी और जनसंघटन की साथी उपस्थित रहे , एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक पीव्ही राजगोपाल ,मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी छत्तीसगढ़ के राज्य सचिव संजय पराते ,कम्युनिस्ट पार्टी एम एल के रज्य सचिव सोरा यादव , छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा मजदुर कार्यकर्ता समिति की सुधा भारद्वाज ,छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के जनकलाल ठाकुर , प्रमुख समाजवादी चिंतक आनंद मिश्रा ,छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ल ,बिरेन्द्र पाण्डेय ,पीयूसीएल से डा , लाखनसिंह , जशपुर से जेकब कु जुर आदि उपस्थित हुए ,
जिला बचाओ संघर्ष समिति के गणेश कछवाह ,रामकुमार जी के बड़े पुत्र अमर चन्द्र अग्रवाल ,वरिष्ठ साथी दयाचंद ठेठवार ,डिग्री चौहान ,मेहताभ आलम आयोजको में से थे ,
वाखाओ ने कहा की सरकार भूमि अधिग्रहण बिल केसाथ दूसरे जनकल्याणकारी कानून भी बदलना चाहती है ,क्योकि साम्राज्यवादी पूँजी के दबाब में ऐसे सारे कानून खत्म करना चाहते है जो उद्योगो पूंजी के आवागमन में बाधित हो रहे हैं पेसा कानून ,वनाधिकार कानून ,श्रम कानून ,भूमि सुधार और गरीबी उन्मूलन की सारी योजना में सब्सिडी खत्म करके कार्पोरेट को लाभ पहुचाने के लिया ऐसे संसोधन किया जा रहे हैं ,
पीव्ही राजगोपाल ने जोर देके कहा की सरका पहले हिसाब दे की अभी तक 5 करोड़ लोग और लाखो हेक्टर जमीं जो अधिग्रहण की है उसका क्या हुआ ,उसमे से 68 प्रतीक्षा तजमिन आज भी बिना उयोग के पड़ी हैं, पहले जमीं का अधिग्रहण करो बाद में किस प्रकार की जमींन चाहिए ये बताओ , उन्होंने 10 लक्ख किसनोई की पदयात्रा की योजना की भी बात कही ,
सम्मलेन के अंत में राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री के नाम संकल्प पत्र भी स्वीकार किया जिसमे कहा गया की ;-
1. केंद्र सरकार द्वारा लाया गया भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पूरी तरह किसान विरोधी, आदिवासी मजदुर विरोधी है ,ये अध्यादेश ने केवल , . संविधान के मूल आत्मा के खिलाफ हैं बल्कि न्याय के सिद्दांत के भी विपरीत हैं ,यह अध्यादेश पूरी तरह कार्पोरेट के मुनाफा के लिए किसानो की जमीन छीनने के लिए लाया गया हैं सभी संघटन राष्ट्रपति से अपील करते है की यदि सरकार दुबारा अध्यादेश आपके सामने लाये तो आप इसे स्वीकार न करें या जारी न करेँ।
2 ,2013 के कानून में किसानो की सहमति एवं सामाजिक आंकलन के अध्यन तथा कृषि जमींन के अधिग्रहण न करने के प्रावधान का सख्ती से पालन किया जाये
,
3 ,किसी भी परियोजना के लिए भूअधिग्रहण के पूर्व सम्बंधित ग्रामसभा की सहमति को अनिवार्य बनाया जाये ,विशेषकर पांचवी अनुसूची क्षेत्र में पैसा कानून ,वनाधिकार कानून को सख्ती से लागु किया जाये
4 आज़ादी के बाद जितने भी लोग विस्थापित हुए है उन्हें पहले पुनर्वासित किया जाये ,और उन्हें आजीवका व वर्तमान कानूनो के अनुसार मुआवजा दिया जाये , अभी तक आदिग्रहित की गई जमीन में से जो जमीन अनुपयोगी पड़ी है उसे किसानो को वापस किया जाये।
5 अंधाधुन्द तरीके से कोयले के खनन को बंद करते हुए सिर्फ देश की वास्तविक जरुरतो के लिए खनन किया जाये न की कार्पोरेट के लाभ के लिए ,जैसा की सुप्रीम कोर्ट ने कहा भी हैँ ,साथ ही पर्यवरणिया और सामाजिक प्रभावो सही आंकलन करके उनका कड़ाई से पालन किया जाये ,
Friday, March 27, 2015
SUPREME COURT JUDGMENT ON 66A OF IT ACT
SUPREME COURT JUDGMENT ON 66A OF IT ACT
24.3.2015
The Supreme Court today reaffirmed its commitment to right to freedom of speech and expression enshrined under Article 19(1)(a) of the Constitution of India by striking down Section 66A of the IT Act. The Supreme Court held that the said impugned provision is not saved by Article 19(2). In its verdict, the Supreme Court emphasised that liberty of thought is paramount in the country. The said provision – Section 66A of the IT Act was challenged by Peoples Union for Civil Liberty (PUCL), who has been championing the cause of civil liberties and human rights in the country. In the Writ Petition filed by PUCL pertaining to electoral reforms, the Supreme Court had held that right to know the antecedents of a candidate is voter’s right under Article 19(1)(a). One of the important aspect highlighted by the Hon’ble Court in today’s judgment is that people have a right to know. The PUCL had argued that Section 66A has to be struck down because it has no proximate relationship with Public Order and is therefore, not protected within the exceptions provided under Article 19(2). The case on behalf of PUCL was argued by Mr. Sanjay Parikh, Advocate. This will be remembered as another major achievement by the PUCL.
