नज़रिया-देशभक्ति ख़ुद मसला है या मसलों का हल?
- 6 फरवरी 2017
जापान में एक घर में चोर घुसा, घर के मालिक ने ग्रामोफ़ोन पर 'किमी गा यो' बजा दिया, राष्ट्रगान सुनते ही चोर सावधान की मुद्रा में खड़ा हो गया.
उसने चोर को बाँधा और पुलिस बुला ली. मुकदमा चला, सुनवाई हुई, फ़ैसला आया- एक महीने जेल की सज़ा.
अदालत ने चोर की देशभक्ति की तारीफ़ करते हुए उसे रिहा कर दिया और जिसने राष्ट्रगान का 'अपमान करते हुए' चोर को बाँधा था उसे जेल भेज दिया.
ये पिछली सदी में जापानी देशभक्ति के अतिरेक का मज़ाक बनाने के लिए गढ़ी गई कहानी है या सचमुच ऐसा हुआ था, कहना मुश्किल है.
इसके सच होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि देशभक्ति की हल्की-सी हिलोर में ही जज अपने फ़ैसलों में 'मेरे देश की धरती सोना उगले' लिखने लगते हैं.
पिछले कुछ सालों में भारत में ऐसे कई 'जापानी चोर' देखे गए, जिन्हें देशभक्ति का 'सहारा' मिला, जिन्होंने 'गुड टाइम' किंग की तरह बिताया, इन लोगों की व्यापारिक संस्थाओं में देशभक्ति की सज-धज देखते ही बनती थी.
जापान ही नहीं, दुनिया के सभी देशों में अतिवादी देशभक्ति के लक्षण एक जैसे हैं- दुश्मनों को मिटाना है, इतिहास बनाना है, हमारा इतिहास, परंपरा, धर्म, संस्कृति, नस्ल आदि गौरवशाली रहे हैं, और जो इसके लिए मरने-मारने को तैयार नहीं हैं, वे देशद्रोही हैं.
पूरी दुनिया में, बिना किसी अपवाद के, अतिवादी देशभक्ति का असल मक़सद साम्राज्य निर्माण, विस्तार और उसका नियंत्रण रहा है.
अगर ऐसा शुरू में नहीं लगा तो आगे चलकर साबित हुआ, हिटलर, मुसोलिनी जैसे अनेक देशभक्त महानायकों के कारनामों से.
दिमाग़ पर ज़ोर डालकर बताइए कि कोई ऐसा तानाशाह गुज़रा है जो देशभक्त नहीं था.
तानाशाह सबसे पहले ख़ुद को देशभक्त नंबर वन घोषित करते हैं ताकि विरोधी अपने-आप देशद्रोही मान लिए जाएं.
इंदिरा गांधी इमरजेंसी के दौरान जितनी देशभक्त थीं उसके पहले और बाद नहीं.
देशभक्ति कोई यूनिवर्सल वैल्यू (मूल्य) नहीं है, जैसे कि सत्य, मानवता, न्याय, समानता हैं.
देशभक्ति भावना है, भावनाएँ जो भड़काई जा सकती हैं, जिन्हें 'दुश्मनों' को कुचलने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. जहाँ भावनाएँ उफ़न रही हों वहाँ तथ्य और तर्क का क्या काम?
ये ऐसी भावना है जिसमें डूबा व्यक्ति दुश्मन अगर सामने न हो तो उसे खोजने लगता है, क्योंकि उसके बिना वो लड़ेगा किससे?
जो हमारे जैसा नहीं सोचता वो पक्के तौर पर हमारा दुश्मन है, यही उसका अनिवार्य निष्कर्ष है.
देशभक्ति और देशप्रेम में अंतर करना चाहिए.
जापान के देशप्रेमियों के बारे में कहा जाता है कि दूसरे महायुद्ध के बाद वे अपने साथ मरम्मत किट लेकर चलते थे और सिनेमा हॉल या बस की फटी हुई सीट सिल देते थे.
लोगों के दिलों में अपने जैसे लोगों के प्रति, और संस्कृति से जो प्रेम है वो देशप्रेम हो सकता है, ये व्यक्तिगत भावना है.
जब राजनैतिक आइडिया के तौर पर उसे उभारा जाता है तो वो अतिवादी देशभक्ति बनने लगती है.
इस समय धरती पर सबसे देशभक्त उत्तर कोरिया की जनता है और 'देशभक्त इन चीफ़' किम जोंग उन.
इंसानों के रहने के लिए निर्विवाद रूप से दुनिया के बेहतरीन देश- नॉर्वे, डेनमार्क, फ़िनलैंड, कनाडा और न्यूज़ीलैंड वगैरह- अभी तक देशभक्ति के क्षेत्र में झंडा नहीं गाड़ पाए हैं.
देशभक्ति चूंकि एक भावना है इसलिए चीख़कर, तोप दाग़कर, रो कर, बड़ी-सी परेड करके या सबसे बड़ा झंडा लहराकर साबित की जा सकती है.
सत्य, न्याय, मानवता जैसे मूल्य इससे ज्यादा की माँग करते हैं जैसे तथ्य, सबूत और नियम.
देशभक्ति चूँकि यूनिवर्सल वैल्यू नहीं है इसलिए देश की हद ही उसकी हद है. गांधी और मंडेला देशभक्त नहीं थे इसलिए पूरी दुनिया उन्हें मानती है, वे न्याय के योद्धा थे, कौन देशभक्त है जिसे दुनिया उनके बराबर रख सके.
देश नागरिकों से नहीं है, नागरिक देश से हैं, ये देशभक्ति की पुख्ता स्थापना है, यानी ये वो विचार है जो भूमि और शासनतंत्र को नागरिकों से ऊपर रखता है यानी मानव नीचे और राजसत्ता ऊपर.
लोकतंत्र में जनता पूछती है कि शासक ने नागरिकों के लिए क्या किया? देशभक्ति काल में नेता पूछता है, तुम देश के लिए इतना भी नहीं सह सकते?
आम तौर पर भक्त की आँखें अपने आराध्य के ध्यान में बंद रहती हैं लेकिन देशभक्त ज़्यादा चौकन्ना हो जाता है, वो देखना चाहता है कि कर्फ्यू या धारा 144 की तरह देशभक्ति पूरी तरह लागू हो गई या नहीं.
युद्ध या संकट के समय देशभक्ति एक स्वाभाविक सामुदायिक प्रतिक्रिया है, ये साफ़ कर देना ज़रूरी है कि धर्म की ही तरह देशभक्ति अपने-आप में समस्या नहीं है बल्कि कई बार संकट में फँसे देशों के काम आती है, लेकिन जब कोई संकट न हो तो उसका राजनीतिक इस्तेमाल शर्तिया संकट खड़े करता है.
और अंत में एक ज़रूरी सवाल, बीसियों बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे किसी भी देश में देशभक्ति किस मसले का हल है?
(बीबीसी हिन्दी
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