मेक इन इंडिया' नहीं 'लूटो इंडिया' आलोक प्रकाश पुतुल
'मेक इन इंडिया' नहीं 'लूटो इंडिया'
आलोक प्रकाश पुतुलरायपुर से बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी-सीपीआई माओवादी) ने नरेंद्र मोदी की सरकार के भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की आलोचना करते हुए ‘मेक इन इंडिया’ के नारे को 'लूटो इंडिया' की संज्ञा दी है.
पार्टी ने नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' की भी आलोचना की है.
सीपीआई माओवादी के केंद्रीय प्रवक्ता अभय ने एक बयान में कहा है कि अध्यादेश को नौ छोटे-मोटे संशोधनों के साथ लोकसभा में पारित किया गया है. लेकिन संशोधन विधेयक में किसानों और आदिवासियों के हितों के नुक़सान वाले प्रावधान यथावत हैं.
हालाँकि नरेंद्र मोदी सरकार ये दावा करती है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक किसान विरोधी नहीं है और किसानों को गुमराह किया जा रहा है.
किसानों के मुद्दे
प्रवक्त अभय का कहना है कि प्रधानमंत्री ने 22 मार्च को अपने 'मन की बात'कार्यकम में न केवल किसानों, बल्कि पूरे देश को गुमराह करने की नाकाम कोशिश की. उन्होंने किसानों के ज्वलंत मुद्दों को छुआ तक नहीं.
प्रवक्ता ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री ने भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सफेद झूठ बोला. इसका अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठनों को भी अध्यादेश का विरोध करना पड़ा.
माओवादी पार्टी ने बयान में कहा है कि मोदी अब 'मेक इन इंडिया' के बहाने कॉरपोरेट घरानों के मुनाफ़े के लिए देश के जल-जंगल-ज़मीन और संसाधनों ख़ासकर किसानों व आदिवासियों की ज़मीन को कौड़ियों के भाव आसानी से व बेरोकटोक उपलब्ध कराने की साजिश कर रहे हैं.
सामाजिक प्रभाव
अभय ने कहा है कि भूमि अधिग्रहण से समाज पर असर के आकलन से भी छूट दी गई. इससे जाहिर है कि अब किसान अपनी ज़मीन का मालिक नहीं रहा. उसकी जमीन के अधिग्रहण के संबंध में फ़ैसला पूरी तरह सरकार लेगी.
माओवादी नेता ने आरोप लगाया कि गुजरात में इस तरह की छूट के बिना ही अदानी ने परियोजना के लिए मिली ज़मीन को बेच कर करोड़ों रुपए का मुनाफ़ा कमा लिया. ऐसे में इस क़ानून के बाद की स्थितियों का अंदाज़ा लगाया जा सकता है.
माओवादी नेता ने कहा है कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश संविधान में आदिवासियों को मिले अधिकारों के उल्लंघन की सबसे बड़ी मिसाल है.
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युद्ध-क्षेत्र में आदिवासी जिंदगियाँ : बीजापुर के गावों में सुरक्षा कैंप के बीच असुरक्षित जीवन
पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स
जाँच दल की विज्ञप्ति
युद्ध-क्षेत्र में आदिवासी जिंदगियाँ : बीजापुर के गावों में सुरक्षा कैंप के बीच असुरक्षित जीवन
26 से 31 दिसंबर 2014 के बीच पी.यू.डी.आर. का एक जांच दल छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले के 9 गावों में गया | जांच दल ने इन क्षेत्रों में माओवादियों से लड़ने के लिए तैनात सुरक्षा बलों के द्वारा की जा रही गिरफ्तारियों, धमकियों, एवं उत्पीड़न के साथ-साथ यौन-उत्पीड़न की घटनाओं को दर्ज़ किया | मुख्यतः आदिवासी, इन गावों (सार्केगुड़ा, राजपेटा, कोट्टागुड़ा, पुसबाका, तीमापुर, लिंगागिरी, कोरसागुड़ा,बासागुड़ा, कोट्टागुडेम) के निवासियों ने सुरक्षा कैम्पों में रह रहे सशस्त्र बलों द्वारा प्रतिदिन किये जाने वाले अपराधों तथा हिंसक गतिविधियों के तथ्य बयान किये |सुरक्षा बलों द्वारा लगातार इन 'क्षेत्रों में प्रभुत्व' स्थापित करने के प्रयास के दस्तावेज़ीकरण के अलावा, यह रिपोर्ट निम्न बिन्दुओं पर विशेष ध्यान आकर्षित करती है -
1. आबादी की एक बड़ी संख्या के खिलाफ 'स्थाई वारंट' जारी किये गए हैं और इनमें से एक बड़ी संख्या को 'फरार' घोषित कर दिया गया है | एक मोटा आंकलन यह दिखाता है की केवल बीजापुर में ही कम से कम 15 से 35 हज़ार लोग 'स्थाई वारंट'के आतंक और भय के साये में जी रहे हैं |
2. सशस्त्र बल और स्पेशल पुलिस ऑफिसर (एस.पी.ओ.) बेलगाम तरीके से अवैध बर्ताव करते हैं जैसे की नियमतः आदिवासी ग्रामीणों के घरों पर छापा मारना, पिटाई करना, लूट-पात, हवालात में बंद करना तथा उनको सुरक्षा कैम्पों में 'बेगार' (मुफ्त श्रम) करने के लिए बाध्य करना | यौन-उत्पीड़न के मामले भी सामने आये |
3. एक ओर सुरक्षा बलों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज़ करने की असंभवता और दूसरी ओर जेलों में बंद ग्रामीणों की गिरफ्तारियों की बढ़ती संख्या |
4. कैम्पों में आपूर्ति-प्रणाली सुनिश्चित करने हेतु सेना द्वारा बढ़ते स्तर पर सड़क-निर्माण कार्यों की वजह से सशस्त्र बलों की उपस्थिति में अधिक्यता | सड़कों को खोलने का काम सशस्त्र बलों द्वारा सड़क उदघाटन अभ्यास के बाद ही किया जाता है और तत्पश्चात सड़क-अवरोधकों तथा चेक पोस्टों पर बार-बार यात्रियों को रोका जाता है | यह रोज़ाना का सिलसिला है |
5. बीजापुर और बासागुड़ा के बीच चलने वाली सार्वजनिक बसों में सशस्त्र बलों के जवानों के होने के कारण ग्रामीणों को यात्रा के दौरान उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है | अंतर्राष्ट्रीय नियमों की घोर अवहेलना करते हुए, सुरक्षा बल जान-बूझकर संभाव्य मुठभेड़ों के खिलाफ यात्रियों को 'मानवीय कवच' के रूप में इस्तेमाल करते हैं|
6. आदिवासी ग्रामीणों की जीवन-स्थिति पर कैम्पों ने बहुत बुरा प्रभाव डाला है |कृषि-कार्यों में कमी और परिणामस्वरुप पारिवारिक आय और वेतनों में गिरावट इस उत्पीड़न का निश्चित परिणाम है | ख़राब स्वास्थ्य सेवाओं के साथ ही वर्तमान स्कूल व्यवस्था (जिसके तेहत स्थानीय ग्रामीण सहायकों की सेवाएं ली जा रही थी) को अब इरादतन 'आश्रम स्कूलों' में बदला जा रहा है और इसका मकसद आदिवासी बच्चों को उनके घरों और ग्रामीण परिवेश से खींच लेना है |
7. वर्तमान परिस्थिति की प्रबलता सलवा जुडूम की गतिविधियों (2005 से 2009 के बीच ग्रामीणों के बेदखली और सामूहिक विस्थापन) से तुलनीय है और उसको आगे बढ़ाती है | वर्तमान परिस्थिति केवल विस्थापन और यतित पुनर्वास की दुर्गति को रेखांकित करती है जिसके तेहत पहले भी ग्रामीणों को गुज़रने के लिए बाध्य किया गया था |
8. माओवादियों द्वारा बारम्बार किये जा रहे बम विस्फोटों तथा सड़कों को निशाना बनाये जाने के बावजूद, ग्रामीण सुरक्षा कैम्पों से डरते हैं क्योंकि वे सशस्त्र बल ही है जो उन्हें प्रताड़ित करते हैं और उनके खिलाफ नृशंस व्यवहार करते हैं |
9. क्रमबद्ध आवधिक जनसंहारों के साथ-साथ इस क्षेत्र में दैनिक उत्पीड़न राज्य द्वारा चलाए जा रहे युद्ध की दोहरी रणनीति का हिस्सा है |
10. वर्तमान सैन्य उपक्रम के पीछे यही मंसूबा है की खनन गतिविधियों को और अधिक बढ़ाने के लिए क्षेत्र को साफ कर दिया जाए | उद्देश्य यह भी है की आदिवासियों की राज्य का विरोध करने की इच्छशक्ति को ख़त्म कर दिया जाये और उन्हें आधिकारिक प्रयासों को स्वीकार करने के लिए तैयार किया जाये |
जांच दल की रिपोर्ट निम्न लिंक से प्राप्त की जा सकती है
Thursday, March 26, 2015
Wednesday, March 25, 2015
पचास हज़ार से ज़्यादा आदिवासियों पर अर्ध सैनिक बलों और पुलिस ने जगह जगह हमला किया उन्हें पीटा और जबरन रैली तक नहीं पहुँचने दिया .
पचास हज़ार से ज़्यादा आदिवासियों पर अर्ध सैनिक बलों और पुलिस ने जगह जगह हमला किया उन्हें पीटा और जबरन रैली तक नहीं पहुँचने दिया .
हिमांशु कुमार
.आज छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु की शहादत दिवस पर आदिवासियों की रैली में आने वाले पचास हज़ार से ज़्यादा आदिवासियों पर अर्ध सैनिक बलों और पुलिस ने जगह जगह हमला किया उन्हें पीटा और जबरन रैली तक नहीं पहुँचने दिया .
पूरे प्रशासन ने घोषणा कर दी थी कि आदिवासियों की इस रैली को प्रशासन किसी भी हालत में नहीं होने देगा .
आज सोनी पर पुलिस वालों ने किरंदुल थाने में हमला करने की कोशिश भी करी .
आज दोपहर बाद अंत में सोनी सोरी अपने चंद साथियों के साथ तयशुदा स्थल से पैदल चल पड़ी .
बड़ी संख्या में तैनात पुलिस बल ने सोनी सोरी और उनके साथियों को रोकने की कोशिश करी .
सोनी ने अभी फोन पर बताया कि थाने में पुलिस द्वारा पैरों में करेंट के झटके देने के बाद उनके पाँव कमज़ोर हो गए हैं .
पुलिस द्वारा दी गयी प्रतारणा के बाद सोनी सोरी अपने साथियों के साथ आज पहली बार पांच किलोमीटर पैदल चली और कलेक्टर आफिस तक गयीं और कलेक्टर को जेलों में बंद आदिवासियों की हालत के बारे में राज्यपाल के नाम एक ज्ञापन दिया .
सोनी सोरी का कहना है कि आज भगत सिंह की जेल की प्रतारणा और उनकी हिम्मत को याद करते हुए मैं अपने कमज़ोर पड़ चुके पांवों में भयंकर दर्द के बावजूद चलती रही और आदिवासियों द्वारा भगत सिंह की याद में होने वाली इस रैली को कर के दिखा दिया .
ऐ भगत सिंह तू जिंदा है . हर एक संघर्ष में .
इन्कलाब ज़िन्दाबाद
साम्राज्यवाद मुर्दाबाद
साम्राज्यवाद मुर्दाबाद
कॉन्वेंट हथियारबंद गार्ड तैनात करें: चर्च
कॉन्वेंट हथियारबंद गार्ड तैनात करें: चर्च
पीएम तिवारीकोलकाता से बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
- 27 मिनट पहले
पश्चिम बंगाल में सभी कान्वेंट स्कूलों का प्रबंधन और संचालन करने वाली दो चर्चों ने स्कूलों को सुरक्षा व्यवस्था मज़बूत करने की सलाह दी है.
राज्य के नदिया ज़िले में हाल में एक कान्वेंट में डकैती और बुज़ुर्ग नन के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था लेकिन किसी भी दोषी को फ़िलहाल पकड़ा नहीं जा सका है.
अब जलपाईगुड़ी ज़िले में एक कान्वेंट स्कूल को लगातार पांच धमकी भरे पत्र मिलने के बाद इलाक़े में भय बढ़ गया है और चर्चों ने स्कूलों को यह सलाह दी है.
राज्य की रोमन कैथौलिक चर्च और चर्च आफ नॉर्थ इंडिया ने अलग-अलग निर्देशों के तहत दूरदराज के इलाकों में स्थित कॉन्वेंट स्कूलों से हथियारबंद सुरक्षा गार्ड तैनात करने और सीसीटीवी कैमरे लगाने को कहा है.
'रानाघाट के बलात्कारी'
रानाघाट की घटना के अगले दिन ही जलपाईगुड़ी के एक क्रिश्चियन स्कूल को धमकी भरा पत्र आया और फिर चार और पत्र भेजे गए.
इनमें लिखा था कि स्कूल की नन इलाक़ा छोड़ कर नहीं गईं तो उनके साथ भी रानाघाट जैसा ही हाल होगा. साथ ही स्कूल में आग लगाने की धमकी भी दी गई है.
पत्र लिखने वालों ने ख़ुद को 'रानाघाट के बलात्कारी' बताया है.
पुलिस में शिकायत दर्ज होने के बाद वहां पुलिस के चार हथियारबंद जवानों को तैनात किया गया है.
गांववालों का साथ
चायबागानों से घिरे उस चंपागुड़ी इलाके में एक-दूसरे से सटे शिक्षा संस्थान हैं - सेंट कैप्टेनियो और सेंट मेरीज़ स्कूल .
धमकियों मिलने के बाद स्थानीय लोगों ने स्कूलों की सुरक्षा का संकल्प लिया है और एक समिति बनाने की पहल की है.
स्थानीय निवासी पवन खेरवार कहते हैं, "यह स्कूल हमारे गौरव हैं. इसलिए हम खुद ही यहां आने-जाने वालों पर निगाह रख रहे हैं."
एक स्थानीय दुकानदार जगदीश उरांव कहते हैं, "यह स्कूल ही चंपागुड़ी की पहचान हैं. हम हर हाल में इनकी सुरक्षा करेंगे."
एक स्कूल से जुड़े फ़ादरमैथ्यूज केरकेट्टा कहते हैं, "धमकी भरे पत्रों की वजह से हम कुछ परेशान तो हैं. लेकिन गांव वालों का समर्थन मिलने की वजह से हम सुरक्षित महसूस कर रहे हैं."
'सुरक्षा गार्ड ज़रूरी'
जलपाईगुड़ी के एसपी ए रवींद्रनाथ ने मंगलवार को स्कूल का दौरा किया. वे कहते हैं, "वहां पुलिस के जवानों तैनात कर दिया गया और जांच चल रही है."
कोलकाता में रोमन कैथोलिक चर्च के फ़ादर डोमिनिक गोम्स कहते हैं, "रानाघाट और जलपाईगुड़ी की घटनाओं को देखते हुए हथियारबंद सुरक्षा गार्ड ज़रूरी हैं."
चर्च आफ नॉर्थ इंडिया के बिशप अशोक विश्वास कहते हैं, "हम अब कोई और खतरा नहीं मोल ले सकते."
बंगाल में तमाम चर्चों के प्रमुख आर्च बिशप ने भी निजी सुरक्षा व्यवस्था पर जोर दिया है.
उनकी चिंता है कि तमाम कोशिशों के बावजूद रानाघाट मामले में 10-12 दिनों बाद भी किसी अभियुक्त को गिरफ्तार नहीं किया जा सका है.
राज्य के पुलिस महानिदेशक जीएमपी रेड्डी कहते हैं, "हम तमाम कॉन्वेंट स्कूलों पर कड़ी नजर रख रहे हैं. जलपाईगुड़ी में धमकी भरे पत्र मिलने के बाद वहां पुलिस टुकड़ी तैनात की गई है."
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